जब एक आईपीएस अधिकारी ने स्टेथोस्कोप उठाया और 50-बिस्तरों वाला अस्पताल बना डाला!
- Raghav Goyal
- Published on 11 Dec 2021, 10:31 am IST
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हाइलाइट्स
- असम में एक डॉक्टर से आईपीएस अधिकारी बने डॉ. रॉबिन कुमार ने कुछ ऐसा किया कि देश के शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सके।
- भारतीय पुलिस सेवा के 2013 बैच के अधिकारी और मेडिसिन (एमबीबीएस, एमडी) में विशेषज्ञ, कुमार वक्त की नजाकत समझते हुए कुछ वक्त पहले तक दोहरी भूमिका निभा रहे थे।
- डॉ. रॉबिन कुमार एक सिविल सेवक हैं, लेकिन जब भी जरूरत हो वो एक डॉक्टर की सेवा भी करते हैं
सात साल पहले, जब मेडिकल प्रैक्टिशनर (पेशेवर) डॉ. रॉबिन कुमार ने अपना स्टेथोस्कोप एक किनारे रख अपनी खूबसूरत नई मंजिल की तरफ कदम बढ़ाए थे, तब उन्होंने कभी अपने सपनों में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन फिर उन्हें बहुत ही असामान्य परिस्थितियों के बीच इसे फिर से उठाना होगा। लेकिन जैसा कि कहावत है कि तथ्य कल्पना से कहीं अधिक बड़ा होता है, और अक्सर आपकी कई दृढ़ व हठी धारणाएं भी गलत साबित हो जाती हैं। वो अब न सिर्फ कर्तव्यों के निर्वहन कर रहे थे, बल्कि उनकी मदद से मौजूदा चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान जरूरतमंदों को इलाज भी मुहैया हो रहा था।
एक आईपीएस अधिकारी लोगों का इलाज कर रहा है, यह तथ्य ही अपने आप में सारी कहानी बयां कर रहा है। बारपेटा के पुलिस अधीक्षक (एसपी) रॉबिन कुमार की मेडिकल पृष्ठभूमि आम लोगों के खूब काम आई। उनके कामों की सराहना करने वालों में भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू भी शामिल रहे हैं।
एक अच्छा डॉक्टर जिस वक्त की कभी उम्मीद नहीं रखता, वही समय कुछ वक्त पहले चल रहा था जब पूरा भारत कोरोना की पहली और फिर दूसरी लहर से जूझ रहा था। उस पूरे वक्त असम स्थित ‘बारपेटा पुलिस रिजर्व’ में आईपीएस डॉ. कुमार अपने नए अवतार में तैनात थे।
बारपेटा में पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्य करते हुए, डॉ. रॉबिन एक बड़े कोरोना योद्धा के रूप में सामने आए और लोगों की मदद की। इस मुश्किल वक्त में, यहां उन्होंने न केवल सुचारू रूप से कानून और व्यवस्था सुनिश्चित की, बल्कि वह कोरोना रोगियों के लिए फिर से अपने पुराने पेशे को अपनाते हुए एक डॉक्टर भी बन गए। किसी कठिन वक्त के दौर में, उससे निपटने की प्रतिक्रिया को लेकर ऐसा संयोजन शायद ही कभी देखने को मिला हो। और वह भी एक ऐसे युवा से, जो सिविल सेवाओं में हो और जहां उस युवा आईएएस या आईपीएस अधिकारी ने अपनी जीवन-यात्रा को नए सिरे से शुरू किया हो और शायद ही कभी उसे पीछे मुड़कर देखने का मौका मिलता हो, क्योंकि उसके सामने इतना अधिक काम होता है कि वक्त कम पड़ जाता है।
कोविड-देखभाल केंद्र की स्थापना
‘डॉक्टर’ रॉबिन अपने अधिकार-क्षेत्र के हर उस व्यक्ति तक पहुंच रहे हैं, जो संकट में हैं। इनमें आम जनता से लेकर हर वर्ग के लोग शामिल हैं। उन्होंने कोरोना महामारी से प्रभावित हुए पुलिस कर्मियों और उनके परिवारों के लिए बारपेटा पुलिस रिजर्व में 50-बेड वाला कोविड-देखभाल केंद्र स्थापित किया।
डॉ. कुमार असम कैडर से 2013 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए, वो कहते हैं, “जिला पुलिस प्रमुख और एक डॉक्टर की भूमिकाओं में खुद को समर्पित करने के लिए, मैं स्वयं को बेहद भाग्यशाली मानता हूं। इससे मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है।”
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से ताल्लुक रखने वाले शर्मा स्कूल में एक मेधावी छात्र के रूप में पहचाने जाते थे। उन्होंने कक्षा 10 और 12 में पूरे जिले में टॉप किया था। इसके बाद, उन्होंने मेरठ के लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और फिर एमडी पूरा किया।
असम के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), भास्कर ज्योति महंत से बारपेटा में इस कोविड सेंटर के लिए सहमति पाने की बाद, डॉ. रॉबिन कुमार द्वारा प्रबंधित यह कोविड-देखभाल केंद्र शुरू हुआ। चार आईसीयू होने के साथ ही, इसमें 32 सामान्य वार्ड और 14 आइसोलेशन वार्ड भी हैं।
सभी से मिली प्रशंसा
डॉ. रॉबिन कुमार के अनोखे प्रयासों ने कई लोगों को आकर्षित किया। भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने डॉ. कुमार को एक डॉक्टर और एक पुलिस अधिकारी की दोहरी जिम्मेदारी निभाने के लिए, ट्विटर पर ट्वीट करते हुए खूब प्रशंसा की। उन्हें और असम के पूरे पुलिस बल को बधाई देते हुए, नायडू ने ट्वीट किया- “यह सेवा का एक शानदार भाव प्रदर्शन है। कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए, डॉक्टर और पुलिस अधिकारी की दोहरी भूमिका निभाने के लिए, असम के बारपेटा के जिला एसपी रॉबिन कुमार के लिए मेरी सराहना। कोविड केयर सेंटर संचालित करते हुए, मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. कुमार ने भारत के मुख्य मूल्यों ‘शेयर&केयर’ यानी ‘योगदान दो और देखभाल करो’ का अनुकरण किया है।”
इतना ही नहीं, डॉ. कुमार विभिन्न अन्य स्वास्थ्य देखभाल अभ्यासों का भी हिस्सा रहे हैं। इनमें से एक असम के सोनितपुर जिले में उनकी परिवीक्षाधीन सेवा के दौरान थी, जहां उन्होंने तेजपुर शहर में काम करने वाले पुलिस कर्मियों के लिए एक रोगी स्वास्थ्य जांच विभाग शुरू किया था।
कोविड-19 महामारी के दौरान, उन्होंने 50 वर्ष से अधिक उम्र के पुलिस कर्मियों के लिए बारपेटा जिले में एक स्वास्थ्य शिविर शुरू किया है, जिसमें लगभग 95 पुलिस कर्मियों की जांच की गई थी। और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि डॉ. कुमार की उनके गले में स्टेथोस्कोप के साथ स्वास्थ्य जांच करने वाली फोटोज तुरंत असम और राज्य से बाहर पूरे देश में वायरल हो गईं।
क्या अन्य लोग इसे फॉलो करेंगे
बारपेटा पुलिस ने अपने एसपी डॉ. रॉबिन कुमार द्वारा प्रदान की गई अतिरिक्त सेवाओं की भी प्रशंसा की, जिसमें देखा गया कि कैसे उन्होंने अपने कर्तव्यों से भी परे जाकर जरूरतमंदों को चिकित्सा सहायता प्रदान की और उनकी हर संभव मदद की।
अक्सर ऐसा होता है कि कई सिविल सेवक विभिन्न पेशेवर पृष्ठभूमि से आते हैं, लेकिन मसूरी की अकादमी में अपना प्रशिक्षण पूरा करते हुए उसे वहीं दफन कर देते हैं और जीवन में अपनी नई भूमिका के लिए खुद को तैयार करते हैं। लेकिन कभी-कभार, डॉ. रॉबिन कुमार जैसे अधिकारी आते हैं और वे असली उदाहरणों से यह साबित करते हैं कि व्यक्ति एक बार जो ज्ञान प्राप्त कर लेता है, उसे अपने जीवन भर नहीं भूलता और जब भी कहीं जरूरत पड़ती है तो वह उसका उपयोग भी कर सकता है। साथ ही, यह हमारा कर्तव्य भी होता है, कि जब कभी परिस्थितियां प्रतिकूल हों और समाज को आपकी जरूरत हो, आप अपने उस ज्ञान को समाज के उपयोग में लाएं। हजारों अन्य सिविल सेवकों के लिए यहां एक सबक है, जो अपने कैरियर में पेशेवर डिग्री रखते हैं। और उनमें से कई डॉक्टर होते हैं…।
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