गरीबी और कुपोषण के खिलाफ मशरूम बना हथियार
- Pallavi Priya
- Published on 1 Jul 2023, 2:32 am IST
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हाइलाइट्स
- असम के कोकराझार में 21,000 से अधिक महिला किसान मशरूम की खेती कर चला रही हैं घर
- मिड डे मील में मशरूम को शामिल करने से जिले भर के बच्चे बन रहे स्वस्थ
- यह सब मशरूम को 'एक जिला एक उत्पाद' योजना के तहत चुने जाने के बाद शुरू हुआ
गौरांग नदी के किनारे असम के बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) में एक जिला है- कोकराझार। यह क्षेत्र लो इनकम रेट यानी कम आय दर और खराब पोषण से जूझ रहा था। लेकिन मशरूम वहां की सभी समस्याओं के लिए रामबाण साबित हुआ। बोडोलैंड यूनिवर्सिटी का बायो-टेक्नोलॉजी विभाग 2012 से मशरूम (ऑयस्टर, कॉर्डिसेप्स) की 23 विभिन्न किस्मों की खेती का प्रयोग कर रहा था। लेकिन, 2021 में वर्णाली डेका के कोकराझार की डीसी बनते ही चीजें तेजी से बदल गईं। उन्होंने जिला भर में मशरूम की खेती और खपत को बढ़ावा दिया। इससे हजारों किसानों का जीवन ही बदल गया।
ओडीओपी के तहत मशरूम का चयन
कोकराझार जिला प्रशासन केंद्र सरकार के ‘एक जिला एक उत्पाद’ यानी ODOP (वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट) कार्यक्रम के तहत मशरूम को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि ओडीओपी को चुनना एक बड़ी चुनौती थी। ओडीओपी स्लॉट के लिए कई उत्पादों में मुकाबला था। इससे 2021 तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सका। उसी वर्ष वर्णाली डेका ने ‘मशरूम मिशन’ लॉन्च किया।स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी), किसान उत्पादक समूहों, नागरिक समाज आदि के साथ कई दौर में मशविरा कर यह निर्णय लिया गया। सुश्री डेका ने इंडियन मास्टरमाइंड्स को बताया, “हमारे जिले का एग्रो-क्लाइमेट दरअसल मशरूम के खेती के लिए अनुकूल है। इसके अलावा, इसकी कम लागत और हैंडलिंग में आसानी के कारण इसमें लोगों को शामिल करने की क्षमता है।” दूसरे, उस क्षेत्र में मशरूम की खपत की दर बहुत अधिक है, इसलिए इसके उत्पादन पर अधिक ध्यान देने की जरूरत थी। इसकी खेती के लिए बड़े पैमाने पर भूमि की आवश्यकता नहीं होती है।
जीवन स्तर में सुधार
कोकराझार आदिवासी आबादी वाला जिला है। वहां के लोगों की आमदनी कम है, जिससे वहां गरीबी बहुत है। केवल कुछ मुट्ठी भर महिलाएं ही काम कर रही थीं। ऐसी स्थिति में ओडीओपी मशरूम बेहतर आजीविका और कमाई बढ़ाने के उपाय के तौर पर उभरा है। एक ऐसा प्रोडक्ट, जिसे महिलाएं आसानी से संभाल सकती हैं। अब 21000 से ज्यादा महिलाएं मशरूम उगा रही हैं। इस समय लगभग 500 से अधिक स्वयं सहायता समूह, 150 एमएसएमई और 5000 किसान मशरूम की खेती में लगे हुए हैं। सुश्री डेका ने कहा, “यह विशेष रूप से महिला किसानों और स्वयं सहायता समूहों के लिए एक आसान विकल्प है। मशरूम संयुक्त राष्ट्र के एसडीजी लक्ष्यों को भी पूरा कर सकता है। यह भूख से निपटते हुए, स्वास्थ्य और कल्याण की चिंताएं करते हुए विविधीकरण और पर्यावरणीय स्थिरता भी ला सकता है।”
मिड डे मील
कोकराझार में परंपरागत रूप से अल्पपोषण, कुपोषण, एनीमिया और आईएमआर/एमएमआर की हाई रेट थी। ऐसे में कुपोषण की चुनौती से निपटने के लिए मशरूम को एक हथियार के रूप में उपयोग करने का निर्णय लिया गया। इस तरह मिड डे मील कार्यक्रम के तहत सभी स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में मशरूम सप्लीमेंट शुरू किया गया। पोषण क्लब विटामिन डी, फोलिक एसिड और आवश्यक तत्वों से भरपूर कम लागत वाले स्वस्थ भोजन के रूप में मशरूम के लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करने में लगे हुए थे, जो विशेष रूप से गर्भवती और दूध पिलाने वाली के लिए अच्छा है।जिला प्रशासन ने किशोरियों, 3 से 6 वर्ष के बच्चों और एसएएम/एमएएम बच्चों के लिए मिड डे मील योजना में मशरूम की खुराक (बिस्कुट, सूप पाउडर और फोर्टिफाइड नूडल्स) को भी शामिल किया, जिससे जिले भर में मशरूम और उसके उत्पाद की मांग में काफी बढ़ी है।
सेहत पर असर
न्यूट्रीशनल पैरामीटर यानी पोषण मानकों में काफी सुधार देखा गया है। जैसे कम वजन वाले बच्चों (0-6 वर्ष) की संख्या में 56 प्रतिशत की कमी आई है। यह 972 से घटकर 428 हो गई। इसी तरह कमजोर बच्चों की संख्या में 55% की कमी दिखी, यानी यह 2477 से घटकर 1123 हो गई। एनीमिया से पीड़ित बच्चों (6 महीने से 59 महीने) में 76% कमी आई। यह 4728 से घटकर 1160 रह गई। खेलो इंडिया के साथ तालमेल से जिले के उभरते खिलाड़ियों के लिए बेहतर पोषण प्राप्त हुआ है। मातृ मृत्यु दर में भी 72.37% की कमी आई है।सुश्री डेका का कहना है कि इसमें सीएसआर, क्राउडसोर्सिंग और सिक्स्थ शेड्यूल काउंसिल से फंडिंग के जरिये मदद मिल रही है। केवीके, एएसएलआरएम और एएसयूएलएम के साथ विभिन्न गैर सरकारी संगठन जनता को प्रभावी ढंग से प्रशिक्षित कर रहे हैं और इस तरह आवश्यक मानव संसाधन जुटा रहे हैं।
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