अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है: यह इस स्कूल ने साबित किया है
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 27 May 2023, 2:42 pm IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- राजस्थान पुलिस का सिपाही 250 बच्चों को मुफ्त में पढ़ा रहा है
- स्लम के बच्चों को शिक्षित करने का उनका मिशन 7 साल पहले शुरू हुआ था •
- वह जल्दी स्कूल छोड़ देने वालों की संख्या कम करने के लिए हॉस्टल भी खोलने को तैयार हैं
प्रसिद्ध हिंदी कवि दुष्यंत कुमार ने लिखा है- “कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।” यानी “अगर किसी के पास हौसला है, तो कुछ भी असंभव नहीं है।” राजस्थान पुलिस के धर्मवीर जाखड़ इसके जीवित उदाहरण हैं। वैसे कई लोगों के इरादे तो बड़े होते हैं, लेकिन उन्हें कभी अमल में नहीं लाते। लेकिन जाखड़ को विश्वास था कि वह समाज के लिए क्या कर सकते हैं।
चुरू में राजस्थान पुलिस के कांस्टेबल जाखड़ ने सात साल पहले लगभग अपने दम पर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों और खानाबदोश समुदायों के लिए एक स्कूल खोला था। दिसंबर, 2015 में शुरू हुई जाखड़ की ‘आपणी पाठशाला’ तब से ऐसे वंचित बच्चों को मुफ्त में पढ़ा-लिखा रही है। वह 8 से 10 बच्चों के साथ अकेले ही सफर पर निकले थे, लेकिन कारवां बढ़कर आज 250 से अधिक बच्चों का है। जल्द ही वह इन बच्चों के लिए हॉस्टल भी खोलने वाले हैं।
एक सिपाही के वेतन से यह सब करना आसान नहीं था, लेकिन जाखड़ के विश्वास ने उन्हें और आगे बढ़ाया। उनका सफर प्रेरणाओं से भरा है।
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए उन्होंने कहा, “झुग्गियों में जिंदगी नरक से कम नहीं होती। झुग्गी-झोपड़ियों में पले-बढ़े बच्चों से उनका ‘मासूम बचपन’ छीन लिया जाता है। इन बच्चों को शिक्षा से वंचित नहीं किया जाना चाहिए, जो सबका अधिकार है। इसलिए हमारा मिशन महत्वपूर्ण है।”
आपणी पाठशाला:
अपनी पाठशाला भारत के किसी भी सरकारी प्राइमरी स्कूल की तरह है। फर्क सिर्फ इतना है कि यह गैर-मान्यता प्राप्त है और झोपड़ियों में चलता है। कक्षा 1 से 5 तक के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा के साथ-साथ जनभागीदारी से प्रतिदिन उचित भोजन की व्यवस्था भी की जाती है। यहां तक कि बच्चों को स्कूल लाना-जाना भी मुफ्त है। उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए सब कुछ मुफ्त है।
जाखड़ इन बच्चों पर प्रति माह लगभग 4.50 लाख रुपये खर्च करते हैं। यह पूरा पैसा लोगों की मर्जी से दिया योगदान होता है।
आखिर यह सब कब शुरू हुआ? दरअसल श्री जाखड़ जब 2015 में चूरू में तैनात थे, तब उन्होंने कई खानाबदोश समुदायों के बच्चों को पुलिस लाइन में घूमते और भीख मांगते देखा था। वह उन्हें शिक्षित करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने महिला थाने से सटे एक पेड़ के नीचे अपनी दो साथियों के साथ पढ़ाना शुरू किया। इस पहल ने धीरे-धीरे एक स्कूल का रूप ले लिया।
फिर महिला और पुरुष कांस्टेबलों और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने साथ दिया। इस तरह “अपनी पाठशाला” अस्तित्व में आ गई। यह ‘मुस्कान संस्थान’ के बैनर तले चलता है जिसकी स्थापना श्री जाखड़ ने बाद में दूसरों की मदद से की थी।
सफलता की नई ऊंचाईः
उनका स्कूल एक अस्थायी आश्रय स्थल जैसा है। इसलिए बच्चे अक्सर कुछ महीनों के लिए गायब हो जाते हैं। मां-बाप को मनाना भी एक काम है। इसलिए वह जल्द ही इन बच्चों के लिए हॉस्टल की सुविधा शुरू करेंगे, जहां ये रहेंगे और पढ़ेंगे। हॉस्टल का निर्माण पहले से ही चल रहा है।
अब जाखड़ के पास कुछ शिक्षकों की अच्छी टीम भी है। इतना ही नहीं, बच्चों को स्कूल ड्रेस, जूते, खाना और किताबें मुफ्त दी जाती हैं। फिर 5वीं पास करने के बाद जो प्रतिभाशाली होते हैं, उनका दाखिला पास के प्राइवेट स्कूल में कराया जाता है। उनकी फीस मुस्कान संस्थान भरती है।
एक अफसोसः
वैसे तो श्री जाखड़ सात वर्षों से सफलतापूर्वक अपनी पाठशाला चला रहे हैं। फिर भी वह सरकार की ओर से निराश हैं। उन्हें नेताओं, सरकार और यहां तक कि अपनी राजस्थान पुलिस से भी खूब तारीफ मिलती है, लेकिन कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती।
अब उन्हें उम्मीद है कि उनके स्कूल को मान्यता मिल जाएगी। उन्होंने कहा, “यह हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए जरूरी है। झुग्गी में रहने वाले इन बच्चों को भी शिक्षा का अधिकार है। सरकार को आगे आना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए।” मानव जाति के लिए श्री जाखड़ का मिशन कई गरीब परिवारों की बेटियों की शादी करने तक बढ़ा है। उनका ट्रस्ट मुस्कान दुबई की जेल में बंद चार राजस्थानी मजदूरों की रिहाई के लिए भी काम कर चुका है।
END OF THE ARTICLE