गैर-कैडर अधिकारियों के कैडर वाले पद लेने से महाराष्ट्र आईएएस में तनाव
- Sharad Gupta
- Published on 20 Jun 2023, 1:30 am IST
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हाइलाइट्स
- गैर-आईएएस बॉस वाले कुछ शीर्ष पदों में नगर निगमों, महत्वपूर्ण सरकारी विभागों और निकायों के प्रमुख शामिल हैं
- जहां महाराष्ट्र कैडर के आईएएस अधिकारी अपनी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं, वहीं राजनीतिक कनेक्शन वाले राज्य कैडर के अधिकारियों को भी कलेक्टर के रूप में तैनात किया जा रहा है
- इसे कई आईएएस अधिकारियों और कार्यकर्ताओं की मनमानी के रूप में देखा जा रहा है, इसके खिलाफ जल्द ही बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर हो सकती है जनहित याचिका
महाराष्ट्र आईएएस कैडर में चल रही भारी गड़बड़ियों से तनाव है। एक तरफ कुछ गैर-आईएएस अधिकारियों को कैडर वाले पदों पर नियुक्त किया जा रहा है, वहीं आईएएस अधिकारियों को वेटिंग में रखा जा रहा है। हालांकि उनमें से अधिकतर न तो सामने आना चाहते हैं और न ही विवादास्पद मुद्दे पर खुद कुछ बोलना चाहते हैं। ऐसी खबरें हैं कि राज्य में कम से कम 16 कैडर वाले पदों पर गैर-आईएएस अधिकारी बैठे हैं। जैसे-पोस्टल सर्विस, इनफार्मेन्स सर्विस, सेल्स टैक्स आदि के अधिकारी आईएएस के लिए बने पदों पर हैं।
जूनियर बैठ रहे सीनियर की कुर्सी पर
चर्चा यह भी है कि सीनियर आईएएस अधिकारियों को दरकिनार कर जूनियर अधिकारियों को बड़े पद दिए जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, इस सूची में सोनिया सेठी, प्रवीण गेदाम, सचिंद्र प्रताप सिंह, रुचेश जौवंशी और वैभव वाघमारे जैसे आईएएस अधिकारी हैं। गैर-आईएएस बॉस वाले कुछ बड़े पदों में नगर निगमों, महत्वपूर्ण सरकारी निकायों और विभागों के प्रमुख शामिल हैं। जहां महाराष्ट्र कैडर के आईएएस अधिकारी अपनी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं, वहीं राजनीतिक कनेक्शन वाले राज्य कैडर को कलेक्टर तक के पद पर तैनात किया जा रहा है।
मनमानी चाल
इसे कई आईएएस अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मनमानी के रूप में देखा जा रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मीनारायण शेट्टी ने भारत सरकार के पर्सनल, पब्लिक ग्रीवांसेज और पेंशन मंत्रालय के अलावा महाराष्ट्र के चीफ सेक्रेटरी को भी मौजूदा कैडर पदों पर तीन महीने की तय समयसीमा से अधिक वाली गैर-आईएएस की पोस्टिंग को रद्द करने के लिए नोटिस भेजा है। ऐसा बिना अप्रूवल और आईएएस कैडर को कंट्रोल करने वाले केंद्रीय नियमों के खिलाफ जाकर किया गया है। सुधार नहीं होने पर उन्होंने जल्द ही बॉम्बे हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने की धमकी दी है।
राज्य सेवा के अधिकारी देते हैं रिजर्व्ड पदों का हवाला
नाम गुप्त रखने की शर्त पर मुंबई के मध्य में एक ऊंचेपोस्ट पर तैनात राज्य सिविल सेवा की अधिकारी ने इंडियन मास्टरमाइंड्स से कहा कि वह वहां इसलिए हैं कि कुछ पद स्टेट डेपुटेशन के लिए रिजर्व हैं। वैसे कार्यकर्ता शेट्टी के अनुसार, महाराष्ट्र में बिना कैडर वाले स्टेट डेपुटेशन लिए रिजर्व 56 पदों की कुल संख्या से अधिक पदों पर हैं।
सिविल सेवा बोर्ड को देखना चाहिए
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए पुणे के पूर्व म्यूनिसिपल कमिश्नर और फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) के प्रमुख आईएएस अधिकारी महेश जगदे ने कहा, “चीफ सेक्रेटरी की अध्यक्षता वाले सिविल सेवा बोर्ड को एक निश्चित पद के लिए एक अधिकारी की उपयुक्तता का आकलन करना चाहिए। उसके बाद ही अंतिम निर्णय के लिए मुख्यमंत्री को पोस्टिंग या ट्रांसफर का प्रस्ताव देना चाहिए। ऐसा करने से वे 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सच्ची भावना से काम करेंगे।”2013 के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने नौकरशाहों के लिए निश्चित कार्यकाल का समर्थन किया था। इसने माना कि नौकरशाहों को राजनीतिक आकाओं द्वारा दिए गए मौखिक आदेशों पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। उसने लगातार तबादलों को खत्म करने को कहा था। सबसे बड़ी बात यह कि राजनीतिक दखल से बचाने के लिए अधिकारियों को एक निश्चित कार्यकाल देने का सुझाव दिया था। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह भी कहा कि नौकरशाहों के खिलाफ पोस्टिंग, ट्रांसफर और अनुशासन की कार्रवाई को रेग्युलेट करने के लिए संसद को एक कानून बनाना चाहिए। आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन ने उस समय इस फैसले के समर्थन में बयान जारी किया था। बयान में कहा गया था, “यह हमारे रुख की पुष्टि करता है। यह पूरे देश में सुशासन में मदद करेगा।”
अन्याय से लड़ने का तरीका है पीआईएल
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करती हुईं प्रसिद्ध नौकरशाह से वकील बनीं मुंबई की आभा सिंह ने पुष्टि की कि बहुत से गैर-आईएएस अधिकारियों को उन पदों पर पोस्टिंग दी गई है, जो आईएएस अधिकारियों के लिए हैं। वह कहती हैं, “यह मुख्य रूप से इसलिए है, क्योंकि नेता खुद को ‘माटी के पुत्र’ के रूप में मानते हैं। गैर-आईएएस अधिकारी सभी महाराष्ट्रीयन हैं। उनके पास स्थानीय नियम, स्थानीय संबंध हैं और आमतौर पर यह देखा जाता है कि वे नेताओं के आदेशों का पालन करते हैं।” ऐसा इसलिए है क्योंकि वे जानते हैं कि वे टॉप पर नहीं पहुंचने वाले हैं। वे सभी महत्वपूर्ण पोस्टिंग केवल नेताओं के आशीर्वाद से पा सकते हैं।”
वह मामले को कोर्ट में ले जाने के पक्ष में भी हैं। उन्होंने कहा, “हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की जानी चाहिए। गैर-कैडर अधिकारियों को कैडर वाले पद नहीं दिए जाने चाहिए। यदि आईएएस अधिकारियों को लगता है कि उनके लिए तय पद गैर-कैडर अधिकारियों को दिए जा रहे हैं, तो उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए। अगर वे इसे खुद नहीं करना चाहते हैं, तो ऐसे कार्यकर्ता भी हैं जो इसे कर सकते हैं।”एक उदाहरण देते हुए उन्होंने महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी महाराष्ट्र पीएस पसरीचा और मुंबई पुलिस कमिश्नर डीएन जाधव मामले का हवाला दिया। इनके तीन महीने के एक्सटेंशन बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। एक जनहित याचिका दायर की गई और पूर्व आईपीएस अधिकारी से वकील बने वाईपी सिंह ने इस मामले में सफलतापूर्वक बहस की। इसके कारण अदालत ने दोनों आईपीएस अधिकारियों को दिए गए एक्सटेंशन को रद्द कर दिया।उन्होंने निष्कर्ष में कहा, “कुछ गैर-आईएएस अधिकारी, जिन्हें सबसे अच्छी पोस्टिंग मिली है और जो मौज काट रहे हैं, उनकी जांच की जानी चाहिए।”
साधी चुप्पी
इंडियन मास्टरमाइंड्स ने कई अन्य रिटायर और काम कर रहे आईएएस अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन वे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते थे। पूर्व एडिशनल चीफ सेक्रेटरी-होम सुधीर श्रीवास्तव ने कहा, “मेरे पास कहने के लिए वास्तव में कुछ भी नहीं है। कोई प्रतिक्रिया नहीं।” हम महाराष्ट्र आईएएस एसोसिएशन से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं ले पाए हैं। इसलिए कि इस मुद्दे पर उनके रुख जानने के लिए किए गए कॉल और मेल पर वे ध्यान ही नहीं दे रहे। जैसे ही हमें प्रतिक्रिया मिलेगी, हम इस कहानी को अपडेट करेंगे।
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