कान्हा से लाए गए 28 गौर अब संजय डुबरी टाइगर रिजर्व में कर रहे जंगल में मंगल
- Jonali Buragohain
- Published on 21 Jul 2023, 10:07 am IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- कान्हा टाइगर रिजर्व से संजय डुबरी टाइगर रिजर्व में लाए गए 28 गौरों को बाड़े से बाहर कर दिया गया है
- 28 हेक्टेयर के बाड़े में उनकी जगह सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से लाए गए 15 गौरों ने ले ली है
- कान्हा के गौर मुक्त होकर घूम रहे हैं और नए परिवेश की खोज कर रहे हैं, यहां तक कि कभी-कभी छत्तीसगढ़ भी पार कर जाते हैं
भारत में सबसे बड़े मेगा-हर्बिवोर ट्रांसलोकेशन में से एक खासकर मौजूदा आबादी की विविधता में सुधार के लिए 28 गौरों को मध्य प्रदेश में कान्हा टाइगर रिजर्व से संजय डुबरी टाइगर रिजर्व में सफलतापूर्वक स्थानांतरित किया गया था। 90 के दशक में गौर के लुप्त होने के बाद संजय डुबरी टाइगर रिजर्व में जानवरों को फिर से आबाद करने के लिए यह स्थानांतरण किया गया था। अंतिम गौर का दस्तावेजीकरण 1997 में यहां किया गया था।
इंडियन मास्टरमाइंड्स ने स्थानांतरण और उन्हें घुलाने-मिलाने के बारे में अधिक जानकारी लेने के लिए कान्हा टाइगर रिजर्व के सीसीएफ और फील्ड डायरेक्टर सुनील कुमार सिंह और संजय डुबरी टाइगर रिजर्व के सीसीएफ और फील्ड डायरेक्टर अमित दुबे से बात की।
संजय डुबरी से गौर क्यों गायब हो गए
कान्हा के फील्ड डायरेक्टर सुनील कुमार सिंह (आईएफएस 2020) के अनुसार, जब मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना, तो संजय टाइगर रिजर्व का 70 प्रतिशत हिस्सा छत्तीसगढ़ में चला गया। चूंकि वह हिस्सा करीब में पड़ता था, इसलिए एमपी की ओर के गौर छत्तीसगढ़ की ओर बढ़ने लगे। ऐसा 1996-97 के आसपास बड़े पैमाने पर हुआ। छत्तीसगढ़ भाग को अब गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व के नाम से जाना जाता है। हालांकि, बांधवगढ़, संजय डुबरी, गुरु घासीदास और पलामू सहित पूरे वन क्षेत्र से गौर धीरे-धीरे गायब होने लगे हैं। हाल तक छत्तीसगढ़ की ओर से छिटपुट प्रमाण मिले थे, जिनमें से अधिकांश अकेले गौर के थे।जहां तक संजय डुबरी टाइगर रिजर्व का सवाल है, तो इसके फील्ड डायरेक्टर अमित दुबे (आईएफएस 2001) ने कहा कि गौर 90 के दशक के अंत तक यहां थे। उसके बाद वे विलुप्त हो गए। उन्होंने विलुप्त होने के लिए कई कारण गिनाए। वह कहते हैं कि अंतिम गौर को 1997 में देखा गया था। वैसे विलुप्त होने के कारणों को वास्तव में कभी सही-सही नहीं बताया जा सका।
बांधवगढ़ में खास खयाल
इससे पहले साल 2013 में कान्हा से जानवरों के स्थानांतरण के साथ बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में गौरों को घुलाने-मिलाने का कार्यक्रम शुरू किया गया था। यह 10 वर्षों में उनकी आबादी को लगभग तीन गुना बढ़ाने के मामले में काफी सफल साबित हुआ। दुबे ने कहा, ‘इसी तरह खोई हुई जैव-विविधता को बहाल करने के लिए संजय डुबरी में गौर को फिर से पेश किया जा रहा है।’
28 गौरों का ट्रांसफर
कान्हा से संजय डुबरी तक 28 गौरों का ट्रांसफर 1 से 7 जून तक किया गया। इनमें 65 लोगों की टीम ने हिस्सा लिया। इनमें वन अधिकारी, पशु चिकित्सक और वन्यजीव विशेषज्ञ शामिल थे। टीम का नेतृत्व राज्य के तत्कालीन मुख्य वन्यजीव वार्डन जसबीर सिंह चौहान ने किया था।
ट्रांसफर के लिए चार वाहनों का उपयोग किया गया था। गौरों को पहले बेहोश किया गया और फिर सावधानी के साथ वाहनों के अंदर रखा गया। कान्हा क्षेत्र निदेशक सुनील कुमार सिंह बताते हैं, ‘एक दिन में केवल 2 से 6 गौर को कान्हा से संजय डुबरी ले जाया जाता था। प्रत्येक वाहन में दो चैंबर होते हैं। आकार के आधार पर हम प्रत्येक वाहन में 3-4 गौर रख सकते हैं। यदि कोई गौर बहुत बड़ा होता, तो हम उसे अकेले के लिए एक चैंबर दे देते और दूसरे में दो छोटे चैंबर रखते। ’
यह ट्रांसफर भीषण गर्मी में तब किया गया था, जब मध्य प्रदेश में लगभग 40-42 डिग्री सेल्सियस का तापमान था। इसलिए वाहनों की छत पर गीले फोम लगाए गए थे और अंदर पंखे और शॉवर लगाए गए थे। ये फुहारें समय-समय पर गौरों पर पानी छिड़कती रहती थीं। यह सब 32-33 डिग्री सेल्सियस के बीच उपयुक्त तापमान बनाए रखने के लिए किया गया था।सिंह ने कहा कि 14-16 घंटे की यात्रा में गौरों के साथ वन्यजीव विशेषज्ञ, वन कर्मचारी और पशु चिकित्सक भी थे। टीम में 12 डॉक्टर थे। तकनीकी सहायता डब्लूयडब्ल्यूआई ने दी थी, जो हमारा भागीदार था। इसके अलावा, जबलपुर में स्कूल ऑफ वाइल्डलाइफ फोरेंसिक एंड हेल्थ के वैज्ञानिकों और पशु चिकित्सकों और एमपी के सभी बाघ अभयारण्यों के वन अधिकारियों ने ऑपरेशन की निगरानी की।
अपने नए घर में पहुंच गए गौर
कान्हा से लाए गए सभी 28 गौर अब संजय डुबरी टाइगर रिजर्व में आजादी से घूम रहे हैं और अपने लिए माहौल बना रहे हैं। उनमें से कुछ कभी-कभी छत्तीसगढ़ की ओर भी चले जाते हैं। संजय डुबरी के फील्ड निदेशक अमित दुबे ने कहा, ‘उन्हें अपनी घरेलू सीमा को पहचानने और बसने में 2-3 महीने और लगेंगे।’हालांकि डॉक्टरों के साथ-साथ वन कर्मचारी भी उनकी सावधानीपूर्वक निगरानी करते हैं। उनमें से कुछ को वीएचएफ (बहुत उच्च आवृत्ति) कॉलर लगाया गया है जबकि कुछ अन्य को रंग कोड वाले कॉलर लगाए गए हैं।
अधिकारी ने समझाया कि या तो वीएचएफ कॉलर से सिग्नल के माध्यम से या दूरबीन के माध्यम से हम झुंडों पर नजर रख सकते हैं। दूरबीन के माध्यम से एक या दो गौर में एक विशेष रंग का कॉलर चुनकर, हम यह पता लगा सकते हैं कि यह कौन-सा झुंड है।संजय डुबरी टाइगर रिजर्व में कान्हा से गौर आए हुए एक माह से अधिक समय हो गया है। उनके आगमन पर, उन्हें करीब से निगरानी के लिए लगभग 15 दिनों तक 28 हेक्टेयर के बाड़े में रखा गया, और फिर परिवेश में स्वतंत्र रूप से घूमने के लिए छोड़ दिया गया।
सतपुड़ा से 15 गौर और आएंगे
हालांकि, बाड़े में अब नए सदस्य हैं। कान्हा गौरों का स्थान सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से लाए गए 15 गौरों ने ले लिया है और अब वे जंगल में छोड़े जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। दुबे के अनुसार ऐसा अब से कुछ दिनों में होने की संभावना है।
END OF THE ARTICLE