नक्सली इलाके में ‘दूसरा मौका’ देकर स्टूडेंट्स की दुनिया बदल दी इस आईएएस अधिकारी ने, ड्रॉपर्स को जेईई, एनईईटी निकालने में मिली मदद
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 28 Jun 2023, 12:37 am IST
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हाइलाइट्स
- माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में कलेक्टर के दूसरा मौका वाले अभियान से 47 छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने में मिली मदद
- 'छू लो आसमान' नामक सरकारी अभियान 2011 में शुरू हुआ, जहां 4 साल के तय समय में एनईईटी और जेईई जैसी परीक्षाएं पास करने के लिए तैयार किया जाता है
- आईएएस विनीत नंदनवार के कलेक्टर के रूप में शामिल होने के बाद उन्होंने ड्रॉपर्स के लिए एक अलग बैच शुरू किया, इससे उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए संस्थान में एक और वर्ष मिल गया
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिले दंतेवाड़ा के कलेक्टर हैं 2013 बैच के आईएएस अधिकारी विनीत नंदनवार। उन्होंने चौथी कोशिश में UPSC CSE पास की थी। इसलिए वह समझते हैं कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के लिए ‘दूसरा मौका’ क्या मायने रखता है।यही कारण है कि उन्होंने उन स्टूडेंट्स को सरकार द्वारा चलाए जा रहे कोचिंग सेंटर में दूसरा मौका देने की पहल शुरू की। जो पास नहीं हो सके उनके लिए एक अलग ग्रुप शुरू किया, ताकि वे एक और वर्ष के लिए कोचिंग जारी रख सकें। इससे 47 छात्रों को एनईईटी और आईआईटी जेईई परीक्षा में पास होने में मदद मिली।
दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार दंतेवाड़ा में ‘छू लो आसमान’ अभियान के तहत एक संस्थान चलाती है। वहां मुफ्त में आईआईटी जेईई और एनईईटी की तैयारी कराई जाती है। श्री नंदनवार जुलाई, 2022 में दंतेवाड़ा में तैनात हुए और सितंबर में उन्होंने पास नहीं हो पाए छात्रों को एक और वर्ष के लिए कोचिंग की अनुमति देने की पहल की। इससे पहले संस्थान केवल चार साल की निश्चित समय के लिए अनुमति देता था।
इस बदलाव का रिजल्ट शानदार आया। संस्थान के कुल 65 स्टूडेंट्स ने परीक्षा पास की। इनमें 47 ड्रॉपर बैच से थे। श्री नंदनवार ने विशेष बैच के लिए एक विशेष रणनीति भी बनाई थी, जिससे उन्हें पढ़ाई करने और परीक्षा पास करने में मदद मिली।
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए श्री नंदनवार ने कहा, “हम सभी को जीवन में दूसरे मौके की जरूरत पड़ती है। ऐसे में इन छात्रों को भी यह क्यों नहीं मिलना चाहिए? हमारी पहल का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा और दंतेवाड़ा के इतिहास में पहली बार ड्रॉपर बैच की बदौलत मेडिकल और इंजीनियरिंग परीक्षाओं में अधिकतम संख्या में स्टूडेंट्स का चयन हुआ।”
राज्य सरकार द्वारा दंतेवाड़ा जिले में 2011 से ‘छू लो आसमान’ अभियान चलाया जा रहा है। यह वह संस्थान है, जहां 9वीं से 12वीं तक के स्टूडेंट्स रहकर पढ़ाई कर सकते हैं।
सबसे पहले स्क्रीनिंग होती है और फिर चुने गए स्टूडेंट्स
इस पहल के तहत पढ़ाई करते हुए एनईईटी और जेईई की तैयारी कर सकते हैं।सरकारी स्कूलों के 80 स्टूडेंट्स को हर साल एक एंट्रेंस एग्जाम से चुना जाता है। दो बैच हैं- एक लड़कों के लिए और दूसरा लड़कियों के लिए। चुने गए स्टूडेंट्स को मुफ्त स्कूली शिक्षा, कोचिंग, भोजन और भोजन दिया जाता है। चार साल के बाद छात्रों को संस्थान छोड़कर आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जाना पड़ता है।
जब श्री नंदनवार दंतेवाड़ा में कलेक्टर के रूप में आए, तो उन्होंने ड्रॉपर्स के लिए एक अलग बैच शुरू किया। उन्हें एक और वर्ष का समय दिया। इसके लिए सीएसआर फंड से कुछ नई व्यवस्था करनी पड़ी।लेकिन रिजल्ट शानदार रहा। 35 छात्रों के ड्रॉपर बैच से 28 छात्रों को एनईईटी में चुना गया। इसी तरह 19 अन्य को आईआईटी जेईई में चुना गया। जिले से यह परीक्षा पास करने वाली 30 लड़कियों में से 28 ड्रॉपर बैच से हैं!
श्री नंदनवार ने कहा, “जब मुझे यहां पोस्टिंग मिली और मैंने स्टूडेंट्स से बातचीत की, तो मैंने सोचा कि कुछ प्रतिभाशाली छात्रों को दूसरा मौका मिलना चाहिए। जब हम पढ़ाई करते थे, तो हमारे सामने एक ही तरह की दुविधा होती थी कि 12वीं में अच्छे मार्क्स लाने के साथ-साथ किसी और परीक्षा की तैयारी करके अच्छे कॉलेज में दाखिला ले लें। एक ही समय में 12वीं की बोर्ड परीक्षा और मेडिकल या इंजीनियरिंग की परीक्षाओं की तैयारी का बोझ कई लोगों के लिए बहुत अधिक साबित होता है। इसलिए इन्हें भी दूसरा मौका मिलना चाहिए। इसलिए, हमने ड्रॉपर का बैच शुरू किया।
सोच कर बनाया प्रोग्राम
श्री नंदनवार ने न केवल बैच शुरू किया, बल्कि स्टूडेंट्स के लिए एक ठोस रणनीति भी बनाई और नियमित रूप से इसकी निगरानी भी की। यूपीएससी की तैयारी के उनके अनुभव ने स्टूडेंट्स को बदली हुई रणनीति के साथ पढ़ने करने और परीक्षा पास करने में मदद की। उन्होंने स्टूडेंट्स से कहा कि उन्हें परीक्षा से तीन महीने पहले सिलेबस पूरा कर लेना चाहिए, ताकि उन्हें रिवीजन के लिए पूरा समय मिल सके।
उन्होंने कहा, ”जब मैंने बैच शुरू किया, तो मुझे लगा कि उन्हें रणनीतिक रूप से तैयारी करनी चाहिए। सबसे पहले मैंने सिलेबस को महीने के हिसाब से बांटा और उन्हें हर महीने समय पर पूरा करने का टारगेट दिया। मैंने हर विषय से मल्टीपल च्वॉइस वाले सवालों को लेकर भी रणनीति बनाई। यह भी समझाया कि उन्हें किस चीज पर अधिक ध्यान देना चाहिए और वे किस चीज को छोड़ सकते हैं।”
रिजल्ट और भावना
जब नतीजे आए तो उनकी उम्मीद से कहीं ज्यादा बेहतर थे। दूसरे मौके से वास्तव में स्टूडेंट्स को बड़ी मदद मिली। इससे न सिर्फ स्टूडेंट्स को बल्कि प्रशासन को भी भरोसा मिला कि उनकी पहल बेकार नहीं जाएगी।
श्री नंदनवार ने कहा, “मैंने एक हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ाई की। इतना ही नहीं, चौथी बार कोशिश करने पर यूपीएससी निकाल पाया। इसलिए मुझे पता है कि एक स्टूडेंट के लिए सपनों को पूरा करने का एक और मौका मिलना कितना महत्वपूर्ण है। अब मुझे कुछ कहने की जरूरत नहीं, रिजल्ट खुद बोल रहा है। कभी-कभी आपको वास्तव में दूसरे मौके की आवश्यकता होती है, क्योंकि कई चीजें होती हैं जो रिजल्ट को प्रभावित कर सकती हैं।”
असर
अधिकारी बस्तर से हैं, जो छत्तीसगढ़ का नक्सल प्रभावित क्षेत्र भी है। वह बस्तर डिविजन के पहले आईएएस भी हैं।
उन्होंने कहा, ”ऐसी उपलब्धियां पूरे इलाके का माहौल बदल सकती हैं। मेरा मानना है कि यह दूसरा मौका वाली पहल स्टूडेंट्स के मन में ‘हम यह कर सकते हैं’ का विचार पैदा करेगी।”
एक साल से भी कम समय में श्री नंदनवार ने जिले में कई पहल की हैं, जिससे स्टूडेंट्स को पढ़ाई के साथ-साथ उनके करियर विकल्पों में भीच मदद मिली है। ऐसा ही एक कार्यक्रम ‘मार्गदर्शन’ है, जहां वह छात्रों के साथ बातचीत करते हैं और उन्हें पढ़ाई और करियर को लेकर गाइड करते हैं। उनकी अन्य पहल ‘इंग्लिश की पाठशाला’ और ’12वीं लर्निंग प्रोग्राम’ हैं।
श्री नंदनवार ने आगे कहा, “इस साल की सफलता ने स्टूडेंट्स में यह विश्वास भर दिया है कि हां, सलेक्शन होगा। इस साल नहीं तो अगले साल, लेकिन होगा! इन नतीजों का अन्य स्टूडेंट्स पर यकीनन बहुत गहरा असर पड़ेगा।”अपनी पहल की सफलता से उत्साहित होकर वह अब इस साल जल्द ही दूसरा बैच शुरू करने का इंतजार कर रहे हैं।
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