आईजी पी. विजयन की कहानी, जो 10 वीं में फेल हो गए थे और मजदूरी करते थे
- Raghav Goyal
- Published on 9 Dec 2021, 10:30 am IST
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हाइलाइट्स
- सफलता के सबके लिए अलग मायने हो सकते हैं, लेकिन जब आपकी नींव कमजोर हो और परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत हों, तब?
- उस वक्त लड़कर सफलता हासिल करना और फिर शीर्ष पर पहुंचना अपने आप में सिर्फ कामयाबी भर नहीं है, बल्कि एक ऐसी मिसाल है जिसके बारे में हर युवा को जानना चाहिए और प्रेरणा हासिल करनी चाहिए।
- इंडियन मास्टरमाइण्ड्स की इस खास रिपोर्ट में पढ़िए कहानी केरल के उस आईजी की जो कभी 10 वीं फेल हुआ था और मजदूरी करता था!
- आईजीपी पी. विजयन (फोटो क्रेडिट: फेसबुक)
अंग्रेजी में एक मशहूर कहावत है – ‘When life gives you lemons, make lemonade out of it.’ इसका शाब्दिक अर्थ तो यही है कि ‘जब जीवन आपके हिस्से में नींबू सौंपे, तो आप उसमें से नींबू-पानी बनाइए।’ लेकिन इसका वास्तविक अर्थ है कि जब भी जीवन में मुश्किलें आएं, तो उनसे भी सर्वश्रेष्ठ लाभ उठाएं यानी अगर आपको नकारात्मक स्थितियां मिलती हैं तो उन्हें भी अपनी मेहनत से सकारात्मक परिस्थितियों में बदल दें।
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी पी. विजयन ने ठीक यही किया और आज सभी उनकी दिल खोलकर प्रसंशा करते हैं, यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी उपलब्धियों की सराहना की है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि जब जीवन वास्तव में आपके हिस्से में नींबू देता है, तो नींबू-पानी बनाना असल में बड़ा कठिन हो जाता है और ऐसी कठिन परिस्थितियों में जो सच्ची लगन के साथ दृढ़ होता है, निरंतर प्रयास करता है और खुद पर भरोसे के साथ सकारात्मक रूख अपनाए रहता है, सफलता भी उसी के हिस्से में जाती है।
जरा सोचकर देखिये, 10 वीं कक्षा में फेल होने के बाद बेहतर शिक्षा की कितनी उम्मीद बची होगी, या युवावस्था में ही एक निर्माण-मजदूर के रूप में काम करने वाला लड़का सिविल सेवा में जाने के सपने कैसे देख पाया होगा! लेकिन केरल में पुलिस महानिरीक्षक पी. विजयन एक जीवंत उदाहरण हैं जिन्होंने इन दोनों स्थितियों का सामना किया और सफलतापूर्क लड़ते हुए विजेता बनकर निकले।
उत्तर केरल के कोझीकोड के पास पुथूर्मडम में जन्मे विजयन को शुरूआत से ही एहसास था कि जिंदगी ने उनके लिए कांटों की सेज बिछा रखी है, वो भी अजीब विडंबनाओं के साथ। उदाहरण के लिए, उनके गांव में अधिकतर लोग 90 वर्ष की आयु तक जीवित रहते थे, फिर भी यहां की साक्षरता दर बहुत कम थी।
शायद यही वे विडम्बनाएं थीं जिन्होंने विजयन को और अधिक मजबूत और बुद्धिमान बनाया। साथ ही उन्होंने यह सीखा कि जब व्यक्ति की परिस्थितियां खराब हों, तो वो इनमें से एक रास्ता चुन सकता है। और यही उन्होंने हमेशा किया।
उनके पिता पी. वेलायुधन एक किसान थे और उनके पास एक छोटा जमीन का टुकड़ा था जिस पर वे खेती करते थे। वहीं उनकी मां लीला एक गृहिणी थीं जो खेती के कामों में अपने पति की मदद करती थीं। विजयन चार भाईयों और दो बहनों के साथ कुल सात भाई-बहनों में से तीसरे सबसे बड़े बच्चे थे।
विजयन ने इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ बात करते हुए कहा, “मेरे गांव के लोग बहुत सज्जन और भोले हैं। वहां जीवन-प्रत्याशा भी 90 प्रतिशत से ऊपर है, फिर भी औपचारिक शिक्षा को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है।”
बड़े होने पर उन्होंने सातवीं कक्षा तक एक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में पढ़ाई की, जहां एक ही क्षेत्र के अधिकांश छात्र पढ़ने जाते थे। वह अन्य भाई-बहनों में से थे, जो हाई स्कूल में पढ़ाई के लिए अपने गांव से चार-पांच किलोमीटर दूर स्थित स्कूल जाते थे।
उन्होंने कहा, “उस समय नौकरियों को कोई बड़ी बात नहीं माना जाता था, इसलिए मैं और मेरे भाई-बहन माता-पिता को कृषि कार्यों में सहायता करते थे। मैं स्कूल के बाद और सप्ताह के अंत में अपने पिता की कृषि गतिविधियों जैसे गाय का दूध दुहने आदि में मदद करता था।”
10 वीं में फेल और निर्माण-मजदूर बनना
चूंकि पुथूर्मडम जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में औपचारिक शिक्षा को ज्यादा बढ़ावा नहीं दिया जाता है, तो बच्चे भी पढ़ाई में रुचि दिखाने से बचते हैं। विजयन भी खेती में अपने माता-पिता की सहायता कर रहे थे, शायद इसीलिए उनका भी मन पढ़ाई में नहीं लग पाया। जब कक्षा 10 का परिणाम आया तो यह विजयन हाईस्कूल की परीक्षा में फेल हो गए।
वो कहते हैं, “मेरा मुख्य ध्यान पढ़ाई में नहीं बल्कि परिवार का हाथ बंटाने में था। मैं अपने माता-पिता की हालत जानता था और सात बच्चों की देखभाल करना आसान काम नहीं था। मैंने अपने पिता से बात भी की क्योंकि मैं उनके लिए बोझ नहीं बनना चाहता था और अपना योगदान देना चाहता था। मैं गणित और भौतिकी में अच्छा था, लेकिन तब यह मेरा जुनून या प्राथमिकता नहीं थी।”
उस क्षेत्र के लोग बहुत कम उम्र में काम करना शुरू कर देते थे, अधिकतर लोग निर्माण होने वाली जगहों पर एक मजदूर के रूप काम करते थे। विजयन के पड़ोस में कई ठेकेदार थे, इसलिए हाई स्कूल में असफल होने के बाद उन्होंने एक मजदूर के रूप में वहां काम करना शुरू कर दिया। मुख्य कार्य कंक्रीट मिश्रण को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना था। लगभग डेढ़ साल तक वहां काम करने के दौरान, वह एक बिल्डर बनने का सपना देखने लगे क्योंकि नौकरी में वही कर्ता-धर्ता होता था।
अधिक अंकों के साथ स्कूल पास करना
उसी साल दिसंबर में, उनके साथ काम करने वाले एक शख्स ने उन्हें रात में चलने वाले एक ट्यूशन सेंटर में प्रवेश लेने की सलाह दी, यह सेंटर उनके मूल स्थान से लगभग पांच किलोमीटर दूर था। उसकी सलाह मानते हुए, वह जनवरी में उस जगह गए जिससे कि जान सके कि यह क्या है। उस वक्त कक्षा 10 की परीक्षाएं भी मार्च में होनी थीं। दो बैच बनाए गए, पहले बैच में वे छात्र शामिल थे जो परीक्षा में बैठने के लिए तैयार थे, जबकि दूसरे बैच में वे छात्र शामिल थे जो पूरी तरह से तैयार नहीं थे। विजयन को दूसरे बैच में जगह मिली।
लेकिन स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें उस वर्ष परीक्षा में बैठने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्होंने भी कोशिश करने की ठान ली। वह 10 वीं की परीक्षा में उपस्थित हुए और अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण भी हो गए। उच्च प्रतिशत प्राप्त करने के बाद, उन्हें अचानक एहसास हुआ कि अब अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। यही वह वक्त था जब उन्होंने आगे की पढ़ाई के विकल्प का फैसला किया।
चूंकि विजयन की मूल भाषा मलयालम थी, उन्हें अंग्रेजी बहुत कठिन भाषा लगी। इसलिए उन्होंने रात के समय एक ट्यूशन शिक्षक की सहायता ली और कक्षा 12 की परीक्षा की तैयारी और अध्ययन भी शुरू कर दिया। नौकरी के साथ-साथ ही कक्षा 12 की परीक्षा दी। उन्होंने बहुत अच्छे प्रतिशत के साथ परीक्षा पास भी की, लेकिन वह नौकरी नहीं छोड़ना चाहते थे।
उस समय पुथूर्मडम जैसे ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले बच्चों के लिए कॉलेज में शामिल होना एक जीवन भर का सपना और अवसर होता था। जिस सहकर्मी ने उन्हें रात को ट्यूशन सेंटर में शामिल होने की सलाह दी थी, वह फिर से विजयन की मदद के लिए आगे आया और उसने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज में दाखिला लेने के लिए कहा।
उसके बाद विजयन ने कई प्रवेश परीक्षाएं दी और उनमें से लगभग सभी को पास किया, लेकिन उन्होंने उस कॉलेज को चुना जो उनकी जगह से 10 किलोमीटर दूर था। उन्होंने बीए अर्थशास्त्र में स्नातक के लिए दाखिला लिया। कॉलेज के पहले ही साल उन्होंने अतिरिक्त गतिविधियों (एक्स्ट्रा-करीकुलर एक्टिविटीज) में भाग लेना शुरू कर दिया। उन्होंने ‘उदया आर्ट्स और स्पोर्ट्स क्लब’ का भी गठन किया, जिसमें नाटक प्रतियोगिता और वार्षिक और सीजनल (सामयिक) खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थीं। उन्हें क्लब का सचिव नामित किया गया था, साथ ही वो सामाजिक गतिविधियों जैसे कि दान और बेघर लोगों की मदद करना आदि में भी शामिल होते थे।
इस बीच, विजयन ने अपने चचेरे भाई के साथ एक साबुन निर्माण की इकाई भी शुरू की और तीन साल की स्नातक स्तर की पढ़ाई के दौरान इसमें काम किया। यहां एक और विडंबना उन्हें आधे रास्ते में मिली। उनका साबुन का व्यवसाय तो सफल नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने कॉलेज से उस वर्ष के बैच के टॉपर के रूप में स्नातक पूरा किया।
यूपीएससी पर नजर
स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, विजयन ने अर्थशास्त्र में एमए और एमफिल करने के लिए कालीकट विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। उन्होंने अपनी मास्टर डिग्री की पढ़ाई पूरी की और तीन महीने में आने वाले परिणाम का इंतजार कर रहे थे। इसी प्रतीक्षा अवधि के दौरान, उन्होंने यूजीसी फैलोशिप परीक्षा के लिए आवेदन किया और इसमें सफल हो गए।
स्नातकोत्तर पूरा करने के बाद, वह तिरुवनंतपुरम में स्थानांतरित हो गए। अपना शोध करते समय, उन्हें वहां के कई प्रोफेसरों का समर्थन मिला। उनमें से कईयों ने उन्हें सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के लिए कहा। विजयन कहते हैं, “एक दिन सिविल सेवा परीक्षा देने की ख्वाहिश मेरे मन में जरूर थी, लेकिन एक प्रोफेसर ने जोर देकर मुझसे कहा कि मैं जल्द ही यह परीक्षा दूं।”
तीसरे प्रयास में आईपीएस निकला
पहले प्रयास में पी. विजयन केंद्रीय सचिवालय सेवा के लिए चुने गए और उन्होंने नियुक्ति भी ले ली, साथ ही वह फिर से सिविल सेवा परीक्षा के लिए उपस्थित हुए। अपने दूसरे प्रयास में, वह रेलवे सेवा के लिए चुने गए। जब वह इस सेवा के लिए ट्रेनिंग कर रहे थे, तभी उन्होंने एक बार फिर से यूपीएससी परीक्षा दी और अपने तीसरे प्रयास में आईपीएस के लिए चुने गए।
लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी, मसूरी और सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद में अपने प्रशिक्षण के दौरान, विजयन का अपनी पत्नी डॉ. बीना से परिचय हुआ जो कि एक आईएएस अधिकारी हैं और एमबीबीएस स्नातक थीं। विजयन उनके बारे में बात करते हुए कहते हैं, “वह 10 वीं कक्षा से लेकर सिविल सेवा की परीक्षाओं तक एक शानदार छात्रा थीं और एक डॉक्टर भी हैं।”
उपलब्धियों से भरा कैरियर
केरल कैडर के 1999 बैच के आईपीएस अधिकारी पी. विजयन वर्तमान में केरल के पुलिस मुख्यालय में पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) हैं। सामाजिक गतिविधियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उनकी गहरी रुचि है और उन्होंने एक सिविल सेवक के रूप में कार्य करते हुए कई प्रोजेक्ट्स की शुरुआत की है।
इनमें से ‘स्टूडेंट्स पुलिस कैडेट्स’ (एसपीसी), ‘अवर रिस्पॉन्सिबिलिटी टू चिल्ड्रेन’ (ओआरसी), ‘होप’ (HOPE), ‘क्लीन कैंपस सेफ कैंपस इनिशिएटिव’ सहित कई अन्य शामिल हैं। वह ‘केरल स्टेट एंटी-नार्कोटिक स्पेशल एक्शन फोर्स’ के टीम लीडर और ‘चिल्ड्रन एंड पुलिस’ (सीएपी) प्रोजेक्ट के राज्य नोडल अधिकारी भी हैं।
अपनी 21 सालों की सेवा में उन्होंने कासरगोड, तिरुवनंतपुरम, मलप्पुरम और एर्नाकुलम जिलों के पुलिस प्रमुखों और कोच्चि, कोझीकोड, त्रिशूर और तिरुवनंतपुरम में पुलिस आयुक्त के रूप में विभिन्न जगहों और पदों पर काम किया है। इसके अलावा, उन्होंने डीआईजी (सशस्त्र पुलिस Bn.), डीआईजी (इंटेलिजेंस), डीआईजी (ट्रेनिंग), और आईजीपी (कोच्चि रेंज) के रूप में भी काम किया है।
सबरीमाला के लिए एक जवाबदेह और जागरूक तीर्थ यात्रा के लिए की गई पहल ‘पुण्यम पूनकवनम’ को लागू करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम पी. विजयन की सराहना की थी।
उन्हें सीएनएन आईबीएन इंडियन ऑफ द ईयर (पॉपुलर चॉइस) पुरस्कार 2014 और राष्ट्रपति पुलिस पदक मेधावी सेवा-2015 पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही पब्लिक पॉलिसी इनोवेशन में स्टूडेंट पुलिस कैडेट (एसपीसी) शुरू और कार्यान्वित करने के लिए 2014 में केरल मुख्यमंत्री पुरस्कार और प्रोजेक्ट अवर रिस्पॉन्सिबिलिटी टू चिल्ड्रन (ओआरसी) शुरू करने और लागू करने के लिए 2019 में केरल मुख्यमंत्री पुरस्कार उन्हें मिल चुका है।
छात्र पुलिस कैडेट (एसपीसी)
एसपीसी, पी. विजयन द्वारा शुरू की गई एक पहल है। जब वो नगर आयुक्त के रूप में काम कर रहे थे, तब उन्होंने इसे शुरू किया था। एसपीसी एक स्कूल-आधारित युवा विकास कार्यक्रम है, जो कानून, अनुशासन, नागरिक समझ और अच्छे नागरिक होने के बारे में हाई स्कूल के छात्रों को प्रशिक्षित करके एक लोकतांत्रिक समाज के भविष्य के नेताओं का निर्माण करने पर केंद्रित है।
इसके लिए एक राज्य-स्तरीय सलाहकार समिति का गठन किया गया, जिसमें जेकोब पुन्नोज (पूर्व-डीजीपी, केरल) अध्यक्ष के रूप में, कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारी सदस्य के रूप में और एसपीसी परियोजना के लिए आईपीएस पी. विजयन राज्य नोडल अधिकारी के रूप में शामिल हैं। अब तक, यह 1,500 से अधिक छात्रों को प्रशिक्षित कर चुका है।
इस तरह, उल्लेखनीय उपलब्धियों से भरी विजयन की यात्रा बिना रुके जारी है…।
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