साधारण शुरुआत, बड़े सपने: वो आईएफएस अधिकारी जिसने अपनी यूपीएससी की यात्रा में अखबार बेचे और फूस के घर में रहा
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 8 Dec 2021, 10:30 am IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- दक्षिणी चेन्नई के कीलकट्टलाई इलाके के रहने वाले और 7 भाई-बहनों में पले बढ़े पी बालामुरुगन ने अखबार बेचा, इंजीनियर बने, फिर विदेश की लाखों की नौकरी छोड़कर आईएफएस बने
- पी बालामुरुगन ने संघर्ष का हर दौर देखा, उनकी पूरी कहानी हर युवा के लिए एक प्रेरणा है और किसी के भी सोचने का नजरिया बदल सकती है
- बालामुरुगन के जीवन में न जाने कितनी बार निराशा और हताशा के बादल छाए, लेकिन उनकी फितरत थी कि कभी हार नहीं मानना है!
- 2019 बैच के आईएफएस अधिकारी पी बालामुरुगन
हरिवंश राय बच्चन की एक मशहूर कविता है- तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।” इस कविता में उन्होंने भाव दिया है कि कितनी कठिन भी हो डगर, बढ़ना है, बढ़ते ही रहना है, चाहे पथ में कितने शूल हों, चलना है, चलते ही रहना है। 2019 बैच के आईएफएस अधिकारी पी बालामुरुगन के संघर्षों की कहानी जानकर लगता है कि जैसे उन्होंने इसी कविता से ही प्रेरणा ली हो। 7 भाई-बहनों का परिवार, फूस का मकान, पिता का साया नहीं और ऊपर से आर्थिक तंगी बेहिसाब, ऐसी स्थिति में अधिकतर लोग शायद बड़े ख्वाब देखने का भी साहस नहीं जुटा पाते हैं। लेकिन कहावत है कि कोई भी किला अभेद नहीं होता, बशर्ते भेदने की रणनीति अचूक हो। बालमुरुगन ने भी वही किया, पौराणिक फीनिक्स पक्षी की तरह राख के ढेर से उठ खड़े हुए और अग्निपथ पथ पर चलते हुए अप्रतिम सफलता हासिल की।
वर्तमान में राजस्थान के जैसलमेर में सहायक वन संरक्षक (एसीएफ), वाइल्डलाइफ के पद पर तैनात बालामुरुगन ने यूपीएससी के लिए 3 प्रयास दिए। पहले प्रयास में उनका प्री निकला, लेकिन वो इंटरव्यू तक नहीं पहुंचे। दूसरे प्रयास में इंटरव्यू तक पहुंचे, लेकिन अंतिम परिणाम उनके पक्ष में नहीं रहे। पर 2018 में अपने तीसरे प्रयास में सारे संघर्षों को अंजाम तक पहुंचाते हुए उन्होंने यूपीएससी पास किया और आईएफएस अधिकारी बने। इंडियन मास्टरमाइण्ड्स के साथ अपने संघर्षों पर बालामुरुगन ने एक खास बातचीत की है। वो कहते हैं, “यूपीएससी की तैयारी करने वालों का उद्देश्य जनसेवा होना चाहिए, एलबीएसएनएए नहीं। यूपीएससी तो सिर्फ उस लक्ष्य को प्राप्त करने का एक तरीका भर है। उम्मीदवारों को अपने मन में यह बात रखनी चाहिए और अगर वे परीक्षा में असफल भी हो जाते हैं, तो उन्हें पूरी तरह से निराश नहीं होना चाहिए।“
शुरुआत
बालामुरुगन तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के रहने वाले हैं। वो 7 भाई-बहन हैं। उनके पिता बहुत पहले उनके परिवार को छोड़ कर चले गए थे, इसलिए उनकी मां ने ही पूरे परिवार की देखभाल की। उनके माता-पिता मूल रूप से सेलम के रहने वाले थे, लेकिन शादी के बाद चेन्नई आकर एक किराए के घर पे रहने लगे। इस बीच उनके शराबी पिता ने उनके परिवार को भी छोड़ दिया। बाद में भविष्य को ध्यान में रखते हुए उनकी मां ने शादी के वक्त मिले अपने गहने बेचकर चेन्नई के पास ही बाहरी इलाके में जमीन खरीदी। उसी जमीन पर फूस का मकान बनाकर पूरा परिवार 2012 तक रहता था। बालामुरुगन की मां किसी भी कीमत पर अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती थीं। इसलिए उनकी शिक्षा के लिए उन्होंने वो सब किया जो वो कर सकती थी।
अखबार पढ़ा और बेचा भी
बालामुरुगन अपने बचपन की कहानी बताते हुए कहते हैं, “मेरी शुरुआत से एक आदत थी, अखबार पढ़ने की। लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं होते थे कि मैं अखबार खरीद सकूं। उसी समय मेरा एक दोस्त था जो अखबार बांटता था। उसने मुझे अपने साथ काम करने के लिए कहा, जहां मैं अखबार भी पढ़ सकता था और मुझे 300 रुपए भी मिलते। यह मेरे लिए एक अच्छा मौका था। सच कहूं तो शायद मेरी यूपीएससी यात्रा वहीं से शुरू हुई, क्योंकि अखबार पढ़ते रहने के बाद आप बहुत कुछ जानने लगते हैं। वहीं से मुझे देश-दुनिया से लेकर सब कुछ पता चलने लगा। धीरे-धीरे मैंने कंपटीशन की मैगजीन पढ़ना भी शुरू कर दिया।”
शिक्षा
12 वीं की पढ़ाई के बाद बालामुरुगन ने अन्ना विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालजी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में बीई किया है। यह वही कॉलेज है, जहां से भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक ए पी जे अब्दुल कलाम ने शिक्षा ली थी। कलाम बालामुरुगन की प्रेरणा भी हैं। 2012 में इंजीनियरिंग करने के बाद बालामुरुगन को तुरंत भारत की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी टीसीएस में नौकरी मिल गयी। बालामुरुगन ने टीसीएस में चेन्नई में ही 2 साल काम किया। उसके बाद उन्हें बाहर जाने का एक मौका मिला सिडनी और वो सिडनी, ऑस्ट्रेलिया चले गए। सिडनी में 2 साल काम करने के बाद बालामुरुगन ने अपनी पुरानी ख्वाहिश जो शायद मन के किसी कोने में अब भी कहीं दबी थी, यूपीएससी का मन बना लिया। जब उन्हें लगा कि उन्होंने खुद के, और अपने परिवार के लिए पर्याप्त सेविंग कर ली है, तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी और भारत वापस आ गए। लेकिन उस वक्त यूपीएससी की तैयारी के बारे में उन्हें इतना नहीं पता था, क्योंकि उनकी पढ़ाई सालों पहले छूट चुकी थी। इसलिए उन्होंने कोचिंग जॉइन कर ली।
यूपीएससी के लिए प्रेरणा
यूपीएससी के लिए प्रेरणा कहां से मिली? इस सवाल पर बालामुरुगन कहते हैं, “मेरी पढ़ने की आदत बचपन से ही थी, इसलिए मेरे मन में कहीं था कि मैं ये कर सकता हूं। दूसरे, मेरी मां चाहती थीं कि परिवार से कोई सिविल सेवा में जाए। इसलिए ये ख्वाब टीसीएस में नौकरी करते हुए या सिडनी जाने के बाद भी मेरे मन में कहीं न कहीं अंदर बैठा हुआ था। मां कहा करती थीं कि तुम इतना अखबार पढ़ते हो तो तैयारी क्यों नहीं करते। इसलिए जब मुझे लगा कि अब स्थिति सही है, तो मैंने मन बना लिया। इसके साथ ही साल 2013 में मेरे यहां एक घटना हुई थी। कुछ लोग एक सड़क पर अतिक्रमण करने की कोशिश कर रहे थे। उस वक्त मैंने शिकायत की, वहां एक लेडी ऑफिसर थीं जो बहुत डायनामिक थीं। मेरी शिकायत पर फौरन कारवाई हुई और अतिक्रमण हट गया। तब मुझे लगा कि सिविल सेवा से बहुत कुछ बदला जा सकता है।”
यूपीएससी की तैयारी और सुझाव
बालामुरुगन साफ कहते हैं कि देखिए यूपीएससी की तैयारी बहुत दर्द देती है। इसलिए आपको तैयार रहना होगा। लेकिन एक सबसे बड़ी बात कि हमेशा प्लान बी रखिए। यूपीएससी को वैयक्तिकता (व्यक्ति की अपनी विशेषता-Individuality) चाहिए, बहुत डायनामिक लोग चाहिए। लेकिन जिस वक्त आप किसी चीज से जुड़ जाते हैं, तो आपकी वैयक्तिकता खत्म हो जाती है। यूपीएससी को ये नहीं चाहिए।
वो आगे बताते हैं कि तैयारी में आप अपना 100 फीसदी दीजिये। गंभीरता से पढ़ते रहिए। चुनौतियों के लिए हमेशा तैयार रहिए। अगर आप पहले प्रयास में फेल हुए तो शायद लोग कुछ न कहें, पर दूसरे में फेल होते ही लोग आप पर शंका करने लगेंगे। तीसरी बार में तो आपके सामने ही आप पर ताना मारेंगे कि यूपीएससी आपके लिए है ही नहीं। पर आपको कभी भी निराश होकर घबराना नहीं है। खुद पर भरोसा रखना है। छोड़िए मत, लगे रहिए। हार नहीं माननी है। बस खुद को भरोसा दीजिये कि आप यूपीएससी पास कर लेंगे और मेहनत से लगे रहिए। मेरा वैकल्पिक विषय यूपीएससी के लिए लोक प्रशासन और फॉरेस्ट की परीक्षा के लिए वानिकी और जूलॉजी था।
संघर्ष और उतार-चढ़ाव जीवन का हिसा
बालामुरुगन अपनी बातचीत के आखिर में एक बहुत जरूरी मशविरा देते हुए कहते हैं, “यूपीएससी की यात्रा हमेशा उतार-चढ़ाव से भरी होती है। आप हमेशा खुशियां नहीं पाते और आप हमेशा दुखी भी नहीं होते। बिलकुल यही मेरी कहानी है और शायद सबकी भी। जीवन में मैंने यही सीखा है कि अगर आप कुछ पाना चाहते हैं तो उसके लिए अपना सौ फीसदी देते हुए कड़ी मेहनत कीजिये। बड़े लक्ष्यों के लिए बड़ी लड़ाई भी लड़नी पड़ती है। यह याद रखिए, और बस हार मत मानिए।”
END OF THE ARTICLE