सिर्फ एक जल संरक्षण परियोजना ने इस जिले के 8,000 किसानों के जीवन को बदल दिया
- Raghav Goyal
- Published on 25 Dec 2021, 10:58 am IST
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हाइलाइट्स
- झारखंड के खूंटी जिले में एक नेकनीयत आईएएस अधिकारी ने एक ऐसी जल संरक्षण परियोजना शुरू की, जिससे स्थानीय किसानों के जीवन में अहम बदलाव आया।
- अब, उनकी जगह पर आए नए अधिकारी भी इस बड़ा बदलाव लाने वाले अच्छे काम को जारी रखे हुए हैं और अन्य क्षेत्रों में इसका विस्तार भी कर रहे हैं।
- बोरी बांध परियोजना के तहत रोक बांध (चेक-डैम) बनाते किसान
भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है, जहां रोजगार का प्रमुख हिस्सा कृषि क्षेत्र से पैदा होता है। आईबीईएफ के अनुसार, भारत में लगभग 58% जनसंख्या की आजीविका कृषि पर निर्भर है। हालांकि, इतने बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने के बड़ा भी, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में उनकी हिस्सेदारी महज 17-18% ही है।
लेकिन यह भी अजीब विडम्बना है कि कृषि गतिविधियों के माध्यम से दूसरों के लिए रोजगार के बड़े अवसर पैदा करने वाले किसानों में सही शिक्षा और बेहतर प्रौद्योगिकियों के बारे में जागरूकता की कमी होती है, जिससे वे न केवल खेती की गतिविधियों के दौरान आने वाली समस्याओं को दूर कर सकते हैं, बल्कि आधुनिक तरीके से खेती करते हुए अधिक लाभ उठा सकते हैं।
अब झारखंड को ही ले लीजिए। यह एक ऐसा राज्य है, जहां कृषि 80% ग्रामीण आबादी का आधार और अहम हिस्सा है। लेकिन उसके बाद भी, लगभग 92% खेती योग्य भूमि को असिंचित छोड़ दिया गया है। इसके पीछे प्रमुख कारण अपर्याप्त भंडारण सुविधाएं और कम सिंचाई क्षमता की कमी बताया जाता है। जबकि राज्य में अच्छी वर्षा होने के बावजूद यह स्थिति बनी रहती है।
जल संरक्षण तकनीक ‘बोरी बांधे परियोजना’ लाना
साल 2019 में, पूर्व उपायुक्त (डीसी) सूरज कुमार द्वारा झारखंड के खूंटी जिले के दूरस्थ इलाकों में जल संरक्षण के लिए ‘बोरी बांध परियोजना’ की एक अद्भुत पहल की गई। इस परियोजना से अब तक लगभग 8,000 किसान लाभान्वित हुए हैं। परियोजना अब खूंटी के वर्तमान डीसी शशि रंजन द्वारा आगे जारी है।
‘बोरी बांध परियोजना’ जिले भर में ‘रोक बांध यानी छोटे बांध’ (चेक-डैम) बनाकर पानी को रोके रखने की एक उत्कृष्ट लागत वाली प्रभावी तकनीक बन गई है। बता दें कि रोक बांध अपेक्षाकृत छोटे निर्माण होते हैं, जो पानी के बहाव को कम करके मिट्टी के कटाव को नियंत्रित करते हैं। इसे रेत और मिट्टी से भरे बोरों के उपयोग के साथ अंजाम तक पहुंचाया जाता है। इस तकनीक का उपयोग अधिकतर मानसून के मौसम से पहले किया जाता है, जब किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की समस्या का सामना करना पड़ता है। यह एक किसान पर ध्यान देने वाली परियोजना है और इसमें स्थानीय लोगों और मुख्य रूप से मुंडा समुदाय से संबंधित जनजातीय लोगों की भागीदारी की आवश्यकता होती है।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ बात करते हुए, शशि रंजन ने किसानों की उन समस्याओं के बारे में बताया और साथ ही उनके पूर्ववर्ती अधिकारी द्वारा शुरू किए गए समाधानों पर भी चर्चा की।
रंजन कहते हैं, “खूंटी एक सुदूर पठारी इलाका है, जहां सामाजिक-आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। किसान हर साल खरीफ फसलों की खेती पर निर्भर हैं, जिसमें भी ज्यादातर ज्यादातर चावल की फसल है। उन्होंने कभी भी रबी की फसलों की बुआई नहीं की, क्योंकि स्थानीय धाराओं में उपलब्ध होने के बाद भी पानी उनके खेतों तक नहीं पहुंचता था। और जैसा कि हम सभी जानते हैं कि रबी की फसल को सिंचाई के लिए बहुत अधिक पानी की जरूरत होती है। इसीलिए जल्द ही सभी को पता चल गया कि आखिर क्यों यहां के लिए ‘बोरी बांध’ परियोजना सबसे उपयुक्त और लागत प्रभावी तकनीक थी, जिसने इस क्षेत्र के किसानों की बड़ी समस्या को हल कर दिया।”
परियोजना का कार्यान्वयन और खेती-किसानी की गतिविधियों में सुधार
इस लागत प्रभावी परियोजना में प्रारंभिक निवेश के रूप में जो बोरियां इस्तेमाल की गईं, उन्हें प्रति बोरी 1 रुपये की मामूली दर पर खरीदा गया था। यह अपशिष्ट प्रबंधन में भी योगदान देता है, क्योंकि रिसाइकिल प्लास्टिक (पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक) की थैलियों को मुख्य रूप से बोरियों के रूप में उपयोग किया जाता है।
शशि रंजन ने भारतीय मास्टरमाइंड्स से कहा, “झारखंड में किसान ज्यादातर उस भूमि की सिंचाई करते हैं, जो कुएं से आधे किलोमीटर या एक एकड़ के दायरे में होती है, जिससे कि पानी की कमी न हो। इस दायरे से बाहर भूमि पर वे सिंचाई का जोखिम नहीं उठाते हैं, क्योंकि खेतों में पानी के ठीक से पहुंचने और बेहतर सिंचाई होने की संभावना बहुत कम होती है। लेकिन चेक बांधों और संबंधित उपायों ने स्थिति को बदल दिया है। अब पानी की कोई कमी नहीं थी और किसान बहुत बड़े क्षेत्रों में खेती कर सकते थे।”
किसानों की भागीदारी के अलावा, प्रशासन भी जमीनी स्तर पर पहुंचा और इसे सामुदायिक लामबंदी की एक पहल बना दिया। शशि रंजन ने समुदायों की भागीदारी के बारे में चर्चा करते हुए कहा, “एनजीओ ‘सेवा वेलफेयर सोसाइटी’ और सहायक प्रौद्योगिकी प्रबंधकों और ब्लॉक प्रौद्योगिकी प्रबंधकों की टीमों ने स्थानीय लोगों तक पहुंचने की प्रक्रिया में हमारी मदद की। परियोजना के लाभों के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए, टीमें विभिन्न ब्लॉकों और पंचायतों में ‘कृषि संगोष्ठी’ आयोजित किया करती थीं। इससे ‘श्रमदान’ (यानी श्रम के माध्यम से मानव संसाधनों की भागीदारी) के माध्यम से स्थानीय लोगों की भागीदारी और योगदान में मदद मिली।”
वो कहते हैं, “हमने एक स्थानीय एनजीओ को भी काम पर रखा, जिसकी विशेषज्ञता ‘मुंडा प्रधान समाज’ के लोगों के साथ संवाद करना है, जो मुख्य रूप से मुंडारी भाषा में बोलते हैं। हम लोग इस भाषा में बात नहीं कर सकते थे। इस कदम से हमें लोगों के बारे में जागरूकता फैलाने में बहुत मदद मिली।”
असर, उपलब्धियां और परियोजना का उद्देश्य
रंजन कहते हैं कि यह परियोजना न केवल प्रशासन के लिए, बल्कि विभिन्न स्तरों पर इसमें शामिल सभी लोगों के लिए भी एक सफलता थी। रंजन के अनुसार, “सबसे पहले इसने किसानों के अलावा अन्य लोगों को जुटाने में मदद की, स्थानीय लोग भी खेती की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं।
दूसरे, खेती-किसानी की गतिविधियों में वृद्धि हुई है, क्योंकि पहले किसान केवल एक प्रकार की ही फसल उगा रहे थे। अब वे कई प्रकार की फसल उगाते हैं और इससे किसानों की वार्षिक आय में वृद्धि हुई है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के नाते, स्थानीय समुदाय के लोग पहले अफीम की खेती में लगे थे, जो अब विभिन्न अन्य विभिन्न फसलों को उगाने की तरफ आगे बढ़े हैं। इसके अलावा, इससे इन समुदायों के लिए खाद्य संस्कृति की खपत में बदलाव आया है, क्योंकि वे खेती करने के बाद विभिन्न सब्जियों और फसलों का उपभोग कर रहे हैं।”
‘बोरी बांध’ परियोजना की सफलता ने एक तरह से ‘रिपल इफेक्ट’ पैदा किया है यानी इस परियोजना का असर लगातार बढ़ता गया है और इससे जुड़ी हर घटना ने सकारात्मक असर पैदा कर लोगों को प्रेरित किया है। प्रशासन अब गांव के संगठनों और संबंधित आउटलेट्स की मदद से ‘खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों’ को शुरू करने की योजना बना रहा है, ताकि बड़ी संख्या में स्थानीय आबादी को उससे जोड़ा जा सके। आशा है कि इन कदमों से क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक दृष्टिगोचर बदलाव आएगा।
इस परियोजना के लॉन्च के एक साल बाद, इसे पुरस्कार मिला है और कई लोगों द्वारा इसे सराहा गया है। इसमें केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय से मिला ‘उत्कृष्टता के लिए पुरस्कार’ भी शामिल है। शशि रंजन कहते हैं, “जल संसाधन विभाग के सचिव (आरडी एंड जीआर) यूपी सिंह ने हमें यह बड़ा पुरस्कार दिया और देश भर में परियोजना की उपलब्धि के लिए जल्द ही जिले का दौरा करने की योजना बनाई है।”
जुलाई 2020 में, जिले को जल संरक्षण और प्रबंधन में इसके प्रयासों के लिए प्रतिष्ठित ‘स्कोच पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया। अन्य पुरस्कारों के बीच, इसे ‘एलेट्स नेशनल वाटर इनोवेशन समिट 2020’ से ‘पार्टिसिपेटरी वॉटर मैनेजमेंट’ श्रेणी के तहत उत्कृष्टता के लिए पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार शशि रंजन को प्रदान किया गया, जिन्होंने इस परियोजना को पहले ही तीन ब्लॉक और 30 पंचायतों तक विस्तारित कर दिया है। अब इसे और भी आगे बढ़ाने का लक्ष्य है।
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