चंद्रताल में फंसे 300 टूरिस्टों के लिए देवदूत बन कर पहुंचा एक आईपीएस अधिकारी
- Pallavi Priya
- Published on 19 Jul 2023, 10:12 am IST
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हाइलाइट्स
- लाहौल स्पीति के एसपी मयंक चौधरी 6 दिन तक चंद्रताल में फंसे पर्यटकों के साथ रहे
- उन्होंने पर्यटकों के स्वास्थ्य का खयाल रखा, घबराहट में संभाला, यहां तक कि उनके परिवारों तक भी पहुंचे
- सभी टूरिस्ट को सुरक्षित बाहर निकालने के बाद वह बर्फीले इलाके को छोड़ने वाले आखिरी व्यक्ति थे
हिमालय में 14,100 से ऊपर स्थित चंद्रताल हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले में एक झील है। यह पूरे वर्ष पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहता है। लेकिन पिछले सप्ताह जब लगभग 300 पर्यटक इसकी प्राकृतिक सुंदरता को देखने पहुंचे, तो उनकी सारी योजनाएं बरबाद हो गईं। इसलिए कि वे लगातार तीन दिनों तक भारी बारिश और बर्फबारी के बीच वहां फंस गए थे।ऐसे कठिन समय में एक अधिकारी ऐसा था, जिसकी उपस्थिति ने उन्हें उम्मीद बंधाई। इतना ही नहीं, वह संकट में संभालने वाला और संरक्षक बन गया। यह शख्स हैं- आईपीएस अधिकारी और लाहौल स्पीति के एसपी मयंक चौधरी। उन्होंने पर्यटकों के साथ सभी चुनौतियों का डटकर सामना किया और हर एक व्यक्ति को सुरक्षित बचाए जाने के बाद ही वहां से निकले।इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ एक विशेष बातचीत में अधिकारी ने स्थिति के बारे में विस्तार से बताया। यह भी कि कैसे उन्होंने और उनकी लगभग 7-8 पुलिस कर्मियों की टीम ने बचाव दल के आने का इंतजार करते हुए घबराहट और अफरा-तफरी को कंट्रोल किया।टाइमलाइन
इस साल 8 जुलाई को चौधरी और राज्यपाल के एडीसी अभिषेक एस (आईपीएस) रोहतांग दर्रे के निरीक्षण के लिए गए थे। वहां दोपहर करीब 3 बजे उन्हें सूचना मिली कि भारी बारिश के कारण चंद्रताल में पर्यटक फंस गए हैं। वे तुरंत चंद्रताल के लिए रवाना हुए। शाम करीब 6 बजे पहुंचे। इस समय तक बर्फबारी शुरू हो चुकी थी। यह 10 जुलाई तक बिना रुके जारी रही। लेकिन 11 तारीख को बर्फबारी में कमी आई। पूरे इलाके में तीन से चार फीट बर्फ जमी हुई थी। वहां से निकलना नामुमकिन था। जो पर्यटक सिर्फ 1-2 दिन की तैयारी करके आए थे, वे वहीं फंस गए थे। वे घबराने लगे। यही वह समय था, जब चौधरी ने स्थिति संभाली।
उन्होंने सभी कैंप वालों से तालमेल कर भोजन, बिजली और पानी के मुद्दे पर चर्चा की। उन्होंने कहा, ‘बचाव दल के आने तक हमें स्थिति को संभालना था। मुझे कहना होगा कि कैंप वालों ने वास्तव में हमारा समर्थन किया। जैसा हम कहते, वैसा करने के लिए सहमत हुए। हमने ‘खिचड़ी’ खाने का फैसला किया, ताकि 2-3 दिनों के लिए जो खाना था उसे बढ़ाया जा सके।’
बिजली का इंतजाम किया गया। उन्होंने पीने के पानी को स्टोर किया, क्योंकि सामान्य नल बर्फ से जाम हो गए थे। इन सबके बीच मोबाइल नेटवर्क न होने पर अधिकारी ने सैटेलाइट फोन के जरिए डीजीपी सतवंत अटल त्रिवेदी को स्थिति बताई। उन्होंने तुरंत मुख्यमंत्री को चंद्रताल की स्थिति के बारे में जानकारी दी।
स्वास्थ्य समस्याएं और एयरलिफ्ट
जैसे-जैसे मदद की व्यवस्था की जा रही थी, शिविरों में स्थिति खराब होने लगी थी। लोग डरे हुए थे, क्योंकि वे अपने परिवार को सूचित करने में असमर्थ थे। वहीं, ऊंचाई की वजह से कई लोगों को सिरदर्द, उल्टी की समस्या होने लगी। कुछ बुजुर्ग गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे और बुरी तरह हताश हो गए थे।
ऐसे में चौधरी ने चंद्रताल चेकपोस्ट के 6-7 अधिकारियों को लिया और प्रत्येक शिविर का दौरा करना शुरू कर दिया। उन्हें जरूरी दवाइयां दीं। स्थिति तब नियंत्रण से बाहर हो गई, जब दो-तीन बीमार बुजुर्गों का ऑक्सीजन लेवल गिरकर 31 हो गया। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अधिकारी ने तुरंत डीजीपी को फोन किया और 11 जुलाई को एयर फोर्स का एक हेलीकॉप्टर गंभीर रोगियों को एयरलिफ्ट करने के लिए आया।चौधरी ने कहा, ’60 से 80 उम्र के 7-8 लोग थे। उन्हें फौरन मेडिकल हेल्प की जरूरत थी।’ हालांकि हेलिकॉप्टर आया, लेकिन वहां कोई हेलीपैड नहीं था। ऐसे में अधिकारी ने उसे जमीन से ऊपर रखने के लिए पायलट के साथ तालमेल बैठाया। उन्होंने अपनी टीम के सदस्यों के साथ मरीजों को हेलीकॉप्टर की ओर उठाया। यह उनके लिए वास्तव में कठिन था, क्योंकि हेलीकॉप्टर उन पर बर्फ बिखेर रहा था। एक समय तो वे सांस लेने में असमर्थ थे, क्योंकि बर्फ के टुकड़े उनके मुंह और नाक के अंदर चले गए थे। किसी भी तरह वे गंभीर लोगों को हेलीकॉप्टर में भेजने में कामयाब रहे और भुंतर हवाई अड्डे पर उतरने पर मेडिकल हेल्प देने के लिए कुल्लू के डीसी के साथ तालमेल बैठाया।
परिवारों से साधा संपर्क
संकट अभी खत्म नहीं हुआ था। हर पर्यटक को कोई न कोई स्वास्थ्य समस्या थी और बर्फ पिघलने के कारण शिविरों में चटाइयां गीली हो रही थीं। उनके मोजे और कपड़े भी गीले थे। उन्हें सुखाने का कोई उपाय नहीं था। दूसरी ओर, कुछ की उड़ानें छूटने वाली थीं और वे अपने ऑफिस और परिवार को लेकर चिंतित थे। यहां अधिकारी और टीम ने सभी पर्यटकों की एक लिस्ट बनाई। फिर उनके परिवारों को सूचित करने के लिए उनके संपर्क नंबर शिमला में पुलिस कंट्रोल रूम को दिए गए। लिस्ट से उन्हें पता चला कि ज्यादातर पर्यटक गुजरात, महाराष्ट्र और एमपी के थे। वैसे कुछ लड़कियां भी थीं, जो अकेले यात्रा कर रही थीं। उनके परिवारों को सूचित किया गया कि एसपी और एडीसी खुद साइट पर मौजूद हैं और चिंता की कोई बात नहीं है। इस बीच, सभी का ध्यान भटकाने के लिए अधिकारियों ने कुछ मनोरंजक गतिविधियों का भी आयोजन किया। लेकिन वह केवल कुछ समय के लिए ही काम कर सका। फंसे हुए लोग जल्द ही अपनी चिंताओं में वापस आ गए।
सभी को एयरलिफ्ट करना संभव नहीं था। इसलिए सड़क को साफ करना ही एकमात्र रास्ता था। चौधरी ने यह बात कुल्ली और काजा के डीजीपी और डीसी को बताई। इन सभी ने काम शुरू कर दिया, लेकिन 12 तारीख तक कुछ खास नहीं हुआ। चंद्रताल में फंसे सभी लोग अपना धैर्य खोने लगे। मुख्यमंत्री को फिर सूचना दी गई और उन्होंने रेवेन्यू मिनिस्टर को मौके पर जाने को कहा। इससे फर्क पड़ा। प्रशासन ने सड़क की सफाई को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया।
आखिरकार सुधरे हालात
आखिरकार 13 जुलाई की देर रात करीब 2:30 बजे रेस्क्यू टीम और मंत्री चंद्रताल पहुंचे। वे सभी के लिए आशा की किरण लेकर आए। एसपी चौधरी ने अपनी टीम और मंत्री के साथ बैठक की और निकालने की योजना बनाई। वहां बचाव दल की लगभग 27 गाड़ियां और पर्यटकों की कुछ कारें और 30-35 बाइकें थीं। उन्होंने कहा, ‘बर्फीली सड़कों पर किसी भी वाहन को जाने देना उचित नहीं है। ऐसी सड़कों पर केवल चार चक्का वाले वाहनों का ही उपयोग किया जा सकता है।’उनके पास बचाव के लिए केवल एक दिन था, क्योंकि मौसम विभाग ने 14 तारीख से फिर से खराब मौसम की आशंका जताई थी। इसलिए, बड़े वाहनों को पहले भेजा गया, जिससे एक पैच बन गया।
उन्होंने जोखिम उठाया और दूसरे राउंड में उन्होंने कुछ इनोवा और स्कॉर्पियो भेजीं। इसके बाद बाइकर्स के पीछे सैंट्रो और डिजायर को भेजा गया। खुद चौधरी साहब सबसे पीछे गए। उन्होंने कहा कि यह सोच-समझकर लिया गया फैसला था, क्योंकि वे सड़क के चारों ओर घूमकर देख सकते थे कि कहीं कोई फंस तो नहीं गया है और किसी को मदद की जरूरत तो नहीं है, क्योंकि बीच-बीच में हिमस्खलन भी होता रहता था। किसी तरह वे सभी सुरक्षित पहुंच गए और कोई हताहत नहीं हुआ।
मयंक चौधरी ने पर्यटकों को यह गाइड करने में भी मदद की कि हवाई टिकटों की वापसी और उसके पैसे कैसे लिए जाएं। यहां तक कि कर्मचारियों को अपने ऑफिस में दिखाने के लिए लिखकर भी दिया, ताकि वे काम पर वापस आने में हुई देरी का कारण बता सकें।
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