क्रांति बांस की झाड़ू की: जीवन बदल देने वाली और प्लास्टिक को खत्म करने वाली है आईएफएस अधिकारी प्रसाद राव की पहल
- Muskan Khandelwal
- Published on 9 Aug 2023, 12:17 pm IST
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हाइलाइट्स
- आईएफएस अधिकारी प्रसाद राव ने पर्यावरण के अनुकूल बांस का विकल्प पेश करके प्लास्टिक को खत्म करने की पहल की, इससे जीवन और आजीविका में बदलाव आया
- यह न केवल प्लास्टिक की झाड़ू को बांस के हैंडल से बदल रहा है, बल्कि आदिवासी परिवारों को सार्थक रोजगार भी दे रहा है, आर्थिक सशक्तीकरण को मिल रहा बढ़ावा
- शुरुआती चुनौतियों का सामना करने के बाद उन्होंने लचीली और टिकाऊ बांस के हैंडल वाली झाड़ू बनाई, जिससे अन्य राज्यों को पर्यावरण-अनुकूल मॉडल अपनाने के लिए प्रेरणा मिली
त्रिपुरा के कोने में पर्यावरण को लेकर दिख रही जागरूकता आगे बड़ा प्रभाव डालेगी। आईएफएस अधिकारी प्रसाद राव ने घर-घर मिलने वाली झाडू के हैंडल से प्लास्टिक को हटा दिया है। उसकी जगह पर्यावरण के अनुकूल माने जाने बांस को अपनाया जा रहा है।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ बात करते हुए राव ने प्लास्टिक को बांस से बदलने वाले मॉडल के बारे में काफी कुछ बताया।
पहल
इसकी शुरुआत 2020 में हुई। उस वक्त राव और उनकी टीम ने वन धन विकास कार्यक्रम के तहत एक परियोजना शुरू की। इसका अर्थ है ‘वन का खजाना बेहतरी की योजना।’ उद्देश्य सरल था: प्रकृति के संसाधनों की शक्ति का उपयोग करना और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना उपयोग की जाने वाली वस्तु बड़े पैमाने पर बनाना।
बांस आदर्श समाधान के रूप में उभरा। यह ना केवल बड़ी संख्या में उपलब्ध था, बल्कि यह तेजी से बढ़ा भी। इसकी कुछ प्रजातियां आश्चर्यजनक रूप से प्रति दिन 35 इंच तक बढ़ने में सक्षम थीं।
आदिवासियों को रोजगार
परियोजना का प्रभाव प्लास्टिक झाडू को बदलने से कहीं आगे तक बढ़ा। इस पहल से लगभग 1000 आदिवासी परिवारों को सार्थक रोजगार मिला। वे बांस की खरीद से लेकर झाड़ू के हैंडल को असेंबल करने और पैकेजिंग करने तक की पूरी प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा बन गए। इन जनजातीय समुदायों ने जिस उद्देश्य और आर्थिक सशक्तीकरण की भावना का अनुभव किया, वह बेजोड़ था।
जैसे ही बांस की झाडू के बारे में बात फैली, देश भर से इसकी मांग आने लगी। झाडू ना केवल पर्यावरण के अनुकूल थे, बल्कि आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धी भी थे। इनकी कीमत 35 से 40 रुपये के बीच पड़ती है। प्लास्टिक हैंडल वाली झाड़ू की तुलना में इसकी कीमत कम पड़ती है। यह श्री राव की टीम द्वारा बनाए गए कुशल और समावेशी व्यवसाय मॉडल से संभव हुआ।
असफलताएं
अधिकारी ने साझा किया कि उन्हें एक लाख बांस से बने हाथ वाली झाड़ू के शुरुआती बैच के साथ झटका लगा। इसके लिए दोबारा ऑर्डर नहीं मिला, जिसकी उन्होंने मार्केटिंग की थी। वह बताते हैं कि 100 पीस से नीचे के ऑर्डर स्वीकार न करने की हमारी पिछली नीति से यह स्पष्ट हो गया कि संभावित खरीदारों के लिए ऑर्डर देना भारी पड़ा। हालांकि, परिवहन बाधाओं के कारण हम 100 से कम पीस के लिए ऑर्डर नहीं ले सके।
दूसरे, उत्पाद के मार्केटिंग के प्रभारी व्यक्ति ने बताया कि शुरू में उन्होंने उत्साह के साथ मार्केटिंग की। लेकिन फिर से क्षेत्र में जाकर लोगों को उत्पाद खरीदने के लिए प्रोत्साहित करना, दरअसल थका देने वाला अनुभव रहा।
इसके अलावा, उन्होंने पाया कि बांस को जूट की रस्सी से बांधने के कारण कुछ हैंडल के टूटने का खतरा था। इससे ग्राहक असंतुष्ट थे। इस प्रकार इन ग्राहकों ने उत्पाद को दोबारा खरीदने से परहेज किया।
राव ने इंडियन मास्टरमाइंड्स को बताया, ‘इस फीडबैक को गंभीरता से लेते हुए हमने उत्पाद को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए। हमने अधिक लचीली और टिकाऊ बांस-हैंडल वाली झाड़ू बनाई, जो सफल साबित हुई है।’
हाल ही में उन्होंने मुख्यमंत्री की उपस्थिति में इस उन्नत मॉडल को गर्व से लॉन्च किया है। अब उत्पादन का विस्तार करने और बड़े पैमाने पर मार्केटिंग करने शुरू करने के लिए कमर कस रहे हैं।
सफलता
इसके अलावा, इस उन्नत मॉडल की सफलता ने मणिपुर और मिजोरम जैसे अन्य राज्यों को भी इसे अपनाने और बेचने के लिए प्रेरित किया है। इस से उत्साहित होकर अधिकारी ने बांस की बोतलें, सब्जी चॉपर, घड़ियां और बांस से बने विभिन्न अन्य उपयोगी उत्पादों को पेश करके अपनी उत्पाद श्रृंखला में विविधता लाने का कदम उठाया है।
त्रिपुरा रिहैबिलिटेशन प्लांटेशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (टीआरपीसी) के एमडी राव के पास सीईओ, टीआरएलएम और एमडी, एनयूएलएम अगरतला का अतिरिक्त प्रभार भी है। उन्होंने कहा कि इससे उन्हें आसानी से लोगों से जुड़ने और उत्पादों और उनके संचालन को आगे बढ़ाने में मदद मिल रही है।
इस सरल लेकिन प्रभावशाली सामाजिक पहल के माध्यम से वह और उनकी टीम प्लास्टिक का एक स्थायी विकल्प खोज कर और साथ ही आदिवासी समुदायों के जीवन स्तर में सुधार करके पॉजिटिव बदलाव ला रहे हैं।
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