अनाथालय में पले-बढ़े अब्दुल नासर की कहानी जो एक अधिकारी से प्रेरणा लेकर बन गए आईएएस!
- Raghav Goyal
- Published on 5 Nov 2021, 5:15 pm IST
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हाइलाइट्स
- अपनी पूरी ताकत और दृढ़-संकल्प के साथ संघर्ष करना और परिस्थितियों से हर वक्त लड़ना...!
- एक अनाथालय में पले-बढ़े युवा अब्दुल नासर के जीवन का यही सार है, जिसकी परिणति आईएएस बनने की सफलता है।
- आईएएस अधिकारी बी अब्दुल नासर (फोटो क्रेडिट: सोशल मीडिया)
हर साल यूपीएससी रिजल्ट की घोषणा के साथ ही कई ऐसी कहानियां उभर कर सामने आती हैं जो उम्मीदवारों के अथाह वास्तविक संघर्षों को दर्शाती हैं। यह कहानियां न केवल उनके परीक्षा की तैयारी और उनके प्रयासों की अथक मेहनत और संघर्ष को दिखाती हैं, बल्कि उनके जीवन के शुरुआती दौर की जद्दोजहद और कटु अनुभवों को भी सामने लाती हैं। यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है, केरल कैडर के एक आईएएस अधिकारी पांच साल की उम्र में अनाथ हो गए थे और उसके बाद जीवन के 13 साल एक अनाथालय में बिताए। लेकिन अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने अपनी जिंदगी बदली और अब केरल के कोल्लम में एक जिला कलेक्टर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
भारत के सुदूर दक्षिणी और मनोरम राज्य केरल के थालास्सेरी शहर से आने वाले बयइल अब्दुल नासर सिर्फ पांच साल के थे, जब उनके पिता का निधन हो गया था और उनकी मां मनहुम्मा पर अचानक से अपने छह बच्चों के पालन-पोषण के मुश्किल जिम्मेदारी आ गई थी। लेकिन उनकी मां हमेशा से अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अच्छी शिक्षा प्रदान करना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने परिवार के बुनियादी खर्च और जरूरतों को वहन करने के लिए आस-पास के विभिन्न घरों में काम करना शुरू कर दिया।
लेकिन फिर भी एकल (सिंगल) माता-पिता होने के नाते, छह बच्चों को पालने की जिम्मेदारी उनकी मां के लिए काफी मुश्किल हो रही थी। इसलिए अपने रिश्तेदारों से सलाह लेने के बाद, उन्होंने अपने सबसे छोटे अब्दुल को थालास्सेरी में दारुस्सलाम नामक एक स्थानीय अनाथालय में भेजने का बेहद कठिन फैसला किया। जरा सोचकर देखिये कि एक मां और उस वक्त क्या गुजर रही होगी, जब गरीबी की वजह से उसे अपने सबसे छोटे बच्चे को अनाथालय भेजना पड़ रहा हो! लेकिन शायद यही जिंदगी है।
अब्दुल नासर एक साक्षात्कार में मीडिया से बात करते हुए कहते हैं, “हम अत्यधिक गरीबी का सामना कर रहे थे। मेरी मां पूरे परिवार में कमाने वाली अकेली थीं। हमारे लिए यह बहुत कठिन समय था और ‘अम्मा’ परिवार की सबसे बड़ी सहायक और प्रेरणा थीं।”
13 साल तक अनाथालय में रहे
अब्दुल नासर का बचपन कभी खुशहाल नहीं रहा, शायद इसकी वजह उनके अनाथालय में बिताए गए वो साल-दर-साल थे जिसमें उन्हें प्यार और देखभाल का माहौल नहीं मिला। इतनी कम उम्र में उन्होंने अपनी मां को अपने भाई-बहनों को जिंदा रखने और भोजन उपलब्ध कराने के लिए संघर्ष करते देखा। हालांकि, केरल के समुदाय-आधारित अनाथालय सिस्टम ने उनके 17 साल के होने तक, यानी 13 साल की अवधि तक सभी कठिनाइयों को दूर करने में मदद की और उन्हें शिक्षा, भोजन और आश्रय प्रदान कराया
शुरूआत में नासर का झुकाव पढ़ाई की तरफ नहीं था और वो बिल्कुल भी शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं थे। कई बार अपनी मां और भाई-बहनों को याद करते हुए, वो अनाथालय से भाग गए। लेकिन हर बार जब वह बाहर निकलते, तो उन्हें याद आता कि अनाथालय से भाग जाने के बाद उनकी मां चिंतित हो जाएंगी। इसलिए, वह फिर लौट आते।
अपनी मां को परिवार के लिए अनवरत काम करते देखते हुए, वो केरल में जहां कहीं भी यात्रा करते, अपने लिए काम ढूंढ लेते थे। वो याद करते हुए कहते हैं, “उस समय 10 साल का होने के नाते, होटल की नौकरियां आसानी से उपलब्ध थीं। मैंने विभिन्न होटलों में आपूर्तिकर्ता और साफ-सफाई वाले के रूप में काम करने का अनुभव हासिल किया।”
आईएएस अधिकारी अमिताभ कांत से मिली प्रेरणा
जब नासर अनाथालय द्वारा संचालित उच्च-प्राथमिक स्कूल में पढ़ रहे थे, तो उस समय उप-कलेक्टर के रूप में पदस्थापित और वर्तमान में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत अनाथालय आए थे। ऐसे युवा आईएएस अधिकारी को देखते हुए, नासर ने भी एक दिन जिला कलेक्टर बनने का ख्वाब बुनना शुरू कर दिया।
कुछ वर्षों बाद, उन्होंने अपनी एसएसएलसी (10 वीं कक्षा) पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे प्रतिष्ठित अनाथालय में स्थानांतरित कर दिये गए। त्रिशूर में वतनापल्ली अनाथालय में स्थानांतरित होने के बाद, उन्होंने अपनी कक्षा 12 की पढ़ाई पूरी की।
अपनी स्कूली पढ़ाई खत्म करने के तुरंत बाद, वो बैंगलोर में ‘हेल्थ इंस्पेक्टर डिप्लोमा’ के एक जॉब-ओरिएंटेड कोर्स में शामिल हो गए, क्योंकि वो उच्च-अध्ययन करने के लिए परिवार पर बोझ नहीं बन सकते थे। हालांकि, बाद में वह अंग्रेजी साहित्य में स्नातक और स्नातकोत्तर करने के लिए अपने मूल स्थान पर वापस आए।
यहां तक कि अंग्रेजी साहित्य में बीए की पढ़ाई करते हुए, उन्होंने छात्रों को ट्यूशन देना, टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में काम करना, और यहां तक कि समाचार पत्र वितरित करके भी कमाई करने की कोशिश की, जिससे कि उन्हें और परिवार को सहारा मिल सके।
पहली सरकारी नौकरी
साल 1994 में, नासर को केरल सरकार के स्वास्थ्य विभाग में स्वास्थ्य निरीक्षक के रूप में अपनी पहली सरकारी नौकरी मिली। स्वास्थ्य विभाग में एक साल की सेवा के बाद, वह उच्च-प्राथमिक शिक्षक के रूप में काम करने के लिए अपने मूल स्थान पर वापस चले गए, लेकिन वह जल्द ही अपने पहले वाली नौकरी पर वापस लौट गए।
कलेक्टर बनने के उद्देश्य से, उन्होंने केरल राज्य सिविल सेवा कार्यकारी (डिप्टी कलेक्टर) पद के लिए आवेदन किया। एक तरफ स्वास्थ्य निरीक्षक के रूप में काम करते हुए, उन्होंने इस परीक्षा की तैयारी भी शुरू कर दी। हालांकि जल्द ही, उन्होंने इन सेवाओं से छुट्टी ले ली, क्योंकि उनकी पत्नी एम.के. रुक्साना भी उनकी सहायता के लिए उनके साथ आ गईं। रुक्साना ने परिवार की देखभाल करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, वह एक स्कूल शिक्षक के रूप में काम कर रही थीं।
नासर राज्य स्तरीय सिविल सेवा परीक्षा को पास करने के लिए पूरी तरह से समर्पित थे और इसकी तैयारी के लिए वो विभिन्न जगहों पर भी गए। उन्होंने 2002 में प्रारंभिक परीक्षा दी और 2004 में मुख्य परीक्षा तक पहुंच गए। वह कुछ उन चुनिंदा उम्मीदवारों में से थे, जिन्हें उस साल साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। और साल 2006 में, आखिरकार वह पल आ गया जिसके लिए नासर अपने बेहद कठिन बचपन से सपने देख रहे थे, उन्हें केरल राज्य सिविल सेवा के लिए चुन लिया गया। उन्हें डिप्टी कलेक्टर के रूप में नियुक्त मिली।
लेकिन नासर की नजर अभी आईएएस बनने के अपने जीवन के सबसे बड़े ख्वाब पर थी और उनका ख्वाबों को फतह करने का पहला कदम अब पूरा हो चुका था। उन्हें वर्ष 2015 के लिए ‘केरल में सर्वश्रेष्ठ डिप्टी कलेक्टर’ नामित किया गया।
साल 2017 में यह अक्टूबर का महिना था, जब कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय ने अब्दुल नासर को आईएएस अब्दुल नासर बना दिया, उन्हें एक आईएएस अधिकारी के पद पर पदोन्नत करने के संबंध में मंत्रालय ने आदेश जारी कर दिया था। उन्होंने पहले केरल सरकार में आवास आयुक्त के रूप में काम किया, फिर उन्हें जुलाई 2019 में केरल के कोल्लम जिले के कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया।
नासर के समर्पण और कड़ी मेहनत की कई लोगों ने सराहना की है, एक अनाथालय में 13 साल तक रहने के बाद आईएएस अधिकारी बनने की उनकी कहानी कई युवा सिविल सेवा उम्मीदवारों के लिए एक बड़ी प्रेरणा का स्त्रोत है।
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