बांदा का वो आईएएस जो आम लोगों के लिए बन गया ‘वॉटर मैन’, मिली है लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह
- Bhakti Kothari
- Published on 7 Nov 2021, 10:01 am IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- पीसीएस से पददोन्नत होकर आईएएस बने इस अधिकारी ने उत्तर भारत के सबसे गरीब जिलों में गिने जाने वाले यूपी के बांदा में लोगों को पानी का बड़ी समस्या से छुटकारा दिलाया।
- उन्होंने जमीनी स्तर पर काम करते हुए ऐसे नए साधन जुटाए, जिससे आने वाली भावी पीढ़ियों के लिए पानी बचाया जा सके।
- इस वॉटर मैन की अद्वितीय उपलब्धियां लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हो चुकी हैं।
- कुदाल पकड़े हुए बांदा के जिलाधिकारी हीरा लाल। कई बार मिसाल पेश करने के लिए, खुद ही नेतृत्व करना पड़ता है।
एक पुरानी बेहद मशहूर कविता है, “हर जगह पानी ही पानी, लेकिन पीने को एक बूंद नहीं।” लेकिन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के सबसे पिछड़े जिलों में से एक बांदा में कहानी कुछ और ही है। यहां मीलों तक, एक बड़ी आबादी पानी के लिए तरसती थी और अपनी प्यास बुझाने के लिए न जाने कितने जतन करती थी। लेकिन फिर एक दिन, इलाके के लोगों की जिंदगी में आईएएस हीरा लाल ने जिलाधिकारी (डीएम) के रूप में कदम रखा और सब कुछ बदलना शुरू हो गया।
हीरा लाल उन नौकरशाहों में से एक हैं जो सिर्फ बड़े सपने नहीं देखते हैं, बल्कि वास्तव में इन सपनों के लिए काम करके एक बड़ा परिवर्तन लाते हैं। बांदा के जिला मजिस्ट्रेट के रूप में उनके कार्यकाल ने उन्हें उनके जीवनकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि दे दी।
1994 बैच के पीसीएस अधिकारी लाल 2010 में पदोन्नत होकर आईएएस बने थे। अगस्त 2018 से फरवरी 2020 तक, वह बांदा के जिलाधिकारी रहे। इन अवधि के दौरान, उन्होंने यहां की आबादी के एक बड़े हिस्से को पानी उपलब्ध कराकर लोगों के जीवन को बदल दिया। इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए, वो कहते हैं, “मैंने उनके लिए ऐसा किया, क्योंकि मुझे हमेशा के लिए वहां भले ही नहीं रहना था, लेकिन उन लोगों तो जीवनपर्यंत वहीं रहना था।”
शुरुआत से ही, वह देखते थे कि कैसे क्षेत्र की महिलाएं मीलों दूर पैदल चलकर जाती हैं और पानी भरकर लाती हैं। उन्हें रोजाना समाचार पत्र पढ़ने की आदत थी और देश में व्याप्त जल संकट के बारे में उन्होंने बहुत कुछ पढ़ रखा था, खासकर बांदा जैसे छोटे जिलों की जलसंकट को लेकर स्थिति से वह काफी परिचित थे। बांदा के बंजर पहाड़ी क्षेत्र, कठिन भौगोलिक स्थिति और विरल वनस्पतियों ने पुन: भूजल संचयन और संरक्षण को मुश्किल बना दिया है, जबकि इस इलाके में सालाना 800 मिमी तक वर्षा हुई है। वह जलसंकट सीधे तौर पर प्रत्यक्ष देख सकते थे।
निरीक्षण
क्षेत्र को समझने और जिले में जल की भयावह स्थिति पर काबू पाने के लिए, हीरा ने गांवों में घूम-घूमकर स्थानीय लोगों से बात की और अपने अध्ययन और शोध की मदद से स्थिति के बारे में बेहतर तरीके से पता लगाया।
वो कहते हैं, “ऐसी गतिविधियों में शामिल स्थानीय लोगों ने मुझे बताया कि 40 साल पहले, लोग कुआं, तालाब और नाड़ी (कुएं, तालाब, और नदी) जैसे जल निकायों से जुड़े थे। लेकिन पिछले 30-40 वर्षों से, जीवन के विस्तार और विकास के कारण, लोग जल के इन संसाधनों से दूर होते चले गए और उन्होंने अपने उपभोग और उपयोग के लिए पैक किए गए पानी पर अपनी निर्भरता बढ़ा दी। लोगों के पानी के इस नए जुड़ाव से, जहां परंपरागत जल निकायों से लोगों की दूरी बढ़ी और बोतलबंद यानी पैक किए गए पानी के साथ जुड़ाव बढ़ा, जिसने उनके जीवन में पानी का इस तरह का संकट ला दिया।”
पहल का जन्म
क्षेत्र में पानी की कमी को देखते हुए, लाल ने कुछ ठोस कदम उठाने का निर्णय लिया। अपने अनुभव और विश्लेषण के आधार पर, उन्होंने दृढ़-संकल्प के साथ यह निश्चित किया कि लोगों को जल निकायों के साथ अपने पुराने जुड़ाव को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता है और इस दिशा में काम किया जाएगा। वह क्षेत्र से पानी से संबंधित मुद्दों को खत्म करना चाहते थे। उन्होंने बरसात के पानी को सरंक्षित करने की मुहिम शुरू की, इसके पीछे उनकी सोच थी कि वर्षा जल संचयन से एक तो भूजल स्तर बेहतर होगा, दूसरे इस पानी को अन्य जरूरतों के लिए उपयोग में लाया जा सकेगा। लेकिन इसके लिए सही प्रशिक्षण की जरूरत थी, इसलिए कुशलतापूर्वक ऐसा करने के लिए, उन्होंने जल संबंधी मुद्दों के विशेषज्ञ महेंद्र मोदी को बुलाया। इस पूरे क्षेत्र में, जल के परंपरागत संसाधन और स्त्रोत मर रहे थे और भूजल स्तर तेजी से गिर रहा था। और इसके पीछे मुख्य कारण कहीं न कहीं, निकायों का परित्याग और उपेक्षा थी।
लाला कहते हैं, “जब लोग तालाब पर निर्भर थे, तो उन्होंने इसका ध्यान रखा। जब कुएं जल के एक और स्त्रोत के रूप में सामने आए, तो वे तालाबों को भूल गए। फिर जब हैंडपंप आए, तो वे कुएं की उपेक्षा करने लगे। और अब जब जब पाइप से पानी की आपूर्ति होने लगी है, तो वे उन सभी हैंड पंपों को ही भूल चुके हैं।” यह मुद्दे सिर्फ बांदा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में समान रूप से व्याप्त हैं।
बांदा में लाल की मुहिम के बाद, जिला प्रशासन ने बड़े पैमाने पर जन-जागरूकता अभियान चलाने का फैसला किया। ‘वाटरएड इंडिया’ और ‘अखिल भारतीय समाज सेवा’ जैसे संगठन उनकी पहल का समर्थन करने के लिए आगे आए।
‘भुजल बढ़ाओ, पेयजल बचाओ’
6 अक्टूबर, 2018 को शुरू हुए, आईएएस लाल के अभियान ‘भुजल बढ़ाओ, पेयजल बचाओ’ ने समुदायों, जिला प्रशासन और सिविल सोसाइटी को एक जगह पर लाकर खड़ा कर दिया। समाज के ये तीनों प्रमुख निकाय, लोगों के बीच पानी से जल संबंधी परेशानियों को खत्म करने के लिए एक साथ आ गए।
लाल कहते हैं, “हमने एक ‘जल चौपाल’ (पानी के मुद्दों पर विचार-मंथन सत्र) का आयोजन किया। मांग और आपूर्ति को समझने के लिए, हमने घर-घर जाकर एक सर्वेक्षण किया, जहां हमने शहरवासियों से पूछा, “आपके क्षेत्र में कितना पानी है? और आप कितना पानी इस्तेमाल करते हैं?” फिर हमने समितियों द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों की तुलना की और वर्षा जल पैटर्न के साथ-साथ भूजल के घटते स्तर पर एक जांच बैठायी।
लोगों को बेहतर तरीके से स्थिति को समझाने के लिए, उन्होंने लोगों को शुद्ध पानी का एकमात्र स्रोत के रूप में बारिश के पानी को बचाने और संरक्षित करने की सलाह दी। निवासियों ने भी स्थिति को स्पष्ट रूप से समझा। आखिरकार, जो कुछ भी किया जा रहा था, वह उनके ही लाभ के लिए था। उन्होंने अपना पूरा समर्थन दिया। उन्होंने पानी के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोतों जैसे कि हैंड पंप और कुओं के पास कई खाइयों के निर्माण में मदद की।
कुआं तालाब जियाओ अभियान
कुओं और तालाबों को पुनर्जीवित करने की योजना ‘कुआं तालाब जियाओ अभियान’ ऐसा दूसरा अभियान था, जो हीरा लाल ने शुरू किया था। इस अभियान के तहत, समितियों ने आगे बढ़कर जिले में प्रचलित पुराने तालाबों और कुओं सहित सभी पुराने जल निकायों को पुनर्जीवित करने का सफल प्रयास किया। लाल कहते हैं, “हमने क्षेत्र में नए तालाब भी बनाए, ताकि बारिश के पानी को संरक्षित करना आसान हो जाए। यह अभियान बरसात से पहले शुरू हुआ था और एक बार बारिश होने के बाद, हमने विकास भवन और कलेक्टर कार्यालय जैसे सार्वजनिक संस्थानों और भवनों में भी वर्षा जल संचयन करना शुरू कर दिया। यहां तक कि पुराने कुओं को भी छतों पर वर्षा जल संचयन की मदद से पुनर्जीवित किया गया।”
‘कुआं तालाब जियाओ अभियान’ की शुरुआत कुओं और तालाबों की सफाई के साथ हुई, जिन्हें उपेक्षा के बाद से कचरे के ढेर में तब्दील कर दिया गया था। सार्वजनिक तौर पर स्वयंसेवकों को आमंत्रित करने के लिए, लाल ने स्वयं गांवों का दौरा किया और जल निकायों की सफाई शुरू की, जिसने दूसरे लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। शुरू में, नए कुओं को खोदने के बजाय, उन्होंने पहले से मौजूद कुओं को ही सही तरीके से गहराई तक साफ करने का फैसला किया। वहीं तालाबों की जल संचयन क्षमता बढ़ाने के लिए, उनमें भरी गाद निकाली गई और उन्हें गहरा किया गया।
चरण 2 बहुत प्रगति के साथ आया। वो कहते हैं, “550 से अधिक पुराने सामुदायिक तालाबों से गाद और गंदगी निकाली गई, और उन्हें कवर किया गया, 874 खोदे गए कुओं का कायाकल्प किया गया। इसके साथ ही, 1,737 वर्षा जल संचयन संरचनाएं स्कूलों, पंचायत कार्यालयों, ब्लॉक कार्यालयों, अस्पतालों, आधिकारिक जिला भवनों इत्यादि में निर्मित की गईं।
विश्वसनीय निवासी
हीरा लाल बताते हैं, “बुंदेलखंड में लोग काफी रूढ़िवादी हैं। अगर उनके घरों में पानी नहीं है, तो वे पैदल ही इसकी तलाश में कई स्थानों पर जाएंगे, लेकिन नई तकनीकों का उपयोग करने से कतराएंगे। हमने उनसे कहा कि अगर आपको अपनी समस्याओं के लिए उपयुक्त समाधान की आवश्यकता है, तो आपके इसे अपने दम पर ही खोजना होगा। आपको इसके लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, क्योंकि कोई भी इसे थाली में सजाकर आपको नहीं दे सकता है। पानी पैदा नहीं किया जा सकता है, आप सभी जो सकते हैं वो यही कि एक प्रभावी तरीके से मौजूदा पानी का उपयोग करें। वे लोग समझ सकते थे कि इससे उनके जीवन को राहत मिलेगी, इसलिए वे स्वेच्छा के साथ आगे आए और मदद के लिए अपना हाथ बढ़ाया।”
लोग उन्मुख समाधान
लाल और उनकी टीम ने जनता को जल निकायों के विचार और महत्व के करीब लाने के लिए कई गतिविधियों का आयोजन किया, ताकि वे अपने अंदर उनके लिए प्यार और स्नेह विकसित करें। इसके लिए उन्होंने जल मार्च, दीप दान, जल हास्य चर्चा (हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव के साथ), जल कविता मुशायरा, जल बजट आदि सहित कई गतिविधियों का आयोजन किया।
लाल कहते हैं, “6 अक्टूबर 2018 को हमने अपनी पहली गतिविधि ‘जल संरक्षण चेतना पर्व’ को शुरू किया और इस आयोजन के लिए, हमने कई गांवों के सभी ‘प्रधानों’ और ‘लेखपालों’ को आमंत्रित किया, हमने उन्हें जल के रहने वाले स्थान, तालाब, कुएं और नदी दिखाए।”
इन विभिन्न गतिविधियों और कई खाइयों और तालाबों के निर्माण के कारण, बांदा में 2018 के मानसून के बाद की तुलना में 2019 के मानसून के बाद, पानी की तालिका में 1.34 मीटर की वृद्धि हुई। आईएएस लाल की मुहिम का असर साफ तौर पर देखा जा सकता था।
चुनौतियों का सामना
हालांकि, इस तरह के बड़े बदलावों को लाना, अपने साथ कई तरह की चुनौतियों का समूह लेकर आता है। हीरा लाल और उनकी टीम के साथ भी यही हुआ, उनके सामने पहली चुनौती लोगों को प्रेरित करने की थी। वो बताते हैं, “स्थानीय लोग निराशा के भाव से भरी हुई मानसिकता के हो चुके थे। उन्होंने जल संकट के साथ ही अपना जीवन-यापन करने का तरीका स्वीकार कर लिया था। उनके दिमाग में यह धारणा भर गई थी कि वे एक पिछड़े इलाके में रह रहे हैं और इसलिए, वे इसके बारे में कुछ नहीं कर पाएंगे। हमें उनके दिमाग से यही विचार निकालने थे।”
“एक अन्य चुनौती क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के कारण अपर्याप्त संसाधनों की थी और जमीन के नीचे पानी के संचयन की दर बेहद कम थी। यूपी के 30 सेमी/हेक्टेयर की तुलना में यहां 14 सेमी/हेक्टेयर ही वर्षा संचयन की दर थी।”
इसके अलावा, पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पानी के साथ अधिक निकट संबंध होते हैं। इसलिए महिलाओं को अपने अभियान में शामिल करने के लिए, जिला प्रशासन ने ‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ के स्वयं सहायता समूह के साथ सहयोग शुरू किया गया। वो कहते हैं, “हमने मिशन के सदस्यों को हमारे साथ जुड़ने के लिए आमंत्रित किया, ताकि महिलाएं अभियान में सक्रियता से भाग ले सकें।”
उपलब्धियां
बांदा के मुद्दों में अपनी भागीदारी के इन दो वर्षों के दौरान, हीरा लाल ने 2,605 समोच्च खाइयों (रेखागत खाइयां) का निर्माण कराया और और लगभग 35,000 ग्रामीणों को मिलाकर 469 ‘जल चौपाल’ का संचालन किया।
इतना ही नहीं, उन्होंने 2,183 हैंडपंप लगवाए और 470 ग्राम पंचायतों में 260 कुओं को पुनर्जीवित किया।
फरवरी 2020 में, उनकी इन उल्लेखनीय उपलब्धियों को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के फरवरी 2020 संस्करण में प्रमुखता से जगह मिली। अब तक, हीरा लाल को जल संरक्षण में उनके काम के लिए 6 बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं।
वो कहते हैं, “लौकिक रूप में हम कह सकते हैं कि इस जल संरक्षण अभियान में, हमने जल निकायों के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर दोनों को विकसित किया है। सॉफ्टवेयर के रूप में, हमने पानी के भूजल स्तर को तालिका में बढ़ाया और पानी को संरक्षित किया और हार्डवेयर के रूप में, हमने कई खाइयों, तालाबों और कुओं का निर्माण किया। हम इसमें आम लोगों को भी शामिल किया, ताकि वे इस पहल का स्वामित्व ले सकें।”
‘जहां चाह है, वहां राह है’ – आईएएस हीरा लाल हमारे सामने इस कहावत का एक जीवंत उदाहरण हैं।
वह चाहते हैं कि आज का युवा अपने जीवन में पानी के महत्व को समझे। वो इस बात पर ज़ोर देते हैं, “कि पानी के बिना, जीवन संभव नहीं होगा। इसलिए, उन तरीकों को जानें और समझें, जिनसे आप इसे संरक्षित कर सकते हैं।”
आईएएस हीरा लाल अब बांदा में नहीं हैं। लेकिन बांदा को दिया गया उनका अनमोल उपहार, आने वाली पीढ़ियों तक के साथ रहेगा। आम जनता से लेकर पूरे देश के हर तबके तक को, ऐसे बेहतरीन आईएएस अधिकारियों की जरूरत है, जो अपनी नवीन पहलों और अपनी अथक मेहनत व समर्पण भाव से जन-जीवन सुलभ बना रहे हैं।
END OF THE ARTICLE