कैसे एक आईपीएस अधिकारी के आइडिया ने गोवा के ई-बीट सिस्टम प्रोजेक्ट की लागत 1 करोड़ से घटाकर सिर्फ 5 लाख कर दी!
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 10 Jul 2023, 9:45 am IST
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हाइलाइट्स
- गोवा पुलिस मैनुअल बुक के बजाय लोकल स्टूडेंट्स द्वारा संचालित ई-बीट सिस्टम पर काम कर रही है
- इससे पुलिस का काम जहां आसान होगा, कई प्रोसेस डिजिटल हो जाएंगी, खासकर बीट बुक में मैन्युअल एंट्री
- नए सॉफ्टवेयर का टेस्ट इस साल सितंबर में शुरू होगा और लागू होगा दिसंबर से
क्राइम पर कंट्रोल और बेहतर पुलिसिंग के लिए गोवा पुलिस ई-बीट सिस्टम शुरू करने जा रही है। अच्छी बात यह है कि इस सिस्टम को इंजीनियरिंग के लोकल छात्र तैयार कर रहे हैं। यह ऐप अधिकारियों को एक क्लिक पर राज्य के किसी भी बीट के बारे में पूरी जानकारी दे देगा। पहले, विभाग ने निजी कंपनियों से इस ऐप को विकसित करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने बहुत अधिक पैसे मांग लिए। लगभग एक करोड़ रुपये की मांग की गई। फिर 2012 बैच के आईपीएस अधिकारी और उत्तरी गोवा के एसपी निधिन वाल्सन ने इसे लोकल इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों से तैयार कराने का सोचा।आश्चर्य कि यह आइडिया सटीक बैठ गया। प्रोजेक्ट की लागत बहुत कम होकर मात्र 5 लाख रह गई। इस तरह विभाग को लगभग 95 लाख रुपये की बचत हो रही है।इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए श्री वाल्सन ने इसके बारे में काफी कुछ बताया।
डिजिटल बीट बुक
दरअसल, पुलिस बीट प्रणाली पुलिसिंग की सबसे छोटी यूनिट होती है, जो पुलिस कर्मियों द्वारा गश्त किए जाने वाले क्षेत्र के बारे में बताती है। इनका काम इलाके में गश्त करना और क्राइम पर कंट्रोल करने के अलावा अपराधियों का ब्योरा रखना है। पुलिस अधिकारी अपने लिए तय क्षेत्र यानी बीट में जाकर वहां की निगरानी करते हैं। इस दौरान वे एंट्री करने के लिए मैनुअल बुक बनाते हैं। लेकिन, अब इस बीट बुक को कम्प्यूटरीकृत किया जा रहा है और इसमें मैनुअल बुक की जगह एक ऐप होगा।पूरी किताब डिजिटल हो जाएगी और एक ऐप में आ जाएगी। फिर सभी एंट्री ऐप में ही की जाएंगी। ट्रैकिंग सहित कई और काम सरल हो हो जाएंगे, जो मैनुअल बुक के साथ संभव नहीं थे। ऐप में फोटो भी अपलोड हो जाएंगे।
श्री वाल्सन ने कहा, “कभी-कभी किसी विशेष क्षेत्र से बीट बुक प्राप्त करना और उसकी जांच करना बहुत मुश्किल हो जाता है। जब हम किसी विशेष बीट से जानकारी चाहते हैं, तो हमें बीट बुक के साथ संबद्ध अधिकारी को बुलाना पड़ता है। लेकिन, इस एप्लीकेशन के बाद हम ऑफिस में बैठे-बैठे सारी बातें जान सकते हैं। इससे बहुत फायदा है। इससे पुलिस की खुफिया जानकारी भी मजबूत होगी।’
ई-बीट सिस्टम
गोवा पुलिस ने फरवरी, 2023 में रिसोर्स साझा करने को लेकर गोवा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (जीईसी) के साथ एक समझौता किया था। इसे आगे बढ़ाते हुए उन्होंने इस ई-बीट एप्लिकेशन पर काम करने का फैसला किया।श्री वाल्सन ने कहा, “दरअसल हम बीट सिस्टम में एक बुक रखते हैं। हम इसका एप्लीकेशन बनवाना चाहते थे। प्राइवेट कंपनियां बहुत पैसे मांग रही थीं। इसके लिए 50 लाख से एक करोड़ रुपये तक का खर्च आ रहा था। इसके बाद वे मेंटेनेंस के लिए अलग पैसे भी मांग रही थीं। ऐसे में यह हमारे लिए बहुत महंगा था। सो हमने इसे छात्रों के साथ बनाने का निर्णय लिया। अब, हम इसे बनाने के लिए इन स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप दे रहे हैं।”गोवा का आईटी विभाग इसकी फंडिंग कर रहा है। इस एप्लीकेशन पर काम करने के लिए छात्रों को स्कॉलरशिप में हर महीने 8 से 10 हजार रुपये मिलेंगे। स्टूडेंट्स थाने का दौरा करेंगे और पुलिस की कार्यप्रणाली के सभी पहलुओं को समझेंगे। वे पुलिस के साथ घूमेंगे, बीट सिस्टम को समझेंगे, देखेंगे कि पुलिस कैसे काम करती है। उसके बाद अपने अनुभवों के आधार पर एक एप्लिकेशन बनाएंगे, ताकि यह काम में आ सके और आसान इंटरफ़ेस के साथ इसे हर कोई चला सके।इसके बाद गोवा पुलिस उस एप्लिकेशन का इस्तेमाल करेगी और उसकी कमियां बताएगी। फिर टेस्टिंग की जाएगी। अगर सभी संतुष्ट हुए, तो इसे लॉन्च किया जाएगा।तकनीकी सहयोग के लिए सरकारी कंपनी ‘गोवा इलेक्ट्रॉनिक्स’ भी साथ देगी। इसके लिए वह सर्वर मुहैया कराएगी और उसके एक्सपर्ट अपनी कीमती राय भी साझा करेंगे। इसके बनने के बाद इसका कॉपीराइट गोवा इंजीनियरिंग कॉलेज के पास चला जाएगा और वे इसे आत्मनिर्भर मॉडल में बनाए रखेंगे। इससे खर्चा काफी कम हो जाएगा।
वाल्सन ने कहा, “ई-बीट सिस्टम लागू हो जाने के बाद न केवल जल्दी से जल्दी सूचना मिलने में आसानी हो जाएगी, बल्कि सूचना का तेजी से विश्लेषण भी हो जाएगा।”
सलेक्शन
गोवा इंजीनियरिंग कॉलेज ने आईटी छात्रों के सलेक्शन के लिए एक प्रतियोगिता कराई। उन्होंने इस साल अप्रैल में ई-बीट सिस्टम बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ डेवलपर्स चुनने वाली इस प्रतियोगिता में कई इंजीनियरिंग कॉलेजों को बुलाया। इसमें कुल 12 टीमों ने भाग लिया। हर टीम में 4 छात्र थे। उन्हें प्रोटोटाइप विकसित करने के लिए कुछ समय मिला। उसके बाद विजेता टीमों में से जीईसी के आईटी स्ट्रीम के थर्ड और फोर्थ ईयर के 9 छात्रों ने सॉफ्टवेयर तैयार करने के कार्य को पूरा करने में मदद करने के लिए एक ग्रुप बनाया। इन छात्रों ने मई में इस ऐप पर काम करना शुरू किया और इस साल सितंबर में अपनी पहली कॉपी जमा करेंगे।
वाल्सन ने कहा, “एक समय कंपनियां सॉफ्टवेयर हासिल करने के लिए करोड़ों रुपये तक का भुगतान करने के लिए कह रही थीं, लेकिन अब इसमें शामिल एकमात्र लागत स्कॉलरशिप है, जो सॉफ्टवेयर पर काम करने के समय छात्रों को दी जाएगी।”
पीएम के सपने को पूरा कर रहे छात्र
यह वास्तव में अच्छा है कि छात्रों को प्रैक्टिकल अनुभव मिल रहा है। श्री वाल्सन ने आगे कहा, “ये छात्र कल उद्यमी बनेंगे। सबसे बड़ी बात यह होगी कि कॉलेज के बच्चों द्वारा बनाए गए एप्लिकेशन का उपयोग राज्य पुलिस विभाग करेगा। इससे हमारी नई पीढ़ी को बहुत आत्मविश्वास मिलेगा। पीएम हमेशा कहते हैं कि पढ़ने वाले बच्चों को पता होना चाहिए कि सरकार की जरूरतें क्या हैं और वे उनका इस्तेमाल कैसे करते हैं। हमने यहां यही किया है और बच्चे ही हमारी मदद कर रहे हैं।”
गोवा बीट सिस्टम
गोवा को दो जिलों-उत्तर और दक्षिण जिलों में बांटा गया है। दक्षिण जिले में 17 पुलिस स्टेशन हैं, जबकि उत्तरी जिले में 13 पुलिस स्टेशन हैं। प्रत्येक थाने का एक प्रभारी इंस्पेक्टर होता है। एक थाने को 6 या 7 बीट में बांटा गया है। इसमें पुलिस कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल और एक एसआई रैंक के पुलिस अधिकारी शामिल हैं। ये पुलिसकर्मी अपनी-अपनी बीट के प्रभारी रहते हैं। इनका काम क्षेत्र में रहकर वहां क्राइम रोकना और वहां के अपराधियों का ब्यौरा रखना है।वाल्सन ने कहा, “यह बीट सिस्टम वास्तव में हमें बेहतर पुलिसिंग में मदद करता है। अभी दिल्ली और चंडीगढ़ का बीट सिस्टम काफी अच्छा माना जाता है। हम भी अब इस सिस्टम में कुशलता प्राप्त कर रहे हैं। अब हम अपने कंप्यूटर टर्मिनलों या मोबाइल फोन पर सारी जानकारी देख सकेंगे।”
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