कैसे हरियाणा और केरल के दो आईएएस अधिकारियों ने मणिपुर के एक हिंसाग्रस्त जिले को शांत किया
- Sharad Gupta
- Published on 21 Jun 2023, 1:08 pm IST
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हाइलाइट्स
- मणिपुर का टेंग्नौपाल जिला 28 मई से शांत है, जहां हिंसा की एक भी नई घटना की सूचना नहीं है
- 28 मई को जिले के सीमावर्ती कस्बे मोरेह में भारी हिंसा भड़क उठी थी, जिससे हर कोई सन्न रह गया था
- जिला प्रशासन की विश्वास बहाली के कदमों में नागरिक संगठनों के सहयोग से आई है शांति
कहना ही होगा कि मणिपुर जल रहा है। फिर भी इंडियन मास्टरमाइंड हिंसा से झुलसे राज्य के पहाड़ी जिलों में से एक में जमीनी स्थिति का आंखों देखा हाल जानने में कामयाब रहा। जिले का नाम है- टेंग्नौपाल। यहां भी हिंसा भड़की थी। 28 मई को म्यांमार सीमा के साथ मोरेह शहर में हिंसा तब बेलगाम हो गई, जब घरों में आग लगा दी गई। ऑटोमेटिक गनों की गड़गड़ाहट के बीच लोग जान बचाने के लिए भाग निकले।
हालांकि, उसके बाद से जिले में एक असहज शांति देखी जा रही है। इस बीच इस स्टोरी को लिखने तक आगजनी और दंगे की कोई नई घटना नहीं हुई है। राज्य के अन्य जिलों की तुलना में टेंग्नौपाल अजीब तरह से शांत है।
इस खबर की सच्चाई को जानने के लिए इंडियन मास्टरमाइंड्स ने टेंग्नौपाल जिले के एसडीएम और 2020-बैच के आईएएस अधिकारी आशीष दास से संपर्क किया। उन्होंने मौके पर से हमें बताया कि वास्तव में वहां क्या हो रहा है।
दो आईएएस अधिकारी कर रहे हैं कंट्रोल
जैसे ही मणिपुर में हिंसा शुरू हुई और स्थिति तेजी से नियंत्रण से बाहर होने लगी, तो युवा आईएएस अधिकारी आशीष दास को केरल में उनके घर से वापस बुला लिया गया। वह वहां एक पारिवारिक ट्रेजेडी के कारण गए थे। जैसे ही वे टेंग्नौपाल वापस लौटे, सन्न रह गए। इसलिए कि यह अब वह जगह नहीं थी, जिसे उन्होंने कुछ दिन पहले छोड़ा था। इस जगह से उनका विशेष लगाव था। इसलिए कि प्रोबेशन के बाद पहली पोस्टिंग यहीं हुई थी। वहां के हालात बदल गए थे।
हर जगह हिंसा थी। लगभग सभी कर्मचारी (जो मैतेई थे) जिले से भाग गए थे। इंफाल में उनके घर भी जला दिए जाने की खबर से जिले के पुलिस सुपरिटेंडेंट अवाक रह गए थे। पूरे प्रशासन में सन्नाटा पसरा हुआ था। खबरें यह भी आईं कि कलेक्ट्रेट में आग लगा दी गई है और बाकी सभी कर्मचारियों को उनके घरों में छिपा दिया गया है।
ऐसे हालात में न्यूट्रल अधिकारियों से कुछ सामान्य स्थिति बहाल करने की आशा के साथ जिला कलेक्टर और एसपी दोनों को बदल दिया गया। उनकी जगह गैर-मणिपुरी अधिकारियों को लाया गया। नए डीसी मणिपुर कैडर के 2013 बैच के आईएएस अधिकारी हरियाणा के कृष्ण कुमार थे, जबकि उनके साथ एसडीएम के रूप में बिल्कुल नए आईएएस अधिकारी आशीष दास आए। अन्य सभी कर्मचारियों के चले जाने के बाद स्थिति को कंट्रोल करने के लिए उनमें से सिर्फ तीन- डीसी, एसपी और एसडीएम को छोड़ दिया गया था।
तीन से पांच हो गए
एसडीएम दास ने कहा, “हमने एक नागा आदमी की मदद लेने का फैसला किया, जिनका क्षेत्र में बहुत सम्मान था। इसलिए वह एक नागा ड्राइवर के साथ हमारे साथ हो गए। इस तरह हम पांच लोगों की टीम बन गई।” अधिक ताकत जुटने से आत्मविश्वास बढ़ा। फिर टीम ने जिले के दौरे पर जाने का फैसला किया। उनका ध्यान लोगों तक पहुंचना, उनके गुस्से और डर को शांत करना और राहत शिविरों का दौरा करना था। यह दरअसल लोगों में विश्वास कायम करने का काम था।
जैसे ही इस दौरे की शुरुआत की, उन्होंने महसूस किया कि यहां अफवाहें फैलने की पूरी गुंजाइश है, जिससे हालात बिगड़ सकते हैं। कलेक्ट्रेट भवन अभी भी बरकरार था! वैसे राहत के पल कम थे, क्योंकि छोटे सीमावर्ती कस्बे मोरेह में उनके सामने जो कुछ होने वाला था, वह उसके लिए कतई तैयार नहीं थे।
घटनाओं का भयानक खुलासा
वह 28 मई का दिन था। जिस दिन मोरेह में भारी हिंसा में भड़क उठी थी। वहां असम राइफल्स के जवानों को लोगों को रोकने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी। एसडीएम आशीष दास ने कहा कि उन्होंने 15-16 साल के युवकों को ऑटोमेटिक गनों से लैस और महिलाओं को सबसे आगे मानव ढाल यानी ह्यूमन शील्ड बनाते हुए देखा।
यह बहुत ही विचलित कर देने वाला दृश्य था। उन्होंने कहा, वैसे कलेक्टर कृष्ण कुमार शांत थे और तुरंत अपनी योजना के अनुसार उन सभी को कार्रवाई में लगा दिया।
श्री दास ने समझाया, “हम स्थानीय नागरिक संगठनों के पास पहुंचे। उनसे नफरत और हिंसा को शांत करने में सहयोग करने की अपील की। हमारा ध्यान विश्वास बनाने और उनका विश्वास जीतने पर था। एक बार जब इन संगठनों के नेता साथ आ गए, तो हम लोगों को शांत करने और शांति स्थापित करने में कामयाब रहे।”
मैतैई लोगों को क्या हुआ
शांति आई, लेकिन कीमत लेकर। लगभग सभी मैतेई जिले से भाग गए। उनमें से ज्यादातर अभी इंफाल के राहत शिविरों में हैं। कुछ सीमा पार कर म्यांमार भी गए।
इंडियन मास्टरमाइंड्स ने मैतेई काउंसिल मोरेल के असिस्टेंट सेक्रेटरी कोनसम मंजू मैतेई से बात की, जो इंफाल में एक राहत शिविर में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमारे प्रेसिडेंट, वाइस प्रेसिडेंट और सेक्रेटरी म्यांमार में हैं। वहां के जुंटा द्वारा उनकी देखभाल की जा रही है। चूंकि वे सीमा के पास रहते थे, इसलिए उनके लिए इंफाल की ओर आने और हिंसक भीड़ का सामना करने के बजाय सीमा पार करना अधिक सुरक्षित था।”
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि मोरेह में असम राइफल्स के शिविरों में भी कुछ मैतई हैं, जबकि उनमें से चार लापता हैं। उन्होंने कहा, “अभी तक उनकी कोई खबर नहीं है। बाकी हम फोन कॉल के जरिए संपर्क में हैं।”
जिला प्रशासन से मदद
उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन ने उन्हें बसों में इंफाल पहुंचने में मदद की और उन्हें इंफाल के राहत शिविरों तक पहुंचाया। क्या वह मोरेह वापस जाना चाहेंगे? उन्होंने कहा- हां, लेकिन तभी जब सरकार उन्हें पूरी सुरक्षा का भरोसा दे। उन्होंने सुना है कि मोरेह अब शांत है, लेकिन उनके घरों पर सिर्फ राख बचा है। फिर भी वह इन राख से अपना जीवन नए सिरे से संवारने को तैयार हैं।
उन्होंने कहा, “वह मेरा गृहनगर है, उस जगह ने मुझे जीवन भर पाला है। मैं सिर्फ गर्भनाल कैसे काट सकता हूं?” हालांकि, वास्तविकता जल्द ही सामने आ गई। जैसा कि उन्होंने कहा, “हमें वापस लौटने के लिए चीजों को व्यवस्थित होने में कम से कम एक साल लगेगा।”
धर्म से कोई लेना देना नहीं
उन्होंने सहानुभूतिपूर्वक इस धारणा को खारिज कर दिया कि धर्म का हिंसा से कोई लेना-देना है। उन्होंने कहा, “कुछ लोग इसे धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है! कृपया उन पर विश्वास न करें।”
कुकी संगठन के एक नेता ने भी उनके विचार की पुष्टि की। इंडियन मास्टरमाइंड्स ने टेंग्नौपाल जिले के कुकी चीफ एसोसिएशन (केसीए) के सचिव लालबोई ह्रीअम्मी से बात की। उन्होंने साफ-साफ कहा, “यहां कोई कम्युनल एंगल नहीं है। यह ईसाई बनाम हिंदू लड़ाई नहीं है।”
28 मई से कोई हिंसा नहीं
उन्होंने आगे कहा कि टेंग्नौपाल में शांति बनाए रखने के लिए उनका संगठन केसीए जिला प्रशासन के साथ मिलकर काम कर रहा है। उन्होंने दावा किया, ”मोरेह में 28 मई की हिंसा के बाद से अब तक पूरे जिले में हिंसा की एक भी घटना नहीं हुई है।”
यह कैसे संभव हुआ है? एसडीएम आशीष दास ने कहा, “विश्वास और भरोसा बनाने से। मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। कुछ दिन पहले दो मैतेई नशे में थे, हमारे जिले में गलती से ठोकर खाकर गिर गए थे। कुकी लोगों ने उन्हें पकड़ लिया। लेकिन उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। उन्होंने हमें बुलाया और उन्हें प्रशासन को सौंप दिया।” उन्होंने टेंग्नौपाल में आए इस बदलाव का श्रेय जिलाधिकारी कृष्ण कुमार के नेतृत्व को दिया।
कुकी चीफ एसोसिएशन के सचिव लालबोई ह्रीअम्मी ने घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि अगर यह कोई और पहाड़ी जिला होता, तो वे दोनों लोग निश्चित रूप से मारे गए होते। लेकिन ऐसा करकने के बजाय टेंग्नौपाल के कुकी लोग उन्हें पुलिस को सौंपने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने कहा कि यह प्रशासन और नागरिक संगठनों के संयुक्त प्रयासों का परिणाम है, जिसमें लोगों को संयम बरतने और इमोशनली नहीं बहकने के बारे में समझाया जाता है।
श्री ह्रीअम्मी ने कहा, “हम अपने लोगों को समझाने में कामयाब रहे कि एक राजनीतिक समाधान की जरूरत है। हिंसा का सहारा लेने से हमें इसे हासिल करने में मदद नहीं मिलेगी।”
बंदूकें खामोश, आग बुझी, लेकिन…
इस बीच, कुकी एसपी को नागा पुलिस अधिकारी से बदल दिया गया है। बंदूकें खामोश हो गई हैं और टेंग्नौपाल में अब भयानक सन्नाटा पसर गया है। हालांकि, वहां कई बातें चल रही हैं। जिला प्रशासन के साथ पहाड़ी जिले के कुकी और मैतेई संगठन दोनों इस तथ्य से सहमत हैं कि मोरेह हिंसा बेवजह थी, लेकिन संगठित थी। इसलिए वास्तव में कोई भी यह दावा नहीं कर सकता है कि आगे फिर भारी हिंसा नहीं भड़केगी।
फिलहाल आग बुझा दी गई है, लेकिन राख में अंगारे छिपे हुए हैं। तूफान से पहले की खामोशी की तरह बेचैनी भरी शांति को महसूस किया जा सकता है। इंफाल में मैतेई समुदाय के एक सीनियर पत्रकार, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने इंडियन मास्टरमाइंड से पूछा, “हम वहां ऊपर नहीं जा सकते, वे यहां नीचे नहीं आ सकते। फिर शांति कहां है?”
इसका जवाब हमारे पास नहीं है।
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