जहां आप एक पत्रिका तक नहीं खरीद सकते थे, इस अधिकारी ने पूरा पुस्तकालय बना दिया!
- Raghav Goyal
- Published on 6 Nov 2021, 10:11 am IST
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हाइलाइट्स
- अगर कभी भी किसी शहर को किताबों की सख्त जरूरत पड़ी होगी, तो यह निश्चित रूप से नागालैंड का पुंग्रो शहर था।
- इस आईएएस अधिकारी ने शहर के इन ख्वाबों को अपनी मेहनत से कैसे पूरा किया, जानिए।
- अपनी पत्नी नेहा चौधरी, छात्र संघ अध्यक्ष तोकीउ यिमचुंगरु और पुंग्रो छात्रों के साथ पुस्तकालय में अभिनव शिवम
“किताबें करती हैं बातें बीते जमाने की,
दुनिया की, इंसानों की आज की, कल की
एक-एक पल की…”
ये लाइनें शायर पर जब लिख रहा होगा, तब वो भूत, भविष्य, वर्तमान, इतिहास और न जाने कौन-कौन से पलों को समेटनों की कोशिश रहा होगा। सच्चाई लिखने की यह धुन, बेहद करीने से किताबों के महत्व को कुछ लाइनों में दर्शाकर सदियों के ज्ञान को बतला रही है। जाने कितने शायरों और बुद्धिजीवियों ने किताबों के पन्नों की खुशबू और उनपर उकेरे गए हर्फ के मर्म को दुनिया की सबसे बेशकीमती चीज बताया है।
लेकिन वर्तमान आधुनिकता का दौर कुछ अलग है, यह अपने हिसाब से भागता है और किसी को भी पीछे छोड़ने में कोई गुरेज नहीं करता। इसी दौर में शायरों को झुठलाते हुए, जब भारत के अधिकांश शहरों से किताबों की दुकानें (बुकशॉप) एक भयावह गति से गायब हो रहीं हैं और पढ़ने वाले एक बड़े वर्ग के बीच व्याकुलता पैदा कर रही हैं, तो इस आईएएस अधिकारी ने वास्तव में कुछ बहुत ही उल्लेखनीय किया है। उन्होंने एक पुस्तकालय (लाइब्रेरी) स्थापित किया है, वह भी नागालैंड के एक सुदूर कोने में जहां पहुंचने से पहले एक आम भारतीय कई बार सोचता है।
जिस जगह पर ये पुस्तकालय बनाया गया है, वह नागालैंड का सुदूर स्थित शहर पुंगरो है। एजीएमयूटी कैडर से 2016 बैच के आईएएस अधिकारी और इस क्षेत्र के अतिरिक्त उपायुक्त अभिनव शिवम के अथक प्रयासों से इस पुस्तकालय का निर्माण संभव हो पाय है।
अभिनव शिवम ने इंडियन मास्टरमाइंड्स से एक खास बातचीत में बताया कि इस पुस्तकालय का विचार उनके मन में पुंगरो आते ही आ गया था। वो कहते हैं, “मैंने छात्रों के लिए कुछ पुस्तकों का एक संग्रह मंगाने की व्यवस्था करने का फैसला किया, जिससे कि वे अपने स्कूल के पाठ्यक्रम के अलावा भी ज्ञान अर्जित कर सकें। इस तरह से मैंने एक लाइब्रेरी शुरू करने के बारे में सोचा। मुझे इसके लिए भी जगह भी मिल गई, जो कि पुंगरो एरिया कॉलेज स्टूडेंट्स यूनियन (पीएसीएसयू) की एक अर्धनिर्मित इमारत थी।
एक पुस्तक प्रेमी के लिए पुंगरो से बदतर जगह नहीं हो सकती। वहां पर एक भी किताब की दुकान नहीं है, यहां तक कि अगर आप पढ़ने के लिए एक पत्रिका तलाश रहे हों, तो भी मिलना लगभग असंभव है। पुंगरो में अपनी तैनाती के दौरान इस स्थिति को देखकर शिवम हैरान थे।
छात्र संघ के अध्यक्ष ने दिया मदद का हाथ
लेकिन एक सुखद आश्चर्य के रूप में, छात्र संघ अध्यक्ष तोकीउ यिमचुंगरु ने पुस्तकालय की स्थापना में मदद के लिए शिवम के सामने अपने हाथ बढ़ाए। मार्च, 2020 में इस पुस्तकालय पर काम शुरू हुआ, लेकिन कोविड-19 के आने के कारण इसे बंद करना पड़ा। लेकिन दो महीने बाद जब पुंगरों में आंशिक रूप से लॉकडाउन हटा लिया गया, तब इसका निर्माण फिर से शुरू हुआ। हमने निर्माण शुरू किया और पहले कदम के रूप में, हमने पुस्तकालय के लिए फर्नीचर मंगाया। लेकिन अब सामने सबसे बड़ा सवाल था कि खाली पुस्तकालय को किताबों से कैसे भरा जाए।
उस वक्त, आईएएस अधिकारी शिवम की पत्नी नेहा चौधरी एक नवीन आइडिया के साथ आगे सामने आईं, कि क्यों न सोशल मीडिया पर पुस्तक दान करने के लिए अपील की जाए? शिवम ने उनकी बात आगे बढ़ाई और आश्चर्यजनक रूप से यह युक्ति कम कर गई, हर तरफ से अप्रत्याशित रूप से किताबें की बाढ़ आ गई।
“सोशल मीडिया पर इस पहल के शुरू होने के अगले दिन ही, एलबीएसएनएए के निदेशक संजीव चोपड़ा ने 100 किताबें भेजीं। मैं वास्तव में उनके इस उदार भाव से चकित था। ‘वैली ऑफ वर्ड्स’ नामक एक संगठन ने भी 100 पुस्तकें भेजीं। नागालैंड के एक भारतीय वन सेवा (आईएफ़एस) के अधिकारी सुमन ने 200 पुस्तकों का योगदान दिया। नागालैंड में सेवारत एक कर्नल की पत्नी स्वाति राय ने 100 पुस्तकें दान की। यहां तक कि हिंदी फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने भी 500 किताबें दान करने का संकल्प लिया।”
(अभिनय शिवम, एडिशनल डीसी, पुंगरों)
नागा युवाओं में कैसे जोश भरा
शिवम नागालैंड के युवाओं में बहुत संभावनाएं देखते हैं और उन्हें लगता है कि पुस्तकालय उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होंगे। शिवम कहते हैं, “नागालैंड राज्य एक चीज के लिए तैयार है, वह है सेवा उद्योग। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इन छात्रों को कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उनका अंग्रेजी में पढ़ने और लिखने पर बहुत अच्छा नियंत्रण है। हर हफ्ते रविवार और बुधवार को आयोजित होने वाले चर्च समागम के कारण, धार्मिक पुस्तकों का पाठ किया जाता है और विभिन्न लोग गायक-मंडली और गायन गतिविधियों में भी भाग लेते हैं।”
“इससे उनमें आत्मविश्वास विकसित हुआ है और उन्हें सेवा उद्योग से जोड़ा जा सकता है। अब उन्हें विभिन्न पेशों के माध्यम से मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है, जो प्रत्येक छात्र के लिए उनके कौशल और योग्यता के अनुसार उपयुक्त हो। मैं विभिन्न कंप्यूटरों को स्थापित करने के लिए फंड प्राप्त करने पर भी काम कर रहा हूं, ताकि उनकी ऑनलाइन पत्रिकाओं आदि तक पहुंच हो और वो इसे पढ़ सकें। मैं नागालैंड की लोक कथाओं को एकत्र करने का कार्य भी कर रहा हूं। अन्त में, मैं इस पुस्तकालय को पाठ्येतर गतिविधियों के एक केंद्र के रूप में विकसित करने को लेकर सोच रहा हूं, जहां छात्र स्कूली पढ़ाई के अलावा भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।”
वो आगे कहते हैं, “यह पुस्तकालय कभी अस्तित्व में नहीं आ पाता, अगर इसे कई शुभचिंतकों ने अपनी भारी समर्थन न दिया होता। इनमें पुंगरों के पिछले एडीसी और वर्तमान में सर्कल अधिकारी नुहता तुनी शामिल हैं। वहीं, वर्तमान जिला कलेक्टर सरिता यादव ने भी इस परियोजना के समर्थन और सफलता में बड़ी भूमिका निभाई है।”
शिवम की पत्नी नेहा चौधरी भी इस पहल की एक अहम कड़ी हैं, जिनकी मदद के बिना शायद पुस्तकालय सफल नहीं हो पाता। पेशे से डॉक्टर चौधरी अपनी नौकरी छोड़ने और पुंगरो में शिवम से जुड़ने से पहले, नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में कार्यरत थीं। पुस्तकालय स्थापित करने में अपने पति की मदद करने के अलावा, उन्होंने कोरोनावायरस से लड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शिवम कहते हैं, “उसने कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य जांच के लिए शिविर लगाया और अपना योगदान दिया। उसने पुंगरो में छात्रों के साथ भी बहुत संवादात्मक व्यवहार किया है, इतना ही नहीं वो अब किंडल ई-बुक रीडर भी पुस्तकालय में दान करेगी।” अंत में गुलजार की कुछ लाइनें याद आती हैं, “किताबें झांकती हैं बंद आलमारी के शीशों से, बड़ी हसरत से तकती हैं, महीनों अब मुलाकातें नहीं होती…।”
वैसे सच कहा जाए, तो भारत को न केवल पुस्तकों, किताबों की दुकानों और पुस्तकालयों की जरूरत है, बल्कि शिवम जैसे अधिकारियों की भी बहुत अधिक आवश्यकता है…।
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