कैसे यह युवा आईएएस अधिकारी मणिपुर के विस्थापित बच्चों को सदमे से निकालने में मदद कर रहा है
- Indian Masterminds Bureau
- Published on 8 Jul 2023, 4:53 am IST
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हाइलाइट्स
- मिजोरम के कोलासिब जिले में कावनपुई के एसडीओ (सी) शिव गोपाल रेड्डी चीमाला अपने सब-डिविजन में रिलीफ कैंप में रहने वाले बच्चों की विशेष देखभाल कर रहे हैं
- यह गारंटी करने के अलावा कि उनकी शिक्षा न रुके, वह अक्सर उनके शिविरों में जाकर काउंसलिंग भी कर रहे हैं
- आंध्र प्रदेश के रहने वाले एजीएमयूटी कैडर के 2020 बैच के आईएएस अधिकारी बच्चों के दिल-दिमाग पर लगे जख्मों पर लगा रहे हैं मरहम
किसी भी संघर्ष में सबसे अधिक नुकसान बच्चों को होता है। चाहे वह उनके माता-पिता के बीच का संघर्ष हो या जिस क्षेत्र में वे रहते हैं, वहां समुदायों के बीच संघर्ष हो। दोनों ही उनके कोमल मन पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं। इनमें से कुछ घाव बहुत गहरे होते हैं। जैसे, दुनिया में सबसे सुरक्षित स्थान माने जाने वाले अपने घर और पड़ोस से भागना। ऐसे घाव वे जीवन भर झेलते रहते हैं।
कल्पना कीजिए एक ऐसी स्थिति, जहां हैरान बच्चे माता-पिता के साथ भागते समय अपने घरों को जलते हुए देखते हैं- बल्कि जान बचाने के लिए भागते हैं। वे अपनी मासूमियत में हर समय सोचते रहते हैं कि उन्होंने ऐसा भुगतने के लिए आखिर किया क्या है। हम केवल इसकी कल्पना कर सकते हैं, लेकिन मणिपुर के बच्चे वास्तव में ऐसी भयावहता से गुजर चुके हैं। अब वे सुरक्षित पनाह की उम्मीद में राज्य की सीमा पार करने के बाद मिजोरम के रिलीफ कैंपों में रह रहे हैं। इन शिविरों में इन बच्चों को सदमे से निपटने के लिए हर हफ्ते कोशिश करनी पड़ रही है। लोकल बोली नहीं जानने से तनाव बढ़ रहा है, क्योंकि वे दूर नहीं निकल सकते। ऐसे में वे उस समय को याद करते हैं, जब वे पड़ोस के बच्चों के साथ खुशी-खुशी घूम सकते थे। लेकिन, रातोंरात सब कुछ बदल गया। अब उन्हें आश्चर्य है कि क्या वे उन परिचित स्थानों और चेहरों को फिर कभी देख पाएंगे।
ऐसी भयावह स्थिति में मिजोरम के जिले में तैनात एक युवा आईएएस अधिकारी ने इन बच्चों की देखभाल के लिए छोटी पहल शुरू की है, ताकि कुछ हद तक राहत मिल सके। कहना न होगा कि इन राहत शिविरों में मणिपुर से भाग कर आए लोगों की संख्या सबसे अधिक है। अधिकारी के प्रयासों से उनके जीवन में सामान्य स्थिति लौट आती है और जख्मों पर मरहम किया जाता है। वह एजीएमयूटी कैडर के 2020 बैच के आईएएस अधिकारी हैं- शिव गोपाल रेड्डी चीमाला। वह कोलासिब जिले के कावनपुई में एसडीओ (सी) हैं।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ एक विशेष बातचीत में आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले के रहने वाले अधिकारी ने अपने नए पड़ोसी बच्चों में अपनेपन की भावना पैदा करने के लिए उठाए जा रहे कदमों को साझा किया।
शिविरों में रहने वाले बच्चों का स्कूल जाना
मणिपुर में जातीय संघर्ष शुरू होने के तुरंत बाद घाटी में रहने वाले आदिवासी लोग मिजोरम के कोलासिब जिले में पहुंचने लगे। यह असम के साथ सीमा साझा करता है। वे पहले भाग कर असम गए और फिर मिजोरम पहुंच गए। जिला प्रशासन उन्हें एडजस्ट करने और उनकी भलाई के लिए सोचकर परेशान हो गया। ग्राम परिषद के घरों, सामुदायिक और सरकारी भवनों को राहत शिविरों में बदल दिया गया। जल्दी से वहां कामचलाऊ टॉयलेट बनाए गए। स्थानीय लोग भी मदद के लिए सामने आए और इससे प्रशासन पर बोझ कम हुआ।
देखते ही देखते विस्थापित परिवारों ने फिर से इन शिविरों में अपना जीवन जीना शुरू कर दिया। इस आशा के साथ कि एक दिन वे सभी अपने गृह राज्य वापस जा सकेंगे।
इन शिविरों का दौरा करने पर शिव गोपाल रेड्डी चीमाला ने देखा कि बच्चे अभी भी बहुत डरे हुए और उदास हैं। उसका दिल भर गया। वह उनसे बात करने लगे। उनके साथ खेलने भी लगे।
उन्होंने कहा, “मैंने कोशिश की कि वे उस सदमे को भूल जाएं, जिनसे वे गुजरे है। भले ही कुछ समय के लिए ही सही। जैसे-जैसे मैंने उनके साथ अधिक बातचीत करनी शुरू की, उनमें से अधिकांश धीरे-धीरे खुलने लगे। मुझे एहसास हुआ कि इन बच्चों को सामान्य जीवन में वापस लाने की जरूरत है। इसके लिए उन्हें स्कूल जाने की जरूरत है। वहां वे अपनी शिक्षा जारी रखने के साथ-साथ स्कूल के खेल के मैदानों में साथियों के साथ खेल सकेंगे।”
इसलिए वह स्कूल-दर-स्कूल जाकर प्रिंसिपलों से इन बच्चों को एडमिशन देने और उन्हें क्लास में बैठने की परमिशन देने की अपील करने लगे। स्कूल अधिकारी तुरंत सहमत भी हो गए।
अधिकारी ने कहा, “मैंने उनसे बिना किसी दस्तावेज के उन्हें स्कूल में ले लेने का अनुरोध किया, क्योंकि वे सब कुछ छोड़ आए हैं। मैंने शिक्षकों से यह भी कहा कि अगर वे नहीं चाहते तो उन्हें पढ़ने के लिए मजबूर न करें और उन्हें खेलने की अनुमति दें। साथ ही, इस बात पर भी नजर रखनी होगी कि उन्हें लोकल बच्चे परेशान न करें, ये बच्चे यहां भाषा नहीं जानते हैं।”
उन्होंने स्कूलों से उन्हें किताबें, रंगीन पेंसिलें और क्लास के लिए जरूरी अन्य सभी सामान और खेलने के लिए खिलौने आदि उपलब्ध कराने को कहा।अपनी ओर से जितना संभव हो सके, मदद कर रहे हैं। साथ ही लोकल सिविल ऑर्गेनाइजेशनों को भी शामिल कर रहे हैं, जो मदद के लिए उत्साहपूर्वक आगे आए।
श्री रेड्डी ने कहा, “मिजो लोग बहुत गर्मजोशी से मेहमाननवाजी करते हैं। यह उनकी संस्कृति है। इसलिए वे अपनी मर्जी से मदद के लिए आगे आ रहे हैं।”
हजारों लोगों को रिलीफ देना
कोलासिब जिले में विभिन्न शिविरों में 4300 मणिपुरी लोग हैं। इनमें अकेले कावनपुई सब-डिवीजन के 8 शिविरों में 808 लोग हैं।उनकी जरूरतों का ख्याल रखना और उन्हें सम्मान का जीवन देना एक बड़ा काम है। राज्य सरकार ने शिविरों के लिए चावल की मंजूरी दे दी है, जबकि सब्जियां, दालें और अन्य खाद्य पदार्थों का इंतजाम प्रशासन द्वारा लोकल संगठनों और ग्राम परिषदों की मदद से किया जा रहा है।
श्री रेड्डी ने कहा, “यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए), मिजोरम का सबसे बड़ा सामुदायिक संगठन है, जो बहुत मदद कर रहा है। उनकी मदद से हम लोगों की सभी बुनियादी जरूरतों का खयाल रख पा रहे हैं। भोजन के अलावा, हम महिलाओं के लिए सैनिटरी नैपकिन, गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताओं के लिए पोषक तत्वों की खुराक और निश्चित रूप से दवाएं भी दे रहे हैं।”
इंडियन मास्टरमाइंड्स ने कावनपुई सब-डिवीजन में यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) के अध्यक्ष एच लालमुआनपुइया से बात की। उन्होंने माना कि वे सही में प्रशासन के साथ मिलकर विस्थापित लोगों की हर तरह से मदद करने के लिए काम कर रहे हैं
श्री लालमुआनपुइया ने कहा, “राज्य सरकार ने हर गांव में राहत समितियां बनाई हैं, जहां ग्राम परिषदें और चर्च नेता सदस्य हैं। इसलिए, हम सभी सहायता पहुंचाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। लोग धन दान करने के लिए आगे आ रहे हैं और हमने अकेले अपने सब-डिवीजन में 3 लाख रुपये से अधिक जमा कर दिखाए। हम मुफ्त भोजन, कपड़े, दवाएं, बच्चों का खाना, मच्छरदानी और जलाऊ लकड़ी भी बांट रहे हैं।”
बच्चों की काउंसलिंग
इस अचानक और हिला देने वाली स्थिति का सामना करते हुए मिजोरम सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर राज्य भर में फैले विस्थापित लोगों की मदद के लिए पैसे भेजने अपील की है। इस बीच, श्री रेड्डी सीएसआर फंड के लिए कुछ निजी कंपनियों तक पहुंच गए हैं। लेकिन अब तक केवल अपोलो ग्रुप ने राहत पैकेज का वादा किया है। अधिकारी ने कहा, सिर्फ राहत सामग्री ही नहीं, अपोलो ग्रुप मिजोरम और मणिपुर दोनों राज्यों में बड़े पैमाने पर सहायता देने की भी योजना बना रहा है। श्री रेड्डी सदमे के शिकार लोगों, विशेषकर बच्चों की काउंसलिंग को लेकर परेशान हैं। उनका मानना है कि इसके लिए यहां सही एक्सपर्ट नहीं हैं।
छोटे बच्चों के लिए गहरी चिंता जताते हुए उन्होंने कहा, “मैं जितनी बार संभव होता है, शिविरों का दौरा करता हूं। बच्चों से बातचीत कर सलाह देता रहता हूं। उनके बारे में मुझे सबसे अधिक चिंता है।” इसमें कोई शक नहीं कि छोटे बच्चों के लिए अधिकारी के छोटे-छोटे प्रयास उनकी बड़ी मदद करेंगे। वर्षों बाद जब पीछे मुड़कर वे देखेंगे, तो उन्हें वह युवा अधिकारी याद आएगा, जो एक मुस्कान और एक छोटे-से आशीर्वाद के साथ उदास शिविरों में उनसे मिलने आया करता था।
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