अंग्रेजी नहीं आई आड़े, गांव के स्कूल से पढ़कर बनीं आईएएस अफसर
- Pallavi Priya
- Published on 1 Oct 2021, 4:11 pm IST
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हाइलाइट्स
- एक छोटे से गांव आने वाली लड़की, जिसने अपनी प्राथमिक पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से हिन्दी माध्यम में की और हमेशा अंगेजी भाषा को लेकर संघर्ष करती रही।
- लेकिन माता-पिता की प्रेरणा और खुद के बुलंद हौसलों से उसने यूपीएससी सहित 10 से अधिक परीक्षाओं को पास किया।
- बिना कोचिंग लिए, ‘इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग’ जैसे मुश्किल विषय के साथ सिविल सेवा परीक्षा में सफल होकर वो एक मिसाल बन चुकी हैं।
- आईएएस अधिकारी सुरभि गौतम
पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने एक बार कहा था, “सफलता कभी अंतिम नहीं होती, विफलता कभी घातक नहीं होती। यह तो चलते रहने का साहस है जो मायने रखता है।” उनकी इन लाइनों को चरितार्थ करते हुए सार्थक अमली जामा पहनाया है, आईएएस अधिकारी सुरभि गौतम ने। उन्होंने इन प्रेरक शब्दों की छवि अपने दिल में बसाकर, अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से सिविल सेवा सहित 10 से अधिक प्रतिष्ठित परीक्षाओं को पास किया है।
उनकी सबसे बड़ी समस्या थी कि उन्हें अंग्रेजी का ज्ञान न के बराबर था। अपने स्कूल के दिनों में इस वजह से उन्हें बहुत सी दिक्कतें हुईं। लेकिन किसी भी सफलता को आखिरी मंजिल न मानने वाली और हमेशा चलते रहने का साहस रखने वाली सुरभि ने हर बाधा को मजबूत हौसलों और मेहनत के साथ लड़कर पार किया।
गेल और इसरो जैसे विभिन्न सरकारी संगठनों में चुने जाने और मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र में एक इंजीनियर के रूप में काम करने के बावजूद, उन्होंने प्रशासनिक सेवाओं में काम करने के अपने सपनों को हमेशा जिंदा रखा। और आखिरकार 2016 में 50 वीं रैंक के साथ भारत की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा यूपीएससी में सफलता हासिल की।
लेकिन सफलता की सीढ़ियां चढ़ना सुरभि के लिए आसान नहीं था। उन्हें भाषा के मोर्चे पर हमेशा संघर्ष करना पड़ा। लेकिन अपने माता-पिता के निरंतर सहयोग से उन्होंने अंततः अपना लक्ष्य हासिल कर लिया। वर्तमान में, वह गुजरात के विरमगाम जिले के एसडीएम के रूप में कार्यरत हैं।
बचपन और स्कूल
सुरभि का जन्म मध्य प्रदेश के सतना जिले के एक छोटे से गांव अमदरा के एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके संयुक्त परिवार में 30 से अधिक सदस्य थे। सुरभि बताती हैं कि उनके जन्म के वक्त परिवार के सदस्यों को कोई खुशी नहीं थी, सिर्फ माता-पिता ही थे जो प्रसन्न थे। उनका गांव और परिवार रूढ़िवादी धारणाओं मे जकड़ा हुआ था, लेकिन उनके माता-पिता ने हमेशा उनका पूरा समर्थन किया। उसकी मां एक शिक्षक और पिता वकील हैं।
उनके अनुसार, ये माता-पिता की प्रेरणा और विश्वास ही था जिसकी वजह से वो यूपीएससी परीक्षा सहित जीवन के कई कठिन संघर्षों में विजेता बनकर उभरीं। सुरभि बचपन से ही पढ़ने में अच्छी थीं और दसवीं में उन्होंने 93.4 प्रतिशत अंक हासिल किए थे, शायद यही वो वक्त था जब उनका आत्मविश्वास बढ़ा और आईएएस बनने के सपने ने उनके दिल में दस्तक दी।
अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए सुरभि इंडियन मास्टरमाइंड्स से कहती हैं, “मेरे गांव में छात्रों के लिए अनुकूल माहौल नहीं था। मेरे कुछ रिश्तेदार बहुत रूढ़िवादी विचारों वाले थे, जिसकी वजह से मेरे माता-पिता को मुश्किल वक्त का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और मेरी बेहतर शिक्षा के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते रहे।”
सुरभि की शुरुआती पढ़ाई गांव के ही प्राथमिक विद्यालय से हुई, जहां छात्रों को बुनियादी सुविधाएं तक नसीब नहीं हो रही थीं। गांव में बिजली पानी की भी बेहतर व्यवस्था नहीं थी। सुरभि को अक्सर रात में लालटेन जला कर पढ़ाई करनी पड़ती थी। प्राथमिक विद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने जिला स्तर के सरकारी स्कूल से 10 वीं और 12 वीं की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने दोनों बोर्ड परीक्षाओं में बहुत बेहतर प्रदर्शन किया और राज्य स्तर की इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा को भी पास किया। यह उनके लिए बड़ी बात थी, क्योंकि वह अपने गांव की पहली लड़की थीं जो उच्च शिक्षा के लिए शहर में कदम रखने जा रही थी।
हालांकि यह अवसर इतनी आसानी से उनके हाथों में नहीं आया था और वह अपने सर पर उम्मीदों का भारी बोझ लेकर जा रही थीं। हिन्दी माध्यम से पढ़ी एक लड़की के लिए उस वक्त अन्य तेज-तर्रार और शहर के बड़े स्कूलों में पढ़े छात्रों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना था। उनके लिए सबसे चुनौतीपूर्ण था कि अपने भाषायी माध्यम को अंग्रेजी में बदलना और इससे बेहतर समन्वय बैठाना।
भाषा की बाधा
भारत की लगभग आधी आबादी की मातृभाषा हिंदी है, लेकिन शिक्षण संस्थानों से लेकर सरकारी कार्यों और अन्य क्षेत्रों में अंग्रेजी का ही बोलबाला है। ऐसे में हिंदी माध्यम से आए एक छात्र का कॉलेज का सफर बेहद कठिन हो जाता है। सुरभि भी इसकी अपवाद नहीं थीं। भाषायी माध्यम का परिवर्तन उनके लिए बिल्कुल आसान नहीं था। वह हर क्लास में संघर्ष करती थीं।
उन दिनों के बारे में बात करते हुए वो कहती हैं, “मुझे भाषा की वजह से बहुत परेशानी हुई। जब मेरे सभी साथी धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल रहे थे, मैं अंग्रेजी में खुद का अपना साधारण परिचय देते हुए भी बहुत संघर्ष कर रही थी। इसको लेकर मुझे कई बार निराशा हुई। इसने मुझे कुछ समय के लिए बहुत छोटा महसूस कराया, लेकिन कहीं न कहीं मैं जानती थी कि यह समस्या का समाधान नहीं है। इसलिए मैंने खुद को संभाला और अंग्रेजी सीखना शुरू कर दिया। अब जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मुझे लगता है कि यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा निर्णय था। आखिरकार मैंने अंग्रेजी सीख ली और उस पर बेहतर पकड़ भी बनाई।”
अपनी अंग्रेजी सुधारने के लिए उन्होंने अपनी बातों में अंग्रेजी का इस्तेमाल शुरू किया और कम से कम 10 शब्दों के अर्थ रोज याद करती थीं। दीवारों पर अर्थ लिखकर दिन में कई बार दोहराया करती थीं। कहीं भी सुने गए कठिन शब्दों को वह डिक्शनरी में खोजकर याद करती थीं। इसके साथ ही उन्होंने अपने ‘व्यक्तित्व विकास पर भी खूब काम किया। अपनी लगन और कड़ी मेहनत से सुरभि ने न केवल भाषाई बाधाओं को पार किया बल्कि विश्वविद्यालय में भी शीर्ष स्थान हासिल करते हुए स्वर्ण पदक प्राप्त किया। उन्होंने साबित किया कि सफलता हासिल करने के लिए भाषा कभी भी बाधा नहीं बन सकती है।
भोपाल से इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में अपनी इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद, सुरभि ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। प्रशासनिक सेवाओं में आने से पहले, सुरभि भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में परमाणु वैज्ञानिक के रूप में काम कर चुकी थीं। उन्होंने गेट, इसरो, सेल, एमपीपीएससी पीसीएस, एसएससी सीजीएल, दिल्ली पुलिस और एफसीआई की परीक्षाएं भी पास की। यहीं नहीं उन्होंने 2013 में इंडियन इंजीनियरिंग सर्विसेस परीक्षा में पहला स्थान हासिल करते हुए अपनी उपलब्धियों को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाया।
विज्ञान में रुचि
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में बिताए गए अपने दिनों को सुरभि जीवन के सबसे उपयोगी अनुभवों के रूप में बताती हैं। सुरभि उन दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि मैं वहां अपने आस-पास के कई क्षेत्रों में इंजीनियरिंग लागू कर सकती थी।
लेकिन क्या उन्हें नहीं लगता कि विज्ञान और प्रशासन अलग-अलग हैं? इस सवाल के जवाब में वो कहती हैं, “मैं उन्हें एक अलग क्षेत्र के रूप में नहीं देखती। विज्ञान से जुड़ा हुआ कोई भी व्यक्ति प्रशासन को तार्किक और सुचारू रूप से चला सकता है। इसके अलावा यह, क्षेत्र से इतर झुकाव और पसंद के बारे में भी है। मुझे विज्ञान से मोहब्बत थी लेकिन सिविल सेवा में कैरियर बनाना एक सपना। मैं भाग्यशाली हूं कि मैं दोनों कर सकी। कोई भी दिन बहुत अच्छा बन जाता है, जब मैं भौतिकी पढ़ती हूं या गणित से जुड़ा हुआ कुछ करती हूं। साथ ही प्रशासन के हर हिस्से को अब तकनीक से जोड़ा जा रहा है। तो मेरे लिए यह फायदा ही है।”
प्रशासनिक यात्रा
प्रशिक्षण सहित तीन साल से अधिक लंबे कैरियर में, सुरभि ने वड़ोदरा में सहायक कलेक्टर के रूप में अपनी सेवाएं दीं और अब वह गुजरात के विरमगाम जिले में तैनात हैं। उन्होंने कोरोना संकट के दौरान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका अधिकांश समय प्रवासी मजदूरों को उनके घर वापस भेजने और वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के रणनीतिक प्रयासों और तरीकों में बीता। बाद में, उन्होंने राजस्व विभाग के रिकॉर्ड वर्गीकरण पर काम करना शुरू कर दिया है।
वह कहती हैं कि सरकारी कार्यालय में अभिलेखों का प्रबंधन एक बड़ा काम है। भूमि के प्रशासन का मुख्य विषय होने के कारण, इस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है। साथ ही वह एक 100 साल पुराने जीर्ण-शीर्ण स्कूल की दशा बदलने की कोशिश भी कर रही हैं। मरम्मत का काम शुरू हो चुका है और उन्हें उम्मीद है कि उनके कार्यकाल के दौरान ही यह पूरा हो जाएगा।
सुरभि में कलाकार
सुरभि की यात्रा वास्तव में बहुत प्रेरणादायक है। उन्होंने सामने आई हर बाधा को अपने लिए अवसर में बदल दिया। अपनी इतनी बड़ी सफलता के साथ, उन्होंने उनके जैसी स्थिति वाले कई लड़के और लड़कियों के लिए नए दरवाजे खोले हैं। एक प्रतिबद्ध अधिकारी होने के अलावा, सुरभि एक नियमित ब्लॉगर और प्रेरक वक्ता भी हैं। लेकिन इस सबसे बढ़कर सुरभि में एक और कमाल की खूबी है, वह बहुत अच्छी स्केच आर्टिस्ट हैं और अपने खाली समय में स्केचिंग (चित्र बनाना) करती हैं। यूपीएससी में आने के बाद भी उन्होंने अपनी रचनात्मकता को तराशना नहीं छोड़ा और उनके अंदर का कलाकार हमेशा कुछ नया करने को बेताब रहता है। स्केचिंग के साथ-साथ सुरभि को रंगोली, कढ़ाई-बुनाई और कविताओं का भी शौक है।
कला के लिए अपने प्यार का जिक्र करते हुए वो कहती हैं, “मैंने 2018 के दौरान वाटर कलर पेंटिंग शुरू की, मुझे जब भी समय मिलता है, मैं इसे करना पसंद करती हूं। यह मेरे लिए तनाव को कम करने का काम करता है। मैं जितना अधिक थकी हुई होती हूं, उतना ही अधिक पेंटिंग या स्केचिंग करती हूं।”
गांव के बिना किसी बुनियादी सुविधाओं वाले प्राथमिक विद्यालय से निकल कर, इतनी परीक्षाओं को सफलतापूर्वक पास करते हुए भारत की सबसे कठिन और प्रतिष्ठित सेवाओं तक की यात्रा तय करने वाली सुरभि गौतम अभी रुकने वाली नहीं हैं, उन्हें तो अभी मीलों जाना है और युवाओं के लिए प्रेरणाओं के नए पुंज जाग्रत करने हैं…।
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