संघर्ष की भट्टी से तपकर निकलने वाला यूपीपीसीएस अधिकारी, चतुर्थ ग्रेड से अफसर तक का सफर
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 8 Nov 2021, 10:02 am IST
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हाइलाइट्स
- कॉलेज में एक तकनीकी गलती की वजह से राहुल त्रिपाठी की स्नातक और कानून की पढ़ाई अमान्य घोषित हो गई
- 6 साल का शैक्षणिक अंतराल और चपरासी की नौकरी के साथ सिविल सेवक बनने की राह, सिर्फ मुश्किल ही नहीं असंभव नजर आ रही थी
- लेकिन जो न कभी हारे और न टूटे, उसी का नाम राहुल है
“मेरी कहानी हर उस युवा की कहानी है जो बचपन से ही सपने तो बड़े देखता है, लेकिन भाग्य या परिस्थितिवश उसे अपने लक्ष्य से दूर जाना पड़ता है। कभी भी अपने सपनों का पीछा करना छोड़ना नहीं चाहिए, चाहे जैसी भी स्थिति सामने हो, व्यक्ति को वहीं से अपने सपनों के लिए एक रास्ता तलाश करना चाहिए। मेरा यही मानना है।” जीवन के लक्ष्यों को भेदने की अचूक सीख देते हुए ये शब्द एक ऐसे शख्स के हैं जिसको जिंदगी अपनी लाख कोशिशों के बाद भी नहीं तोड़ पाई। उसने अपने जज्बे, जीवटता और मजबूत इच्छाशक्ति से वो कर दिखाया, जिसकी कल्पना शायद कुछ गिने-चुने लोग ही कर पाएं।
लोहे जैसे इरादों और चट्टान की तरह अपने लक्ष्य के लिए अडिग रहने वाले राहुल त्रिपाठी कभी चतुर्थ ग्रेड की नियुक्ति के आधार पर चपरासी का काम करते थे। उनकी शैक्षिक डिग्रियां अमान्य हो चुकी थीं, 2 परिवारों का बोझ उनके कंधों पर था। जिंदगी उनको हर पल तोड़ने की कोशिश करती थी, लेकिन राहुल ने भी ठान लिया था कि हार नहीं मानेंगे। आखिरकार अप्रैल, 2021 में जब यूपीपीसीएस-2020 के परिणाम आए तो 43 वीं रैंक के साथ सीडीपीओ के पद पर चयनित हो चुके राहुल सभी के लिए एक मिसाल बन चुके थे।
शुरुआती शिक्षा
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर जिले के रहने वाले राहुल त्रिपाठी शुरुआत से ही बहुत मेधावी छात्र कभी नहीं रहे। लेकिन धीरे-धीरे वो बेहतर होते चले गए। उन्होंने अम्बेडकरनगर के शिशु मंदिर और विद्या मंदिर से 10 वीं तक की पढ़ाई पूरी की। इंटरमीडिएट की परीक्षा में 78 फीसदी अंकों के साथ जिले में उनका दूसरा स्थान था।
इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से एक खास बातचीत करते हुए राहुल कहते हैं, “अपनी शुरुआती शिक्षा के बाद मैं इंजीनियर बनने के ख्वाब देखता था। मैंने कानपुर में आईआईटी की कोचिंग भी की। यूपीटीयू में प्राइवेट कॉलेज मिल रहा था। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने के कारण प्रवेश नहीं ले पाया। फिर अचानक से एक दिन मेरी जिंदगी ने एक भयानक मोड़ ले लिया और मेरे पिता जी की साल 2004 में आकस्मिक मौत हो गयी। उसके बाद से तो जैसे मेरी दुनिया ही बदल गई।” राहुल की उम्र उस वक्त महज 14 वर्ष थी।
नौकरी
पिता की अचानक मौत से राहुल के घर की आर्थिक स्थिति बहुत बिगड़ गई। 18 वर्ष की आयु पूरी होते ही राहुल को मृतक आश्रित कोटे के तहत जिला सत्र न्यायालय में चपरासी के पद पर नियुक्ति मिल गई। हालांकि, राहुल की योग्यता तृतीय श्रेणी की नौकरी की थी, लेकिन उन्हें नौकरी चतुर्थ श्रेणी में मिली।
राहुल कहते हैं, “मुझे जो भी काम मिला, मैंने दिल से किया। हमारे समाज में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी को बहुत सम्मान के साथ नहीं देखा जाता है, लेकिन वहां काम करते हुए मैं एक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की चुनौतियों को समझ पाया। फिर मैंने अपनी योग्यता के आधार पर अपनी नियुक्ति के लिए न्यायालय में ही एक रिव्यू एप्लिकेशन (समीक्षा आवेदन) डाली। 2 बार मेरा रिवियू एप्लिकेशन खारिज हो गया, लेकिन मैंने हार नहीं मानी और तीसरी बार में जजों ने मेरा इंटरव्यू लिया और लगभग 2 साल की नौकरी के बाद नवम्बर, 2009 में मेरी नियुक्ति तृतीय श्रेणी कर्मचारी में हो गई।”
नए ख्वाब
इसके साथ ही राहुल ने अपने अपने मामा के एक जान-पहचान के एक कॉलेज से स्नातक के लिए अप्लाई किया और 2008 में पढ़ाई पूरी की। स्नातक के बाद उन्होंने नौकरी के साथ-साथ लॉ की पढ़ाई भी पूरी कर ली। इस बीच उनकी शादी हो गई और उनके 2 बच्चे भी हो गए। नौकरी के साथ-साथ परिवार आगे बढ़ा, तो थोड़ा संतुष्टि का भाव आया और राहुल का दिल भी कुछ और ज्यादा मांगने लगा। न्यायालय में नौकरी करते हुए राहुल ने गरीब लोगों की बदहाली बहुत करीब से देखी। वहीं से आम लोगों के लिए और खुद के लिए भी कुछ बेहतर करने की ललक उनके मन में पैदा हुई और वो सिविल सेवा के ख्वाब संजोने लगे। वो पीसीएस-जे की तैयारी कर रहे थे।
एक और झटका
लेकिन राहुल की नियति ऐसी थी कि जैसे ही उन्हें लगता था कि सब कुछ ठीक हो रहा है, जिंदगी अचानक से उन्हें फिर जमीन पर ला पटकती थी। लेकिन इस बार जो हुआ, उसने राहुल को अंदर से बुरी तरह तोड़ दिया। स्नातक पूरा करने के 6 सालों बाद, स्नातक प्रथम वर्ष के प्रवेश के समय की कुछ तकनीकी गलतियों की वजह से उनका स्नातक का पहला साल अमान्य घोषित हो गया। इस मामले में कॉलेज प्रबन्धक ने भी हाथ खड़े कर दिये और अंततः उनका स्नातक अमान्य घोषित हो गया। इस तरह, स्नातक के आधार पर, उनकी कानून की पढ़ाई भी अमान्य घोषित हो गई। एक पल में पूरे 6 सालों की मेहनत राख में तब्दील हो गई थी। राहुल कहते हैं कि वो बेहद अजीब दौर था मेरे लिए, जहां चिंताओं और निराशाओं ने मेरे मन में घर सा बना लिया था। नैराश्य के उस दौर से निकालना बहुत ही कठिन या लगभग असंभव लगता था।
सिविल सेवा – तैयारी
साल 2015 में राहुल ने आईएएस के लिए भी अपना पहला प्रयास किया था और सिर्फ कुछ ही अंकों से प्री परीक्षा में रह गए थे। लेकिन अचानक से अपनी 6 साल की पढ़ाई व्यर्थ जाने से वो बुरी तरह टूट गए। एक तरफ आईएएस की तैयारी का अब कोई मतलब नहीं था, दूसरी तरफ शैक्षणिक योग्यता पर उठ खड़े हुए सवालों का जवाब किसी के पास नहीं था। पर पूरी तरह बिखरने से पहले, उन्होंने एक बार फिर से खुद को संभालने की कोशिश की। इसमें उनके परिवार ने भी पूरी मदद की। अपने हौसलों को उड़ान देने के लिए, वो एक बार फिर से अपने लक्ष्य की तरफ जुट गए।
राहुल कहते हैं, “बिखरे हुए सपनों को समेटते हुए मैंने साल 2016 में फिर से स्नातक के लिए अप्लाई किया। अबकी बार मैंने ठान लिया था कि हर हाल में खुद को सिविल सेवा के लिए समर्पित कर दूंगा। इसीलिए साल 2017 में मैंने न्यायालय की नौकरी छोड़ दी। क्योंकि इस नौकरी के साथ तैयारी करना मुश्किल हो रहा था। और फिर मैंने एक एनजीओ अजीम प्रेम जी फाउंडेशन जॉइन कर लिया और राजस्थान चला गया। राजस्थान के चित्तौढ़गढ़ जिले में रह के तैयारी की। इस बीच लोन ले के बहनों की शादी की थी और जब कर्ज का दबाव बढ़ा तो गांव की पुश्तैनी जमीन बेचकर लोन चुकाया।”
कोविड में नौकरी गई
राहुल गैर-लाभकारी संस्था अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में कार्य करते हुए शिक्षकों की सेमिनार और बैठकों के द्वारा शिक्षा की अलख जगा रहे थे। साथ ही घर एवं परिवार से दूर रहकर अपनी तैयारी भी कर रहे थे। लेकिन कोविड महामारी के चलते उन्हें पिछले साल जुलाई, 2020 में ये नौकरी छोड़नी पड़ी। लेकिन इस मुश्किल वक्त पर परिवार ने सहयोग किया। उनके छोटे भाईयों और पत्नी सरिता ने स्वयं विद्यालयों में पढ़ा कर आर्थिक जिम्मेदारी उठाई।
सिविल सेवा – सबसे बड़ी सफलता
आखिरकार वो वक्त आ गया जिसका इंतजार पिछले एक दशक से था। इसी साल 2021 में यूपीपीसीएस परीक्षा-2020 पास कर राहुल अधिकारी बन गए। पीसीएस-2020 में बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) पद पर 43 वीं रैंक के साथ राहुल ने सफलता का परचम लहरा दिया। पीसीएस में उनका ऑप्शनल विषय इतिहास था।
राहुल कहते हैं, “शैक्षिक क्षेत्र में इतना अधिक टूटने के बाद भी तैयारी को लेकर मेरा समर्पण भाव कभी कम नहीं हुआ और अपने सतत प्रयासों व निरंतर पढ़ाई से मैंने कभी समझौता नहीं किया। मुझे हमेशा यही लगता था कि मैं कर ले जाऊंगा।”
तैयारी कर रहे छात्रों के लिए संदेश
राहुल कहते हैं, “मैंने अपने जीवन में बहुत से बहुत से उतार-चढ़ाव देखे हैं। इसीलिए, मैं सबसे यही कहूंगा कि अगर आपको लगता है कि आप ये कर ले जाएंगे तो निश्चित ही आप कर ले जाएंगे। बस निरंतरता बनाए रखें। खुद पर भरोसा रखें। तैयारी कभी बीच में न छोड़े। अगर इतना टूटने और इतने शैक्षिक अंतराल के बाद, फिर से नए सिरे से शुरुआत कर मैं सेलेक्ट हो सकता हूं, तो कोई भी हो सकता है। बस खुद पर भरोसा रखिए।”
कैसे करें तैयारी
तैयारी को लेकर राहुल कहते हैं, “चाहे यूपी पीसीएस हो या यूपीएससी, प्री और मेंस की तैयारी अलग-अलग नहीं होती हैं। ये दोनों साथ-साथ चलती हैं। केस स्टडीज पर ध्यान दें, बेसिक्स क्लियर रखें, सभी विषयों की गहन जानकारी के लिए परिभाषाओं पर पकड़ बनाएं और उनके व्यावहारिक उदाहरण सामने रखें, मॉक टेस्ट जरूर दें। पिछले सालों के पेपर जरूर हल करें। मेंस के लिए उत्तर लेखन का अभ्यास निरंतर करते रहें। लिखने की स्पीड और सुंदरता का भी खयाल रखें। एकीकृत दृष्टिकोण (इन्टीग्रल अप्रोच) रखें।”
खास बात यह है कि राहुल अभी भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। बेहद संघर्षों के बीच उन्होंने अपने परिवार को संभाला और यूपीपीसीएस पास किया। उनकी कहानी हर उस शक्स के लिए प्रेरणादायक है, जो कठिन परिस्थितियों के बावजूद बड़ा लक्ष्य हासिल करने की कोशिश कर रहा है। जीवन में एक वक्त के बाद लोग ठहर जाते हैं, लेकिन राहुल अभी भी आईएएस दे रहे हैं और फिर से पीसीएस देकर अपनी रैंक बेहतर करना चाहते हैं। राहुल की कहानी की सबसे बड़ी प्रेरणा यही है कि जब आपके इरादे मजबूत हों और हार न मानने का जज्बा आपमें कूट-कूट कर भरा हुआ हो, तो किसी भी चुनौती का सामना करने के बावजूद आप अपने लक्ष्य को पा सकते हैं।
कवि हर्षित की लिखी कविता राहुल त्रिपाठी के जीवन पर एकदम सटीक बैठती है –
“प्रत्यंचा टूट गई तो क्या फिर से पिनाक मैं बांधूंगा, अड़चन आएंगी आने दो अंतिम सांसों तक साधूंगा, कब तक चूकेंगे साध्य मेरे भाग्य सहारा नहीं हूं मैं, जाके कह दो विषम लक्ष्य से हारा नहीं हूं मैं।”
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