वो आईएएस अधिकारी जिसने केदारनाथ धाम पुनर्निर्माण और चार धाम रोड प्रोजेक्ट जैसे कार्यों को दिया अंजाम, फिर आ गया पीएमओ से बुलावा!
- Raghav Goyal
- Published on 15 Dec 2021, 11:01 am IST
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हाइलाइट्स
- अपनी निस्वार्थ छवि और हर काम के प्रति गंभीर रवैये को लेकर लोगों के बीच खासे लोकप्रिय मंगेश घिल्डियाल एक ऐसे अधिकारी हैं, जो अपने अपरंपरागत तरीके और बहुत जल्द फैसले लेने वाले सिविल सेवकों में गिने जाते हैं।
- चाहे वह अपनी पत्नी को स्कूल में एक खाली शिक्षक की जगह पढ़ाने के लिए मनाना हो या 2013 की भयावह बाढ़ के बाद केदारनाथ क्षेत्र के कुशल पुनर्निर्माण को सुनिश्चित करना हो, उन्होंने हर जगह अपनी प्रशासनिक क्षमता का लोहा मनवाया है।
- केदारनाथ यात्रा 2019 से पहले निरीक्षण के दौरान मंगेश घिल्डियाल
कभी-कभी जल्दबाजी और भाववश में लिए गए फैसले भी एक दम सटीक निशाने पर जा बैठते हैं, जबकि बेहद लंबे समय तक चलने वाली ऑफिस की थकाऊ बैठकें मुद्दों का हल निकालने के बजाए उसे और उलझा देती हैं। उत्तराखंड के एक पहाड़ी शहर रुद्रप्रयाग में भी कुछ साल पहले ऐसा ही हुआ था।
जिले में तैनात आईएएस अधिकारी मंगेश घिल्डियाल अपने एक आधिकारिक निरीक्षण पर राजकीय बालिका इंटर कॉलेज रुद्रप्रयाग गए थे, वहां उन्हें पता चला कि यहां विज्ञान सहित कई विषयों के शिक्षकों की कमी थी। विज्ञान के शिक्षक की गैर-मौजूदगी में छात्रों को बहुत परेशानी हो रही थी और उनके भविष्य की शिक्षा पर भी प्रश्न चिन्ह सा लग रहा था। घिल्डियाल ने इस बड़ी समस्या पर बिना वक्त गवाएं अपनी पत्नी उषा सुयाल से पूछा कि क्या वह एक विज्ञान शिक्षक के रूप में भी पढ़ा सकती हैं। उनकी पत्नी ने हां में जवाब देते हुए अपनी सहमति दे दी। और अगले ढाई साल तक, आईएएस अधिकारी की पत्नी उषा ने स्कूल में अध्यापन का कार्य जारी रखा। ऊषा खुद उच्च-शिक्षा लिए हुए हैं, उन्होंने पंतनगर के गोविंद बल्लभ पंत यूनिवर्सिटी से ‘प्लांट पैथोलॉजी’ में डॉक्टरेट किया है। वो रुद्रप्रयाग के राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में उस वक्त कक्षा नौवीं और दसवीं की छात्राओं को दो घंटे पढ़ाया करती थीं।
यह घिल्डियाल की संसाधनशीलता के कई उदाहरणों में से एक है। इसके बाद, उन्हें टिहरी के जिला कलेक्टर के रूप में नियुक्ति मिली, लेकिन इस बीच उनके समाधान-उन्मुख नौकरशाह होने की कहानियां तेजी से फैलने लगीं। इसलिए, बहुत से लोगों को तब कोई आश्चर्य नहीं हुआ, जब हाल ही में उन्हें सिर्फ 34 वर्ष की बेहद कम उम्र में ‘प्रधानमंत्री कार्यालय’ में नियुक्ति मिली।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ बातचीत करते हुए, घिल्डियाल ने स्कूल की उन घटनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। वो विनम्रतापूर्वक कहते हैं, “यह एक नियमित निरीक्षण था और जब मुझे पता चला कि छात्रों को परेशानी हो रही है, तो मैंने अपनी पत्नी को उन्हें पढ़ाने के लिए मनाया। इसने छात्रों को उनके पूरे अकादमिक में लाभान्वित किया।”
शुरुआत
मंगेश घिल्डियाल उत्तराखंड के गढ़वाल जिले के टांडिया गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने अपनी आठवीं तक की पढ़ाई गांव में ही की, उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह देहरादून चले गए। उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन और इंदौर के देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी से एमटेक किया। इसके बाद, विज्ञान से अपने मोह की वजह से वह रिसर्च के लिए चले गए और लेजर टेक्नीक पर काम करने लगे।
फिर साल 2010 में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा दी और 131वीं रैंक के साथ भारत की सबसे प्रतिष्ठित और कठिन परीक्षा यूपीएससी पास करते हुए अपने पहले ही प्रयास में आईपीएस बन गए। खास बात यह है कि यह उपलब्धि उन्होंने बिना किसी कोचिंग के हासिल की। लेकिन जिनके सपने बड़े होते हैं, वह एक मंजिल पर रुकते नहीं हैं। मंगेश ने भी अगले साल दोबारा यूपीएससी परीक्षा दी और इस बार देश भर में चौथा स्थान हासिल करते हुए आईएएस बने।
केदारनाथ मंदिर को एक नया स्वरूप देना
2013 में उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ से हिंदुओं के पवित्र तीर्थ स्थल केदारनाथ धाम क्षेत्र में बहुत भारी क्षति और जनहानि हुई थी, जिसके दाग अभी भी लोगों के जहन में ताजा हैं। 2004 की सुनामी के बाद, यह भारत की सबसे बड़ी त्रासदियों के रूप में गिना जाता है, इससे केदारनाथ में 5,000 से भी अधिक लोगों की जन गई थी। साल 2018 में दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की ‘केदारनाथ’ फिल्म आई थी, जिसमें उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस फिल्म ने भी इस भयावह त्रासदी के कई पहलूओं को उजागर किया था।
लेकिन केदारनाथ और उसके आसपास के क्षेत्र के पुनर्निर्माण के काम का एक बड़ा श्रेय आईएएस अधिकारी मंगेश घिल्डियाल को जाता है। सरस्वती और मंदाकिनी नदियों के आसपास सुरक्षात्मक दीवारों का महत्वपूर्ण निर्माण यहां उनके कार्यकाल के दौरान ही किया गया था।
साल 2017 में रुद्रप्रयाग के डीएम के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, उन्हें केदारनाथ में किए जाने वाले पुनर्निर्माण कार्य का प्रभारी बनाया गया। उनकी उपस्थिति में, सरस्वती और मंदाकिनी नदी की सुरक्षात्मक दीवारों का निर्माण निर्धारित अवधि में पूरा हुआ। इसके अलावा, केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना चार धाम रोड प्रोजेक्ट के निर्माण से जुड़े काम भी उनकी देख रहे में हो चुके हैं।
अलग कार्यशैली
घिल्डियाल अपनी कार्यशैली के लिए प्रसिद्ध हैं, उनकी इस शैली में उनके आश्चर्य से भरे कार्य क्षेत्र के दौरे सबसे प्रमुख हैं। घिल्डियाल जब रुद्रप्रयाग में डीएम थे, तब वहां भेष बदलकर क्षेत्र में निरीक्षण के लिए निकलते थे। उनकी इस मुहिम से कई बड़े भ्रष्टाचारियों के चेहरे सामने आए और उन पर कार्यवाई हुई।
2019 की केदारनाथ यात्रा के दौरान, सही से व्यवस्था देखने के लिए उन्होंने एक पर्यटक के रूप में कपड़े पहने और एक पर्यटकों वाली टोपी लगाते हुए भीड़ के साथ घुल-मिल गए। यहां, उन्हें दो पानी की टंकियों के बारे में पता चला, जिनसे पानी की एक बूंद भी नहीं आ रही थी। इस पर, उन्होंने तुरंत उत्तराखंड जल संस्थान के दो इंजीनियरों को निलंबित करने की सिफारिश की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दो बार केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण स्थल का दौरा किया और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चल रही पूरी प्रक्रिया का जायजा लिया। शायद इन मुलाकातों के दौरान ही घिल्डियाल के काम पर पीएम का ध्यान गया, जिसके बाद उनको खास मकसद के लिए पीएमओ बुला लिया गया। घिल्डियाल को चार साल के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में अंडर सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त किया गया है।
वो कहते हैं, “मुझे खुशी है कि मेरे काम को सराहना मिल रही है और अब प्रधानमंत्री कार्यालय में मुझे चुना गया है, मैं सिर्फ अपना कर्तव्य निभा रहा था। आगे मुझे जो भी जिम्मेदारी मिलेगी, मैं उसका पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ निर्वहन करूंगा।”
कोविड-19 केयर सेंटर का औचक निरीक्षण
अक्सर भेस बदलकर औचक निरीक्षण करने के लिए जाने जाने वाले घिल्डियाल ने उत्तराखंड के सुरसिंगधर कोविड केंद्र का दौरा किया। यहां आकर उन्हें यह देखकर झटका लगा कि केंद्र पर प्रमुख नियमों और सुरक्षा उपायों की धज्जियां उड़ाईं जा रही थीं। इतना ही नहीं, मरीजों को स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराने के बजाय, अधिकारी उन्हें छोले-भटूरे’ जैसे जंक फूड वाले अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थ खिला रहे थे। इसके बाद घिल्डियाल ने कैंटीन प्रबंधक और अन्य अधिकारियों को जमकर फटकार लगायी, और कोविड केंद्र में बेहतर व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गईं। कोरोनाकाल के मुश्किल वक्त में, वह टिहरी के जिलाधिकारी के तौर पर अपनी प्रभावी भूमिका के लिए खूब चर्चित रहे।
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