जब एक पर्वत शिखर दो जिंदगियों के बीच पुल बन गया!
- Raghav Goyal
- Published on 2 Oct 2021, 11:02 am IST
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हाइलाइट्स
- स्पेन के एक पर्वत शिखर का नाम उत्तराखंड के आईएएस अधिकारी के नाम पर रखा गया, क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी?
- इस कहानी का आधार है, मानव स्वभाव की सबसे महत्वपूर्ण इकाई - दया भाव!
- पढ़िये आईएएस अधिकारी और एक पर्वतारोही की संवेदना से भरी इस भावुक कहानी पर इंडियन मास्टरमाइण्ड्स की खास रिपोर्ट।
- संवेदना और दोस्ती की कहानी- आईएएस अधिकारी के नाम पर एक पहाड़ की चोटी का नाम
कभी-कभी एक छोटा सा करुणा भाव, एक लंबा रास्ता तय करता है। इस कहानी में यह भाव भारत के एक अहम पहाड़ी राज्य उत्तराखंड से स्पेन तक पहुंच गया, इसके पीछे का मुख्य कारण है- एक आईएएस अधिकारी का निस्वार्थ और परोपकारी कार्य।
उत्तराखंड में अतिरिक्त सचिव के पद पर तैनात आशीष चौहान के लिए यह गर्व का क्षण था, क्योंकि स्पेन में एक पर्वत शिखर का नाम उनके सम्मान में रखा गया। यही नहीं, 2,590 मीटर की ऊंचाई पर स्थित जोखिमों से भरे पर्वत शिखर पर जाने वाले रास्ते का नाम भी ‘वाया आशीष’ रखा गया है। यह सब कुछ उस करुणा भाव के एक इशारे से शुरू हुआ था।
चलिए शुरुआत से बताते हैं। 2018 में जुआन एंटोनियो नाम के एक शख्स भारत पहुंचे। वो यहां गढ़वाल हिमालय के गंगोत्री क्षेत्र में 7075 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सतोपंथ पर्वत शिखर को फतेह करने आए थे। यह गंगोत्री क्षेत्र का दूसरा सबसे ऊंचा पर्वत है। विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का ख्वाब देखने वाले पर्वतारोहियों के लिए यह स्वर्ग के समान है और अधिकतर अपनी तैयारी यहीं करते हैं। सबसे पहले इसे विख्यात पर्वतारोही और एक हिमस्खलन प्रबंधन विशेषज्ञ आंद्रे रोच के नेतृत्व वाली टीम ने भारत की आजादी से 15 दिन पहले अगस्त 1947 में फतेह किया था।
आरोहण
जैसे ही एंटोनियो ने चढ़ाई शुरू की, उन्हें महसूस हुआ कि सतोपंथ पर्वत शिखर के इरादे कुछ और ही हैं। हालांकि एक पर्वतारोही होने के नाते ऐसे खतरों से वो पहले से ही वाकिफ थे और कुछ हद तैयार भी, क्योंकि अगर कभी भी उन्होंने ये सोचा होता कि इस प्रसिद्ध चोटी पर चढ़ना पार्क में टहलने के जैसा होगा, तो सतोपंथ शिखर के जाहिर इरादों से वह वास्तव में बहुत बड़े सदमे में होते। आगे जैसे ही उन्होंने अपनी चढ़ाई शुरू की, परेशानियों ने रौद्र रूप धरते हुए उन्हें लगातार चोट पहुंचानी शुरू कर दी।
बेस कैंप
इंडियन मास्टरमाइंड्स से फोन पर बात करते हुए जुआन एंटोनियो ने कहा, “यह मेरे लिए बिल्कुल मौत से सामना होने जैसा था, क्योंकि शिखर पर चढ़ने के बाद मैं दूसरी बार बीमार पड़ गया। यह फिर से माउंटेन सिकनेस (ऊंचाई पर होने वाली बीमारी) थी, जो हमारे बेस कैंप जाने के दौरान मुझे हुई और अबकी बार यह कुछ ज्यादा ही दर्दनाक और गंभीर थी। यहां तक कि बेस कैंप पहुंचने के बाद, मेरे शरीर ने जवाब दे दिया और इलाज का भी कोई असर नहीं हो रहा था। लेकिन भला हो एक संपर्क अधिकारी का, जो हमारी मदद के लिए आए और हमें सुरक्षित वापस बेस कैंप पहुंचाया। लेकिन मेरी हालत बिगड़ने लगी थी। लग रहा था कि मैं उस रात ही मर जाऊंगा।”
मदद का हाथ
जुआन जब बेस कैंप से बाहर आए, तो उनकी मुलाकात उस समय उत्तरकाशी के जिला कलेक्टर आशीष चौहान से हुई। इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ बात करते हुए चौहान ने कहा, “उस समय डीएम होने के नाते, मैंने महसूस किया कि पर्वतारोहियों की उचित तरीके से मदद करना और उनकी हर जरूरत को पूरा करना मेरा कर्तव्य था।”
जुआन एंटोनियो की गंभीर स्थिति के बारे में जानने के बाद, डीएम ने उनसे एक दोस्त की तरह बात की। साथ ही जुआन को वहां की भौगोलिक स्थिति से रूबरू कराया और आगे किसी भी मदद के लिए अपना नंबर भी दिया। यही वह भावनात्मक मुलाकात थी, जिसमें खास तौर पर चौहान ने एक बीमार व्यक्ति की पूरे मनोभाव से मदद की और इसका जुआन पर गहरा असर पड़ा।
स्पेनिश पर्यटक जुआन ने डीएम के साथ बिताए गए सत्र के बाद बहुत बेहतर महसूस किया। वह उनके द्वारा दिखाए गए दयाभाव और मानवीय स्पर्श के लिए उनके प्रति आभारी थे।
इसके बाद 15 अगस्त 2020 को भारत के स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर चौहान ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक वायरल पोस्ट साझा की। यह जुआन का एक संदेश था और इसका मजमून कुछ इस तरह था- “आज मैं और मेरा दोस्त डेविड रेजिनो स्पेन में एक वर्जिन पीक (जो चोटी अभी तक फतेह न की जा सकी हो) पर चढ़ गए। मैंने शिखर और साथ ही जिस मार्ग से हम चढ़े, दोनों का नामकरण किया है। हमने तय किया है कि इस चोटी को ‘मजिस्ट्रेट प्वाइंट’ कहा जाएगा और इस रास्ते को ‘वाया आशीष’ के नाम से जाना जाएगा। आपके सम्मान में और आपका आभार।”
चौहान ने अपने सोशल मीडिया संदेश में, जुआन एंटोनियो के साथ व्हाट्सएप चैट का स्क्रीनशॉट भी साझा किया। इसमें कहा गया है, “सतोपंथ शिखर अभियान के दौरान लगभग मौत का सामना किया।”
वर्जिन और अभी तक अनाम चोटी, साथ ही यहां तक पहुंचने का रास्ता अब चौहान का नाम से पहचाना जाएगा, यह स्पेन के ग्रेडोस पर्वत श्रृंखला में पड़ती है। वहीं इस क्षेत्र को कैनेलस ओसुरस कहा जाता है।
जुआन के स्पेन लौटने के बाद वो और आशीष नियमित तौर पर तो नहीं, लेकिन फिर भी संपर्क में रहे। चौहान कहते हैं, “दुनिया भर में बढ़ते कोरोनोवायरस मामलों के बीच, एक दिन मैंने जुआन का हाल-चाल पूछने के लिए उन्हें मैसेज किया। हमारे बीच एक भावनात्मक बातचीत हुई, क्योंकि वह महामारी के दौरान काफी समस्याओं का सामना कर रहे थे। इसी तरह से हम फिर से जुड़ गए।”
उन घटनाओं को याद करते हुए जिनकी वजह से एक स्पेनिश चोटी का नाम उनके नाम पर रखा गया, चौहान कहते हैं, “मुझे गर्व है कि हमारे 74 वें स्वतंत्रता दिवस पर इतनी अच्छी खबर आई। करुणा और मानवता से भरी एक छोटी सी बातचीत बहुत कुछ बदल सकती है। जहां तक मेरे ऊपर स्पेन में एक चोटी का नामकरण करने की बात है, मुझे लगता है कि भारत को एक विदेशी भूमि पर यह अनूठा सम्मान मिला है।”
स्पेन में शिखर का नाम ‘मजिस्ट्रेट पॉइंट’ रखा गया, क्योंकि चौहान ने जब एक शोक-संतप्त और बीमार पर्वतारोही से मुलाकात की और उसे मदद दी, जब वह जिलाधिकारी थे।
इस सबसे इतर, नए पर्वतारोहियों को एक पुरानी कहावत भी याद रखनी चाहिए- ‘यह आप नहीं है जो पहाड़ पर चढ़ते हैं। यह पहाड़ है जो आपको चढ़ने देता है’… निश्चित रूप से कभी-कभी, आरोहण का कार्य दो विभिन्न विशिष्ट व्यक्तियों के बीच सार्थक संबंध भी बनाता है।
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