एक्सटेंशन क्यों? पांच साल की निश्चित अवधि क्यों नहीं?
- Sharad Gupta
- Published on 8 Aug 2023, 11:32 am IST
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हाइलाइट्स
- टॉप ब्यूरोक्रेट्स को हर साल मिलने वाली सेवा विस्तार (एक्सटेंशन) उन्हें असहज बना देता है, जिससे उनकी स्वतंत्रता होती है प्रभावित
- सुप्रीम कोर्ट ने नौकरशाही के टॉप पदों को राजनीतिक खींचतान और दबाव से बचाने के लिए दो साल का निश्चित कार्यकाल अनिवार्य किया हुआ है
- तो, प्रासंगिक नियमों में आवश्यक परिवर्तन कर उन्हें चार या पांच साल का निश्चित कार्यकाल क्यों ना दिया जाए
- सुप्रीम कोर्ट की आपत्तियों के बावजूद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा को तीसरा एक्सटेंशन दिया गया, जिसे आखिरकार शीर्ष अदालत ने रद्द कर दिया
- 1984 बैच के आईएएस अधिकारी और केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला को 22 अगस्त 2024 तक एक साल का एक्सटेंशन दिया गया है, गृह सचिव के रूप में यह उनका चौथा विस्तार है
- केंद्र ने झारखंड कैडर के 1982-बैच के आईएएस अधिकारी और कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को एक साल का एक्सटेंशन देने के लिए प्रमुख नियमों में ढील दी, उनको एक्सटेंशन देने का यह तीसरा मौका है
कोई भी सरकार अपने कामकाज के लिए पसंदीदा नौकरशाह को चुनने का हकदार है। फिर भी कुछ सरकारें कुछ खास अधिकारियों पर अधिक भरोसा करने लगती हैं। इससे उन्हें शानदार पोस्टिंग, रिटायरमेंट के बाद की नौकरियां और एक्सटेंशन मिल जाता है। यह प्रथा शासन को सुचारू रखने के लिए सत्ताधारियों को आसान लग सकती है, फिर भी नौकरशाही के ढांचे में जो असंतुलन पैदा होता है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के प्रमुख के एक्सटेंशन पर कहा था, ‘क्या हम इससे यह नहीं बता रहे हैं कि ईडी अक्षम व्यक्तियों से भरा हुआ है और देश में केवल एक ही व्यक्ति है, जो ईडी का प्रमुख बनने का हकदार है? क्या यह पूरे विभाग का मनोबल नहीं गिरा रहा है? अगर मैं कल नहीं आऊंगा, तो क्या सुप्रीम कोर्ट बंद रहेगा?’
दरअसल मिश्रा को ईडी प्रमुख के रूप में चौथी बार एक्सटेंशन दिया गया था। पहले मिश्रा को दो साल के लिए नियुक्त किया गया था यानी 2018 से 2020 तक। लेकिन, जैसे ही उनका यह कार्यकाल 2020 में समाप्त होने वाला था, उन्हें एक्सटेंशन दे दिया गया। सितंबर 2021 में शीर्ष अदालत ने केंद्र को मिश्रा को एक्सटेंशन नहीं देने का निर्देश दिया।
सरकार ने 2021 में केंद्रीय सतर्कता आयोग कानून और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना कानून में संशोधन करके फैसले को टालने की कोशिश की। इसमें दो साल के कार्यकाल के बाद तीन बार एक-एक साल का एक्सटेंशन जोड़ा गया। इससे सीबीआई और ईडी निदेशकों का कुल संभावित कार्यकाल पांच साल का हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने दिए गए एक आदेश में संशोधनों को बरकरार रखा, लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि 2021 और 2022 में मिश्रा को दिए गए एक्सटेंशन ‘अवैध’ थे, क्योंकि उन्हें पीएम, विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा मंजूरी नहीं दी गई थी।
मिश्रा उत्तर प्रदेश से 1984 बैच के आईआरएस अधिकारी हैं। उन्होंने कई बहुत बड़े मामलों की जांच की है। इनमें पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार, एनसीपी नेता शरद पवार, महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख, एक अन्य मंत्री नवाब मलिक, नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, तमिलनाडु के शक्तिशाली मंत्री सेंथिल बालाजी, तृणमूल कांग्रेस के पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके बेटे राहुल गांधी और दामाद रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ मामले भी हैं।
मिश्रा एक ईमानदार अधिकारी माने जाते हैं। लेकिन, क्या इसका मतलब यह है कि कैडर में ऐसा कोई और सक्षम और ईमानदार अधिकारी नहीं है, जो उनकी जगह ले सके। जरा सोचिए कि ऐसे निर्णयों का साथी अधिकारियों पर क्या प्रभाव पड़ता है। यदि कोई व्यक्ति पांच साल या उससे अधिक समय तक टॉप पोस्ट पर बैठा रहता है, तो उसके नीचे के अफसरों का क्या हो सकता है, जिनमें से कुछ उससे भी अधिक सक्षम, ऊर्जावान और ईमानदार हो सकते हैं।
यही स्थिति केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ( असम-मेघालय कैडर के 1984 बैच के आईएएस अधिकारी) और कैबिनेट सचिव राजीव गौबा के साथ भी है। दोनों को चार-चार एक्सटेंशन दिए गए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे अत्यधिक सक्षम हैं, जो परीक्षण परिस्थितियों में भी बेहतर काम करके खुद को साबित कर चुके हैं। लेकिन, दूसरों के बारे में क्या?
भल्ला ने मार्च 2013 में विवाद खड़ा किया था, जब वह कोयला मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में उन अधिकारियों की टीम का हिस्सा थे, जिन्होंने कोयला घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट में पेश की जाने वाली सीबीआई रिपोर्ट में बदलाव किए थे। पिछली बार किसी गृह सचिव ने इतने लंबे कार्यकाल का आनंद लगभग 52 साल पहले लिया था। तब लल्लन प्रसाद सिंह छह साल से अधिक समय तक इस पद पर रहने के बाद जनवरी 1971 में रिटायर हुए थे।
तीसरा एक्सटेंशन पूरा होने के बाद राजीव गौबा देश में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले पहले कैबिनेट सचिव बन जाएंगे। अब तक बीडी पांडे 2 नवंबर, 1972 से 31 मार्च, 1977 तक सबसे लंबे समय तक कैबिनेट सचिव रहे थे। पूर्व केंद्रीय गृह सचिव गौबा को 2019 में दो साल के लिए नौकरशाही के शीर्ष पद पर नियुक्त किया गया था।
उन्हें 2021 में और फिर पिछले साल अगस्त में एक साल का विस्तार दिया गया था। कैबिनेट की नियुक्ति संबंधी समिति (एसीसी) ने झारखंड कैडर के 1982-बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी गौबा को 30.08.2023 से आगे एक वर्ष की अवधि के लिए सेवा विस्तार को मंजूरी दे दी है। इस तरह वह पांच साल यानी सितंबर 2024 तक पद पर बने रहेंगे और अगले लोकसभा चुनाव की देखरेख के बाद ही रिटायर होंगे।
प्रत्येक वर्ष यूपीएससी 175 से अधिक उम्मीदवारों को आईएएस और आईआरएस में और 200 से अधिक उम्मीदवारों को आईपीएस में शामिल करता है। भले ही इनमें से एक चौथाई ही सर्विस में बने रहते हैं और अपने संबंधित कैडर में शीर्ष पद के लिए दावेदार होते हैं- डीजीपी और मुख्य सचिव (राज्य में), कैबिनेट सचिव, गृह सचिव, ईडी और सीबीआई प्रमुख (केंद्र में), प्रत्येक को दिया गया ऐसा एक्सटेंशन 100 से अधिक प्रतिभाशाली अधिकारियों को भारी निराशा में धकेल देता है।
वर्तमान में 1987 से 1992 बैच के आईएएस अधिकारी केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों में सचिव के रूप में काम कर रहे हैं। 1982-बैच के गौबा और 1984-बैच के अधिकारी भल्ला को दिए गए तीन एक्सटेंशन का मतलब है कि सैकड़ों अधिकारी देश में इन शीर्ष पदों पर पहुंचे बिना रिटायर हो जाएंगे।
लेकिन, इससे भी महत्त्वपूर्ण पहलू इन उच्च पदस्थ अधिकारियों के साथ हो रहे व्यवहार का है। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य सचिव, डीजीपी, कैबिनेट सचिव, गृह सचिव, रक्षा सचिव, विदेश सचिव और निश्चित रूप से सीवीसी, सीबीआई और ईडी प्रमुख जैसे शीर्ष पदों पर दो साल का निश्चित कार्यकाल अनिवार्य किया हुआ है। ऐसा उन्हें राजनीतिक दखलंदाजी से बचाने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करने के लिए भी किया गया है कि उन्हें राजनीतिक आकाओं द्वारा ताश के पत्तों की तरह ना फेंटा जाए।
फिर अधिकतम तीन साल के लिए एक-एक साल के विस्तार की बात आ गई। इससे उन्हें उम्मीद बंधी कि किसी पद पर पांच साल तक नौकरी कर सकते हैं। लेकिन सिर्फ राजनीतिक आकाओं की दया पर, जो हमेशा एक्सटेंशन की चाबी अपने पास रखते हैं। ऐसे में वे वैसे किसी भी व्यक्ति के लिए एक्सटेंशन देने से मुकर सकते हैं, कायदे-कानून के हिसाब से चलता हो।
इसे बदलने की जरूरत है। यदि सरकार को लगता है कि राजीव गौबा, अजय भल्ला और संजय मिश्रा जैसे व्यक्ति इस पद के लिए सबसे सक्षम व्यक्ति हैं, तो वह आवश्यक संशोधन करके उन्हें चार या पांच साल के निश्चित कार्यकाल दे सकती है। बजाय इसके उन्हें इस तरह ठेके पर रखा जाए, जिसमें हर दिन सोचना पड़े कि क्या एक साल का और एक्सटेंशन मिलेगा या नहीं?
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