आदिवासी जिले बस्तर में बदलाव की एक खुशनुमा बयार, स्थानीय महिलाएं चला रहीं इको-फ्रेंडली रेस्टोरेंट
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 30 Dec 2021, 11:03 am IST
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हाइलाइट्स
- छत्तीसगढ़ में कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के प्रवेश द्वार के पास पर्यटकों के लिए एक अनूठा रेस्तरां है। इसे महिलाएं चलाती हैं और पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल भी है।
- एक स्वयं-सहायता समूह की स्थानीय महिलाओं द्वारा संचालित, रेस्तरां पर्यावरण मानकों का कड़ाई से पालन करते हुए और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों को अपनाकर इको-टूरिज्म को बढ़ावा देता है।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी जिले बस्तर में बदलाव की एक खुशनुमा बयार बह रही है। बस्तर संभाग के जिला मुख्यालय जगदलपुर में एक बेहद खूबसूरत कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। यहां महिलाओं का एक स्वयं सहायता समूह रेस्टोरेंट चलाता है, जो पूरी तरह पर्यावरण के मानकों को ध्यान में रखते हुए काम कर रहा है। 2011 बैच की आईएफएस अधिकारी और उद्यान की डायरेक्टर विजया रात्रे के विशेष प्रयासों से शुरू हुए इस स्वयं सहायता समूह और उसके द्वारा संचालित रेस्टोरेंट में स्थानीय महिलाएं इकोटूरिज्म को बढ़ावा देते हुए पर्यावरण के अनुकूल तरीकों को अपनाकर अपने व्यवसाय को सफल बना रही हैं।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक छोटा सा नेशनल पार्क है। इसी पार्क के अंदर कोटमसर नामक गांव हैं। यह पार्क के अंदर इकलौता गांव है। यहां लगभग 3 साल पहले महिलाओं का स्वयं सहायता समूह ‘लाल गुलाब महिला स्वयं सहायता समूह’ बना था। लेकिन कुछ कारणों की वजह से तब ये सफल नहीं हो पाया। करीब 2 महीने पहले आईएफएस अधिकारी विजया रात्रे ने विशेष प्रयास करके इस समूह को फिर से शुरू किया। उसके बाद इस समूह ने पार्क में ही रेस्टोरेंट खोला और अपनी कमाई के रास्ते तैयार किए। इंडियन मास्टरमाइण्ड्स ने आईएफएस विजया रात्रे से बातचीत की और उनकी इस शानदार पहल के बारे में जाना।
एक खूबसूरत यात्रा
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश के लिए बने हुए टिकट काउंटर के पास ही एक खाली क्वार्टर है। उसी के पास ये रेस्टोरेंट संचालित किया जा रहा है। विजया कहती हैं, “पार्क को टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सरकार से फंड मिलता है। हमने उसी फंड में से 1 लाख की सीड मनी देकर महिलाओं को रेस्टोरेंट खुलवाया। सबसे पहले हमने टिकट काउंटर के पास खाली पड़े क्वार्टर को repair करवाया। फिर हमारे कर्मचारियों ने महिलाओं को रेस्टोरेंट का सामान लाने और उसे सेट अप करने में मदद की। फिर जब टूरिस्ट आने लगे, तो लोग उनका काम चल निकला और आज ये बहुत बेहतर चल रहा है। महिलाएं पिछले 2 महीने से हर रोज 2 हजार से लेकर 3 हजार रुपए कमा रही हैं। अभी इस समूह में 11 महिलाएं हैं।”
विजया कहती हैं, “हमने सालों से बंद पड़े स्वयं-सहायता समूह को फिर से शुरू किया। महिलाओं को व्यवसाय शुरू करने के लिए गाइड किया और हर संभव मदद की। हमारे यहां जिप्सी ड्राईवर हैं, जो महिलाओं को हर रोज गांव से रेस्टोरेंट तक ले आते हैं और छोड़ आते हैं। ये महिलाएं अब पूरी तरह आत्मनिर्भर हैं और रेस्टोरेंट का बहुत बेहतर तरीके से संचालन कर रही हैं। शुरुआत में उन्हें हमारी सहायता की जरूरत पड़ी थी, लेकिन अब अधिकतर चीजें वो खुद ही कर लेती हैं। टिकट काउंटर के पास होने की वजह से बहुत से सभी टुरिस्ट पहले वहीं आते हैं और नाश्ते या खाने का ऑर्डर देते हैं। इसकी लोकेशन बहुत अच्छी जगह हैं, जो हाइवे के करीब भी है। इसका भी फायदा उन्हें मिलता है।”
इको टूरिज्म को बढ़ावा
इस कैंटीन की एक खास बात यह है कि ये इको टूरिज्म के विचार के साथ काम कर रही है। विजया कहती हैं, “हमारा एक उद्देश्य था कि हमें प्लास्टिक का उपयोग बिलकुल नहीं करना है। इसलिए हमें किसी तरह का गैर-जरूरी प्लास्टिक इस्तेमाल नहीं करना था। हालांकि जो सामान पहले से ही प्लास्टिक में पैक होकर आता है, उसे हम नहीं रोक सकते थे। लेकिन अपने कैंटीन में अलग से प्लास्टिक न इस्तेमाल करें, ये हम कर सकते थे। इसलिए हमने महिलाओं को इस बारे में बताया और उन्हें कुछ आइडिया दिये। फिर महिलाओं ने पेड़ों की पत्तियों से बने दोना-पत्तल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। खास बात यह है कि ये दोना-पत्तल वही लोग बनाती हैं या उनके गांव वाले बनाते हैं। उनके कैंटीन में सब कुछ इसी में सर्व किया जाता है।”
वर्ल्ड हेरिटेज सूची
अपनी जैव-विविधता के लिए विख्यात ‘कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान’ में पर्यटन के लिए ऐसा बहुत कुछ है, जो पर्यटकों को लुभाता है। हाल ही में एक प्रोपोजल भेजा गया है, जिससे यह पार्क वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल हो सकता है। साल 1982 में राष्ट्रीय पार्क बनी कांगेर घाटी अपने विशेष प्रकार के जंगलों के वजह से प्रसिद्ध है और इसे भारत के सबसे घने राष्ट्रीय पार्कों में गिना जाता है।
विजया कहती हैं, “हमारे यहां पर्यटकों के लिए बहुत कुछ खास है। इनमें कोटमसर गुफाएं विश्व प्रसिद्ध हैं। इसे देखने के लिए बहुत से पर्यटक आते हैं। वहीं, उउन्हें दिखाने के लिए हमारे पास गाइड भी हैं, जो पर्यटकों को अंदर लेकर जाते हैं और विस्तार से सब कुछ बताते हुए घुमाते हैं। खास बात यह है कि सभी गाइड पार्क के अंदर बसे कोटमसर गांव के ही हैं। वहीं, पर्यटन विभाग की तरह से एक योजना के तहत बेहद कम व्याज पर लोन मिलता है। इस लोन के साथ आस-पास के बहुत से लोग कई व्यवसाय कर रहे हैं। इनमें कई लोगों को जीवन-यापन के लिए हमने जिप्सी भी दिलाई है, जिसके माध्यम से वे पर्यटकों को घुमाते हैं।”
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