मैंग्रोव बाघों का इकलौता ठिकाना है सुंदरवन
- Jonali Buragohain
- Published on 28 Jul 2023, 10:38 am IST
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हाइलाइट्स
- ग्लोबल टाइगर्स डे पर इंडियन मास्टरमाइंड का विशेष
- सुंदरवन के बाघों ने गीले ठिकाने में भी मजे से रहने का रास्ता खोज लिया है
- इसके लिए उनके खान-पान की आदतों तक में बदलाव आ चुका है
सुंदरवन पैंथेरा टाइग्रिस टाइग्रिस के लिए दुनिया में इकलौता मैंग्रोव निवास है, जिसे आमतौर पर एशियाई टाइगर के रूप में जाना जाता है। यहां के शाही बंगाल टाइगर अपनी अनूठी विशेषताओं के कारण इस समूह की अन्य आबादी से अलग होते हैं। वे इस दलदली क्षेत्र में खुलेआम घूमते और तैरते हैं, जो जिज्ञासा जगाने के अलावा डराते भी हैं। इसलिए कि ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जब उन्होंने मनुष्यों पर भी हमला किया है। हालांकि, सुंदरवन टाइगर रिजर्व के अधिकारी इंटरनेट पर घूम रही ‘आदमखोर’ वाली बातों को गलत बताते हैं, जो इसे प्रिंट मीडिया की सुर्खियां भी बना चुकी हैं।इसके बजाय वे सुंदरवन के बाघों को “अवसरवादी शिकारी” कहना पसंद करते हैं, जो “आसान शिकार” की तलाश में रहते हैं। मैंग्रोव दलदलों से भरे क्षेत्र में एक अलग जीवन छोड़कर इन बाघों ने शारीरिक बदलावों के साथ-साथ अपने खाने-पीने की आदतें भी बदल ली हैं। ताकि ऐसे माहौल में फिट महसूस कर सकें। इंडियन मास्टरमाइंड्स ने प्रसिद्ध सुंदरवन बाघों के बारे में और अधिक जानने के लिए सुंदरवन टाइगर रिजर्व के डिप्टी फील्ड डायरेक्टर जोन्स जस्टिन से बात की, जो 2018 बैच के आईएफएस अधिकारी हैं।
दलदली ठिकाने में खुद को बदल लिया
सुंदरवन मैंग्रोव वन 140,000 हेक्टेयर के साथ अपनी तरह के सबसे बड़े वनों में से एक है। यह बंगाल की खाड़ी में गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के डेल्टा पर स्थित है। यहां के बाघों ने खुद को खारे पानी के अनुकूल बना लिया है। वे तैरने में माहिर हैं। वे मछली, केकड़े और सांप जैसे छोटे समुद्री जानवरों को भी खाते हैं, जो असामान्य बात है। श्री जस्टिन ने कहा, “बाघ आमतौर पर ऐसा शिकार करते हैं, जो उसके शरीर के आकार से बड़ा होता है। इसलिए कि उनके शिकार की सफलता दर 20 में से 1 है। इसलिए वे ऐसे जानवर का शिकार करते हैं, जिससे 1-2 सप्ताह तक पेट भरता रहे।”
अवसरवादी शिकारी
लेकिन सुंदरवन में बाघों ने खुद को इलाके के हिसाब से ढाल लिया है और छोटे जानवरों का शिकार करते हैं। चूंकि दलदली क्षेत्र में बड़े जानवरों का शिकार करना कठिन होता है, इसलिए बाघों के लिए छोटे जानवरों में शिकार आसान लगता है। इसलिए यदि कोई मनुष्य भी भटककर उधर चला जाता है, तो उसका भी यही हाल होता है। इसे समझाते हुए श्री जस्टिन ने कहा, “बाघ अवसरवादी शिकारी होते हैं। वे आसान शिकार की तलाश में रहते हैं। लेकिन, इंसानों के शिकार के ज्यादातर मामलों में बाघ ने भूख मिटाने के लिए बस मानव शरीर का थोड़ा-सा ही हिस्सा खाया। बाकी शरीर को छोड़ दिया। इसलिए हम शवों को खोज सके। वे सभी मछुआरे थे, जो मछली पकड़ने के लिए दलदल के अंदर चले गए थे। बाघ इंसानों को मारने के लिए गांवों के अंदर नहीं जाते। वे तभी मारते हैं, जब इंसान उनकी मांद में चले जाते हैं।”
संघर्षों को कम करने के लिए कदम
दो दशक पहले ग्रामीणों द्वारा बदला लेने के मकसद से बाघों की हत्या के मामले सामने आए थे। तब बाघों ने उन लोगों पर हमला किया गया था। दरअसल तब बाघ कभी-कभी बकरी, कुत्ते आदि जैसे आसान शिकार की तलाश में गांव में भटक कर चले जाते थे। श्री जस्टिन ने कहा, “इसलिए बाघों को अंदर जाने से रोकने के लिए गांवों के चारों ओर 10-12 मीटर ऊंची नायलॉन की जाली वाली बाड़ लगाई गई है। यह अस्थायी बाड़ है, जो बाघों को पार करने से डराती है। लगभग 106 किलोमीटर लंबी ऐसी बाड़ लगाई जा रही है। इससे हर साल गांवों में बाघ के भटकने के औसतन 20-25 मामले अब पिछले 6-7 वर्षों में शून्य पर आ गए हैं।”दूसरा पहलू ढांचागत है। जैसे 4-5 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण, मीठे पानी की कमी को देखते हुए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाना, और घाटों और सामुदायिक हॉलों का निर्माण करना। विभाग ने स्कूलों को गोद लेकर और जागरूकता बढ़ाने के लिए जेएफसी (संयुक्त वन समितियों) को शामिल करके शिक्षा में भी निवेश किया है।इसके अलावा मछुआरा समुदायों को मछली पकड़ने के लिए टाइगर रिजर्व के अंदर जाने से रोकने के लिए कमाई के दूसरे साधन दिए गए हैं। अधिकारी ने कहा, “हमने उन्हें बकरी पालन, बत्तख पालन, मछली पालन और मधुमक्खी पालन के लिए शुरुआती पैसे दिए हैं। मधुमक्खी पालन विशेष रूप से फल-फूल रहा है। पहले लोग शहद इकट्ठा करने के लिए जंगल के अंदर जाते थे। अब अधिकतम शहद हमारे द्वारा उपलब्ध कराए गए शहद के बक्सों से जमा किया जाता है। इन्हें किसी के भी अहाते में रखा जा सकता है।”
इस शहद को सुंदरवन शहद के रूप में बेचा जा रहा है। इसने बाजार में अपना नाम भी बना लिया है। नतीजा यह हुआ कि ग्रामीणों ने शहद इकट्ठा करने के लिए जंगल के अंदर जाना बंद कर दिया, जिससे बाघ के हमले बंद हो गए। साथ ही ग्रामीण अच्छी कमाई कर रहे हैं। उद्योग की जरूरतों को पूरा करने के लिए अब लोग प्लेट से लेकर उपहार वाली वस्तुएं तक बनाने लगे हैं। इससे घर चलाने के लिए जंगल के अंदर जाने की मजबूरी खत्म हो गई है।
गलत सोच का विरोध
हालांकि, श्री जस्टिन ने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया कि सुंदरवन में जो बाघ हैं, वे आदमखोर हैं। उन्होंने कहा, “मुझे रिकॉर्ड बताने दीजिए। आम धारणा के विपरीत हमने एक भी ऐसे बाघ की पहचान नहीं की है, जो आदमी का शिकार करता हो। बाघ कहीं भी अवसरवादी शिकारी होते हैं और आसान शिकार की तलाश में रहते हैं। यदि मनुष्यों का शिकार करना इतना आसान है, तो वे उनके पीछे चले जाते हैं।उन्होंने आगे बताया कि ताडोबा, रणथंभौर और पश्चिमी घाट में जब मनुष्यों की बात आती है, तो वहां के बाघ शर्मीले होते हैं। इसलिए उनका शिकार नहीं करते हैं। अधिकारी ने कहा, “हालांकि, सुंदरवन दलदली होने के कारण बाघों के लिए शिकार करना मुश्किल है। हमें सुंदरवन के बाघों को इसी नजर से देखना होगा। अगर कोई इंसान जंगल के अंदर जाता है और बाघ उसे आसान शिकार मानता है, तो वह शिकार करेगा ही। ऐसा इसलिए नहीं है, क्योंकि बाघ आदमखोर है।”अलग-थलग पड़े सुंदरवन के बाघ पिछले लगभग 700 वर्षों से स्वयं को ढाल रहे हैं। उनका जीन पूल अलग है। उनके इको सिस्टम के अनुकूल होने के लिए उनमें रूपात्मक परिवर्तन भी हुए हैं। उन्होंने केवल उन मछुआरों पर हमला किया है, जो भटककर उनके दलदली क्षेत्र में पहुंच गए थे। 2022-23 में ऐसी मौतों के चार मामले सामने आए। किसी भी बाघ ने भटकते हुए गांवों में घुसकर इंसानों पर हमला नहीं किया है। श्री जस्टिन ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा, “2012 तक औसतन 20-25 बाघ गांवों में भटकते थे, लेकिन पिछले 25 वर्षों में बाघ द्वारा इंसानों पर हमला करने का एक भी मामला सामने नहीं आया है।”
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