पुणे में महिलाओं को भी मिला संपत्ति के मालिकाने में हक
- Muskan Khandelwal
- Published on 31 May 2023, 5:00 pm IST
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हाइलाइट्स
- गृहस्वामिनी नाम से जिला परिषद ने की पहल, आईएएस अधिकारी सीईओ आयुष प्रसाद ने शुरू किया पारिवारिक संपत्ति रिकॉर्ड में महिलाओं का नाम दर्ज कराने का अभियान
- एक वर्ष के भीतर घरों की सह-स्वामित्व वाली महिलाओं का प्रतिशत 16% से बढ़कर 89% हुआ
- अब महिलाएं अपना कारोबार शुरू करने या उसे फैलाने के लिए संपत्ति के बदले ले रही हैं कर्ज
वे अब अबला नारी नहीं रहीं। वे घरेलू हिंसा पर चुप भी नहीं रहती हैं। वे न केवल तेजी से इसकी सूचना पुलिस को दे रही हैं, बल्कि खुद का बिजनेस शुरू कर आर्थिक रूप से मजबूत भी हो रही हैं। यह जादू किया है संपत्ति में मालिकाना हक मिल जाने से, जो पुणे जिला परिषद के सीईओ आयुष प्रसाद ने गृहस्वामिनी नामक योजना के तहत दिया है।
इस योजना का उद्देश्य हर घर में कम से कम एक महिला का नाम पारिवारिक संपत्ति के रिकॉर्ड के सह-मालिक के रूप में शामिल करना है। जब योजना शुरू की गई थी, तब केवल 16% संपत्तियों का स्वामित्व महिलाओं के पास था। अब 89% संपत्तियों का सह-स्वामित्व महिलाओं के पास है।
आईएएस अधिकारी आयुष प्रसाद ने इंडियन मास्टरमाइंड्स से कहा, “पुणे जिले में 9.27 लाख घरों में से 8.17 लाख संपत्तियों में सह-मालिक के रूप में कम से कम एक महिला का नाम जरूर है।”
अभियानः
महिलाओं को संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन के लिए प्रोत्साहित करने में प्रशासन ने शुरुआत में ग्राम सभाओं की मदद ली। पहले दौर में संपत्ति का रजिस्ट्रेशन 41% तक पहुंच गया। इसके बाद 8 मार्च को महिला दिवस समारोह में इन 41% महिला सह-मालिकों को संपत्ति कार्ड दे भी दिए गए।
इस अभियान ने अन्य महिलाओं, पति-पत्नी, ससुराल वालों और अन्य लोगों को घर की महिलाओं के नाम दर्ज कराने के लिए प्रोत्साहित किया। एक व्यापक अभियान के बाद महिला दिवस के तुरंत बाद संपत्ति का स्वामित्व 58% तक बढ़ गया।
अधिकारी और उनकी टीम इतने में ही संतुष्ट नहीं हुए। और आगे बढ़े। जहां एसएचजी यानी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं घर-घर गईं और काउंसलिंग की। कुछ लोगों ने अपनी बेटियों का नाम जोड़ा, तो ज्यादातर ने अपनी बहू का।
श्री प्रसाद ने बताया, “एक बुजुर्ग महिला ने मुझे बताया कि उसके मायके वालों ने उसकी शादी के लिए दहेज दिया था। फिर भी इस अभियान के कारण उसके सास-ससुर ने अब उसे घर की मालकिन बना दिया है।”
सकारात्मक परिणामः
संपत्ति पर इतनी सारी महिलाओं के नाम होने से प्रशासन महिलाओं को संपत्ति के मोनेटाइज यानी मुद्रीकरण में मदद करने की कोशिश कर रहा है। छोटा या बड़ा बिजनेस शुरू करने के लिए स्वयं सहायता ग्रुप उन्हें लोन लेते समय संपत्ति गिरवी रखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, ताकि वे कम ब्याज दर पर अधिक लोन ले सकें। इससे वे छोटे कारोबार करने के बजाय बड़ा कारोबार कर सकेंगे। प्रशासन इस तरह के स्वरोजगार के अवसर मुहैया कराने के लिए तत्पर है।
उन्होंने कहा, “हम उम्मीद कर रहे हैं कि बच्चे सस्ता एजुकेशन लोन लेकर अपने सपनों को पूरा करेंगे। दूसरी ओर, हम वित्तीय समावेशन अभियान भी चलाने की कोशिश कर रहे हैं।”
घरेलू हिंसा की शिकायतें बढ़ीं:
प्रशासन ने देखा कि महिलाएं अब घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराने को लेकर विश्वास जुटा रही हैं। 2005 के घरेलू हिंसा कानून के तहत पहले रिपोर्ट करने वाली महिलाओं को आश्रय गृह यानी शेल्टर होम भेज दिया जाता था। सिर से छत खोने का डर कई महिलाओं को घरेलू हिंसा की रिपोर्ट करने से रोकता है। श्री प्रसाद ने कहा, “बदले हालात में जिले में घरेलू हिंसा को लेकर एफआईआर दर्ज कराने की संख्या अब तीन गुना बढ़ गई है।”
प्रशासन ने हर ग्राम पंचायत वार्ड में 21,000 महिलाओं की एक फोर्स तैयार कर दी है, जो स्वैच्छिक है। वे घर-घर जाती हैं और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण जानकारी जुटाती हैं। वे जागरूक करने का अभियान चला रही हैं, सलाह देती हैं, और जब किसी महिला को पीटा जा रहा होता है तो दखल भी देती हैं।
सर्वेः
कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र से पीएचडी कर रहीं आकांक्षा वरदानी यह समझने के लिए सर्वे कर रही हैं कि घर के स्वामित्व में किसी महिला का नाम जुड़ना महिला सशक्तीकरण में सुधार पर कैसे प्रभाव डाल सकता है।
उनके मुताबिक, “अब तक हमने पाया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में जागरूकता का प्रतिशत कम है। कई महिलाएं इस बात से अनजान थीं कि उनका नाम सह-मालिक के रूप में जोड़ा गया है। हालांकि, एक बार जब उन्हें सह-स्वामित्व के बारे में पता चल गया, तो वे इससे काफी खुश थीं।”
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