बालासोर में कैसे चलाया गया इतना बड़ा बचाव अभियान
- Bhakti Kothari
- Published on 12 Jun 2023, 9:10 pm IST
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हाइलाइट्स
- हाल ही में ओडिशा के बालासोर में हुई तीन ट्रेनों की भीषण टक्कर देश में अब तक की सबसे भयानक घटना है
- बालासोर जिला प्रशासन के तेज राहत अभियान के कारण ही कई लोगों की जान बच सकी
- कलेक्टर दत्तात्रेय पी शिंदे के साथ पूरा प्रशासनिक अमला मुस्तैद था, अंतिम बचाव कार्य पूरा होने तक वे घटनास्थल पर डटे रहे
बालासोर के जिला कलेक्टर दत्तात्रेय पी शिंदे 2 जून की शाम 6:50 बजे अपना नियमित काम खत्म कर घर जाने वाले थे। तभी उन्हें एक फोन आया। कहा कि बहानागा रेलवे स्टेशन के पास भयंकर आवाजससुनाई दी है। बालासोर डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर से लगभग 25 किलोमीटर दूर शायद ट्रेन दुर्घटना हुई है। उनकी जगह कोई और होता, तो शायद दिमाग लगाने और आगे की कार्रवाई की योजना बनाने में कुछ मिनट लगते। लेकिन, शिंदे की पहली प्रतिक्रिया दमकल और ओडिशा डिजास्टर रैपिड एक्शन फोर्स (ओडीआरएएफ) को बुलाने की थी।
शिंदे ने इंडियन मास्टरमाइंड्स से कहा, ‘दुर्घटना के पांच मिनट के भीतर मेरा एक आदमी घटनास्थल पर पहुंच गया था। उसने वहां से बताया कि यह सिर्फ ट्रेन के बेपटरी होने का मामला नहीं है, बल्कि भयानक दुर्घटना है। इसके बाद मैंने चीफ सेक्रेटरी को फोन कर जानकारी दी। बताया कि काफी बड़ी दुर्घटना हो गई है। बड़े पैमाने पर लोगों की मौत होने की आशंका है। मैंने बालासोर के मेडिकल ऑफिसर को भी फोन किया। उन्हें वहां एंबुलेंस और डॉक्टरों की टीम के साथ पहुंचने के लिए कहा।’ उन्होंने भी मुख्य सचिव से अधिक एंबुलेंस और बचाव टीमें भेजने की गुहार लगाई, क्योंकि जिले के मुर्दाघर में सिर्फ 12 शवों को ही रखे जाने की क्षमता है।
मुख्य सचिव प्रदीप कुमार जेना राहत और बचाव कार्य के महारथी हैं। इससे पहले वह जब ओडिशा डिजास्टर मैनेजमेंट के मैनेजिंग डायरेक्टर और स्पेशल रिलीफ कमिश्नर थे, तब उन्होंने साढ़े तीन वर्षों में सात साइक्लोन से अच्छी तरह से निपटा था। उन्होंने तुरंत ही हर संभव संसाधन जुटा लिए। उन्होंने पूरे ऑपरेशन के मैनेजमेंट के लिए नौ टॉप अफसरों की एक टीम बना दी।
टीम में एसीएस सत्यव्रत साहू, इंडस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी हेमंत शर्मा, फायर सर्विस के डीजी सुधांशु सारंगी, ट्रांसपोर्ट कमिश्नर अमिताभ ठाकुर, ओडिशा माइनिंग कॉरपोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर बलवंत सिंह, वूमन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट की डायरेक्टर अरविंद अग्रवाल, आईडीसीओ के मैनेजिंग डायरेक्टर भूपेंद्र सिंह पुनिया, रेलवे के एडिशनल डीजी अमिताभ ठाकुर और पूर्वी क्षेत्र के आईजी हिमांशु कुमार लाल शामिल थे। उन सभी के पास स्पष्ट कार्य था। जेना ने बचाव और राहत कार्यों के लिए अपने संसाधन जुटाने के लिए पड़ोसी जिलों के कलेक्टरों को भी बुलाया।
बचाव अभियानः
बालासोर के कलेक्टर शिंदे 25 मिनट में बहानागा पहुंच गए। उस वक्त तक वहां के स्थानीय लोग बचाव कार्य शुरू कर चुके थे, लेकिन उनका तरीका गलत था। वे लोगों के शव और जख्मी लोगों को एक साथ ही रख रहे थे। शिंदे ने कहा, ‘हमारे पास कुछ ही एंबुलेंस थीं। इसलिए हमने इन्हें केवल घायल लोगों को लाने-ले जाने के लिए तैनात किया। हमने जानकारी ली की कि सबसे नजदीक सरकारी भवन कौन-सा है। घटनास्थल से महज 200 मीटर की दूरी पर बहानागा हाई स्कूल था, तो हमने उसे तुरंत खुलवा दिया और शवों को वहीं रख दिया। हमने शवों को ढकने के लिए दो ट्रेनों के रेलवे डिब्बों से रेलवे की बेडशीट ली और फिर उसी से शवों को ढक दिया।’
शिंदे ने कहा कि गंभीर रूप से घायल लोगों को जिला मुख्यालय अस्पताल ले जाया गया। बाकी को सीएचसी में भेज दिया गया। मरीजों को इस तरह अलग-अलग कर देने से गंभीर रूप से घायल एक भी व्यक्ति को जान नहीं गंवानी पड़ी, क्योंकि उन्हें तुरंत घटनास्थल से अस्पताल ले जाया गया और उनका इलाज किया गया।
टीमों का गठनः
शिंदे ने सही तरीके से काम करने के लिए अलग-अलग टीमें बनाईं। एडीएम को कोआर्डिनेशन बनाने को कहा गया। आरटीओ ने गाड़ियों का इंतजाम किया। मुख्य सुरक्षा अधिकारी संसाधन जुटाने और भोजन और सप्लाई का ध्यान रख रहे थे। घटनास्थल पर चल रहे कार्यों का नेतृत्व ओडीआरएएफ और एनडीआरएफ के साथ दमकल वालों ने किया। अस्पताल संचालन का नेतृत्व सीडीएमओ (मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी) और मेडिकल कॉलेज के सुपरिटेंडेंट कर रहे थे।
जब तक शिंदे मौके पर पहुंचे, दुर्घटना के चार घंटे के भीतर चीफ सेक्रेटरी जेना पहले ही पांच अधिकारियों को वहां भेज चुके थे। जेना ने कहा, ‘शाम सवा सात बजे के आसपास के दृश्यों को देखने पर हम बहुत स्पष्ट थे कि यह एक बड़ी आपदा थी।’ उन्होंने अधिकारियों से कहा था, ’आप जहां भी हैं, वहीं से घटनास्थल पहुंचिए। अपने सामान की चिंता मत कीजिए, हम उसकी व्यवस्था कर देंगे। पुरी और कटक के अधिकारियों को भुवनेश्वर आने की जरूरत नहीं है आप बाईपास से सीधे चले जाएं।’
अगले चार दिनों तक नौ अधिकारी बालासोर में बचाव और राहत अभियान की रीढ़ बने रहे। भुवनेश्वर के कंट्रोल रूम में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने चीफ सेक्रेटरी और अन्य अधिकारियों से डिजास्टर से निपटने की योजना के बारे में पूछा। पटनायक ने कहा कि जो जरूरी है वह कीजिए, पैसों की चिंता मत कीजिए। अगर राज्य की योजनाओं से काम नहीं चलता है तो किसी भी ऐसी जरूरत के लिए मुख्यमंत्री रिलीफ फंड से पैसे निकाल लें।
किसी भी ट्रेजडी में जीरो कैजुअल्टी पर पटनायक का जोर राज्य की प्रशासनिक मशीनरी की जड़ों में जम चुका है। नुकसान हुआ, फिर भी अधिकारियों ने जीरो कैजुअल्टी के मिशन के साथ काम किया। डेवलपमेंट कमिश्नर अनु गर्ग के साथ भुवनेश्वर के कंट्रोल रूम में 8-10 अन्य सीनियर अफसर थे।
ओडिशा की हेल्थ सेक्रेटरी शालिनी पंडित पूरी मुस्तैदी के साथ डटी रहीं। जिलों से एंबुलेंस जुटाना, बालासोर के पास के अस्पतालों को मरीजों को लेने के लिए तैयार रहने के लिए अलर्ट करना और बारीपदा और कटक के मेडिकल कॉलेजों के डॉक्टरों के साथ बात करने पर वह ध्यान दे रही थीं। तीन घंटे में उन्होंने 250 से अधिक एम्बुलेंस, एससीबी मेडिकल कॉलेज के 50 डॉक्टरों, बारीपदा मेडिकल कॉलेज के 30-40 डॉक्टरों और केंद्रपाड़ा और जाजपुर के कुछ डॉक्टरों को जुटा लिया था। इसके साथ ही पड़ोसी जिले भद्रक और जाजपुर के कलेक्टर भी मदद के लिए आगे आए।
ट्रेजडी के एक घंटे के भीतर दमकल की 15 टीमें और दो ओडीआरएएफ टीमें पहुंच चुकी थीं। पहली बार 45 मिनट के भीतर पहुंच गई थीं और आधी रात तक बचाव कर्मियों की संख्या 400 लोगों तक पहुंच गई।
काम बांट दिए गएः
अधिकारियों ने इमरजेंसी में जिम्मेदारियों को बांट लिया। जैसे रिलीफ का इंचार्ज कौन होगा, घायलों को कौन देखेगा और शवों को कौन संभालेगा। प्रायोरिटी स्पष्ट थी। पहले उन यात्रियों को बचाना था, जो जीवित थे और उन्हें अस्पतालों में भेजना था। अन्य टीमों को शव संभालने की जिम्मेदारी दी गई। पहले 45 मिनट के लिए मुख्य रूप से शिंदे के नेतृत्व में स्थानीय प्रशासन, स्थानीय एसपी और बहानगा के लोगों ने स्थिति को संभाला। स्थानीय लोगों ने बड़ी तादाद में ट्रेन में फंसे यात्रियों को बाहर निकाला और होमस्पून का उपयोग करते हुए उन्होंने डिब्बे के शीशे तोड़कर लोगों को बचाया। घायलों को अस्पताल पहुंचाया, सहायता प्रदान की और इसके साथ ही रक्तदान किया।
शिंदे ने कहा, ‘घटना के वक्त मौके पर घना अंधेरा था। हमने रोशनी के लिए 53 लाइट टावर और जनरेटर लगाए, ताकि बचाव अभियान चलाया जा सके। हमारा दूसरा काम घायलों को निकालने का था। दरअसल, घायलों को निकालने का काम सीधे शुरू हो गया। स्थानीय जनता और अधिकारी इस पर काम कर रहे थे। हमारी ताकत बढ़ती चली गई। नई टीमों के आने के साथ ही हमने इसमें योगदान देना शुरू कर दिया।’
पांच घंटे में जीवितों को बचायाः
देर रात 12 बजे तक लगभग सभी जीवित लोगों को बाहर निकाल लिया गया था। सिर्फ दो बोगियों को छोड़कर, जो एक दूसरे पर चढ़ गई थीं। बचावकर्मियों ने प्लाज्मा और गैस कटर का उपयोग करके चार घंटे से भी कम समय में सभी बोगियों में प्रवेश कर लिया था। आधी रात तक सभी बचे लोगों को बाहर निकाल लिया था।
एनडीआरएफ के मौके पर पहुंचने के बाद ओडीआरएएफ और दमकल टीमों को बचे लोगों की देखभाल करने की जिम्मेदारी दी गई, जबकि एनडीआरएफ को शवों की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके पीछे तर्क यह था कि राज्य की अपनी सेना स्थानीय भाषा जानती थी, जबकि एनडीआरएफ के सदस्य नहीं जानते थे।
करीब 1,200 जीवित लोगों को सोरो, बालासोर, बासुदेवपुर, भद्रक, बहानागा और जाजपुर के प्राइमरी हेल्थ सेंटरों में भेजा गया। गंभीर रूप से घायलों को जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज भेजा गया। कुछ यात्रियों को कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल भेजा गया। एंबुलेंस को गंभीर मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए लगाया गया था, जबकि मामली जख्मी लोगों को बसों से भेजा जा रहा था।
दूसरा चरणः
ओडिशा सरकार द्वारा चलाए गए बचाव अभियान के दूसरे चरण में बंद पड़ी बोगियों को खोलना और उसमें फंसे हुए लोगों की तलाश करना शामिल था। शिंदे ने इंडियन मास्टरमाइंड्स से कहा, ‘यह देर रात करीब 2 बजे तक चला। फिर हमें यकीन हो गया कि हमने पूरे क्षेत्र को कवर कर लिया है। ओडीआरएएफ और दमकल ने इन बोगियों को खोलने के लिए प्लाज्मा कटर और हाइड्रोलिक कटर का इस्तेमाल किया।’
जब शवों को निकालने की बात आई, तो सबसे बड़ी चुनौती डिब्बों के नीचे फंसे शवों को निकालने की थी। 3 जून की शाम 4.30 बजे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घटनास्थल से रवाना हो गए। फिर उन दो बोगियों को खींचने के लिए रेलवे के भारी लिफ्ट का इस्तेमाल किया गया। वहां से 27 शव बरामद किए गए।
पहले छह घंटे में घायलों को निकाला गया और जीवित लोगों को बचाया गया। फिर अगले तीन-चार घंटों में डिब्बों के नीचे के शवों को छोड़कर सभी शवों को बाहर निकाल लिया गया।
एक अन्य चुनौती ओडिशा के गर्म मौसम में 288 शवों को रखने की थी। राज्य सरकार ने 180 शवों को ले जाने के लिए 95 एंबुलेंस की व्यवस्था की और बालासोर के अस्पतालों और मुर्दाघरों से एम्स, भुवनेश्वर में तक इसे पहुंचाने में पायलट सुरक्षा के साथ एक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। केंद्र सरकार ने एम्स में 150 बिस्तरों वाले विशेष शवगृह को बनाने और संरक्षित करने के लिए वायु सेना के एक विशेष विमान द्वारा 1,000 लीटर फॉर्मलडिहाइड के साथ 17 पेशेवरों को भेजा।
बालासोर के कलेक्टर शिंदे और वहां की एसपी सागरिका नाथ तीन दिनों तक चले बचाव कार्य के पूरी तरह से खत्म होने तक घटनास्थल से कहीं बाहर नहीं गए।
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