पहले डॉक्टर बनी फिर आईएएस, कहानी उस यूपीएससी टॉपर अधिकारी की जो वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक मसीहा बन गई
- Bhakti Kothari
- Published on 27 Nov 2021, 10:15 am IST
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हाइलाइट्स
- चिकित्सक बनने से शुरू हुई एक यात्रा सिविल सेवक बनने तक पहुंच गई, लेकिन कैसे?
- आईएएस अधिकारी डॉ. रेणु ने एक गैर-परंपरागत रास्ते से होते हुए पहले तो सफलता के शीर्ष मुकाम को छुआ, फिर खुद को समाज की भलाई के लिए समर्पित कर दिया।
- डॉ. रेणु राज आई.ए.एस.
साल 2015 में जब इतनी बड़ी सफलता ने डॉ. रेणु राज के कदम चूमे, तो यह केरल राज्य और उनके परिवार के लिए गौरवान्वित होने के क्षण थे। लेकिन रेणु ने कभी सोचा भी नहीं था कि सिर्फ 27 साल की उम्र में उनका सपना जब पूरा होगा, तो वह इतनी प्रशंसा और प्रसिद्धि लेकर आएगा। भारत की सबसे कठिन और प्रतिष्ठित परीक्षा यूपीएससी में टॉप करते हुए उन्होंने देश भर में दूसरा स्थान अर्जित किया था, वह भी अपने पहले ही प्रयास में!
पहले ही प्रयास में इस तरह की सफलता वास्तव में हैरान कर देने वाली थी। डॉ. रेणु ने कोट्टायम मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया था और अपनी पेशेवर जिंदगी में प्रवेश करते हुए प्रैक्टिस शुरू करने वाली थी, लेकिन तभी उन्हें एहसास हुआ कि वह जीवन में कुछ बेहतर करना चाहती हैं। वह कुछ और अधिक पाना चाहती हैं, जिससे समाज को वो और बड़े पैमाने पर बहुत कुछ दे सकेंगी। उनके माता-पिता वी. एन. लाथा और राजकुमार नायर हमेशा से चाहते थे कि वो एक सफल डॉक्टर बनें, लेकिन जब उन्हें उनके सिविल सेवाओं की तैयारी के फैसले के बारे में पता चला, तो वे और अधिक रोमांचित हो गए। इस तरह, डॉ. रेणु राज की एक सिविल सेवक की यात्रा शुरू हुई।
प्रेरणा और तैयारी
जब वह हाई स्कूल में थी, उन्होंने अपने पिता को एक आईएएस अधिकारी से मिलाने के लिए कहा था। और उस मुलाकात ने उनका दुनिया को लेकर दृष्टिकोण ही बदल दिया। उसके बाद, डॉ. रेणु ने भविष्य में यूपीएससी की तैयारी करने की अपनी इच्छा के बारे में अपने माता-पिता को बताया और उन्होंने भी उस वक्त तुरंत उनके फैसले का समर्थन किया।
यह बात भी काफी रोचक है कि मेडिकल डिग्री होने के बावजूद, डॉ. रेणु ने मलयालम भाषा को सिविल सेवा परीक्षा के लिए अपने वैकल्पिक विषय के रूप में चुना।
वो याद करती हैं, “मैं चिकित्सा के महान पेशे का सम्मान करती हूं। लेकिन जब मैं अस्पताल में आने जाने वाले अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोगों से मिली और उनकी बीमारियों से रूबरू हुई, तो उनकी पृष्ठभूमि, रहन-सहन, उनके बुनियादी अधिकारों तक पहुंच आदि के बारे में रुचि बढ़ी। मुझे लगा कि बजाय चिकित्सा क्षेत्र के मैं एक सिविल सेवक के रूप में उनके लिए बहुत कुछ कर सकती हूं। और इसलिए, मैंने अपने दिल की सुनने और अपने बचपन के सपनों का पीछा करने का फैसला किया।”
अपनी इंटर्नशिप पूरी करने के बाद, डॉ. रेणु तिरुवनंतपुरम चली गईं और यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के लिए अपना एक पूरा साल समर्पित कर दिया। हालांकि, परिणाम आने तक वह एक अंशकालिक (पार्ट-टाइम) डॉक्टर के रूप में काम करती रहीं।
वो कहती हैं, “शुरुआत में, तैयारी शुरू करने वाले अधिकतर उम्मीदवारों की तरह मैं भी हर जगह थी और उलझन में रहती थी। मैंने अपने प्रीलिम्स और मेन्स के लिए एक साथ पढ़ाई शुरू की। शुरू में, मैंने परिणाम पर बहुत अधिक जोर नहीं दिया, क्योंकि मुझे पता था कि अगर मैं सफल नहीं होती हूं तो भी मेरे पास एक पेशेवर डिग्री है। इसके अलावा, मैंने बहुत सी परीक्षाओं की तैयारी नहीं की, मैंने अपनी आंखें अपने एक मात्र गोल पर लगा रखी थीं और उसी को लेकर मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिया।”
अधिकतर लोगों की तरह ही अपने पहले प्रयास के बारे में अनिश्चित होने के नाते, उन्होंने भी अपने दूसरे प्रयास के लिए तैयारी शुरू कर फॉर्म भर दिया। लेकिन जब पहले प्रयास का परिणाम आया, तो उन्हें उनके जीवन का सबसे बड़ा सुखद आश्चर्य मिला। उन्होंने देश भर में दूसरी रैंक हासिल करते हुए राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी। वह इस अपार सफलता का श्रेय अपने परिवार के हर कदम पर समर्थन को देती हैं।
वो कहती हैं, “मेरे माता-पिता मेरे सबसे बड़े हिमायती रहे हैं। उन्होंने मुझे तिरुवनंतपुरम भी स्थानांतरित कर दिया, जिससे कि मैं आवास और भोजन पर समय बर्बाद नहीं करूं और पूरी तरह से अपनी तैयारी पर ध्यान दे सकूं।”
उन्होंने अपनी अकादमी प्रशिक्षण के लिए एलबीएसएनएए में जाने से पहले 10 महीने तक कोच्चि में प्रशिक्षण लिया। त्रिशूर में उन्हें अपनी पहली स्वतंत्र नियुक्ति मिली।
एक युवा नौकरशाह के रूप में जीवन
नौकरशाह बनने के बाद, डॉ. रेणु ने महसूस किया कि उन्होंने जिस तरह की कल्पना की थी, यह उससे कहीं अधिक बड़ी जिम्मेदारी थी। वो कहती हैं, “जब हम व्यवस्था से बाहर होते हैं, तो हम अक्सर सोचते हैं कि नौकरशाहों के लिए यह आसान है कि वे जो भी करना चाहते हैं कर सकते हैं, अपनी शक्ति का लाभ उठाएं या बदलाव ले आएं। हालांकि, यह सच है कि आप बदलाव ला सकते हैं, लेकिन आपको यह भी समझना होगा कि आप एक ऐसी प्रणाली या सिस्टम में प्रवेश कर रहे हैं जो वर्षों से अस्तित्व में है। और परिवर्तन आता है या लाया जा सकता है, लेकिन केवल एक प्रक्रिया के तहत उसका पालन करते हुए। सिर्फ चुटकी बजते हुए सब कुछ बदलने वाली अवधारणा सही नहीं है। इसके लिए बहुत काम और फोकस की जरूरत होती है।”
बुजुर्गों को बचाना
एक दिन कुछ मामलों और सर्वेक्षणों से गुजरने के दौरान, उन्हें एहसास हुआ कि हर महीने 35-40 ऐसे मामले मिलते हैं, जहां युवा लोग अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रम, अस्पतालों या मंदिरों में छोड़ देते हैं। जबकि 2008 का ‘वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम’ भले ही सभी राज्यों में लागू है, लेकिन इसका अनुपालन शायद ही कहीं किया गया हो। इसलिए, उन्होंने दस सुलह अधिकारियों के साथ मिलकर एक टीम बनाई।
डॉ रेणु कहती हैं, “हम कई मामलों को सुलझा सकते हैं। कुछ में, हम बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करने के लिए बच्चों को मनाने में कामयाब रहे और जहां ऐसा नहीं हो पाया, वहां उनकी देखभाल के लिए प्रति माह 10,000 रुपये तक का भुगतान करने के लिए कहा गया। ऐसे मामलों में जहां बच्चे अभी भी असहमत थे, लेकिन अपने माता-पिता से जमीन का मालिकाना हक प्राप्त कर चुके थे, हमने उनसे स्वामित्व वापस ले लिया।”
एक बार, उन्हें जानकारी मिली कि त्रिशूर में एक बिना लाइसेंस के चल रहा वृद्धाश्रम, बुजुर्गों से बिना रसीद के पैसे ऐंठ रहा था। बुजुर्गों को कोई उचित सुविधा भी नहीं दी जा रही थी। वृद्धाश्रम में बिना किसी सुविधाओं के तंगहाल गंदे कमरों में बुजुर्ग रह रहे थे। डॉ. रेणु राज ने उसी वक्त परिसर में छापा मारा।
रेणु कहती हैं, “हमें बताया गया कि बुजुर्ग व्यक्तियों को एक कमरे के अंदर बंद कर दिया गया था। डिमेंशिया और इसी तरह की अन्य स्थितियों से पीड़ित बिस्तर पर पड़े हुए इन बुजुर्गों को उचित भोजन भी नहीं दिया जाता था। जब हमने परिसर में छापा मारा, तो हमें एक पुरुष और दो महिलाएं मिलीं, जिनमें से दो के पास कोई दस्तावेज नहीं था। हमने उन्हें बचाया और घर को सील कर दिया। बुजुर्गों को तब सरकार द्वारा संचालित आश्रम में भेजा गया।”
सबसे अच्छी बात यह थी कि वे उनके बच्चों को ढूंढने में कामयाब रहे। साथ ही, उन्हें अपने माता-पिता को घर ले जाने और उन्हें सुरक्षित और घर के वातावरण में रखने के लिए मनाने में भी सफल रहे। वो कहती हैं, “हमने उनसे कोई लड़ाई यह बहस नहीं की। बस इतना कहा कि अगर वे उनकी देखभाल पर जितना भी पैसा खर्च कर रहे थे, यह उन्हें अपने घर पर ही घरेलू माहौल देते हुए किसी केयरटेकर (देख-भाल करने वाला) को काम पर रखकर भी किया जा सकता है और देखभाल की जा सकती है। इसके बाद, बुजुर्गों को घर ले जाया गया और उन्होंने हमें धन्यवाद दिया। यह बहुत भावुक पल था।”
अपने कार्यकाल के तहत, उन्होंने एक विशाल मेडिकल कैंप भी बनाया। यह कैंप अमृता अस्पताल के सहयोग से बना था। इस कैंप के तहत, उन्होंने वरिष्ठ नागरिकों को मौके पर ही मुफ्त उपचार प्रदान किया और बाद में 250 मुफ्त सर्जरी की। कैंप में लगभग 2,000 वरिष्ठ नागरिक आए और यह एक बड़ी सफलता बन गया।
अन्य सफलताएं
डॉ. रेणु राज एक युवा और ऊर्जावान नौकरशाह हैं, जो एक सिविल सेवक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के अदम्य साहस के लिए जानी जाती हैं। वह क्षेत्र की पहली महिला अधिकारी हैं। उन्होंने अकेले ही देवीकुलम जिले में खनन माफिया पर कार्रवाई करने का बीड़ा उठाया। कई धमकियां मिलने के बाद भी, वह मजबूत बनी रहीं और अवैध रूप से काम कर रही खदानों को बंद कराकर ही दम लिया।
डॉ. रेणु राज की शक्ति और अखंडता नए भारत का प्रतीक है। ‘इंडियन मास्टरमाइंड्स’ उन्हें बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता है और उम्मीद करता है कि वो ऐसे ही समाज की भलाई के लिए काम करती रहेंगी।
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