बीएमसी से संयुक्त राष्ट्र तक का सफर, अपने वसूलों के साथ खड़े रहने वाले इस आईएएस अधिकारी से बेहतर लड़ना कौन जानता है!
- Indian Masterminds Bureau
- Published on 3 Nov 2021, 6:02 pm IST
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हाइलाइट्स
- 1993 में लातूर में आए भूकंप से हुई भयावह तबाही से निपटने से लेकर कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में बेहतर प्रबंधन तक, यह आईएएस अधिकारी एक ऐसी ताकत है जिससे आम लोगों को संबल मिलता है।
- आईएएस अधिकारी प्रवीण परदेशी
सभी लड़ाईयां सिर्फ सीमाओं पर नहीं लड़ी जाती, और न ही सभी योद्धा पारंपरिक हथियारों का उपयोग करते हैं। भारत के कोरोना-योद्धाओं की सेना इसका इसका एक जीवंत उदहारण है, खासकर उद्यमशील सिविल सेवल जो देश के विभिन्न जिलों में अपने अनोखे तरीकों से कोरोना वायरस से लड़े और विजयी हुए।
लेकिन, कभी-कभी एक योद्धा न केवल कोविड-19 जैसे बाहरी दुश्मन से लड़ता है, बल्कि नौकरशाही और प्रशासन के अंदरूनी लोगों के उन्हें गिराने के प्रयासों से भी बचकर खुद को साबित करना पड़ता है। प्रवीण परदेशी, महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के सबसे हाई प्रोफाइल नौकरशाहों में से एक थे। जब देवेन्द्र फड़नवीस राज्य के मुख्यमंत्री थे और भाजपा-शिवसेना की सरकार थी, उन्हें अक्सर दूसरे पावर हाउस के रूप में देखा जाता था। कुछ लोग तो उन्हें ‘दूसरा मुख्यमंत्री’ तक कहा करते थे।
2018 में सीएम फड़नवीस ने 1985 बैच के आईएएस अधिकारी प्रवीण को शक्तिशाली बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के आयुक्त के रूप में नियुक्त किया था। नवंबर 2019 में जब उद्धव ठाकरे राज्य के मुख्यमंत्री बने, उन्होंने भी प्रवीण को बीएमसी के शीर्ष व्यक्ति के रूप में बनाए रखा और कोई अनुचित हस्तक्षेप नहीं किया।
मुंबई का कोरोना योद्धा
दरअसल, पिछले साल जब कोविड-19 ने भारत में अपने पैर फैलाने शुरू किए और मार्च में पहला राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन (तालाबंदी) लागू हुआ, तो प्रवीण परदेशी ने अपनी प्रशासनिक क्षमता का लोहा मनवाते हुए अपनी कुशलता फिर से साबित की। घातक वायरस के तेजी से प्रसार के चलते, एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्तियों में से एक मुंबई की धारावी बस्ती नीति निर्माताओं की निगाह में आई और अधिकारियों ने यहां ध्यान केन्द्रित किया।
सभी को पता था कि भारत के सभी मेट्रो शहरों में से मुंबई पर कोरोना का सबसे अधिक खतरा मंडरा रहा था, भारत की आर्थिक राजधानी होने की वजह से मुंबई कोरोना के प्रसार के लिए सबसे आसान जगह थी। कुल मिलाकर सभी कारक इस ओर इशारा कर रहे थे कि मुंबई में भी कभी कोरोना रूपी कयामत बड़ी आपदा बन कर बड़े स्तर पर टूट सकती है।
लेकिन यहां, प्रवीण परदेशी जैसे अधिकारी को श्रेय देना होगा कि उन्होंने भविष्यवक्ताओं की सभी आशंकाओं और कयामत के पलों जैसे भविष्य के डर को गलत साबित कर दिया। लोग भूल चुके थे कि वह एक और बड़ी लड़ाई के साक्षी रह चुके हैं, जो 90 के दशक में महाराष्ट्र के लातूर में आए भयावह भूकंप के वक्त उनके साथ घटित हुई थी।
साल 1993 में, जब भूकंप आया तो वह लातूर के एक युवा जिला कलेक्टर थे। तब सेवाभाव की भावना से भरे इस योद्धा की देख-रेख में ही लातूर में राहत और पुनर्वास कार्य का बेहतर प्रबंध और निरीक्षण हुआ था।
27 साल पहले लातूर में प्रवीण ने जो सबक सीखा था, उसी को 2020 में कोरोना से बुरी तरह त्रस्त मुंबई में दोहराया। और इसका असर यह हुआ कि कोरोना जैसी महामारी से उबरने में मुंबई को सराहनीय सफलता मिली। कई हफ्तों तक, कोविड-19 मरीज 5,000 से नीचे रहे और बाद में भी इनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़कर 7,000 के आंकड़े तक पहुंच पायी। मुंबई जैसे मेट्रो शहर में, प्रवीण के कड़े और व्यावहारिक उपायों के कारण ऐसा संभव हो सका। मुंबई उन शुरुआती शहरों में से एक था, जहां वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सख्त कांटैक्ट ट्रेसिंग (संपर्क चिन्हित कर पता लगाना) और रोकथाम रणनीतियों को शुरू किया गया था।
नई चुनौतियां
हालांकि, मुंबई में कई हफ्तों तक कोरोना के मामलों को काबू में रखने के बाद स्थितियां सामान्य से बिगड़ने लगीं। तमाम सावधानियों और आकस्मिक उपायों के बावजूद कोरोना मरीजों के संख्या 10,000 को पार कर गयी। और मई 2020 में, प्रवीण परदेशी को अचानक बीएमसी से बाहर कर दिया गया। उनकी गलती क्या थी? कोरोनोवायरस से कारगर तरीके से न निपट पाना? नहीं, यह बिलकुल नहीं थी, कई अन्य शहरों के मुकाबले मुंबई फिर भी बेहतर तरीके से कोरोना से निपट रही थी। प्रवीण के साथ ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि इस भयावह महामारी के बीच उन्होंने कथित तौर पर मुंबई में शराब की दुकानें खोलने के आदेश पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। सरकार के फरमान को न मानने का नतीजा क्या हो सकता है, यह जानते हुए भी यह आईएएस अधिकारी अपने वसूलों के साथ खड़ा रहा।
इसके बाद, राज्य सरकार ने अपने एक आदेश के तहत एक ही झटके में प्रवीण परदेशी को बीएमसी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। प्रवीण को उनकी नई पोस्टिंग दी गयी और उन्हें महाराष्ट्र के शहरी विकास विभाग में अतिरिक्त आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया।
लेकिन, प्रवीण परदेशी की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। बाद में खबर आई कि प्रवीण संयुक्त राष्ट्र में अपनी नई पारी की शुरुआत करने जा रहे हैं। वह ‘वैश्विक कार्यक्रम समन्वयक’ के रूप में संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान में शामिल हो गए हैं।
इसीलिए, यह कहना उचित होगा कि एक योद्धा के रूप में, इस आईएएस अधिकारी की यात्रा अभी भी जारी है।
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