भगवान बन कर बच्चों को मजदूरी करने से बचा रहे हैं आईपीएस महेश भागवत
- Bhakti Kothari
- Published on 14 Jun 2023, 12:00 pm IST
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हाइलाइट्स
- 1995 बैच के आईपीएस अधिकारी महेश भागवत ने 2016 से 2022 तक राचकोंदा का पुलिस कमिश्नर रहते हुए 'ऑपरेशन स्माइल' चलाया और हजारों बच्चों को बंधुआ मजदूरी से बचाया
- एडीजी सीआईडी के रूप में कार्यभार संभालने के बाद भी उनका यह काम लगातार जारी
- ईंट-भट्टा से छुड़ाए गए बच्चों की पढ़ाई के लिए उन्होंने वर्कसाइट स्कूल खोले हैं, इसमें एनजीओ तक से ली मदद
- विश्व बाल श्रम रोकथाम दिवस पर इंडियन मास्टरमाइंड्स की खास प्रस्तुति
हर साल 12 जून को मनाया जाने वाला विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour) का उद्देश्य बाल श्रम के खिलाफ दुनिया भर में आंदोलन को बढ़ाना है। सामाजिक न्याय और बाल श्रम के बीच की कड़ी पर जोर देते हुए इस वर्ष का नारा ‘सभी के लिए सामाजिक न्याय, बाल श्रम खत्म करो!’ है।
देश के कई ब्यूरोक्रेट इस पर काम कर रहे हैं। इनमें से एक अधिकारी ऐसे हैं, जो न केवल इन बच्चों को बंधुआ मजदूरी से छुटकारा दिला रहे हैं बल्कि उन्हें बेहतरीन शिक्षा और बेहतर जीवन प्रदान करने की कोशिश भी कर रहे हैं।
यह अधिकारी कोई और नहीं, बल्कि सीनियर आईपीएस अधिकारी और अभी तेलंगाना में सीआईडी के एडीजीपी महेश भागवत हैं। उन्होंने अपने प्रोजेक्ट ‘ऑपरेशन स्माइल’ के जरिये छोटे बच्चों के चेहरे पर सही मायने में बड़ी मुस्कान ला दी है। भागवत को अमेरिकी विदेश विभाग के ट्रैफिकिंग इन पर्सन रिपोर्ट हीरो अवार्ड 2017 सहित कई बड़े पुरस्कार मिले हैं।
इंडियन मास्टरमाइंड्स ने उनकी इस पहल के बारे में जाना कि उन्होंने कितने और बच्चों को बाल श्रम से बचाया है और वे अब किस तरह का जीवन जी रहे हैं।
ऑपरेशन स्माइलः
बता दें कि ऑपरेशन स्माइल- VIII क्या है। यह केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया एक प्रोजेक्ट है। हर साल जनवरी और जुलाई में खतरनाक उद्योगों से बाल मजदूरों को छुड़ाने और लापता बच्चों की तलाश के लिए यह प्रोजेक्ट चलाया जाता है। तेलंगाना पुलिस अपनी महिला सुरक्षा विंग की देखरेख में ऑपरेशन स्माइल को गंभीरता से लागू कर रही है।
वे समाज के वंचित तबकों से बच्चों को छुड़ाना चाहते हैं, जो बाल श्रम और तस्करी के शिकार हो गए हैं और अपनी स्थिति के कारण मजदूरों से लेकर वेटरों तक के रूप में काम करने के लिए मजबूर हैं। लापता बच्चों का पता लगाने के लिए तेलंगाना पुलिस द्वारा ‘दर्पण’ का उपयोग किया जाता है, जो चेहरे की पहचान करने वाला ऐप है।
राचकोंदा के पूर्व पुलिस कमिश्नर रहे भागवत ने इंडियन मास्टरमाइंड्स से कहा, ‘हमारा मुख्य ध्यान शोषण करने वाली मजदूरी में फंसे बच्चों को बचाना है। यह प्रोजेक्ट बच्चों की शिक्षा पर केंद्रित है और उन्हें बेहतर जीवन जीने में मदद करता है। नागरिक समाज संगठनों के साथ लेबर और रेवेन्यू विभाग इसे सफल बनाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।’
परिवार के पास पहुंचा रहेः
भागवत के नेतृत्व में राचकोंदा कमिश्नर ऑफिस सिर्फ जनवरी 2017 में ही ओडिशा के 350 बच्चों को ईंट भट्ठों से बचाया था। पुलिस ने कारखानों, ईंट भट्टों और अन्य क्षेत्रों में जहां बाल श्रम की मांग अधिक है, वहां छापा मारा और वहां से बच्चों को छुड़ाया।
इन छोटे बच्चों में से अधिकांश ओडिशा के थे, जहां उनके परिवार के अन्य लोग रहते हैं। इस कारण ही सीनियर आईपीएस अधिकारी को बच्चों के लिए उड़िया मीडियम के स्कूल खोलने के लिए प्रेरित किया, जहां वे अपने घर लौटने से पहले जनवरी से मई तक शिक्षा हासिल कर सकते थे।
भागवत कहते हैं, ’छह महीने के भीतर इन स्कूलों ने 300 से अधिक छात्रों को शिक्षित किया। स्कूलों ने उनकी पढ़ाई को आगे बढ़ाने में उनकी सहायता की, ताकि जब वे घर लौटें और नियमित रूप से स्कूल जाना शुरू करें, तो उन्हें कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।’
उम्मीद की किरणः
भागवत और उनकी टीम अभियान शुरू करने के बाद से रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, धार्मिक स्थानों, चौराहों, मैकेनिक की दुकानों, अन्य दुकानों और फुटपाथों से कमजोर बच्चों को बचाने में सक्षम रही है। सीनियर अधिकार ने अब तक 7000 से अधिक बच्चों को बचाया है। यह संख्या हर छह महीने के साथ बढ़ती जाती है। जब तक बच्चे घर वापस नहीं पहुंच जाते, वे वर्कसाइट वाले स्कूलों में जाते हैं। वहां एनजीओ के सहयोग से शिक्षकों को ओडिशा और महाराष्ट्र से लाया जाता है। बच्चों को मिड डे मील और पढ़ाई की सामग्री भी दी जाती है। उनके कपड़ों के लिए पैसा ईंट भट्ठा मालिकों से लिया जाता है।
बेहतर भविष्य की गारंटीः
एक बार जब बच्चों को उस दलदल से बाहर निकाल लिया जाता है, तो फिर भागवत यह भी गारंटी करते हैं कि वे अपने पुराने जीवन में वापस न लौटें। वह उन्हें घर लौटने तक अच्छी शिक्षा देकर और उन पर नजर रखकर ऐसा करते हैं। इसलिए वह कहते हैं, ‘भारत के प्रत्येक नागरिक को शिक्षा का अधिकार है। मैं नहीं चाहता कि कोई भी बच्चा अपनी उम्र से अधिक तेजी से बढ़े और सही शिक्षा पाने के बजाय अपने परिवार की जिम्मेदारियों को अपने कंधों पर उठाए। मैं हमेशा यह सुनिश्चित करूंगा कि ये छोटे बच्चे स्कूलों में जाएं और उचित शिक्षा हासिल करें, ताकि वे अपने लिए एक अच्छा भविष्य बना सकें।’
अधिकारी बाल मजदूरी के अलावा बच्चों की तस्करी में शामिल बदमाशों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराते हैं।
राचकोंडा पुलिस को इस परियोजना के लिए इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ चीफ्स ऑफ पुलिस, अमेरिका से 2017 में नागरिक और मानवाधिकार पुरस्कार मिल चुका है।
भारत में बाल श्रम के खिलाफ अभियान चलाने और शिक्षा के अधिकार का समर्थन करने वाले वाले नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने भी वर्कसाइट स्कूल मॉडल पहल की बहुत प्रशंसा की।
भागवत ने तेलंगाना के सीआईडी प्रमुख के रूप में भी बंधुआ और बाल श्रम के खिलाफ अपनी यह लड़ाई जारी रखी है। सीआईडी की लोकल यूनिट, संबंधित जिला पुलिस, रेवेन्यू, लेबर और एनजीओ टीमों के साथ उन्होंने 23 ऑपरेशनों में खतरनाक ईंट भट्ठा उद्योग में काम करने वाले बच्चों सहित 900 बंधुआ मजदूरों को छुड़ाया है। साथ ही उन्हें ओडिशा में उनके अपने जिलों में वापस भेजा गया है। इन नेक प्रयासों की सभी सराहना करते हैं।
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