दिव्यांग जनों का अपना ‘कैफे एबल’: आईएएस अधिकारी जिनका काम सीधे दिल में उतरता है
- Pallavi Priya
- Published on 22 Oct 2021, 9:02 am IST
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हाइलाइट्स
- दिव्यांग जनों द्वारा संचालित एक कैफे, वह भी एक जिला कलेक्ट्रेट के अंदर! है न शानदार सोच!
- यह संभव हो पाया, क्योंकि एक आईएएस अधिकारी ने एक अनूठे आइडिया को लागू करने का फैसला किया।
- कैफे की पहली सालगिरह पर जश्न
मशहूर शायर बशीर बद्र ने लिखा है, “हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम हैं, जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा।” कुछ हुनरमंद लोग किसी समस्या से निजात दिलाने के लिए अपने रचनात्मक दृष्टिकोण से समाज पर एक ऐसी छाप छोड़ते छोड़ने हैं कि हर किसी का दिल जीत लेते हैं। तमिलनाडु कैडर के आईएएस अधिकारी संदीप नंदूरी ऐसे ही एक व्यक्ति हैं, जो सामने आई समस्याओं का इतने रचनात्मक तरीके से हल निकालते हैं कि बशीर साहब की लिखी पंक्तियां बरबस ही जहन में आ जाती हैं। अपने व्यस्त पेशेवर जीवन के बीच, प्रशासनिक जिम्मेदारियों के बोझ तले उन्होंने कुछ शानदार तरीके से अलग किया है।
वर्तमान में ‘निदेशक पर्यटन एवं प्रबंध निदेशक तमिलनाडु पर्यटन विकास निगम’ आईएएस संदीप नंदूरी जब तमिलनाडु के तूतुकुड़ी (तूतीकोरिन) जिले के कलेक्टर थे, तब उन्होंने बारह दिव्यांग व्यक्तियों के साथ एक खास कैफे शुरू किया है। ‘कैफे एबल’ नाम की इस व्यावसायिक पहल ने इन लोगों को एक नया विश्वास दिया और उनके लिए आजीविका का एक प्रभावी और स्थायी साधन सुनिश्चित किया।
नंदूरी के प्रयास अधिक सार्थक इसीलिए भी हो जाते हैं क्योंकि आमतौर पर समाज द्वारा उपेक्षित दिव्यांगों को उन्होंने मुख्यधारा में वापस लाने के लिए एक बेहतरीन कदम उठाया है। 2009 बैच के एक आईएएस अधिकारी संदीप नंदूरी इंजीनियरिंग स्नातक और आईआईएम बैंगलोर से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर हैं। एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में एक दशक लंबे करियर में, उन्होंने तमिलनाडु के तूतीकोरिन और तिरुवनमलाई जिले के कलेक्टर, मदुरै निगम के आयुक्त, चेन्नई मेट्रो आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड के कार्यकारी निदेशक, जिला ग्रामीण विकास एजेंसी, सलेम के परियोजना अधिकारी और होसुर के उप-कलेक्टर (भूमि राजस्व और आपदा प्रबंधन) के रूप में कार्य किया है।
कैफे एबल: द बिगिनिंग
जिला कलेक्टर होने के नाते संदीप दिव्यांग जनों से बहुत सारे नौकरी के आवेदन प्राप्त करते थे। हालांकि सभी के लिए एक नौकरी खोजना संभव नहीं था और इससे वह परेशान हो जाते थे। वह वास्तव में उनकी मदद करना चाहता थे। एक दिन उन्होंने विचार किया कि हर दिन सैकड़ों लोग जिला कलेक्ट्रेट आते हैं और वहां घंटों इंतजार करते हैं, तो क्यों न एक ऐसा विशेष सामूहिक स्थल बनाया जाए जहां ये लोग बैठ सकें और इससे अलग-अलग लोगों के लिए नौकरी का अवसर भी पैदा होगा। आखिरकार वह एक रचनात्मक बिजनेस आइडिया के साथ सामने आए।
बहुत जल्द उन्होंने दिव्यांग जनों का एक स्वयं-सहायता समूह बनाया और एक कैफे का निर्माण शुरू कर दिया।
हालांकि चीजें इतनी आसान भी नहीं थीं। समूह को जिला कलेक्ट्रेट परिसर में ही कैफे शुरू करने के लिए जगह तो मिल गई थी, लेकिन यह अपने आप में पर्याप्त नहीं था। उन्हें धन और प्रशिक्षण की भी आवश्यकता थी। लेकिन जैसा कि कहा गया है, दृढ़-संकल्प और कड़ी मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती है।
इस अनूठी पहल के बारे में इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए नंदूरी कहते हैं, “जब मैं इस विचार के साथ आया था, तो मुझे पता था कि हमें इन चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा। कैफे के निर्माण से लेकर बिजली के उपकरण और कैफे के आंतरिक काम को संचालित करने तक के लिए, हमें बहुत सारे पैसे की जरूरत थी।”
“शुरुआती योजना के बाद, मैंने विश्लेषण किया कि हमें कैफे की स्थापना और कर्मचारियों के प्रशिक्षण के लिए कम से कम 30 लाख रुपये की आवश्यकता है। सीएसआर फंड का उपयोग करना एकमात्र तरीका था। हमने तीन अलग-अलग कंपनियों से फंड प्राप्त किया। हमने खुद से कोशिश करके जिला कलेक्ट्रेट से भी कुछ पैसे जुटाए। इससे हमारी वित्तीय चिंताएं तो बहुत हद तक हल हो गईं और कैफे को एक सटीक शुरुआत मिल गई।”
‘आईएएस संदीप नंदूरी’
कैफे की टीम
वित्तीय मुद्दों को हल करने के बाद, नंदूरी ने टीम के सदस्यों के चयन पर ध्यान देना शुरू किया। वो कहते हैं, “यह स्पष्ट था कि हर दिव्यांग जन कैफे में कुशलता से काम नहीं कर सकता। इसलिए हमे उन्हें बुद्धिमानी से चयन करना था। यह कठिन था क्योंकि हमें उन्हें प्रशिक्षित भी करना था। अंत में हमने उन 11 लोगों को शॉर्टलिस्ट किया, जो अब इस कैफे को चला रहे हैं। मुझे यह कहते हुए बहुत खुशी हो रही है कि वे जिस तरह से काम करते हैं और ग्राहकों की सेवा करते हैं, वह उल्लेखनीय है। आपको वहां सबसे अच्छी सेवा मिलेगी।”
‘कैफे एबल’ की टीम में 11 सदस्य हैं। उनमें से ज्यादातर को ‘मोटर से संबंधित विकलांगता’ है।
उनके प्रशिक्षण के लिए, नंदूरी ने राजापलायम में ऑस्कर होटल मैनेजमेंट कॉलेज के साथ मिलकर काम शुरू किया। सभी सदस्यों को 45-दिवसीय प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में दाखिला दिया गया, जहां उन्होंने खाना बनाना, कैटरिंग और बेकिंग सीखा। उन्हें यह भी सिखाया गया कि ग्राहकों के साथ कैसे व्यवहार करना है, किसी संकट के समय क्या करना है, वित्तीय प्रबंधन कैसे करना है इत्यादि। इस बीच, कैफे का निर्माण भी हो गया।
कैफे का प्रबंधन करने वाले कन्नन कहते हैं, “जब नंदूरी सर ने इस विचार का प्रस्ताव रखा, तो मैं खुशी और उनके लिए सम्मान से भर गया। वह इसे लागू करने के लिए हर संभव तरीके से काम कर रहे थे। मैंने उनके जैसा कोई अधिकारी नहीं देखा। यह हमारे लिए बिल्कुल नई चीज थी लेकिन उन्होंने हमारा समर्थन किया और शून्य से शुरू होकर इस कैफे का निर्माण किया। जब भी वह हमारे कैफे में भीड़ देखते हैं, तो मैं उनके चेहरे की खुशी साफ देख सकता हूं।”
कन्नन ने टीम के अन्य सदस्यों के बारे में भी जानकारी साझा की। कैफे में सेल्वा पार्वती, वनजा और महालक्ष्मी रसोइया हैं, विग्लेश उन्हें खाने की तैयारी और अन्य सामान में मदद करते हैं। सभी मिलकर खूब स्वादिष्ट भोजन तैयार करते हैं, जो अब इस कैफे की पहचान बन गया है। वे उचित दरों पर स्वादिष्ट दक्षिण भारतीय नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना, गर्म पेय और जूस आदि परोसते हैं। सतीश कुमार कैशियर हैं, जबकि जेसुराजा, एंथनी, मणिकंदन, लक्ष्मणन और विकनेश्वरन खाना परोसने में मदद करते हैं।
जनता के बीच लोकप्रिय
7 जुलाई 2019 को ‘कैफे एबल’ जनता के लिए खोला गया था। यह नवीनतम किचन और बेकिंग उपकरणों से सुसज्जित है। चूंकि यह कलेक्ट्रेट के ठीक सामने स्थित है, लोगों का काफी ध्यान आकर्षित करता है। यहां प्रतिदिन औसतन 150 से 200 लोगों को खाना परोसा जाता है। आईएएस अधिकारी कैफे में जाने के लिए कलेक्ट्रेट के कर्मचारी सदस्यों को भी प्रोत्साहित करते हैं। वह खुद वहां से स्टाफ मीटिंग के लिए खाना मंगवाते हैं।
साल भर के प्रयासों के बाद, कैफे अब अच्छी कमाई कर रहा है। इसने स्टाफ सदस्यों को कुछ वित्तीय स्थिरता देना भी शुरू कर दिया है।
नंदूरी कहते हैं, “मैं सिर्फ इन लोगों को एक अवसर प्रदान करना चाहता था, जहां वे गर्व के साथ काम कर सकें। मैं भाग्यशाली था कि एक अच्छे विचार ने मेरे दिमाग में पनाह ली और मैं उसे लागू कर सका। मुख्य चुनौती कैफे का निर्माण और कर्मचारियों का प्रशिक्षण था। उसके बाद से कैफे की स्टीयरिंग व्हील उनके हाथों में है और वे इसे पूरी ऊर्जा के साथ चला रहे हैं। अब मैं उनके काम में दखल नहीं देता। मेरे सहित अधिकांश कर्मचारी अक्सर दोपहर का भोजन कैफे में ही करते हैं।”
यह रचनात्मकता का एक बेहतरीन उदाहरण है जिसे बेहतर उपयोग के लिए लाया गया। संदीप नंदूरी जैसे हुनरमंद लोग… ऐसे ही तो काम करते हैं, यही तो नौकरशाहों से उम्मीद की जाती है कि वो समस्या को अपने तरीके से हल कर आम जनता को राहत दें।
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