जिंदगी बचने की दास्तां: बाघ के अनाथ शावकों को संजय टाइगर रिजर्व में मिली नई मां
- Bhakti Kothari
- Published on 8 Jul 2023, 4:35 am IST
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हाइलाइट्स
- संजय टाइगर रिजर्व में हालिया घटना से लोगों की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े
- अपनी मां को खोने के बाद बाघ के तीन शावक एक अलग बाघिन के पास आ गए, जिसके पहले से बच्चे थे
- नई मां अपने सभी बच्चों से समान रूप से प्यार करती है, वे एक परिवार की तरह साथ रहते हैं
मध्य प्रदेश के सीधी जिले में है- संजय टाइगर रिजर्व। एक समय यह राजसी सफेद बाघों के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता था और इन शाही प्राणियों की एक महत्वपूर्ण आबादी का घर था। हालांकि, ब्रिटिश राज के दौरान कोई ठोस पॉलिसी नहीं होने के कारण क्षेत्र में बाघों की आबादी कम हो गई।
भारत की आजादी के बाद 1972 में वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया गया। इससे बाघों की आबादी बढ़ने की दिशा में आशा की किरण दिखाई दी। प्रोजेक्ट टाइगर के लागू होने से क्षेत्र में बाघों को बचाने के प्रयासों को बढ़ावा मिला। धीरे-धीरे रिजर्व में सुधार जारी रहा। अब इसमें 41 बाघ हैं। इनमें 22 बड़े और 19 शावक शामिल हैं।
हालांकि, यह संख्या क्षेत्र की क्षमता से कम है, जिससे प्रत्येक बाघ का संरक्षण रिजर्व प्रबंधन के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता बन गया है।रिजर्व में एक हालिया निगरानी के दौरान मैनेजमेंट तब हिल गया, जब उन्होंने कुछ बहुत ही दुर्लभ और सुंदर देखा। कुछ अनाथ शावक अनायास ही एक नई मां के पास आ गए, जिसने उन्हें अपने अपना भी लिया। अब पूरा परिवार एक साथ शांति से रहता है।
इस असामान्य घटना को ठीक से समझने के लिए इंडियन मास्टरमाइंड्स ने संजय टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर आईएफएस अधिकारी हरिओम से विशेष बातचीत की।
दुखद हमले
16 मार्च की दुखद रात को रिजर्व के प्रमुख क्षेत्रों में से एक से होकर गुजरने वाले रेलवे ट्रैक के पास एक घायल बाघिन की खबर टाइगर रिजर्व के अधिकारियों तक पहुंची। जब वे पहुंचे, तो उन्हें पता चला कि बाघिन 8 से 9 महीने की उम्र के चार शावकों की मां थी।
दुर्भाग्यवश, वह एक ट्रेन की चपेट में आ गई। इसके कारण उसकी रीढ़ की हड्डी को गंभीर नुकसान पहुंचा। टीम ने उसे बचाया और उसकी देखभाल के लिए पशु चिकित्सकों की एक टीम बुलाई। उनके काफी प्रयासों के बावजूद बाघिन उस शाम मर गई, और अपने बच्चों को पीछे छोड़ गई।
बड़ा झटका और एक जरूरी मिशन
बाघिन और उसके बच्चे रिजर्व अधिकारियों और टूरिस्ट दोनों के लिए परिचित दृश्य थे। एक बाघिन की मौत उस रिजर्व के लिए बड़ा झटका थी, जो अभी भी अपनी अधिकतम बाघ आबादी क्षमता का अहसास करने के लिए काम कर रहा था।
ओम कहते हैं, ‘अब ध्यान चार अनाथ शावकों को बचाने में लग गया। वे खुद की रक्षा करने के लिए बहुत छोटे थे, और मां की सुरक्षा के बिना उनका जीवन लगातार खतरे में था। हमें एक गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ा। जैसे अनाथ बच्चों को उनकी मां की देखभाल और मार्गदर्शन के बिना दुनिया में घूमने के लिए छोड़ दिया गया हो।’
विकल्पों की खोज
रिजर्व अधिकारियों के सामने दो विकल्प थे। सबसे पहले शावकों को शांत करना और पकड़ना था। उन्हें बड़े होने तक एक बाड़े में रखना था। दूसरा, उन्हें जंगल में रहने की अनुमति देना और उनकी प्रगति पर बारीकी से नजर रखना था।चार शावकों को पकड़ना चुनौतीपूर्ण साबित हुआ।
इसलिए उनके वर्तमान निवास स्थान में अनुकूल परिस्थितियों को देखते हुए, प्रकृति भरोसा करते हुए एक महीने तक शावकों का अध्ययन और निगरानी करने का निर्णय लिया गया। पहला विकल्प केवल इमरजेंसी में ही इस्तेमाल होना था।
एक और नुकसान
एक सीनियर अधिकारी की देखरेख में रिजर्व के अनुभवी कर्मियों की एक टीम को चार शावकों की देखरेख के लिए तैयार किया गया था। शुरू में सब कुछ योजना के अनुसार हुआ। शावकों को दैनिक आधार पर देखा और रिपोर्ट किया गया, जिससे उम्मीदों के अनुरूप स्वस्थ व्यवहार देखने को मिला।
हालांकि, 24 मार्च को फिर से ट्रेजडी हो गई, जब एक बड़े बाघ के साथ लड़ाई में एक शावक की मौत हो गई। इससे एक नई बाधा उत्पन्न हो गई, क्योंकि शेष तीन शावकों को शांत करना चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ था। झटके के बावजूद तीनों अनाथ शावकों की तीन हफ्तों तक बारीकी से निगरानी की गई। खुशी की बात यह कि इस दौरान वे स्थिर और स्वस्थ रहे।
चमत्कार सामने आया
अप्रैल के अंत में दो दिनों तक निगरानी टीम तीन शावकों का पता लगाने में असमर्थ रही। तीन दिनों की गहन खोज के बावजूद ये शावक अनदेखे रहे। उनकी अनुपस्थिति आमतौर पर दुर्भाग्यपूर्ण समाचार का संकेत देती है। टीम जब निराश होकर अपने बेस पर लौट रही थी, तभी उन्हें एक अविश्वसनीय चमत्कार का सामना करना पड़ा।फॉरेस्ट रेस्ट हाउस को पार्क के बाहर बस्तियों से जोड़ने वाली सड़क पर उन्हें अद्भुत दृश्य मिला- छह शावकों के साथ एक बाघिन। पहली नजर में यह 8-9 महीने की उम्र के तीन शावकों और 6-7 महीने की उम्र के तीन और शावकों का एक पारिवारिक समूह लगा।
अधिकारी ने इंडियन मास्टरमाइंड्स कहा कि पहला ग्रुप उन अनाथ शावकों के विवरण में फिट बैठता है, जिनकी हम तलाश कर रहे थे। अंतिम नतीजे पर पहुंचने के लिए हमने उनके डेटाबेस को क्रॉस-रेफरेंस किया। इससे पता चला कि बाघिन एक पार्क निवासी थी, और तीन अतिरिक्त शावक उसकी मर गई बहन के बच्चे थे, जो 17 मार्च को ट्रेन की टक्कर में मारी गई थी।
मां की मिसाल
वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट में यह एक असामान्य घटना थी। बाघ अपनी क्षेत्रीय प्रवृत्तियों के लिए जाने जाते हैं, इसलिए एक बाघिन द्वारा दूसरी बाघिन की संतान के पालन-पोषण का भार उठाना असाधारण बात है। इससे पालने वाली बाघिन का तनाव जरूर बढ़ गया, लेकिन सात बाघों का ग्रुप एक साथ बना रहा।
‘निरंतर निगरानी ने इन शानदार प्राणियों की देखभाल और मातृ संबंधी गतिशीलता में नई बात दिखाई। अनाथ शावक धीरे-धीरे अपनी ‘नई’ मां के साथ घुल-मिल गए, जिससे उनके रिश्ते वैसे ही बन गए जैसे अपनी मां के साथ थे। बदले में बाघिन ने दोनों शावकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें समान प्रेम दिखाया।’
खूबसूरत दृश्य
उनके असंभव मिलन के चार महीने बाद सभी सात बाघों को एक साथ देखना शानदार अनुभव बना हुआ है। जंगल में इन शानदार प्राणियों को एक साथ देखने से प्रकृति के साथ गहरा संबंध स्थापित हुआ।एक समय की क्रूर बाघिन के संवेदनशील और समर्पित मां में परिवर्तन ने जानवरों के पोषण की प्रवृत्ति की असाधारण शक्ति को दिखाया है।
अनाथ बाघ शावकों की बाहरी इलाके में एक अप्रत्याशित नई मां की खोज की कहानी इन खूबसूरत जानवरों की दृढ़ता के साथ-साथ प्राकृतिक वातावरण की जटिल गतिशीलता को प्रदर्शित करती है। इन सात बाघों की कहानी प्रकृति की मजबूत भावना और मातृत्व के अटूट बंधन का उदाहरण है।
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