एक शाम-एक गांव: जानिए रामपुर एसपी की खास पहल के बारे में, 27 गांवों में दशकों से नहीं हुई है कोई आपराधिक घटना
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 23 Dec 2021, 11:01 am IST
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हाइलाइट्स
- रामपुर पुलिस की अनूठी पहल 'एक शाम, एक गांव' इन दिनों चर्चा में है। इस अभियान के तहत जिले के सभी 16 थानों के पुलिस अधिकारी हर शाम एक गांव का दौरा कर ग्रामीणों की समस्याएं सुनते हैं
- वे ग्रामीणों की समस्याओं को मौके पर ही हल करने का प्रयास करते हैं। साथ ही आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के बारे में सूचनाएं इकठ्ठा करते हैं और उसके बाद से उन पर नजर रखी जाती है
- अब तक 1292 हिस्ट्रीशीटर की पहचान की जा चुकी है, 207 को जेल भेजा जा चुका है, बाकी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा रही है. पुलिस को यह भी पता चला कि 27 गांवों में दशकों से कोई अपराध दर्ज नहीं हुआ है
उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में चल रही एक खास पहल इस समय हर जगह चर्चा का केंद्र बनी हुई है। जिले के एसपी और 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी अंकित मित्तल ने करीब 2 महीने पहले ‘एक गांव, एक शाम’ अभियान शुरू किया था। इस अभियान के तहत जिले के सभी 16 थानों की पुलिस हर रोज एक गांव में जाती है और गांव वालों के साथ वक्त बिताती है। पुलिस गांव वालों की समस्याएं सुनती है, मौके पर उसे हल करने की कोशिश करती है और साथ ही गांव से संबन्धित सभी तरह की सूचनाएं रिकॉर्ड में दर्ज करती है। इस अभियान के चर्चे अब हर जगह हो रहे हैं।
इस संबंध में इंडियन मास्टरमाइण्ड्स ने आईपीएस अंकित मित्तल से बातचीत की और विस्तार से उनकी इस पहल के बारे में जाना। वहीं, पुलिस की इस पहल के माध्यम से एक और बेहद रोचक और सकारात्मक खबर के बारे में पता चला। जिले के करीब 27 गांव ऐसे हैं, जहां पिछले लगभग 25 सालों से कभी कोई आपराधिक घटना नहीं हुई है। इन गांवों में बड़े अपराध तो छोड़िए, कभी कोई छुटपुट वारदातें भी नहीं हुई हैं।
एक शाम-एक गांव
राज्य में विधानसभा चुनाव की आहट होते ही, रामपुर पुलिस ने शांतिपूर्वक चुनाव सम्पन्न कराने और पुलिस व जनता के बीच बेहतर संबंध बनाने के उद्देश्य से यह पहल की थी। इसके तहत पुलिस वाले गांव पहुंचकर सीधे ग्रामीणों से संपर्क साध रहे हैं, साथ ही गांव के लोगों का यदि कोई आपराधिक इतिहास है, तो उसे भी खंगाल रहे हैं।
इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से बात करते हुए अंकित मित्तल कहते हैं, “ये पहल हमने 2 महीने पहले शुरू की थी। हमारे पास किसी एक गांव से संबन्धित दस्तावेज होते है, जिनमें हर गांव की ‘विलेज क्राइम नोटबुक’ भी होती है। वहीं, हमारे पास हर थाने के अभिलेख होते हैं। हमारे सभी संबन्धित अधिकारी, बीट कांस्टेबल से लेकर थाने के चौकी इंचार्ज और सीईओ तक, ये लोग हर रोज एक गांव चिन्हित करते हैं और वहां जाकर चौपाल लगाते हैं। गांव में मौजूद लोगों से वो लोग पुलिसिंग के बारे में बात करते हैं, अपने बारे में बताते हैं और उनकी समस्याएं सुनते हैं। साथ ही, मौके पर उनका समाधान करने की कोशिश भी करते हैं। फिर पुलिस रेकॉर्ड में ग्राम प्रधान से लेकर चौकीदार और गांव में अपराधियों की स्थिति, शस्त्रधारकों की संख्या व कारतूसों की स्थिति आदि को वेरीफाई करते हैं। इसके साथ ही पिछले 10 साल में जितने भी क्राइम हुए हैं और जितने अपराधी या हिस्ट्रीशीटर हैं, उन सभी से संबन्धित सूचना जुटाई जाती है। यह भी देखा जाता है कि वे अभी क्या कर रहे हैं।”
चुनाव भी मकसद
अंकित बताते हैं कि इस पहल के पीछे का मकसद चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न कराना भी था। इसीलिए चुनाव में जो पोलिंग सेंटर है, वहां पुलिस जाती है और यह देखती है कि पिछले चुनाव में कोई समस्या आई हो या कोई लड़ाई हुई हो, जिससे हम समय से एक्शन ले सकें। इस तरह एक सही प्रक्रिया को फॉलो किया जा सके। इस पहल में अगर थानों को कई गांव का टार्गेट दे दिया जाए, तो शायद क्वालिटी काम नहीं हो पायेगा। इसीलिए एक गांव एक शाम पहल शुरू की गयी।
ग्राम सुरक्षा सामिति
अंकित कहते हैं, “पुलिस में एक ग्राम सुरक्षा समिति होती है। इसका काम होता है, पुलिस के सहयोगियों के रूप में काम करना। इसके तहत, हर जगह पे कई ऐसे सामाजिक और मददगार नागरिक होते हैं, जो बिना किसी स्वार्थ के पुलिस की मदद करते हैं। कोई हमें सूचना देता है या कोई हमारा खबरी बन जाता है या फिर जैसे रात में पुलिस के सहयोग में कुछ लोग गश्त करने को तैयार हो जाते हैं। यह एक तरह से ओल्ड सिस्टम का revival है। अब हम लोग दोबारा से ग्राम सुरक्षा समिति बना रहे हैं, जिससे कि यदि कोई भी अप्रिय घटना हो, तो हमे तुरंत खबर मिल जाए। सरल शब्दों में कहें तो यह एक तरह से पुलिस और जनता के बीच के अंतर को कम करना है। इसे आप सामुदायिक पुलिसिंग कह सकते हैं।”
27 गांवों में कोई विवाद नहीं
पुलिस को इस पहल के माध्यम से ही पता चला कि 27 गांव ऐसे हैं, जहां दशकों से कोई विवाद या आपराधिक घटना नहीं घटी है। जिले के मिलक ठाने में एक गांव तो ऐसा भी है, जहां पिछले 36 सालों से कोई घटना नहीं घटी है। इस गांव में आखिरी मुकदमा 1984 में दर्ज हुआ था।
अंकित इस पर कहते हैं, “मेरा मानना है कि जब आपस में लोगों के साथ बैठकर हम एक सिस्टम बनाते हैं, मीटिंग करते है और उनकी बता सुनते हैं, तो लोग भी एक समन्वय महसूस करते हैं। जैसे पहले गांव में न्याय पंचायत हुआ करती थी, वहां बहुत से मुद्दे आपस में ही सुलझा लिए जाते थे। लेकिन अब कुछ खामियों के वजह से इनका ढांचा बिगड़ गया है। लेकिन कुछ ऐसी जगहें अभी भी हैं, जहां लोग अपने बुजुर्गों का मान-सम्मान करते हैं और उनके यहां सामाजिक मूल्य बचे हुए हैं। इसलिए जैसे ही कोई ऐसी घटना या विवाद होता है, वो आपस में ही सुलझा लेते हैं और उसका निपटारा कर लेते हैं। हम लोग अपनी ‘एक गांव-एक शाम पहल’ में भी कर लोगों को इन गांवों का हवाला देकर मोटिवेट कर रहे हैं।”
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