आईएएस , ओपिनियन , ब्यूरोक्रेसी
युवा नौकरशाहों को निखारना
- Anil Swarup
- Published on 7 Jul 2023, 9:43 am IST
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हाइलाइट्स
- धरातल पर नए और युवा ब्यूरोक्रेट्स को कर्तव्यों की भूलभुलैया में अपना रास्ता खोजने के लिए अनुभवी सीनियर अफसरों से सलाह की जरूरत पड़ती है
- बस ध्यान देने और कुछ प्रश्न पूछने से युवा अधिकारियों के सामने आने वाली समस्याओं को हल करने में मदद मिल सकती है
- मेंटर आलोचना करने के बजाय, फीडबैक के साथ नसीहत देकर नए रंगरूटों को सही रास्ते पर रख सकते हैं
शाम करीब छह बजे एक युवा आईएएस अधिकारी ने फोन किया। वह उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात थे। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद यह उनकी पहली पोस्टिंग थी। मैं उनकी आवाज में कुछ हताशा और जल्दबाजी महसूस कर रहा था। वह किसी मुद्दे पर निजी तौर पर चर्चा करने के लिए मुझसे मिलना चाहते थे और वह तुरंत आना चाहते थे। बता दूं कि रिटायर होने के बाद मैं नोएडा में रहने लगा हूं। मुजफ्फरनगर नोएडा से लगभग तीन घंटे की ड्राइव पर था। मुझे व्यक्तिगत रूप से उस वक्त भी उनके आने से कोई समस्या नहीं थी, इसलिए मैंने उन्हें आ जाने को कहा। वह रात करीब 9.30 बजे मेरे घर पहुंचे।अधिकारी ने जो बताया, उससे मुझे आश्चर्य हुआ। उन्होंने उल्लेख किया कि चूंकि चुनाव नजदीक थे, मुजफ्फरनगर में कुछ समूह थे जो नारे लगा रहे थे। इससे सांप्रदायिक तनाव पैदा होने की आशंका थी। जब उन्होंने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो उन्हें ऊपर से हस्तक्षेप न करने के निर्देश मिले। वह ऐसे मुद्दे पर मेरी सलाह चाहते थे।
अपनी अंतरात्मा की सुनो
मैंने उनके सवाल का जवाब देने के बजाय, पूछा कि उनकी अंतरात्मा क्या कहती है। उनका स्पष्ट मानना था कि ऐसी गतिविधियों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। फिर मैंने उनसे पूछा कि क्या वह इसके साथ आगे बढ़ने के नतीजों के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि उनका ट्रांसफर हो सकता है। फिर मैंने उनसे पूछा कि क्या बाहर ट्रांसफर होने से वह चिंतित हैं। उन्होंने कहा-नहीं। फिर मैंने उनसे कहा कि आगे बढ़ो और वही करो, जो उन्हें लगता है कि किया जाना चाहिए। इस संक्षिप्त बातचीत के बाद वह मुजफ्फरनगर लौट गए।मुझे बाद में पता चला कि उनका ट्रांसफर हो गया है। हालांकि, जब उन्होंने कुछ दिनों बाद अपनी नई पोस्टिंग वाली जगह से फोन पर मुझसे बात की, तो वह अपने काम से काफी संतुष्ट दिखे। उन्होंने बताया कि उनकी स्पष्ट सोच के कारण नई जगह पर पोस्टिंग से उन्हें फायदा हो रहा है।
मार्गदर्शन में क्या है?
बात सुनने और कुछ सवाल पूछने के बाद मैंने उस युवा अधिकारी के सामने आने वाली समस्याओं को सुलझाने में कोई योगदान नहीं दिया। लेकिन यह मायने रखता था। मार्गदर्शन का असल मतलब यही है। जब मैं सर्विस में आया था तो सीनियर अधिकारियों के मार्गदर्शन से मुझे लाभ हुआ था। इसलिए मैंने बड़ी संख्या में युवाओं के संपर्क में रहकर व्यक्तिगत रूप से इस परंपरा को बनाए रखने का प्रयास किया।मैं समझता हूं कि प्रशासन तेजी से पेचीदा होता जा रहा है, लेकिन बड़ी संख्या में सीनियर अधिकारी आईएएस की विश्वसनीयता में कथित कमी के लिए नई पीढ़ी को जिम्मेदार ठहराते हैं। दरअसल उन्हें इस बात का अहसास नहीं है कि वे भी इस तरह की धारणा के लिए जिम्मेदार हैं। मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि एक बड़े राज्य के मुख्य सचिव इस बात पर विलाप कर रहे थे कि युवा अधिकारी रास्ते से भटक रहे हैं। विडंबना यह है कि उन्होंने संस्थागत व्यवस्थाओं के माध्यम से कोई भी सुधार करने के लिए बहुत कम प्रयास किया, जो वह शायद कर सकते थे।
इससे कौन-सा उद्देश्य पूरा होगा?
जब कोई युवा अधिकारी सर्विस में शामिल होता है, तो वह प्रशासन की भागदौड़ से पूरी तरह परिचित नहीं रहता है। नौकरी के दौरान और जिन सीनियर अधिकारियों के साथ वे काम करते हैं, उनके सहयोग से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। मार्गदर्शन में युवाओं को बातचीत के लिए उपलब्ध होना और उनकी बात सुनना शामिल है। इससे अपने आप में अधिकारियों को तसल्ली होगी। इसका मतलब यह जरूरी नहीं कि उन मुद्दों का समाधान किया जाए जिनका उन्हें सामना करना पड़ सकता है। यह एक आश्वासन की तरह है कि कोई समस्या होने पर किसी से संपर्क किया जा सकता है। जब अधिकारियों को दुविधा का सामना करना पड़ता है, तो इसमें कुछ मार्गदर्शन काम आता है। जब वह गलत नहीं होता है, तो सुरक्षा भी मिलती है, साथ ही वास्तविक गलतियों के लिए भी इसमें कुछ मार्गदर्शन शामिल होता है।युवा अधिकारियों को जिन ‘भटकाव’ का सामना करना पड़ता है, उन्हें देखते हुए मेंटर भी नए रंगरूटों यानी ट्रेनी अफसरों को ‘ट्रैक पर’ रख सकते हैं और उन्हें अनौपचारिक ‘चेतावनी’ के माध्यम से फीडबैक दे सकते हैं। बजाय इसके कि पीठ पीछे कुछ करें, जैसा कि आजकल अक्सर होता है। केवल ‘मूक’ आलोचक बने रहने से बेहतर है कि ‘फीडबैक’ के साथ उस अधिकारी का भला किया जाए।
इसे संस्थागत बनाया जाना चाहिए
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, ऐसे कई अधिकारी हैं जो अनौपचारिक रूप से जूनियर को सलाह दे रहे हैं। इसे संस्थागत बनाने की जरूरत है। आरंभ करने के लिए, यह कार्य एलबीएसएनएए द्वारा प्रत्येक राज्य में संबंधित पर्सनल और प्रशिक्षण विभाग के साथ मिलकर ऐसे सीनियर अधिकारियों (सेवारत और रिटायर-दोनों) की पहचान करके किया जा सकता है, जिनकी बेदाग प्रतिष्ठा है और जो मेंटर के रूप में कार्य करने के लिए तैयार हैं। युवा अधिकारी जैसे ही अकादमी से निकलते हैं, उन्हें छोटे प्रबंधकीय समूहों में इन मेंटर से जोड़ा जा सकता है। गुरु और शिष्य एक-दूसरे के संपर्क में रह सकते हैं और रिश्ते को विकसित होने दे सकते हैं। शुरुआत में कुछ मुद्दे होंगे, लेकिन एसोसिएशन विकसित होगा और समय के साथ समझदारी बढ़ेगी।
लोकपाल जैसी संस्था कर सकती है मदद
दूसरा तरीका हर राज्य में लोकपाल लोकपाल जैसी संस्था की स्थापना के रूप में हो सकता है। इसमें दो से तीन सीनियर आईएएस अधिकारी शामिल होंगे, जो अपनी ईमानदारी और मदद करने की इच्छा के लिए जाने जाते हैं। अन्य कार्यों के अलावा, लोकपाल उन सभी अधिकारियों के लिए उपलब्ध होगा जिनके खिलाफ गलत आरोपों को लेकर शिकायतें हैं। वे लोकपाल को बता सकते हैं और यदि लोकपाल उचित जांच के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अधिकारी को अनुचित रूप से परेशान किया जा रहा है, तो एसोसिएशन संबंधित अधिकारी की ओर से मामले में सहायता कर सकता है और लड़ सकता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां ईमानदार अधिकारी अकेले ही अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। इससे गलत संकेत जाता है।लोकपाल ऐसे अधिकारियों से खुद पहल कर भी संपर्क कर सकता है, जिनके खिलाफ फीडबैक या समझ हो कि वे पटरी से उतर रहे हैं। तब अधिकारी को यह बताया जाएगा कि उसके आचरण पर ध्यान दिया जा रहा है और उसे ‘सावधान’ रहने की सलाह दी जा सकती है।अधिकारियों को सलाह देने की आवश्यकता पर अधिक बल नहीं दिया जा सकता। वास्तव में, पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से सर्विस विकसित हुई है, जिसमें तथाकथित 360-डिग्री मूल्यांकन ने अपनी अपारदर्शी प्रकृति के कारण कई अधिकारियों को तबाह कर दिया है, यहां तक कि सीनियर अधिकारियों को भी परामर्श की आवश्यकता होगी। दुख की बात है कि यह 360-डिग्री मूल्यांकन निजी क्षेत्र से उधार लिया गया है, लेकिन इसे पूरा लागू नहीं किया गया है। सरकार में न केवल इस प्रक्रिया में बहुत कुछ अपेक्षित नहीं है, बल्कि निजी क्षेत्र के विपरीत, जहां अधिकारी के भाग्य का फैसला करने से पहले संबंधित व्यक्ति के साथ गहन बातचीत की जाती है, यहां उससे कोई बात नहीं की जाती।बहुत कुछ करने की जरूरत है, जिसे किया जाना चाहिए। हालांकि, शुरुआत सरलता से की जा सकती है।
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