झारखंड में आया मौसम लाख का, खुशी से झूमे किसान
- Muskan Khandelwal
- Published on 28 Jun 2023, 4:24 pm IST
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हाइलाइट्स
- आईएफएस अधिकारी संजीव कुमार झारखंड के किसानों को लाख की खेती से बना रहे हैं अमीर, बढ़ा रहे हैं उनकी आमदनी
- इसके लिए ट्रेनिंग के प्रोग्राम होते ही रहते हैं, ताकि महिला समूहों सहित बनाए जा सकें स्वयं सहायता समूह
- राज्य में लाख की खेती की सफलता बताती है कि स्थानीय समुदाय इससे कितने खुशहाल हुए हैं
झारखंड में यह लाख का समय है। इसे लाह और लाक्षा भी कहा जाता है। महाभारत में पांडवों को जलाकर मारने के लिए कौरवों ने जो लाक्षागृह बनाया था, वह लाह का ही था। इसका इस्तेमाल वार्निश, पॉलिश से लेकर चूड़ी बनाने तक में होता है। झारखंड में इस समय लाह का सालाना 9,000 मीट्रिक टन उत्पादन होता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि एक अधिकारी ने इसकी भरपूर क्षमता को पहचाना और इसके कमर्शियल ग्रोथ के लिए कई रास्ते तलाशे। फिर इसके जरिये किसानों को सशक्त बनाया। यह अधिकारी हैं- इंडियन फॉरेस्ट सर्विस (आईएफएस) के संजीव कुमार। वह CAMPA के एडिशनल चीफ कंजर्वेटर और झारखंड में सिद्धो कान्हो कृषि और वन उपज राज्य संघ के सीईओ हैं। आगे सफलता की आशा करते हुए उन्होंने बड़े पैमाने पर लाख की खेती से राज्य के किसानों को खुशहाल जीवन जीने के रास्ते पर लाने का काम शुरू किया है।
अनजान लोगों के लिए, ‘लाह’ दरअसल छोटे-से कीड़े केरिया लैक्का का राल की तरह का सिक्रेशन है। यह न केवल झारखंड में एक महत्वपूर्ण एग्रीकल्चर प्रोडक्ट है, बल्कि आदिवासी समुदायों के लिए आय का एक बड़ा सोर्स भी है। राज्य के लगभग 29.61 प्रतिशत वन क्षेत्र में लाख सहित विभिन्न गैर-लकड़ी वन उत्पाद यानी फॉरेस्ट प्रोडक्ट्स (एनटीएफपी) पैदा होते हैं।
कैसे शुरू हुआ यहः
रोजगार के दूसरे विकल्प नहीं देख जलाऊ लकड़ी के लिए पेड़ों को काटने वाले किसानों की समस्या ने श्री कुमार को सोचने पर मजबूर कर दिया। उन्हें इसका हल लाख की खेती में मिला। इंडियन मास्टरमाइंड्स से उन्होंने कहा, “झारखंड के जंगलों में लाख के कीड़े वाले पेड़ बहुत हैं। उन्हें पहचानते हुए मैंने एक ग्रुप बनाया और लाख की खेती में रुचि रखने वालों को ट्रेनिंग दिलाई।” बता दें कि राज्य को लाख की तरह ही रेशम, महुआ और चिरौंजी जैसे माइनर फॉरेस्ट उपज के भारी भंडार के लिए जाना जाता है। लेकिन लाख की खेती में बढ़ते हुए झारखंड ने बेमिसाल यात्रा शुरू कर दी है।
ट्रेनिंग प्रोग्रामः
धान के सीजन के बाद किसानों के पास खाली समय होता है। इसका लाभ उठाते हुए लाख की खेती अतिरिक्त आमदनी का एक बड़ा सोर्स बनकर उभरी है। लाख रिसर्च इंस्टीट्यूट और इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी के सहयोग से ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए गए। इसमें दोनों संस्थानों के वैज्ञानिक गुमला के लोगों के साथ सक्रिय रूप से जुड़े रहे। इस प्रयास की सफलता ने उन्हें धनबाद में भी इसे दोहराने के लिए प्रेरित किया। वहां उन्होंने स्वयं सहायता समूह बनाए। फिर चूड़ी बनाने सहित लाख से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में उनकी भागीदारी से महिला सशक्तीकरण पर जोर दिया।
आर्थिक लाभ से आगेः
इस पहल का प्रभाव आर्थिक लाभ से आगे है। शांतिपूर्ण तरीके से कमाने के उपाय करके क्षेत्र के कई लोगों को नक्सलवाद की ओर जाने से रोका गया। इस तरह क्षेत्र की पूरी सुरक्षा और स्थिरता में योगदान दिया गया। श्री कुमार ने कहा, “मेरे प्रयासों को दो पुरस्कारों के माध्यम से मान्यता मिली। ये मुझे धनबाद में डीएफओ के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान क्रमशः लाख रिसर्च इंस्टीट्यूट और प्रयागराज यूनिवर्सिटी द्वारा 5,000 से अधिक लोगों को लाख की खेती में शामिल करने के लिए मिले थे।”
जमशेदपुर से रांचीः
झारखंड के इंडस्ट्रियल टाउन जमशेदपुर में ट्रांसफर हो जाने के बाद भी श्री कुमार ने अपना काम जारी रखा। वहां भी लाख की खेती में हजारों लोगों की उत्साही भागीदारी देखी। अब वह राजधानी रांची में तैनात हैं। उनका लक्ष्य इस पहल को पूरे राज्य में फैलाना है, जिसमें सभी जिलों में स्वयं सहायता समूहों और गांव स्तर के ट्रेनिंग के साथ-साथ रांची में लाख रिसर्च इंस्टीट्यूट में विशेष प्रशिक्षण शामिल है।
बढ़िया ट्रेनिंगः
ट्रेनिंग प्रोग्रामों में लाख की खेती के जरूरी पहलुओं को शामिल किया जाता है। जैसे लाख को निकालना, कीटनाशकों के प्रयोग का उचित समय और चूड़ियों और अन्य सजावटी वस्तुओं का उत्पादन। इन प्रयासों का प्रभाव स्पष्ट है, क्योंकि लाख की खेती में भारी वृद्धि देखी गई है। झारखंड में इस समय सालाना 9,000 मीट्रिक टन लाख का उत्पादन होता है। अधिकारी का मानना है कि निरंतर समर्थन से राज्य में 16 से 17,000 मीट्रिक टन का उत्पादन स्तर हासिल हो सकता है।
जैव विविधता और जलवायु की रक्षाः
लाख की खेती का महत्व इसके आर्थिक लाभों से कहीं अधिक है। एक माइनर फॉरेस्ट प्रोडक्ट के रूप में यह जंगल से जुड़ाव की भावना को बढ़ावा देता है। टिकाऊ प्रथाओं और जैव विविधता यानी बायो डायवरसिटी की सुरक्षा को बढ़ावा देता है। अधिकारी ने कहा, “लाख वाले पेड़ों को एक अनुकूल इकोसिस्टम की आवश्यकता होती है, जिससे अन्य पेड़ों की वृद्धि होती है और बायो डायवरसिटी में समग्र वृद्धि होती है।”
झारखंड में लाख की खेती की सफलता स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देते हुए स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने की परिवर्तनकारी शक्ति का उदाहरण है। आईएफएस अधिकारी संजीव कुमार के लगन और दूरदर्शिता ने न केवल किसानों की आजीविका में सुधार किया है, बल्कि वनों के संरक्षण और क्षेत्र की समग्र भलाई में भी योगदान दिया है। चल रहे प्रयासों और सहयोग से झारखंड में लाख का अग्रणी उत्पादक बनने की क्षमता है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
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