इस आईएएस अधिकारी ने अपनी शादी में कन्यादान की रस्म में शामिल होने से मना कर दिया और वाजिब कारण भी बताया
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 19 Dec 2021, 11:07 am IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- अपनी शादी के अवसर पर उपस्थित सभी मेहमानों को आश्चर्यचकित करते हुए, 2018-बैच की आईएएस अधिकारी तपस्या परिहार ने अपने पिता को कन्यादान की रस्म न करने के लिए राजी किया
- तपस्या ने अपना तर्क डटे हुए कहा, कि वह अपने पिता की बेटी हैं और हमेशा अपने पिता की बेटी ही रहना चाहती हैं। इसलिए, वह नहीं चाहती कि उनका कन्यादान किया जाए
- तपस्या की शादी आईएफएस अधिकारी गर्वित से हुई है, गर्वित का परिवार भी तपस्या से सहमत था, लेकिन आखिर तपस्या ने दोनों परिवारों को कैसे मनाया और क्या थे उनके तर्क?
- अपने पिता के साथ आईएएस तपस्या
हिन्दू धर्म में शादी के समय एक खास रिवाज है। मान्यताओं के अनुसार पिता अपनी पुत्री का कन्यादान कर उसे वर पक्ष को सौंपता है, इसके बिना शादी की रस्म पूरी नहीं हो सकती। सुनने में ये रस्म भले ही अजीब लगे और मन में आए कि अपनी कन्या का दान कैसे किया जा सकता है। पर सच यही है कि इस परंपरा को निभाकर ही शादी पूर्ण होती है। लेकिन मध्य प्रदेश के बरवानी जिले में तैनात आईएएस तपस्या परिहार ने समाज को बड़ा संदेश देते हुए अपने परिवार को इस रस्म को नहीं निभाने दिया। खास बात यह है कि तपस्या के पिता और पूरा परिवार उनके इस कदम के साथ है।
2017 बैच की आईएएस अधिकारी और बरवानी जिले के सेंधवा की एसडीएम तपस्या हमेशा से ये सोचती रहती थीं कि बेटी दान की चीज कैसे हो सकती है और भला कोई उसकी इच्छा के बिना उसका दान कैसे कर सकता है! ये बात तपस्या को इतनी खटकी कि अपनी शादी के उन्होंने अपने परिवार के साथ अपने होने वाले पति के परिवार को भी इस बात के लिए राजी कर लिया कि शादी में कन्यादान की रस्म नहीं होगी। इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से बात करते हुए तपस्या परिहार ने कहा, “मैं अभी छुट्टी पर हूं और अपने परिवार के साथ बेहतर वक्त बिताना चाहती हूं। मैं बेहद खुश हूं कि लोग इसके बारे में बातें कर रहे हैं।”
शादी और कन्यादान
आईएएस तपस्या की शादी आईएफएस अधिकारी गर्वित गंगवार से हुई है। तपस्या एमपी कैडर की आईएएस अधिकारी हैं, लेकिन उनके पति गर्वित तमिलनाडु कैडर के आईएफएस अधिकारी हैं। मसूरी में ट्रेनिंग के दौरान दोनों की मुलाकात हुई थी। शादी के आधार पर ही गर्वित ने कैडर ट्रांसफर ले लिया। दोनों ने इसी साल जुलाई महीने में कोर्ट मैरिज की थी। लेकिन 12 दिसंबर को एमपी के पचमढ़ी में दोनों की पारंपरिक तरीके से शादी हुई है। शादी के बाद जोवा गांव में शानदार रिसेप्शन दिया गया।
तपस्या कहती हैं, “मेरी मानना है कि कुछ परम्पराएं और रस्में ऐसी होती हैं कि जो हो सकता है कि किसी व्यक्ति को सही नहीं लगती हों, और यदि वो आत्मनिर्भर है और उसके परिवार का भी उसे समर्थन मिल रहा है तो उन रस्मों रिवाजों को छोड़ा जा सकता है। शादी के बाद दो परिवार एक हो रहे हैं, ऐसे में दान जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए। मैं अपने पापा की बेटी हूं और हमेशा रहूंगी। मुझे ऐसी चीजें शुरू से पसंद नहीं थीं। ऐसा देखने में आता कि समाज में लड़की और उसके पक्ष को अक्सर बहुत डोमिनेट किया जाता है और ये चीजें रस्मों-रिवाजों से साफ दिखाई देती है। मैं हमेशा अपने पापा से इन बातों पर बात करती रहती थी।”
तपस्या आगे कहती हैं, “मैं अपने माता-पिता की संतान हूं, कोई सम्पत्ति नहीं जिसका दान किया जाए। जब दो परिवार बराबरी के आधार पर विवाह के बंधन में बांधते हैं, तो फिर उसमें किसी एक का दूसरे को दान का क्या औचित्य है? किसी जीवित व्यक्ति का दान किसी अन्य व्यक्ति को कैसे किया जा सकता है?”
वहीं उनके पति गर्वित कहते हैं कि बेटियों पर कुछ भी थोपना नहीं चाहिए, जिसे जो भी करनी है वो स्वेच्छा से करे। शादी दो लोगों की बराबर की भागीदारी है। गर्वित सवाल करते हुए कहते हैं कि शादी के बाद आखिर लड़की को ही पूरी तरह क्यों बदलना होता है। मांग भरना हो या पल्लू लेना हो, सारी परंपराएं लड़कियों के लिए ही बनी हैं। लड़कों के लिए तो ऐसी कोई परंपरा नहीं है। इसलिए हमने सोचा कि इस तरह की मान्यताओं को धीरे-धीरे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।
कौन हैं तपस्या परिहार
मूलरूप से मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर के जोवा गांव की रहने वाली 29 वर्षीय तपस्या परिहार के पिता विश्वास परिहार किसान और मां ज्योति परिहार सरपंच हैं। सेंट्रल स्कूल से पढ़ाई करते हुए तपस्या ने दसवीं और बारहवीं दोनों में अपने स्कूल में टॉप किया और फिर पुणे के प्रतिष्ठित ‘इंडियन लॉ सोसायटी लॉ कॉलेज’ से कानून की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वो यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली आ गईं।
तपस्या ने अपने पहले प्रयास के लिए कोचिंग ज्वॉइन की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। फिर उन्होंने खुद पर भरोसा रखते हुए अपनी सेल्फ स्टडी पर ध्यान लगाया और आखिरकार वो मुकाम हासिल किया जिसके लिए देश का अधिकतर युवा ख्वाब संजोता है। तपस्या ने साल यूपीएससी-2017 में देश भर में 23वीं रैंक के साथ यूपीएससी परीक्षा पास कर आईएएस बनी थीं।
पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व
आमतौर पर हिंदुओं में माना जाता है कि कन्यादान का सौभाग्य पाने वाले पिता को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार वर को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। विष्णु रूपी वर कन्या के पिता को यह आश्वासन देता है कि वह उनकी पुत्री की पूरी जिम्मेदारी उठाएगा और हर संकट से उसकी रक्षा करेगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्यादान किया था। 27 नक्षत्रों को प्रजापति की पुत्री कहा गया है, जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था। इन्होंने ही सबसे पहले अपनी कन्याओं का दान चंद्रमा को किया था ताकि सृष्टि का संचालन आगे बढ़े और संस्कृति का विकास हो।
इतिहास में जाएं, तो कन्यादान परंपरा की संभावित उत्पत्ति का पता दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य में पाए गए 15 वीं शताब्दी के पत्थर के शिलालेखों से लगाया जा सकता है। हालांकि, पूरे भारत में कन्यादान के संबंध में अलग-अलग व्याख्याएं हैं। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि कन्यादान का वास्तविक अर्थ ‘गोत्रदान’ है, जिसका अर्थ है अपनी पुत्री के गोत्र का त्याग करना।
बहरहाल, तपस्या ने अपने इस फैसले से समाज को एक नया संदेश देने की कोशिश की है। एक और रोचक बात है कि दोनों अधिकारियों तपस्या और गर्वित ने अपनी शादी के कार्ड में अपनी अखिल भारतीय सेवा का जिक्र नहीं किया है। दोनों कहते हैं कि ये सब बताने और दिखाने की चीजें नहीं है।
END OF THE ARTICLE