जानिए सिविल सेवा परीक्षा का पूरा इतिहास
- Sharad Gupta
- Published on 30 May 2023, 4:14 pm IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- अंग्रेजों के जमाने से भारत में अखिल भारतीय और केंद्रीय सेवाओं की यात्रा पर एक नजर
- उन्हें कैसे और क्यों बनाया गया, और आज के अवतार का हर पहलू
- सिविल सेवा के जानकार अभिषेक कुमार ने इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ वीडियो बातचीत में इस पर विस्तार से बात की
हम पेश कर रहे हैं सिविल सेवाओं के जानकार अभिषेक कुमार का खास वीडियो इंटरव्यू, जिसमें उन्होंने हमें देश में यूपीएससी और सिविल सेवाओं के इतिहास के बारे में बताया है…
ईस्ट इंडिया कंपनी के नौकरशाह ही कंपनी के डायरेक्टर चुने जाते थे। उसके बाद लंदन के हेलबरी कॉलेज में उन्हें ट्रेनिंग दी जाती थी। फिर उन्हें भारत भेजा जाता था। ब्रिटिश संसद की सेलेक्ट कमेटी की लॉर्ड मैकाले की रिपोर्ट के बाद भारत में 1854 में योग्यता आधारित आधुनिक सिविल सेवा शुरू करने की सोच बनी थी। तब 1854 में लंदन में सिविल सेवा आयोग की स्थापना की गई और 1855 में प्रतियोगी परीक्षाएं शुरू की गई थीं।
भारतीय सिविल सेवा:
शुरू में भारतीय सिविल सेवा की परीक्षाएं केवल लंदन में होती थीं। इस परीक्षा मे बैठने वालों की अधिकतम उम्र 23 और न्यूनतम 18 वर्ष होनी चाहिए थी। सिलेबस को इस तरह से तैयार किया गया था, ताकि भारतीय नागरिकों का चयन बेहद कठिन हो जाए।
सत्येंद्रनाथ टैगोर 1864 में आईसीएस में चुने जाने वाले पहले भारतीय थे। वह नोबेल पुरस्कार विजेता महान साहित्यकार रवींद्रनाथ टैगोर के भाई थे। तीन साल बाद चार अन्य भारतीय भी इस परीक्षा में सफल हुए। अगले 50 वर्षों में बिना सफलता के भारतीय देश में एक साथ परीक्षा कराने की गुहार लगाते रहे।
1922 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद मोंटागु चेम्सफोर्ड सुधारों को लागू किया गया। तब जाकर पहले इलाहाबाद में और बाद में दिल्ली में केंद्रीय लोक सेवा आयोग की स्थापना के साथ भारतीय सिविल सेवा परीक्षा (आईसीएस) भारत में ही शुरू की गई।
भारतीय पुलिस सेवाएं:
स्वतंत्रता से पहले देश के पुलिस अधिकारी प्रतियोगी परीक्षाएं देकर सरकार के सचिव द्वारा नियुक्त भारतीय (शाही) पुलिस सेवा से संबंधित होते थे। इस सेवा के लिए पहली प्रतियोगी परीक्षा जून, 1893 में इंगलैंड में हुई थी। टॉप- 10 में आने वालों को प्रोबेशनरी असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट (एएसपी) के रूप में नियुक्त किया गया था।
1920 के बाद भारतीयों को इंपीरियल पुलिस में प्रवेश की अनुमति दी गई। इसके अगले साल इंग्लैंड और भारत में इसके लिए परीक्षाएं कराई गईं। 1931 तक पुलिस अधीक्षकों (एसपी) के कुल पदों में से केवल 20 फीसदी पदों पर ही भारतीय नागरिकों की नियुक्ति होती थी। हालांकि, उपयुक्त ब्रिटिश उम्मीदवारों की कमी के कारण 1939 से धीरे-धीरे अधिक भारतीयों की भारतीय पुलिस में नियुक्ति शुरू की गई।
भारतीय वन सेवा:
ब्रिटिश गवर्नमेंट ने भारत में 1864 में इंपीरियल यानी शाही वन विभाग की शुरुआत की और 1867 में इंपीरियल वन सेवा का गठन किया गया। साल 1885 तक इंपीरियल वन सेवा में नियुक्त अधिकारियों को फ्रांस और जर्मनी में ट्रेनिंग दी जाती थी।
1905 तक उन्हें लदंन की कूपर्स हिल में ट्रेनिंग दी गई थी। 1920 में इंपीरियल फॉरेस्ट सर्विस में इंग्लैंड में सीधी भर्तियां, जबकि भारत में प्रोविंशियल सर्विस से प्रमोशन के जरिये भर्तियां शुरू हुईं। आजादी के बाद अखिल भारतीय सेवा कानून- 1951 के तहत 1966 में भारतीय वन सेवा बनाई गई थी।
तीन स्तर वाली सिस्टम:
वर्ष 1887 में एचिसन आयोग ने सेवाओं को इंपीरियल (शाही), प्रोविंशियल (प्रांतीय) और सबॉर्डिनेट (अधीनस्थ) जैसी तीन समूहों में बांट दिया। इंपीरियल सेवाओं की भर्ती को कंट्रोल करने वाली अथॉरिटी में ज्यादातर ब्रिटिश अधिकारी शामिल थे।
प्रांतीय सेवाओं के लिए नियुक्ति और कंट्रोल की जिम्मेवारी संबंधित प्रांतीय सरकार की थी, जिसने भारत सरकार की अनुमति से इन सेवाओं के लिए नियम बनाए। भारतीय अधिनियम 1919 के पास होने के साथ भारत के गृह मंत्री की अध्यक्षता वाली दो शाही सेवाओं को अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्रीय सेवाओं में बांट दिया गया।
केंद्रीय सेवाओं का संबंध केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण वाले मामलों से था। जैसे केंद्रीय सचिवालय, रेलवे, भारतीय डाक और टेलीग्राफ सेवा और शाही सीमा शुल्क (कस्टम) सेवा।
संघ लोक सेवा आयोग:
भारत में सर्वश्रेष्ठ सिविल सेवाओं के लिए रॉयल कमीशन था, जिसे ली कमीशन के रूप में भी जाना जाता है। इसने 1924 में भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अनुसार एक वैधानिक लोक सेवा आयोग की सिफारिश की थी। भारत में पहली बार 1 अक्टूबर, 1926 को लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी। इसमें अध्यक्ष के अलावा चार सदस्य थे। ब्रिटेन की होम सिविल सर्विस के सदस्य सर रॉस बार्कर इस आयोग के पहले अध्यक्ष थे।
26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू होने के साथ केंद्रीय लोक सेवा आयोग को संघ लोक सेवा आयोग के रूप में जाना जाने लगा। फिर संविधान के आर्टिकल 378 के खंड (1) के आधार पर केंद्रीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य संघ लोक सेवा के अध्यक्ष और सदस्य बन गए।
सिविल सेवा के जानकार और यूट्यूबर अभिषेक कुमार ने इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ एक बातचीत में इन तमाम बदलावों के बारे में बताया है। कैसे कुछ श्रेणियों के लिए ब्रिटिश काल में आयु सीमा को 23 साल से बढ़ाकर वर्तमान में 42 वर्ष कर दी गई। साथ ही कैंडिडेट के लिए प्रयासों की संख्या भी आजादी से पहले के दो से बढ़कर सामान्य उम्मीदवारों के लिए छह, ओबीसी के लिए नौ और अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए असीमित कर दी गई।
END OF THE ARTICLE