मिलिए पेद्दापल्ली को भारत का सबसे स्वच्छ जिला बनाने वाले आईएएस अधिकारी से!
- Pallavi Priya
- Published on 4 Dec 2021, 11:20 am IST
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हाइलाइट्स
- उनके कार्यकाल में पूरे जिले में लगभग 1 लाख पेड़ लगाए गए। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि प्रत्येक घर में कम से कम पांच पौधे हों।
- वो एक सामान्य आईएएस अधिकारी नहीं हैं। तेलंगाना में तैनात बहुआयामी और वरिष्ठ आईएएस देवसेना एक साथ बहुत से मोर्चों पर काम कर रही हैं।
- गांवों में सफाई अभियान से लेकर कोविड-19 के मुश्किल समय में युवा छात्रों की मदद करना, उनके सिर्फ बेहतरीन कार्यों का नमूना भर हैं।
इससे क्या फर्क पड़ता है, अगर केवल एक ही व्यक्ति कोई पहल करता है? शायद, कुछ खास नहीं! लेकिन अगर कोई व्यक्ति दृढ़-संकल्पित हो, तो वह अकेले ही पूरे जिले का चेहरा बदल सकता है। यह कहानी भी एक ऐसे ही आईएएस अधिकारी, ए. श्री देवसेना की है।
2008 बैच की इस अधिकारी ने उनके प्रयासों से तेलंगाना के पेद्दापल्ली जिले को ‘खुले में शौच’ और ‘खुले नालों’ से मुक्त बनाया है। इतना ही नहीं, इस प्रक्रिया में उन्होंने इस क्षेत्र को और अधिक हरा-भरा बना दिया है। जिले की खूबसूरती अब देखते ही बनती है और आंखों को सुकून पहुंचाती है।
हिन्दी फिल्मों के मशहूर गीतकार और महान शायर मजरूह सुल्तानपुरी ने एक बार कहा था, “मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।” वर्तमान में स्कूल शिक्षा निदेशक के रूप में काम कर रही देवसेना ने मजरूह की इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए मानो आत्मसात कर लिया हो, वो एक ऐसी ही व्यक्ति रही हैं जिन्होंने अपने धर्मयुद्ध की अकेले ही शुरुआत की थी। जब उनकी नियुक्ति पेद्दापल्ली जिले में थी, तो खुले में जल निकासी व्यवस्था के कारण पूरे जिले पर डेंगू का खतरा मंडराता रहता था। लेकिन देवसेना ने यहां की कायापलट कर दी। उन्होंने सामुदायिक सोख गड्ढों के साथ, हर घर के लिए सोख गड्ढों (सोक पिट्स) के निर्माण के लिए एक पहल की। इसके अलावा, उन्होंने जिले के हरित आवरण को बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित किया।
उनके प्रयासों की बदौलत, 2019 में केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के तहत पेद्दापल्ली को भारत का ‘सबसे स्वच्छ जिला’ चुना गया। 1 अरब 30 करोड़ जनसंख्या से अधिक आबादी वाले देश में, किसी जिले की इस तरह की उपलब्धि अपने आप में बहुत बड़ी बात थी।
जिले को खुला जल निकासी मुक्त बनाया
भारतीय मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए, श्री देवसेना कहती हैं, “मैं करीम नगर की संयुक्त कलेक्टर थी, जिसमें पेद्दापल्ली एक निर्वाचन क्षेत्र के रूप में शामिल था। फिर 2018 में, जब राज्य को अधिक जिलों में विभाजित किया गया और पेद्दापल्ली एक जिला बना, मुझे इसका जिला कलेक्टर बनाया गया। इससे पहले, एक संयुक्त कलेक्टर के रूप में, मैंने स्वच्छ भारत मिशन के तहत कई परियोजनाएं शुरू की थीं। जब मैं पेद्दापल्ली पहुंची, तो मैंने कई गांवों का दौरा किया और महसूस किया कि केवल व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण करने से एक जगह साफ नहीं हो सकती। इसके लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है।”
पेद्दापल्ली जिले में 250 से अधिक गांव शामिल हैं। इनका दौरा करते हुए देवसेना ने पाया कि अधिकांश घरों के सामने खुले नाले बह रहे हैं, जिससे डेंगू के मामले बढ़ गए हैं और हर गांव में सैकड़ों लोग इसके शिकार हो रहे हैं।
वो कहती हैं, “स्वच्छ भारत मिशन के तहत, ‘स्वच्छता स्टेटस’ प्राप्त करने के लिए दो प्रकार की गतिविधियों ‘ओडीएफ और ओडीएफ प्लस’ का कार्यान्वयन करने की आवश्यकता थी। पहला यानी ओडीएफ बुनियादी सफाई से संबंधित है, जैसे कि शौचालय का निर्माण आदि। जबकि दूसरे यानी ओडीएफ प्लस में ठोस तरल अपशिष्ट प्रबंधन और मासिक धर्म स्वच्छता जैसे मुद्दे शामिल थे। हमने ओडीएफ प्लस गतिविधि के तहत हर घर में सोख गड्ढों और कम्पोस्ट गड्ढों (खाद निर्माण करने वाले गड्ढे) के निर्माण के बारे में सोचा। इसने खुले में जल निकासी की समस्या को हल किया और साथ ही घर से निकलने वाले ठोस और तरल कचरे का भी निपटारा किया।”
देवसेना ने ‘मनरेगा योजना’ के तहत हर घर में सोख गड्ढों के निर्माण की पहल की, प्रत्येक गड्ढे की लागत 4000 से 5000 रुपए आती थी। इसका निर्माण साधारण तरीके से किया गया और इसमें केवल रेत, पत्थर और जाली की आवश्यकता होती है। उपयोग किया गया पानी लबालब भरने की जगह यानी बिना ओवरफ्लो के सीधे इससे निकाल जाता था। वो कहती हैं, “मजदूरों के लिए पैसे का इंतजाम मनरेगा के तहत किया गया। लेकिन, कच्चे माल के लिए प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता थी, जिसे बाद में वापस कर दिया जाता। यह एक बड़ी समस्या थी और हमें इसका हल ढूंढना था। इसलिए, मैंने स्वयं सहायता समूहों को जुटाया। प्रत्येक घर की एक महिला उस समूह का हिस्सा है। हमने जोर दिया कि सभी को समूह से ऋण लेना चाहिए और सोख गड्ढों का निर्माण शुरू करना चाहिए। शुक्र है, हमें सभी का समर्थन मिला और परियोजना पूरी हुई।”
परियोजना के सात महीनों के दौरान, एक लाख 20 हजार सोख गड्ढों का निर्माण किया गया। इसके साथ ही, प्रत्येक गांव में 5 सामुदायिक सोख गड्ढे भी बनाए गए। इसने खुले नाले की समस्या को हल करने में मदद की और पेद्दापल्ली यह लक्ष्य हासिल करने वाला देश में पहला जिला बन गया। परियोजना की अपार सफलता ने राज्य सरकार से भी त्वरित प्रशंसा प्राप्त की। मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने देवसेना की शानदार उपलब्धि की सराहना करते हुए अन्य कलेक्टरों को अपने क्षेत्रों में इसी तरह के उपाय शुरू करने की सलाह दी। इसके बाद, तेलंगाना सरकार ने अपने ‘पल्ली प्रगति मिशन’ के तहत अन्य सभी जिलों में सोख गड्ढों का निर्माण करना अनिवार्य कर दिया।
स्थानीय नेताओं ने भी बहुत मदद की
देवसेना जोर देकर कहती हैं, “अधिकतर लोगों को लगता है कि नौकरशाहों और राजनेताओं में आपस में कभी बनती नहीं है और दोनों में अनबन रहती है। लेकिन मैंने कभी ऐसा नहीं देखा। अपनी प्रत्येक पोस्टिंग में, मैंने जमीनी स्तर के नेताओं, जैसे कि गांव के सरपंच आदि के साथ अच्छे संबंध बनाने पर जोर दिया है। मेरा मानना है कि उन्हें लोगों के वोटों की भी जरूरत है, इसलिए वे विकास परियोजनाओं का समर्थन क्यों नहीं करेंगे। मैं विशेष रूप से पेद्दापल्ली में इस रणनीति के साथ हमेशा सफल रही। मैंने देखा कि जब भी हमने कोई परियोजना शुरू की, तो उसे पूरा करने के लिए पंचायतों और मंडलों के बीच एक तरह की प्रतिस्पर्धा रहती थी। इस तरह के उत्साह ने अच्छे परिणाम प्राप्त करने में मदद की। यही कारण है कि हम इतनी जल्दी पेद्दापल्ली में सफल हो गए।”
लगभग 4 महीने तक जिले में रहने के बाद, देवसेना ने यह जान लिया कि सिर्फ हर घर में शौचालय का निर्माण इसे 100% खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है। सभी सुविधाओं के साथ सामुदायिक शौचालयों का निर्माण करना भी महत्वपूर्ण था। पेद्दापल्ली में उनके कार्यकाल के दौरान, 263 सामुदायिक शौचालय बनाए गए।
‘पंच सूत्रालु’ (पांच सूत्र)
देवसेना एक पर्यावरण-अनुकूल प्रणाली की बहुत बड़ी समर्थक हैं। पेद्दापल्ली में काम करते हुए, उन्होंने ‘स्वच्छ मिशन’ के तहत विभिन्न परियोजनाओं पर काम किया। उन्होंने क्रियान्वयन के लिए पांच सिद्धांतों को पेश किया। पहला- हर घर में एक शौचालय, दूसरा- हर घर में एक कम्पोस्ट गड्ढा और तीसरा हर घर में एक एक सोख गड्ढा। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि हर महिला रसोई के लिए एक बगीचा अर्थात किचेन गार्डेन बनाए, इसके अलावा वह जिले द्वारा स्वीकृत ‘सबला’ नाम की सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करे और घर में कम से कम पांच पेड़ लगाए।
मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता
देवसेना कहती हैं, “अपने यहां विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए, हम जल निकासी, अपशिष्ट आदि जैसी सभी चीजों को ध्यान में रखते हैं, लेकिन विकास की इस दौड़ में कहीं महिलाओं को पीछे छोड़ने की प्रवृत्ति भी रखते हैं। जब मैं पेद्दापल्ली में तैनात थी, तो मैंने पुरुषों और महिलाओं दोनों के साथ मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में बात करना सुनिश्चित किया। शुरुआत में वे हिचकिचा रहे थे, लेकिन अंततः उन्होंने स्वीकार किया कि मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता महत्वपूर्ण है। हमने अपने मॉनिटर को प्रशिक्षित किया, जिन्हें हमने ‘सखियां’ नाम दिया। उन्हें प्रत्येक घरों में जाना होता था और सैनिटरी नैपकिन के महत्व और जरूरत के बारे में शिक्षित करना होता था। हमने जोर देकर कहा कि वे ‘सबला’ का उपयोग करें, क्योंकि यह किसी भी अन्य विदेशी ब्रांडों की तुलना में सस्ता है और 100% जैव-अवक्रमित (बायोडीग्रैडबल) है। हमने उन्हें पहली बार में नैपकिन भी मुफ्त में दिए, ताकि वे इनका उपयोग कर सकें और फिर निर्णय ले सकें। यह एक कठिन काम था, लेकिन हमने इसे जिले के प्रत्येक व्यक्ति के समर्थन से सदल बनाया।”
हरित क्षेत्र बढ़ाना
चूंकि देवसेना पहले से ही पर्यावरण के लिए समर्पित थीं, इसलिए उन्होंने लोगों को व्यक्तिगत रूप से पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। यहां तक कि उन्होंने प्रत्येक गांव में पार्क और जंगल विकसित किए। उनके कार्यकाल में पूरे जिले में लगभग 1 लाख पेड़ लगाए गए। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि प्रत्येक घर में कम से कम पांच पौधे हों।
वो कहती हैं, “राज्य ‘हरित हरम’ नाम से एक कार्यक्रम चलाता है, जिसके तहत प्रत्येक घर को जुलाई और अगस्त के महीने में वृक्षारोपण के लिए 5 पौधे प्रदान किए जाते हैं। अधिकांश पेड़ फल देने वाले पौधे होते हैं। जब मैं ‘पांच सूत्रालु’ पर काम कर रही थी, मैंने पाया कि ‘हरित हरम’ एक मशीनी तरीके से किया गया था और बहुत से लोग सिर्फ पौधे लेते हैं और इसे लगाते नहीं हैं। जब हमने इसे पांच सिद्धांतों को शामिल किया, तो ‘सखियों’ ने यह सुनिश्चित किया कि पौधे रोपे जाएं और यदि उनमें से कोई भी पौधा न चले या मृत हो जाए, तो उन्हें तुरंत बदल दिया जाए।”
देवसेना ने जिले के ‘केशव राम सीमेंट’ और ‘एनटीपीसी’ जैसे बड़े कॉरपोरेट्स को 60 किलोमीटर लंबे राजमार्ग के दोनों ओर पेड़ लगाने के लिए भी राजी किया। इन सभी के रखरखाव और बाड़ लगाने की जिम्मेदारी भी उनके द्वारा उठाई गई। इसके साथ ही उन्होंने गांव में ही एक छोटा सा जंगल बनाने के लिए एक अनूठी पहल ‘वानरवनालु’ की भी शुरुआत की।
देवसेना कहती हैं, “जिले में बहुत से बंदर हैं। वे गली-गली में घूमते थे और फसलों को नष्ट करते थे। उनके लिए एक बड़ी जगह की जरूरत थी। मैंने स्थानीय शासन के साथ इस पर चर्चा की और हर गांव में कम से कम एक एकड़ ज़मीन एक खास मकसद से पाने की कोशिश की। आपको आश्चर्य होगा कि कुछ गांवों में हमें इस काम के लिए चार और पांच एकड़ तक जमीन भी दे दी गई थी। हमने जापान की मशहूर ‘मिया वाके’ तकनीक का इस्तेमाल किया, जो जंगल बनाने के लिए जमीन के छोटे टुकड़ों पर विभिन्न आकार के पौधों के रोपण का सुझाव देती है। यह बेहद उपयोगी रही और केवल पांच महीनों में ही पौधे पूर्ण विकसित हो गए थे।”
उनका नया लक्ष्य: शिक्षा तक पहुंच प्रदान करना
पहले पेद्दापल्ली और फिर आदिलाबाद से स्थानांतरित होने के बाद, देवसेना अब तेलंगाना में स्कूल शिक्षा के आयुक्त और निदेशक के रूप में कार्य करती हैं। अपनी नई भूमिका के बारे में बात करते हुए, वह कहती हैं, “वर्तमान समय में कोरोना महामारी वास्तव में सभी पर भारी पड़ रही है, लेकिन छात्रों पर इसका प्रभाव सबसे बुरा है। हमें नहीं पता कि नियमित स्कूली शिक्षा कब शुरू होगी। चूंकि गांवों में अधिकांश छात्रों के पास स्मार्टफोन या इंटरनेट तक पहुंच नहीं है, इसलिए हम टेलीविजन के माध्यम से लेक्चर (व्याख्यान) की व्यवस्था कर रहे हैं। ये कार्यक्रम दूरदर्शन और टी-सत पर प्रसारित किया जाता है। इस पहल के साथ, हम छात्रों की बहुत बड़ी संख्या तक पहुंचने में सक्षम रहे हैं। हम उन ऑडियो पाठों की भी व्यवस्था करने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्हें साधारण मोबाइल फोन से भी पाया जा सके।”
अपने निरंतर प्रयासों के साथ, देवसेना ने उस पुरानी कहावत को एक बार फिर से साबित किया है कि, “जहां चाह होती है, वहां राह होती है।” हमें उम्मीद है कि वह अपने अच्छे काम से सभी को प्रेरित करती रहेंगी।
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