बोले प्रोजेक्ट प्रमुख- कोई बड़ा झटका नहीं है आठ चीतों की मौत
- Sharad Gupta
- Published on 24 Jul 2023, 11:06 am IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- प्रोजेक्ट चीता स्टीयरिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. राजेश गोपाल कहते हैं- बड़ी बिल्ली को इधर-उधर करने में इतनी मौतें होना कोई बड़ी बात नहीं
- चीतों के बच्चों की जीवित रहने की दर केवल 10 प्रतिशत है, इसलिए चार नवजात शावकों में से तीन की मौत चिंताजनक नहीं है
- भारत में पैदा होने वाली चीतों की अगली पीढ़ी में होगी घुलने-मिलने की बेहतर क्षमता और जीने का हुनर
पिछले चार महीनों में आठ चीतों की मौत। इनमें से तीन शावक यानी उनके बच्चे। भारत में उन्हें फिर से बसाने के कार्यक्रम के लिहाज से यह आंकड़ा शायद खतरनाक लग सकता है। खासकर रेडियो-कॉलर से सेप्टीसीमिया होने के कारण एक सप्ताह में दो चीतों की मौत के बाद तो यकीनन ऐसा ही लगेगा। लेकिन, भारत में चीता पुनर्वास यानी रीलोकेशन कार्यक्रम की देखरेख के लिए बनी 11 सदस्यीय संचालन समिति के प्रमुख डॉ. राजेश गोपाल ऐसा नहीं मानते। इतना ही नहीं, उनका दावा है कि चीतों के अस्तित्व को भी कोई खतरा नहीं है।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ लंबी बातचीत में डॉ. गोपाल ने कहा, “रीलोकेशन प्रोग्राम के दौरान इतनी सारी मौतें कोई बड़ी बात नहीं है। मैं इसकी गारंटी नहीं दे सकता कि अब और मौतें नहीं होंगी। ये रीलोकेशन संबंधी तनाव और संक्रमण के कारण होते हैं। लेकिन, मुझे यकीन है कि चीते इन शुरुआती दिक्कतों से उबर जाएंगे। फिर न केवल देश में जीवित रहेंगे, बल्कि कुनबा भी बढ़ाएंगे।”
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के पूर्व प्रमुख के रूप में डॉ. गोपाल कई दशकों से प्रोजेक्ट टाइगर से जुड़े हुए हैं। उन्हें इस विषय का विशेषज्ञ माना जाता है। उनका कहना है कि बिग कैट परिवार के सदस्यों को जब भी देश के भीतर भी इधर-उधर किया जाता है, तो उन्हें गंभीर तनाव का सामना करना पड़ता है। अफ्रीकी महाद्वीप से लाए गए चीतों को जैविक घड़ी यानी बायोलॉजिकल क्लॉक, नए इलाके, क्लाइमेट और शिकार के आधार में अंतर जैसी कई समस्याओं से जूझना पड़ता है।
यही कारण है कि उन्हें नई जगह पर पूरी तरह से घुलने-मिलने में ढाई साल से लेकर दस साल तक का समय लग सकता है। उन्होंने कहा, “जरा देखिए कि दस साल पहले प्रोजेक्ट टाइगर कहां था और अब कहां है। भारत में पैदा होने वाली अगली पीढ़ी के चीतों में घुलने-मिलने की बेहतर क्षमता के अलावा इम्यूनिटी और नई जगह को कबूल कर लेने के जरूरी लचीलापन भी होगा।”
कूनो में चीते अक्सर जंगल से निकलकर इंसानों की बस्तियों में चले जाते हैं। ऐसे में उन्हें वापस कूनो में लाना होगा। यह चीतों के लिए भी सामान्य है, जब तक कि वे अंततः अपने इलाके की पहचान नहीं कर लेते। किसी भी स्थिति में शिवपुरी वन सहित कूनो का इलाका 6000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसलिए इसमें घूमने के लिए पर्याप्त जगह है।
क्या रेडियो कॉलर है दोषी
क्या 400 ग्राम का रेडियो कॉलर उन्हें नुकसान पहुंचा रहा है? क्या वे इसलिए मर रहे हैं, क्योंकि घाव में कीड़े लग गए हैं? डॉ. गोपाल ने कहा कि जानवरों में जूं जैसे कीड़े किलनी (ticks) और माइट्स आम तौर पर पाए जाते हैं, जो बीमारी फैलाते हैं। ये कीड़े पालतू जानवरों में दिख जाते हैं। बाघ और सांभर हिरण इनसे छुटकारा पाने के लिए अक्सर कीचड़ और पानी में लोटते रहते हैं। चूंकि चीते तुलना में सूखे क्लाइमेट से आए हैं, इसलिए उन्हें एडजस्ट होने और इन कीड़ों से निपटने के तरीके सीखने में कुछ समय लग रहा है। उन्होंने कहा, “प्रत्येक चीते पर कम से कम नौ वन कर्मी नजर रखते हैं। यदि किसी चीते को संक्रमण हो जाता है, तो उसका तुरंत इलाज किया जाता है। वे जंगली जानवर हैं और उनके जीवन में इंसानी दखल बहुत अधिक नहीं किया जा सकता है।”
कूनो में चीतों को तेंदुओं और बाघों के रूप में एक और दुश्मन का सामना करना पड़ता है। चीता के ठिकानों में 100 से अधिक तेंदुए हैं और कभी-कभी एक बाघ भी चक्कर लगा लेता है। हालांकि, अभी तक उनके बीच किसी झड़प की खबर नहीं आई है। लेकिन, खतरा हमेशा बना रहता है। ऐसे में चीतों को दो बड़े दुश्मनों के साथ रहना सीखना होगा।
इतिहास
चीता 10,000 साल पहले विकासवादी बाधा से बाहर आया और अब केवल नामीबिया, दक्षिण अफ्रीका और शायद ईरान तक ही सीमित है। वहां भी यह क्रूगर पार्क में बचा हुआ है, जो कि 20,000 किलोमीटर में फैला हुआ जंगल है। लेकिन डॉ. गोपाल ने कहा- हमारे पास संरक्षण का एक अलग मॉडल है।
बता दें कि दुनिया में बिल्लियों की 35 प्रजातियां हैं। इनमें से 15 भारत में पाई जाती हैं। इनमें नए आए चीते भी हैं। चीता तेंदुए या बाघ जितना मजबूत नहीं होता। इसे तेजी से दौड़ने के लिए डिजाइन किया गया है, क्योंकि इसके पंजे पूरी तरह पीछे हट जाते हैं। वे पीछा करने वाले होते हैं और इसीलिए चलते समय कम से कम आवाज करने के लिए उनके पंजे पूरी तरह पीछे हो जाते हैं। एक चीते का वजन सिर्फ 60-70 किलोग्राम होता है, जबकि एक तेंदुए का वजन लगभग 80-90 किलोग्राम होता है और बाघों का वजन लगभग 160 किलोग्राम (मादा) से 200-250 किलोग्राम (नर) होता है। चीते का सिर छोटा और तेज दौड़ने के लिए फुर्तीले अंग होते हैं। इसीलिए यह घने जंगलों की तुलना में घास के मैदानों को पसंद करता है। उनमें गर्भधारण के लिए सिर्फ 90 दिन होते हैं और मां बनने के बाद देखभाल के लिए 90 दिन का ही समय होता है। शिकार के लिए वे अन्य चीतों के साथ मिलकर जाते हैं।
END OF THE ARTICLE