इस आईएएस अधिकारी के प्रयासों से 7 दशक बाद जम्मू और कश्मीर के आठ गांवों में आई बिजली!
- Raghav Goyal
- Published on 14 Dec 2021, 10:35 am IST
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हाइलाइट्स
- जम्मू और कश्मीर के कुपवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 65 किमी दूर नियंत्रण रेखा पर स्थित होने के कारण ‘केरन और माछिल खंड’ के लिए गोलीबारी बहुत आम बात है।
- साथ ही, देश की सुरक्षा के लिहाज से भी यह इलाका बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां घुसपैठ की आशंका हमेशा बनी रहती है।
- ऐसे में 70 साल बाद इस क्षेत्र को 24 घंटे बिजली आपूर्ति मिलना, इस पूरे खंड के लिए बहुत सुकून भरी खबर है और इसके पीछे मेहनत है, कुपवाड़ा के उपायुक्त अंशुल गर्ग की।
- जम्मू-कश्मीर के 3 गांवों में बिजली ग्रिड की स्थापना के दौरान अंशुल गर्ग (फोटो क्रेडिट: ट्विटर)
यह एक ऐतिहासिक क्षण था। लोग बहुत खुश थे, उनमें से कुछ तो खुशी से झूम रहे थे। जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ वाले कुपवाड़ा जिले के केरन और माछिल गांवों के इन निवासियों के पास खुश होने का एक असल कारण था। दरअसल 2013 बैच के जम्मू-कश्मीर कैडर के आईएएस अधिकारी और कुपवाड़ा के तत्कालीन उपायुक्त अंशुल गर्ग के साल भर के प्रयासों की बदौलत लगभग सात दशकों बाद बिजली मिलने जा रही थी। आईआईटी दिल्ली से पढ़े हुए अंशुल वर्तमान में जम्मू के डीएम और विकास आयुक्त हैं।
इतने सालों तक नियंत्रण रेखा के इतने समीप इस महत्वपूर्ण मामले की फाइलें सिर्फ एक टेबल से दूसरे टेबल पर पहुंचाई जा रही थीं। लेकिन, किसी भी सरकारी विभाग ने इस मामले को गंभीरता से देखने की कोशिश तक नहीं की। वैसे जहां तक हमारी सीमित जानकारी गवाही देती है, बिजली कनेक्शन और बिजली आपूर्ति पाना एक उपभोक्ता का मौलिक अधिकार भी है। वैसे भी भारत-पाकिस्तान सीमा पर बुनियादी ढांचा विकसित करने का काम तेजी से चलता रहता है, इसलिए यहां तो बिजली-पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं और बेहतर होनी चाहिए, जिससे कि सीमा पार से घुसपैठ और आतंकवाद जैसी चुनौतियों से बेहतर ढंग से निपटा जा सके।
इस क्षेत्र के बारे में इंडियन मास्टरमाइंड्स की टीम से बातचीत करते हुए, अंशुल गर्ग कहते हैं, “कुपवाड़ा कश्मीर का सबसे उत्तरी जिला है, यह उत्तर की ओर लगभग 170 किलोमीटर की सबसे लंबी नियंत्रण रेखा से घिरा है। इसके अलावा, जिले में कई सीमावर्ती क्षेत्र या पॉकेट्स हैं जो जिला मुख्यालय से कटे हुए हैं, क्योंकि एक ऊंची पर्वत श्रृंखला इनको दो हिस्सों में बांटकर अलग करती है। किसी को भी यहां पहुंचने के लिए एक ऊंचाई पर स्थित सड़क को पार करना पड़ता है। इस क्षेत्र में बहुत अधिक बर्फबारी के कारण, ये रास्ते नवंबर के महीने में अवरुद्ध हो जाते हैं और तब तक इसी हाल में रहते हैं, जब तक कि पर्याप्त सुविधाजनक न हो जाएं। इसलिए, इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की लगभग 4-5 महीनों तक बिजली और बुनियादी वस्तुओं तक कोई पहुंच नहीं हो पाती है।”
यहां किसी तरह सिर्फ तीन घंटे की बिजली मिला करती थी। इसके अलावा, केरन और माछिल गांवों में लोग दशकों पुराने डीजल जनरेटर (डीजी) सेट पर निर्भर थे। यहां तक कि जनरेटर के लिए आवश्यक डीजल को जिला मुख्यालय से ले जाया जाता था। दशक पुराने डीजी सेट के कारण, किसी खराबी के समय मरम्मत करना लगभग असंभव हो जाता था और यह बिजली की आपूर्ति को अधिक बाधित करता था। फरवरी, 2019 में गर्ग ने जब पहली बार कुपवाड़ा में उपायुक्त के रूप में कार्यभार संभाला, तो आम चुनाव बस होने ही वाले थे।
“मतदान के बाद एक बात जो मेरे ध्यान में आई कि केरन और माछिल में मतदान प्रतिशत असामान्य रूप से अधिक था। यह पूरे जिले में कुल मतदान प्रतिशत से अधिक था। जब मैंने इन सीमा क्षेत्रों में स्थानीय लोगों के साथ बातचीत शुरू की, तो मुझे कई विकास के लिए वोट डालने वाले लोग मिले, जो अपने क्षेत्रों के विकास की उम्मीद लिए हुए अपना वोट डाल रहे थे।” – अंशुल गर्ग, उपायुक्त (डेप्युटी कमिश्नर), कुपवाड़ा
इन मुलाकातों के दौरान, उन्होंने केरन और माछिल गांव के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की जिसने उनसे बड़ी मासूमियत से पूछा, “क्या हमे बिजली मिल सकती सर?” इस सवाल ने उन्हें झकझोर दिया और इस स्थिति से निपटने की ताकत भी दी।
केरन में 33 केवी लाइन के विस्तार की एक और परियोजना साल 2012 में पटल पर आई थी, 6.5 करोड़ रुपये की लागत वाली इस योजना का उद्देश्य 33/11 केवी ग्रिड स्टेशन स्थापित करना था। यह परियोजना ग्रामीणों के बीच एक उम्मीद बन गई, क्योंकि यह बिजली आपूर्ति की उन समस्याओं को आसानी से हल कर सकती थी, जिनका वे सभी पिछले 70 वर्षों से सामना कर रहे थे।
हालांकि, किसी भी अन्य परियोजना की तरह इसका भी वही हाल हुआ और कोई भी ठोस प्रगति इसको लेकर नहीं हो सकी। इस तरह एक बार फिर से लोगों की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा। इन सात वर्षों के दौरान, कुछ सौर ऊर्जा प्रणालियों को स्थापित किया गया था, जो अधिकतर केवल ग्रीष्मकाल में ही चलती थीं और उनका क्षमता भी सीमित थी।
जब नीति आयोग ने कुपवाड़ा को 112 अन्य जिलों के साथ ‘आकांक्षात्मक’ जिला घोषित किया, तो परियोजना ने एक बार फिर से कुछ ध्यान आकर्षित किया। हालांकि, परियोजना में सही कार्यान्वयन की कमी थी।
धारा 370 को खत्म करने की वजह से बहुत कम जनशक्ति, मौसम की बेरुखी और तेजी से फैल रही कोविड-19 महामारी के बावजूद अंशुल गर्ग के नेतृत्व में कुपवाड़ा जिला प्रशासन सीमावर्ती खंड, केरन और माछिल में 11 में से 8 गांवों को बिजली ग्रिड के साथ जोड़ने में कामयाब रहा।
“अपने जीवन में पहली बार, वे जिला मुख्यालय के साथ लगभग 14-15 घंटे बिजली प्राप्त कर रहे हैं। हम क्षेत्र के बाकी गांवों को भी जल्द ही जोड़ने की योजना बना रहे हैं।”
अंशुल गर्ग, उपायुक्त, कुपवाड़ा
सात दशक के लंबे इंतजार के बाद, वह अब इन 8 गांवों में रहने वाले लोगों को बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, छात्रों को शिक्षा, पीने के पानी की आपूर्ति, सिंचाई प्रणाली, आदि के संबंध में लाभान्वित कर रहे हैं।
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