नौकरशाह से वकील बनीं आभा सिंह की अनोखी कहानी
- Sharad Gupta
- Published on 29 Jun 2023, 1:16 am IST
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हाइलाइट्स
- आभा सिंह ने मानवाधिकार वकील बनने के लिए छोड़ दी सिविल सर्विस
- पति वाईपी सिंह ने भी वकील बनने के लिए ही छोड़ी थी पुलिस सर्विस
- आईपीएस अधिकारी बेटी ईशा सिंह भी वकालत कर रही हैं, क्या वह भी ऐसा ही करेंगी
नौकरशाहों के परिवार से आने वाली आभा सिंह ने सबको चकित करते हुए अचानक सिविल सर्विस छोड़ कर फुलटाइम वकील बनने का फैसला किया। यूपीएससी की बेहद कठिन यात्रा से गुजरने के बाद इंडियन पोस्टल सर्विस में डायरेक्टर के रूप में सफल करियर का आनंद लेने के बाद अचानक कानून में करियर बनाने के लिए सब कुछ छोड़ देना वाकई अजीब था।
समाचार चैनलों पर लोकप्रिय प्राइम टाइम बहसों में नियमित रूप से रहने वाली तेज तर्रार महिला वकील का कहना है कि ऐसा नहीं है। उन्होंने सोचा-समझ कर ही निर्णय लिया था। उनका लक्ष्य स्पष्ट था- एक अन्यायपूर्ण व्यवस्था में जरूरतमंदों को न्याय दिलाने में मदद करना, जो आमतौर पर ताकतवर लोगों का पक्ष लेती है। वह मुंबई में रहती हैं और वहीं प्रैक्टिस भी करती हैं।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ एक विशेष बातचीत में उन्होंने नौकरशाही से बॉम्बे हाई कोर्ट तक की अपनी यात्रा के बारे में खुलकर बात की। बताया कि उन्होंने अपने जीवन के लिए यह विकल्प क्यों और कैसे चुना।
नौकरशाह बनना
उत्तर प्रदेश की रहने वाली आभा अपनी मां के लिए नौकरशाह बनीं। यह उनकी मां को श्रद्धांजलि थी, जिन्होंने 1961 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इतिहास में एमए किया था। बावजूद इसके, राजपूत प्रथा के अनुसार उन्हें नौकरी करने की अनुमति नहीं थी। परिवार के दो बेटे आईएएस अधिकारी बने, लेकिन पढ़ाई में मेधावी होने के बावजूद आभा सिंह की मां को यूपीएससी परीक्षा देने से मना कर दिया गया। यही वह महिला थीं, जिन्होंने अपनी दोनों बेटियों को बचपन से ही यूपीएससी देने और सिविल सर्विस में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
आभा सिंह ने अपने पहले ही प्रयास में परीक्षा पास कर ली और इंडियन पोस्टल सर्विस में शामिल हो गईं। उनकी बहन आईआरएस बनीं और अभी टैक्स कमिश्नर हैं।
नौकरी छोड़ी
हालांकि 20 साल की नौकरी के बाद जब उन्हें ऑफिस की दीवारों और सरकारी कर्मचारी की सीमाओं में घुटन महसूस होने लगा, तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
वह कहती हैं, ‘मुझे लगने लगा कि मैं अपने दम पर और आचार संहिता के नियमों का पालन किए बिना भी बहुत कुछ कर सकती हूं।’ एक स्वतंत्र वकील होने के नाते उन्हें काम करने के लिए बड़ा कैनवास और समाज की सेवा के लिए एक व्यापक स्पेक्ट्रम मिला, जहां लोग उन तक पहुंच सकते थे और वह न्याय के लिए उनकी लड़ाई में उनकी मदद कर सकती थीं।
खाकी की जगह काला कोट
वह और उनके पति ( पूर्व आईपीएस अधिकारी वाईपी सिंह) मुंबई में तैनात थे। उन्हीं दिनों दोनों काम के बाद शाम को एक साथ कानून की पढ़ाई के लिए कोचिंग गए। आखिरकार, दोनों ने वकील बनने के लिए सिविल सर्विस छोड़ दी।
आभा सिंह ने कहा, ‘मैंने देखा कि मेरे पति ने सुप्रीम कोर्ट में एक मामले में न सिर्फ शानदार ढंग से बहस की, बल्कि कपिल सिब्बल जैसे वकील के खिलाफ जीत हासिल की। ऐसे में हम मुंबई लौटे, तो आते ही मैंने मुंबई यूनिवर्सिटी से लॉ क्लास का फॉर्म लिया और पति को दे दिया। वह शामिल हो गए और मैंने भी एक साल बाद उनकी नकल की।’ यह वाईपी सिंह ही थे, जिन्होंने सिस्टम से असंतुष्ट होकर सिविल सेवा छोड़ दी थी। इसलिए कि उन्हें लगा कि शक्तिशाली नेताओं से मुकाबला करने, उनके भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करने के लिए ईमानदारी और बहादुरी दिखाने पर उन्हें ही निशाना बनाया जा रहा है। जल्द ही पति के साथ आभा सिंह ने भी ऐसा किया।
आभा कहती हैं कि पति मुझसे कहते रहे कि पिछले 20 वर्षों से मुझे बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी से वंचित किया गया है। वह मुझसे हमेशा सरकारी नौकरी छोड़कर काला कोट पहनने के लिए कहते थे।
बनीं मानवाधिकार वकील
जल्द ही दंपती को शक्तिशाली लोगों के खिलाफ आम लोगों के पक्ष में लड़ने के लिए मानवाधिकार वकील दंपती’ के रूप में जाना जाने लगा। वे समाज में किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने के लिए भी प्रसिद्ध हो गए
आभा उदाहरण देते हुए बताती हैं, ‘जब जम्मू में छोटी बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ, तो मैंने कुछ गैर सरकारी संगठनों की मदद से विरोध प्रदर्शन किया। पुलिस ने हमें लाउडस्पीकर इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी। मैंने बॉम्बे हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की, जिसमें आदेश दिया गया कि पुलिस ऐसा नहीं कर सकती। चीफ जस्टिस ने कहा कि केवल रोक वाले साइलेंट जोन में ही लाउडस्पीकरों की मनाही हो सकती है। जनहित याचिका का अधिकार मेरे लिए निर्णायक साबित हुआ।’
परिवार वालों का मिला साथ
शोषितों की आवाज बनने का जुनून परिवार में चलता रहा है। बेटी ईशा सिंह अभी हैदराबाद में पुलिस अकादमी में ट्रेनिंग ले रही हैं। वैसे उनका दिल अभी भी उस केस में है, जिसमें उन्होंने आईपीएस में शामिल होने से ठीक पहले मुफ्त में लड़ाई लड़ी और जीती थी।यह उन विधवाओं को मुआवजा दिलाने के लिए था, जिनके पति सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए मर गए थे।
आभा सिंह कहती हैं, ‘हालांकि अदालत ने प्रत्येक विधवा को 10 लाख देने का आदेश दिया, लेकिन ईशा मुझे फोन करके एफआईआर के बारे में पूछती रहती है कि क्या दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है, और क्या अदालत के आदेश के अनुसार विधवाओं को वोकेशनल ट्रेनिंग और बच्चों को स्कॉलरशिप दी जा रही है। वह मुझसे अनुरोध करती रहती है कि मामले को बीच में न छोड़ें। यह सुनिश्चित करें कि इसका सुखद अंत हो।’
ईशा सिंह ने नेशनल लॉ स्कूल, बेंगलुरु से वकालत की पढ़ाई की। पास होने के बाद उन्होंने कैंपस प्लेसमेंट से मिली कॉर्पोरेट नौकरी करने से इनकार कर दिया। इसके बजाय मानवाधिकारों के लिए काम करने के लिए मां के एनजीओ रणसमर फाउंडेशन में शामिल हो गईं।
आभा सिंह ने कहा, ‘हम न्याय के प्रति उत्साही हैं और सच्चाई के लिए खड़े होने में विश्वास करते हैं। किसी के साथ अन्याय होते नहीं देख सकते।’
क्या ईशा भी अपने माता-पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए किसी दिन वकालत करने के लिए सिविल सर्विस छोड़ देगी? इस पर आभा कहती हैं कि ईशा को वकालत पसंद है, लेकिन फिलहाल वह आईपीएस की ट्रेनिंग लेकर खुश हैं। वह क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पर काम करना चाहती हैं। एक वकील के रूप में उन्होंने विसंगतियों को देखा है और अब वह यह सुनिश्चित करने के लिए उन्हें दूर करने का प्रयास करेंगी कि पुलिस का काम अधिक लोगों के अनुकूल हो।
जन्म से ही रही हैं तेज-तर्रार
बातचीत के दौरान आभा सिंह ने कहा कि वह एक जन्मजात फायरब्रांड हैं। वह कहती हैं, ‘मैं शुरू से ही मुखर और निर्भीक रही हूं। सच बोलने से कभी नहीं कतराती हूं। ये मूल्य मेरे माता-पिता, खासकर पिता, जो पिता से मुझे मिला है जो ईमानदार पुलिस अधिकारी थे।’ वह मुझसे कहते थे, ‘डर के आगे जीत है,’ जबकि मां कहा करती थीं कि सच्चाई की राह कभी आसान नहीं होती, असुविधाओं को सहना सीखो।’
दिलचस्प बात यह है कि उनके सभी भाई-बहन सिविल सर्विस में ही गए। उनमें से एक, राजेश्वर सिंह हैं, जिन्होंने राजनीति में शामिल होने के लिए एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) में उच्च पद छोड़ दिया और अब यूपी में विधायक हैं। उनकी पत्नी लक्ष्मी सिंह नोएडा में पुलिस कमिश्नर हैं।
सभी दायित्वों को निभाना
इतनी सारी भूमिकाएं होने के बाद भी वह उन्हें अच्छी तरह से निभाती हैं। उन्होंने समय को बांटना और सहजता से प्रबंधन करना सीख लिया है। मानवाधिकार वकील, दयालु मां, सहायक पत्नी, नियमित टॉक शो… अलग-अलग रंगों वाली इन विभिन्न भूमिकाओं को आसानी से निभाती हैं, जो उन्हें सबका चहेता चेहरा बनाती है। खासकर टीवी पर। यानी व्यवस्था से लड़ने वालों को खुश करना, सत्ता में बैठे लोगों को नापसंद करना।
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