शेरों को बिपारजॉय तूफान से बचाने के लिए गुजरात ने कैसे की तैयारी!
- Pallavi Priya
- Published on 21 Jun 2023, 1:27 pm IST
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हाइलाइट्स
- गुजरात वन विभाग ने भीषण तबाही की आशंका देख निगरानी और बचाव के किए सभी इंतजाम
- पशु चिकित्सकों सहित 184 टीमों को जंगल और तटीय क्षेत्रों में तैनात किया गया था
- चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन ने कहा कि टीमें हाई अलर्ट पर थीं, लेकिन किसी भी क्षेत्र में साइक्लोन का बड़ा असर नहीं देखा गया
भयंकर चक्रवाती तूफान ‘बिपारजॉय’ ने 15 जून को गुजरात के कच्छ तट पर दस्तक दी थी। इसके बाद इलाके के 4500 से अधिक गांवों की बिजली चली गई। 23 लोग घायल हो गए। जबकि इस चक्रवात से इंसानों और जानवरों दोनों पर खासा प्रभाव पड़ा। विशेष रूप से गिर और जूनागढ़ के शेरों पर। दोनों को बड़ी क्षति होने की आशंका थी। हालांकि किसी बड़े नुकसान की सूचना नहीं मिली। इसका पूरा श्रेय स्थानीय प्रशासन और वन विभाग द्वारा की गई तैयारियों को जाता है।
इंडियन मास्टरमाइंड से गुजरात के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन नित्यानंद शर्मा ने कहा कि इस संकट के दौरान कीमती वन्यजीवों को बचाना उनकी प्राथमिकता थी। इसकी विशेष तैयारी कैसे की गई थी, यह भी बताया।
प्रमुख तैयारीः
शर्मा कहते हैं, ‘मैं भगवान को इस चक्रवात को प्रमुख वन क्षेत्र में नहीं आने देने के लिए धन्यवाद देता हूं। किसी भी चक्रवात की सीमा 400-450 किलोमीटर की सीमा तक हो सकती है, लेकिन इसका प्रभाव नीचे की ओर पड़ता है। शेरों के अधिकांश ठिकाने केवल 140 किलोमीटर प्रतिघंटे तक की हवा का सामना कर सकते हैं। यानी इसे वन्यजीव आसानी से कंट्रोल कर लेते हैं।’
हालांकि, चक्रवात के आने से पहले किसी भी तरह के नुकसान को रोकने के लिए बड़ी तैयारी की गई थी। सभी फील्ड स्टाफ को जानकारी दी गई थी और शेरों के इलाके में वन्यजीव संबंधी SOS संदेश भेजने के लिए 58 कंट्रोल रूम बनाए गए थे। इनमें वन्यजीव सर्कल, जूनागढ़ प्रादेशिक सर्कल शामिल थे। इनमें नौ डिवीजन शामिल थे। ये हैं- गिर (पश्चिम) डिवीजन, जूनागढ़, गिर (पूर्व) डिवीजन, धारी, वन्यजीव प्रभाग, सासन, पोरबंदर प्रभाग, सुरेंद्रनगर फॉरेस्ट डिवीजन, जामनगर फॉरेस्ट डिवीजन, भावनगर फॉरेस्ट डिवीजन, मोरबी फॉरेस्ट डिवीजन और जूनागढ़ फॉरेस्ट डिविजन।
चक्रवात के आने से पहले, बाद में और उसके दौरान फील्ड अधिकारियों, टीमों और जिला प्रशासन के साथ निरंतर बातचीत और तालमेल बनाए रखा गया था।
184 बचाव दलः
गुजरात वन विभाग में लगभग 300 कर्मचारी हैं। इसके अलावा, 250 ‘सिंह मित्र या वन्यप्राणी मित्र’ हैं। ये शेरों या अन्य जानवरों के साथ ग्रामीणों के संघर्ष को कम करने में मदद करते हैं और सूचना का प्रसार भी करते हैं। 300ट्रैकर ऐसे हैं, जो शेरों की हरकतों पर नजर रखते हैं। शर्मा ने कहा कि अपने कर्मचारियों की संख्या के साथ तीन श्रेणियों में 3-4 लोगों की 184 टीमें बनाई गई थीं। ये टीमें गिरे हुए पेड़ों को हटाते, जानवरों को बचाते और पशु चिकित्सा देखभाल देखती थीं।
इन टीमों को रणनीतिक रूप से बांटा गया था। चीफ वार्डन ने कहा, ‘हर पूर्णिमा पर हम शेरों के बारे में जानकारी लेते हैं। इसलिए, हम आम तौर पर इस बारे में एक उचित विचार रखते हैं कि शेर कहां हैं। हम जानते थे कि चक्रवात के दौरान तटीय क्षेत्र प्रमुख रूप से प्रभावित होंगे। लेकिन हम उस क्षेत्र में शेरों की संख्या भी जानते थे। इसलिए, हमने उसी के अनुसार टीमों को तैनात किया।‘ कुछ टीमों को घास के मैदानों में भी लगाया गया था।
गुजरात में कई जलाशय हैं। भारी बारिश होने पर कुछ जानवर उनमें समा जाते हैं या पानी में बह जाते हैं। इसलिए बड़ी संख्या में टीमें वहां भी तैनात की गईं। पूरे चक्रवात के दौरान सभी एनीमल एंबुलेंस और आठ एनिमल हॉस्पीटल हाई अलर्ट पर थे। शर्मा ने कहा कि चक्रवात के दौरान गिर और जूनागढ़ सुरक्षित रहे, केवल कच्छ ही चपेट में आया, जो पक्षियों का प्रमुख आवास है। हालांकि इन स्थितियों में पक्षी उड़ जाते हैं, फिर भी सभी एंबुलेंस को वहां क्षेत्र को स्कैन करने के लिए भेजा गया है।
हाई-टेक मॉनिटरिंगः
संकट को कम करने के लिए सभी वन्यजीव बचाव दलों को आवश्यक उपकरण दिए गए हैं। गिर हाई-टेक मॉनिटरिंग यूनिट ने उन्नत तकनीक का उपयोग करके स्थिति की निगरानी की है। चक्रवाती गतिविधि के दौरान वन क्षेत्रों, सफारी पार्कों और सक्करबाग चिड़ियाघर में पर्यटन और सार्वजनिक आवाजाही को रोक दिया गया था। आवश्यक व्यवस्थाओं के साथ निकासी के लिए गिर वन में 46 और बरदा में 45 सुरक्षित आश्रयों की पहचान की गई।
इस तरह पहले ही जग जाने और सक्रिय हो जाने से शेरों को तेज हवाओं से बचाने में गुजरात वन विभाग कामयाब रहा।
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