आईएएस अधिकारी जिनकी सादगी पर भरोसा नहीं होता, 3 दशक तक लड़ी सम्मान की लड़ाई और जीती
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 28 Nov 2021, 10:48 am IST
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हाइलाइट्स
- पूर्व आईएएस कमल टावरी 6 साल तक सेना में रहे, फिर बने आईएएस
- 29 साल लड़ी अपनी सम्मान की लड़ाई और बाद में जीते भी
- खादी से है खास लगाव, ग्राम स्वरोजगार पर कर रहे हैं अब काम
भारत में आईएएस अधिकारी होने का मतलब आप क्या समझते हैं? यकीनन आपके मन में एक ऐसी छवि आएगी कि वो व्यक्ति जो ठाट-बाट से रहता होगा, खालिस अंग्रेजी में बात करता होगा, बढ़िया फॉर्मल ड्रेस पहनता होगा और देखने में ही बहुत प्रबुद्ध जैसा लगेगा। लेकिन ऐसे में अगर हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताएं जो खादी का कुर्ता पहनता हो और कंधे पर गमछा रखता हो, ग्राम स्वरोजगार की बात करता हो, गाय और गोबर पर काम कर रहा हो। फिर आपसे कहें कि ये शख्स आईएएस अधिकारी रह चुका है तो शायद आपको यकीन करना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन ये शख्स हैं पूर्व आईएएस अधिकारी कमल टावरी, जिन्होंने अपने जीवन के 6 साल भारतीय सेना में बिताए और फिर आईएएस बने। इतना ही नहीं वो कई जिलों के कलेक्टर, कमिश्नर और भारत सरकार में सचिव भी रहे हैं। साथ ही वो एक लेखक, समाज सेवी और मोटिवेटर भी हैं। उनकी 40 से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।
76 साल के टावरी रिटायर होने के बाद से ही युवाओं को जागरूक कर रहे हैं। बेरोजगारी मिटाने के लिए वो युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करते हैं और लोगों को तनाव मुक्त जीवन जीने का हुनर भी सिखाते हैं। इसके साथ ही वो लगातार ग्राम स्वरोजगार और युवाओं के लिए काम कर रहे हैं। वो अब अधिकतर वक्त गांवों के विकास और युवाओं को रोजगार के तरीके सिखाने में बिताते हैं। इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से एक खास बातचीत करते हुए, 1972 बैच के आईएएस अधिकारी कमल टावरी कहते हैं, “युवाओं को खुद को जनना चाहिए। युवाओं को नए काम के लिए आगे आना चाहिए। अगर युवा सवाल नहीं पूछेंगे तो कुछ भी बेहतर नहीं हो सकता। इसलिए, युवाओं को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए निरंतर व्यवस्था पर सवाल उठाते रहना चाहिए।”
शुरुआत
मूलरूप से वो इंडिया-पाकिस्तान के बार्डर पर बसे राजस्थान के पोखरण के रहने वाले हैं। लेकिन उनका जन्म महाराष्ट्र के वर्धा में 1 अगस्त, 1946 को हुआ था। उन्होंने एलएलबी की डिग्री हासिल की और उसके बाद इक्नोमिक्स में डॉक्टरेट की उपाधि भी पहासिल की है। अपनी पढ़ाई के बाद वो भारतीय सेना में चले गए और कर्नल बने। 6 साल तक आर्मी में सेवाएं देने के बाद साल 1972 में उन्होंने शॉर्ट सर्विस कमिशन के तहत यूपीएससी द्वारा आयोजित भारतीय आर्मी की एक परीक्षा पास कर आईएएस बन गए।
टावरी साल 2006 तक सिविल सेवा में रहे। अपने सेवा के दौरान वो गाजीपुर जिले डीएम और फैजाबाद (अब अयोध्या) के कमिश्नर रहे। इसके अलावा भी वो कई जिलों के कलेक्टर और कमिश्नर रहे। राज्य और केन्द्र सरकार में ग्रामीण विकास, ग्रामोद्योग, पंचायती राज, खादी, उच्चस्तरीय लोक प्रशिक्षण जैसे विभागों सहित कई महत्वपूर्ण विभागों के सचिव भी रहे। यही नहीं, वो केन्द्रीय गृह मंत्रालय एवं नीति आयोग सहित कई राष्ट्रीय संस्थाओं में उच्च पदों पर रहे।
खादी से लगाव
खादी से अपने विशेष लगाव पर बात करते हुए टावरी कहते हैं कि साल 1985 में यूपी सरकार ने उन्हें कमिश्नर फैजाबाद से हटकर ‘उत्तर प्रदेश खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड’ में भेज दिया था। वहीं से उनके मन में खादी को लेकर एक लगाव पैदा हुआ और उन्होंने खादी को अपना लिया। वो लगभग 15 साल तक ‘खादी ग्रामोद्योग बोर्ड’ में रहे और कई बड़े काम किए। खादी को आम जनमानस तक पहुंचाने और लोगों को खादी अपनाने के लिए भी प्रेरित किया। फिर दिन स्वयं भी प्रण ले लिया कि अब केवल खादी ही पहनेंगे और तब से लगातार वो खादी ही पहन रहे हैं।
29 साल सम्मान की लड़ाई
टावरी ने लगभग 29 साल तक अपने सम्मान की लड़ाई कोर्ट में लड़ी और जीती। वो बताते हैं कि आजमगढ़-अतरौलिया-फैजाबाद मार्ग पर उस वक्त रोडवेज के ड्राइवर-कंडक्टर चेकिंग करने वाले अधिकारियों से मारपीट करते थे। साल 1985 में कमल टावरी और उनके साथ एक आईपीएस अधिकारी ने आजमगढ़-अतरौलिया-फैजाबाद पर ‘यूपी स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कोर्पोरेशन’ की एक सरकारी बस का पीछा किया। कई किलोमीटर पीछा करने के बाद आजमगढ़ के अतरौलिया में दोनों अधिकारियों ने बस को रोक लिया। लेकिन बस के ड्राइवर और कंडक्टर ने दोनों अधिकारियों पर हमला कर दिया। टावरी इस मामले को कोर्ट में ले गए। बाद में इस केस को लेकर इलाहाबाद कोर्ट गए। बहुत लंबा मुकदमा चला। और लगभग 29 साल बाद मार्च, 2012 में इस केस का फैसला आया और दोनों आरोपियों को 3-3 साल की कैद हुई। आखिरकार टावरी की जीत हुई।
ग्राम स्वरोजगार
टावरी अब अधिकतर वक्त गांव से लोगों का पलायन को रोकने और गांवों में ही रोजगार पैदा करने पर काम कर रहे हैं। टावरी कहते हैं कि आपके आस-पास जितनी भी चीजें हैं, उन सब में रोजगार है। ज़रूरत है तो बस उसे पहचान कर उस पर काम करने की। युवाओं को स्वेच्छा से इसके लिए कदम उठाने पड़ेंगे और यकीन मानिए वो कर सकते हैं। उनका मानना है कि अगर युवा शिक्षा के साथ-साथ अपने अंदर के गुण को भी पहचाने तो वो ग्राम स्वरोजगार के सपने को आगे बढ़ा सकता है और अपनी बुद्धि व समझ से रोजगार पैदा कर सकता है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम
टावरी भ्रष्टाचार के खिलाफ भी लगातार आवाज उठाते रहे हैं। वो कहते हैं कि भ्रष्टाचार के जिन्न से निपटने के लिए युवाओं और आम लोगों को खुद आगे आना होगा। नैतिक रूप से खुद को मजबूत बनाना होगा। अगर कोई आईएएस-आईपीएस सिर्फ पैसे और पावर के लिए आना चाहता है तो समाज के लिए मुश्किलें पैदा होंगी। वो खुद भी एक संस्था के मिलकर देश में एक पारदर्शी व्यवस्था बनाने के लिए काम कर रहे हैं। जल्द ही उनकी एक किताब भी इसी विषय पर आने वाली है।
सादगी की मिसाल
एक प्रसिद्ध कहावत है – किसी व्यक्ति की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, बल्कि उसके काम और व्यवहार से होती है। टावरी पर यह कहावत बिलकुल सटीक बैठती है। नौकरशाह भी अक्सर पूर्व आईएएस टावरी की सादगी और ईमानदारी की मिसाल देते मिल जाएंगे। टावरी हमेशा साधारण लिबास में रहते हैं। खादी का कुर्ता और लुंगी और कंधे पर गमछा उनकी पहचान बन चुका है। उनसे बातचीत भी अगर कोई करता है तो वो अक्सर खालिस देशी लहजे में बतियाने लगते हैं। जैविक तौर-तरीकों पर बात करना उनकी आदत सी बन गयी है।
35 साल से अधिक वक्त तक शासन-प्रशासन के कई अहम पदों पर रहने वाले टावरी आज 76 साल की उम्र में भी युवाओं को जागरूक कर रहे हैं और देश व समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। वास्तव में एक आदर्श अधिकारी की छवि बनाई जाए तो यकीनन उनके जैसी ही बनेगी। और उनके ये काम निरंतर जारी हैं…!
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