बाघों की नई जनगणना-2022 से पता चलता है कि ओडिशा में बाघों की संख्या लगातार घट रही है
इस बार 2018 की जनगणना की तुलना में 8 बाघ कम पाए गए हैं
वैसे नई जनगणना पर ओडिशा के वन अधिकारियों ने उठा दिए हैं सवाल
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इस साल 9 अप्रैल को प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कर्नाटक के मैसूर में देश की नई बाघ जनगणना-2022 की रिपोर्ट जारी की। बाघों की संख्या काफी बढ़ जाने से पूरा देश खुश हुआ। यह संख्या अब 3682 तक पहुंच गई है, जबकि पिछली गणना में यह 2967 थी। 29 जुलाई को ग्लोबल टाइगर डे पर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यों और टाइगर रिजर्व यानी बाघ अभयारण्यों की जनगणना और रेटिंग की नई लिस्ट जारी की। इस बार भी यह राज्यों और बाघ अभयारण्यों के लिए खुशी का क्षण था, लेकिन ओडिशा के लिए यह उतना अच्छा नहीं था। इसलिए कि इस राज्य में एक बार फिर बाघों की संख्या कम होती देखी गई।इसने अब राज्य के लिए खतरे की घंटी बजा दी है, क्योंकि नई बाघ जनगणना से पता चलता है कि ओडिशा में केवल 20 बाघ बचे हैं। वह सभी भी सिमलीपाल टाइगर रिजर्व में हैं, जो दुर्लभ काले बाघों के लिए प्रसिद्ध है। दूसरी ओर, ओडिशा के दूसरे बाघ अभयारण्य सतकोसिया टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या शून्य है। 2018 में हुई पिछली जनगणना में ओडिशा में 28 बाघ थे। बता दें कि बाघों की जनगणना हर चार साल में होती है। जब यह पहली बार 2006 में शुरू की गई थी, तब ओडिशा में बाघों की संख्या 45 थी। तब से ओडिशा में बाघों की संख्या में लगातार भारी गिरावट आ रही है।विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे मुख्य कारण बड़े पैमाने पर अवैध शिकार है, जबकि ओडिशा के अधिकारियों की राय कुछ और है। उन्होंने कैमरा ट्रैप के आधार पर बाघों की गिनती के तरीके पर ही सवाल उठा दिए हैं। बाघों की संख्या क्यों घट रही है, यह जानने के लिए इंडियन मास्टरमाइंड्स ने राज्य के कई अधिकारियों से बात की।
संख्या
ओडिशा में केवल दो नोटिफाइड टाइगर रिजर्व हैं। वर्ष 2006 में राज्य के आधे से अधिक बाघ गायब हो गए थे। अब जबकि भारत में बाघों की संख्या में कुल मिलाकर 6% की सालाना बढ़ोतरी देखी गई है, तब भी ओडिशा की कहानी अलग है। ट्रेंड से हटकर ओडिशा में 20 बाघ हैं, जो 2018 के 28 से कम हैं। इतना ही नहीं, 2006 के बाद से 55% की गिरावट आई है, जब राज्य में 45 बाघ थे। पिछली गणना में सिमिलिपाल में 27 बाघ थे, जबकि सतकोसिया में एक। लेकिन अब सिमिलिपाल में फिर भी 20 बाघ हैं, वहीं सतकोसिया में एक भी बाघ नहीं है।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ बात करते हुए 1989 बैच के आईएफएस अधिकारी और ओडिशा के पीसीसीएफ (नोडल) सुशांत नंदा ने कहा, “यह विभिन्न क्षेत्रों की समस्या है। झारखंड, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में भी ऐसा देखा गया है। जनगणना में केवल ओडिशा के दो बाघ अभयारण्यों के डेटा दिखाए गए हैं। हम केंद्रीय आंकड़े पर विवाद नहीं कर रहे हैं, लेकिन हम अपना खुद का सर्वे करने जा रहे हैं और यह लगभग चार महीने में पूरा हो जाएगा। हम पूरे प्रदेश और सभी अभयारण्यों में अपना सर्वे करेंगे। हम देखना चाहते हैं कि संख्याएं अलग-अलग क्यों हैं, क्योंकि हमारे अपने अनुमान के हिसाब संख्याएं अधिक होनी चाहिए।”
काम का तरीका
क्या कोई अलग कार्यप्रणाली होगी? श्री नंदा ने कहा, “यह वैसा ही होगा, बहुत अधिक अलग नहीं। लेकिन, हम सिर्फ यह पता लगाना चाहते हैं कि वास्तव में क्या हुआ। जनगणना में बाघों को केवल सिमिलिपाल में दिखाया गया है। ऐसा लगता है कि वे केवल दो बाघ अभयारण्यों से डाटा ले रहे हैं। लेकिन ओडिशा में बहुत बड़ा लैंडस्केप और घने जंगल हैं। ऐसे कई और स्थान भी हैं, जहां बाघ मौजूद हैं।”बता दें कि बाघों की गिनती के लिए एनटीसीए की पद्धति 2006 से कैमरा ट्रैप और शिकार-आधारित पद्धति पर आधारित है।ओडिशा टाइगर रिजर्व के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा, “जनगणना 100 प्रतिशत विश्वसनीय नहीं है। कई घने स्थानों पर कैमरा ट्रैप सही तस्वीर नहीं दे पाता। मध्य ओडिशा में बहुत घने जंगल हैं। कैमरा ट्रैप वहां की हर चीज को पकड़ नहीं पाते हैं। मौजूदगी तो होगी, पर इमेज नहीं होगी। इसीलिए विचलन हो सकता है।” उन्होंने आगे बताया कि अगर बाघ संरक्षित क्षेत्रों से बाहर हैं, तो उनकी गिनती नहीं की जाएगी। इसलिए कि वहां कोई कैमरा ट्रैप नहीं हैं, और बड़े लैंडस्केप में भी यही समस्या है।ओडिशा के अधिकारियों का यह भी कहना है कि चूंकि जनगणना का काम 2021 के आसपास किया गया था, इसलिए तब आज के कई बाघ शावक थे। इस तरह उनकी गिनती नहीं की गई थी।
अवैध शिकार
क्या ओडिशा में अवैध शिकार चिंता का विषय है? श्री नंदा ने ना में जवाब में दिया। कहा, “अवैध शिकार अब यहां कोई चिंता का विषय नहीं है। यहां बाघ के शिकार का शायद ही कोई मामला सामने आता है।”जबकि कई वन्यजीव विशेषज्ञ हर जगह बाघों की संख्या में चिंताजनक गिरावट के लिए बड़े पैमाने पर अवैध शिकार को जिम्मेदार ठहराते हैं। वहीं कुछ का यह भी मानना है कि उनकी आबादी बढ़ाने के मकसद से बाघों का शिकार आधार बढ़ाना जरूरी है।एनटीसीए के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक (प्रोजेक्ट टाइगर) अनूप नायक ने कहा, “ओडिशा में शिकार आधार बढ़ाने की जरूरत है। अगर बाघों की आबादी को वहां बनाए रखना है, तो उन्हें इस बारे में कुछ करना होगा। हालांकि ओडिशा बाघों के लिए एक अच्छा निवास स्थान है। फिर भी अधिकारियों को यह पक्का करना चाहिए कि चीतल, सांभर और हिरण की आबादी बढ़े।”इस साल मई में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के आदेश के अनुसार, सरकार अक्टूबर 2023 से राज्य में स्वयं अनुमान लगाएगी। 1987 बैच के आईएफएस अधिकारी और ओडिशा के प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर (वाइल्ड लाइफ) एसके पोपली ने कहा, “यह काम राज्य में बाघों की स्थिति को अपडेट करेगा।”ताजा बाघ जनगणना में मध्य प्रदेश में बाघों की सबसे अधिक संख्या (785) है। इसके बाद कर्नाटक (563), उत्तराखंड (560), और महाराष्ट्र (444) हैं। प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन (एमईई) के हिसाब से पता चलता है कि ओडिशा के सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व ने ‘उत्कृष्ट’ श्रेणी हासिल की है और एमईई-2022 रिपोर्ट में 11 वें स्थान पर है, जो ओडिशा के लिए एकमात्र पॉजिटिव बात है।
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