कैसे एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने केरल के कासरगोड में महामारी की बड़ी लहर को रोक दिया!
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 13 Dec 2021, 11:00 am IST
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हाइलाइट्स
कोविड-19 की पहली लहर से लड़ने में कासरगोड मॉडल को भारत में सबसे अच्छे मॉडल में से एक माना गया था। और इसका सबसे बड़ा श्रेय केरल सरकार को अपने सबसे वरिष्ठ और सक्षम नौकरशाह अलकेश शर्मा को महामारी से युद्ध के मोर्चे पर भेजने के लिए जाता है।
- आइसोलेशन सेंटर (पृथकवास केंद्र)
पिछले डेढ़ साल से भी अधिक समय से कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ रहे कुछ भारतीय राज्यों ने अपने क्षेत्रों में बढ़ते हुए कोरोना मामलों पर अंकुश लगाते हुए बहुत शानदार सफलता अर्जित की है। इन राज्यों ने कोरोना की पहली लहर का भी डटकर मुकाबला किया था और दूसरी लहर में भी अपने नागरिकों के जीवन को बचाने के लिए प्रतिबद्ध नजर आ रहे हैं। कोरोना के खिलाफ युद्ध में सुदूर दक्षिणी राज्य केरल ने बहुत बेहतर काम किया है, केरल का प्रसिद्ध ‘कासरगोड मॉडल’ कई राज्यों के लिए उदाहरण बना है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में इस मॉडल को राजस्थान के चर्चित लेकिन कथित रूप से कठोर ‘भीलवाड़ा मॉडल’ की तुलना में सुचारू और मानवीय माना जाता है।
इन दोनों मॉडलों की कहानियों को देश के अन्य राज्यों में बढ़ते कोरोनवायरस मामलों को नियंत्रित करने का सबसे प्रमुख उदाहरण माना जाता है। हालांकि, कोरोना के प्रसार पर नियंत्रण पाना इतना भी आसान नहीं था। इन क्षेत्रों में इन दो मॉडलों को लागू करते समय प्रशासन द्वारा बहुत बड़े स्तर पर स्कैनिंग, ट्रैकिंग, परीक्षण, उपचार और यहां तक कि बहुत सी परेशानियों अनुभव किया गया।
आईएएस शर्मा ने बदला परिदृश्य
जब भारत में कोविड-19 महामारी की शुरुआत हुई, तो तीसरा मामला सुदूर दक्षिण में केरल के कासरगोड जिले में मिला। यहां एक छात्र पूरी दुनिया में कोरोना का केंद्र माने जाने वाली जगह चीन के वुहान से फरवरी, 2020 में आया था। हालांकि, जिला प्रशासन इस तरह की चुनौतियों के लिए तैयार था और उन्होंने उस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले 150 विभिन्न लोगों का पता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कासरगोड में रहने वाली आबादी का एक बड़ा हिस्सा विदेशों में रह रहा है। लेकिन, देश में महामारी के शुरुआती स्तर पर ही कोरोना के केस मिलने और यहां तक की देश के तीसरे मामले के जिले में मिलने के बावजूद, कासरगोड में 1 मई, 2020 तक सिर्फ 179 मामले और शून्य मृत्यु दर्ज की गई थी।
यह इसलिए संभव हो पाया क्योंकि केरल के स्वास्थ्य मंत्रालय ने समय रहते इस नाजुक स्थिति को संभालने के लिए एक वरिष्ठ नौकरशाह को नियुक्त कर दिया था। इस मामले में राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने एक युवा और उत्साही अधिकारी को कमान सौंपने के बजाय अनुभव को तरहीज दी। और इस तरह कोच्चि मेट्रो के प्रबंध निदेशक अलकेश शर्मा को कोविड की भयावह स्थिति से निपटने के लिए प्रभारी बनाकर कासरगोड जिले भेजा गया। वह उस वक्त राज्य में सबसे वरिष्ठ अधिकारी हुआ थे। इतनी बड़ी चुनौतियों के साथ यह उनके लिए एक अभूतपूर्व काम था। हालांकि, वह पहले से ही इन मुश्किल हालातों से सामना करने में काफी अनुभवी और कुशल थे।
कासरगोड मॉडल
जब शर्मा ने पहली बार जिले में प्रभारी मंत्री के रूप में कदम रखा, तब वहां कोविड-19 के मामले लगातार बढ़ रहे थे। उन्होंने वायरस की पहली लहर के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए तुरंत कई कड़े कदम उठाए, कई नियम बनाए गए और जरूरी गाइडलाइन तैयार की गयी। शर्मा द्वारा एक साथ उठाए गए तीन प्रमुख कदम थे – ऐसे समूह और सेक्टरों की पहचान करना जहां वायरस सक्रिय था, प्रभावित क्षेत्र में कोविड-19 का प्रसार रोकने के लिए उसे ‘नियंत्रण क्षेत्र’ (कंटेनमेंट जोन) में बदल देना, ‘नियंत्रण क्षेत्र’ में गतिविधियां प्रतिबंधित कर लोगों की आवाजाही कम कर देना। एक और एहतियाती उपाय के रूप में, जब तक स्थिति में सुधार के संकेत नहीं दिखते, तब तक सभी जोन में प्रवेश और निकास के रास्ते यानी आवाजाही के सभी रास्ते बंद कर दिये गए।
अब अगला लक्ष्य उन स्वतंत्र स्थानों की पहचान करना था, जहां कोविड-19 के मामले दर्ज हो रहे थे, उसके बाद इन मामलों को नियंत्रित करने के प्रयास शुरू करने थे।
मानवीय दृष्टिकोण
अब, बात करते हैं कि कैसे कासरगोड मॉडल दूसरों से अलग है। यह एक ऐसा मॉडल है जिसे शायद अन्य जगहों पर तरजीह नहीं मिली। लेकिन कासरगोड में इस मॉडल की बहुत सराहना की गयी। शर्मा ने कासरगोड में यह सुनिश्चित किया कि ‘नियंत्रण क्षेत्र’ (कंटेनमेंट जोन) में लोगों की गतिविधियों पर कड़े पहरे के बावजूद, उन्हें दैनिक जरूरत की आवश्यक वस्तुओं से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए, इस दिशा में बहुत से अतिरिक्त प्रयास किए गए। पहले उपाय के रूप में, विभिन्न क्षेत्रों में कई व्हाट्सएप नंबर जिले में प्रसारित किए गए, जिसके माध्यम से लोग अपने घर पर ही आवश्यक उत्पादों को ऑर्डर कर सकते थे।
पूरे जिले में धारा 144 भी लगाई गई थी और जिले में लोगों के आवागमन की निगरानी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा था। स्वास्थ्य स्वयंसेवकों ने लोगों के कोरोना लक्षणों की निगरानी कर रहे थे, साथ ही यह भी जांच रहे थे कि क्या लोगों के पास घर पर ही उपयुक्त क्वारंटाइन (पृथकवास) सुविधाएं उपलब्ध हैं या नहीं! जिनके पास उपयुक्त सुविधाएं नहीं थीं, उन्हें पृथकवास केंद्रों में भेजा गया। जिले में पृथकवास केंद्रों को लेकर बड़े स्तर काम किया गया और हजार से अधिक बिस्तर लगाए गए, होटल और लॉज का इस्तेमाल किया गया।
शर्मा की टीम ने आईसीएमआर के प्रोटोकॉल से भी परे जाकर कार्य करना शुरू कर दिया और ऐसे लोगों का भी परीक्षण करना शुरू कर दिया, जिनमें कम लक्षण थे या नहीं के बराबर थे। पुलिस अधिकारियों को मरीजों पर नजर रखने और उनकी निगरानी करने का काम सौंपा गया, जबकि स्वास्थ्य स्वयंसेवकों और ‘जन जागृति समिति’ ने लोगों में विभिन्न सावधानियों और उपायों के बारे में जागरूकता फैलाई।
अंतरराज्यीय संपर्कों पर प्रतिबंध लगा दिया गया, क्योंकि पहले लोग इलाज के लिए मैंगलोर जा रहे थे। यहां तक कि परीक्षण के नमूने जो अल्लेप्पी स्थित एनआईवी भेजे जा रहे थे, धीरे-धीरे बंद हो गए क्योंकि कासरगोड ने अनावश्यक गतिविधियों को कम करने के लिए अपने स्वयं की परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित कीं। सख्त लेकिन मानवीय नियमों का सही कार्यान्वयन, संक्रमित रोगियों के परीक्षण और ट्रैकिंग के लिए एक बेहतर आक्रामक दृष्टिकोण के साथ मिलकर, जल्द ही कासारगोड मॉडल कोविड-19 से जूझने और जीतने के लिए सबसे प्रभावी बन गया। कोरोना महामारी की पहली लहर से निपटने में जिले के लिए कासारगोड मॉडल बहुत कारगर रहा। और इसके पीछे आईएएस अलकेश शर्मा की मेहनत और जीवटता थी।
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