विश्व पर्यावरण दिवस विशेष: कैसे छोटे-से राज्य सिक्किम ने प्लास्टिक पॉल्यूशन को मात दे दी
- Indian Masterminds Bureau
- Published on 5 Jun 2023, 5:34 pm IST
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हाइलाइट्स
- विश्व पर्यावरण दिवस पर इंडियन मास्टरमाइंड का स्पेशल फीचर
- इस वर्ष के थीम #BeatPlasticPollution अभियान के तहत प्लास्टिक पॉल्यूशन के हल पर जोर
- सिक्किम है डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला राज्य
हिमालय में बसा छोटा-सा राज्य सिक्किम पर्यावरण के मामले में देश के लिए मिसाल बन कर उभरा है। 4 जून 1998 को डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैग पर पाबंदी लगाने वाला वह पहला राज्य था। सिंगल यूज बोतलों को टारगेट करने वाले राज्यों में भी वह पहला है। इतना ही नहीं, 2016 में ही उसने पूरे राज्य में सरकारी ऑफिसों और प्रोग्रामों में बोतलबंद पानी के इस्तेमाल के अलावा स्टायरोफोम और थर्मोकोल डिस्पोजेबल प्लेट और कटलरी के उपयोग पर भी पाबंदी लगा चुका था।
हालांकि बड़ी संख्या में टूरिस्टों के सिक्किम आने के कारण पानी की प्लास्टिक बोतलों के यूज को कंट्रोल करना काफी कठिन था। फिर भी, 1 जनवरी 2022 को राज्य सरकार ने पूरे राज्य में 2 लीटर और उससे अधिक की प्लास्टिक की बोतलों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया। टूरिस्टों को अब पीने का पानी होटल, रेस्टोरेंट और पब्लिक प्लेस पर लगे फिल्टर से लेना होता है।
क्या हुआ हासिलः
पर्यावरणविदों द्वारा प्लास्टिक चोकिंग शहरों और समुद्रों के बारे में चेतावनी जारी करने से पहले ही सिक्किम ने प्लास्टिक की थैलियों को कागज, कपड़े की थैलियों और पत्तियों से बदल लिया था। 1998 में जमीन धसकने की घटनाओं के बाद ही उसने प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया। दरअसल तब विशेषज्ञों को लगा था कि जमीन धसकने की घटनाएं इसलिए हुईं, क्योंकि प्लास्टिक कचरे से भरी नालियां बारिश के पानी को बहने से रोकती हैं।
प्लास्टिक की पानी की बोतलों के मामले में सरकार का मानना था कि डिपार्टमेंटल मीटिंगों और समारोहों में बोतलबंद पानी के बड़े पैमाने पर उपयोग डंप यार्डों पर बेवजह बोझ डाल रहा है। इसलिए उसने सरकारी कामकाजों में इसके इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी। एक जनवरी 2022 को सरकार ने पूरे राज्य में 2 लीटर और उससे अधिक पैक की गई पानी की बोतलों पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे प्रभावित हुई मिनरल वाटर की दिग्गज कंपनी बिसलेरी ने आदेश को चुनौती दे दी थी। कोर्ट में यह मामला अभी भी पेंडिंग है।
बहरहाल, बड़े पैमाने पर चलाए गए जागरूकता अभियान और भारी जुर्माने के रिजल्ट शानदार आए हैं। सरकारी ऑफिसों ने फिल्टर किए गए पानी, डिस्पेंसर और दोबारा यूज होने वाली पानी की बोतलों जैसे विकल्पों को अपना लिया है। अधिकतर खरीदार कपड़े के बैग के साथ बाजारों में जाते हैं। इसलिए मार्केट में रंग-बिरंगे बैग बिकते हैं। फास्ट फूड का बिजनेस करने वाले भी कागज के प्लेट, पत्तियों, सुपारी और गन्ने से तैयार फाइबर यानी खोई की प्लेटों में परोसते हैं।
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करती हुईं ग्यालसिंग की जिला कलेक्टर यिशे डी. योंगडा ने कहा, “हम पुलिस चौकियों के पास वॉटर फिल्टर लगाते हैं, ताकि टूरिस्टों के साथ-साथ पुलिस वाले भी उनसे पानी पी सकें।”
उन्होंने सरकारी ऑफिसों के साथ-साथ पब्लिक प्लेस पर ‘रिपेयर, रियूज, रिकवर, रिसाइकल’ के नारों के साथ ई-कचरा कलेक्शन सेंटर भी बनाए हैं। ताकि लोगों को ई-कचरे से निपटने में आसानी हो। इसके जरिये से पृथ्वी को बचाने में सबसे सहयोग की अपील की गई है।
दूसरे राज्यों से आगेः
दिल्ली स्थित टॉक्सिक्स लिंक और पुणे स्थित ईकोएक्सिस्ट एनजीओ की स्टडी से पता चलता है कि सिक्किम ने अपनी हरित नीतियों यानी ग्रीन पॉलिसियों को लागू करने में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। ईकोएक्सिस्ट के अध्ययन में पाया गया कि सिक्किम में लगभग 66 प्रतिशत दुकानों में पेपर बैग या अखबारों का इस्तेमाल होता है। गौरतलब है कि भारत के ज्यादातर राज्यों से ज्यादा लोग यहां कागज का इस्तेमाल कर रहे हैं।
जुर्माने, राज्य-स्तरीय नीतियों और जागरूकता कार्यक्रम के जरिये यह छोटा राज्य प्लास्टिक प्रदूषण के अभिशाप से खुद को मुक्त करने की कोशिश में काफी अच्छा कर रहा है। जैसा कि ग्यालसिंग की कलेक्टर यिशे डी. योंगडा ने कहा, “जिस तरह हम हर साल मदर्स डे मनाते हैं, उसी तरह हमें अपनी धरती मां से भी प्यार करना चाहिए। उन्हें सम्मान देते हुए उसकी देखभाल करनी चाहिए, जो अनंत है।”
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