कैसे एक आईएएस अधिकारी ने नीलगिरी के चाय उद्योग की किस्मत बदल दी!
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 3 Nov 2021, 10:21 am IST
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हाइलाइट्स
- कभी घटते मूल्य और श्रमिकों की तमाम समस्याओं से परेशान तमिलनाडु के नीलगिरी स्थित चाय उद्योग की किस्मत तब पलट गई, जब साल 2019 में आईएएस सुप्रिया साहू को ‘इंडकोसर्व’ का सीईओ बनाया गया
- उनके प्रयासों की बदौलत पिछले 6 महीने से भी कम समय में ‘इंडकोसर्व’ तमिलनाडु और केरल सरकार को लगभग 60 लाख किलोग्राम चाय बेहतर मूल्य पर सप्लाइ कर चुका है
- आईएएस सुप्रिया साहू 'इंडकोसर्व' के श्रमिकों के साथ
भारतीय चाय उद्योग के लिए ये सुनहरा दिन था। नीलगिरि की खूबसूरत वादियों में उगाई जानी वाली ‘चाय’ की शीर्ष संस्था ‘इंडकोसर्व’ को फेयरट्रेड (निष्पक्ष व्यापार) सर्टिफिकेट मिला है। ‘इंडकोसर्व’ को यह प्रमाणपत्र फेयर ट्रेड प्रमाणीकरण की वैश्विक संस्था जर्मनी की फ्लोसर्ट (FLOCERT) से प्राप्त हुआ है। यह फेयरट्रेड संस्था 72 देशों में काम करती है और जर्मनी के बॉन शहर में इसका मुख्यालय है। फेयरट्रेड प्रमाणीकरण एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित उत्पाद प्रमाणन प्रणाली है, जहां उत्पादन के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं को एक कठोर प्रक्रिया के माध्यम से प्रमाणित किया जाता है।
लेकिन ‘इंडकोसर्व’ के इस अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रमाणीकरण की बड़ी सफलता के पीछे तमिलनाडु सरकार की पर्यावरण और वन प्रमुख सचिव और ‘इंडकोसर्व’ की सीईओ आईएएस सुप्रिया साहू का सबसे बड़ा योगदान है। उनके अथक प्रयासों के बदौलत ही कभी सही मूल्य न मिल पाने जैसी तमाम समस्याओं से घिरा एक राज्य सहकारी संघ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित प्रमाणीकरण का हकदार बन पाया।
मीलों तक घने जंगल, शुद्ध हवा और भरपूर प्राकृतिक सुंदरता वाले तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में ‘इंडकोसर्व’ 30,000 से अधिक छोटे चाय किसानों के साथ काम करने वाला भारत का सबसे बड़ा ‘चाय सहकारी संघ’ (टी कोआपरेटिव फेडरेशन) है। इस संघ के सदस्य के रूप में मशहूर इंडको चाय के 16 कारखाने काम रहे हैं। यह सालाना लगभग 1 करोड़ 40 लाख मिलियन किलोग्राम चाय का उत्पादन करता है और नीलगिरी घाटी और राज्य की अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदान देता है। हाल ही में ‘इंडकोसर्व’ की सीईओ वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सुप्रिया साहू को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने यह सर्टिफिकेट प्रदान किया।
सुप्रिया के अनुसार अंतरराष्ट्रीय प्रमाणन के योग्य बनने के लिए पिछले एक साल में ‘इंडकोसर्व’ ने जल पारिस्थितिकी तंत्र और सुरक्षा मानकों सहित 15 नीतियों पर काम किया है। साथ ही चाय निर्माण में नैतिक अनुपालन सुनिश्चित किया है। सुप्रिया का कहना है कि सामान्य तौर पर, सरकारी संगठन में विकास के अवसर कम दिखते हैं, लेकिन ‘इंडकोसर्व’ ने उस मिथक को तोड़ा है और आज निजी पेशेवरों के बराबरी में काम कर रहा हैं। ‘इंडकोसर्व’ ने खेती के जैविक तरीके की ओर बढ़ने के लिए कीटनाशकों और उर्वरकों के सुरक्षित उपयोग के बारे में जागरूकता भी पैदा की है।
कैसे आया बदलाव
इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से एक खास बातचीत में 1991 बैच की वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सुप्रिया साहू ने कहा, “मैंने अक्टूबर 2019 से ‘इंडकोसर्व’ का कार्यभार संभाला और उसके बाद से ही कुछ बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन जो इंडकोसर्व जैसे संगठन के लिए लंबे समय से लंबित थे, लाने में सफल रही। साल 1965 में अपनी स्थापना के समय से ही इस संगठन के कंधों पर बहुत सारी जिम्मेदारियां थीं।” हमने जो कुछ प्रमुख बदलाव किए, वो इस तरह हैं-
अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणन: हमने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय उद्योग कार्य प्रणालियों के आधार पर ‘इंडकोसर्व’ चाय के लिए प्रमाणन प्राप्त करने के लिए जरूरी प्रक्रिया शुरू कर दी। इसी का नतीजा रहा कि ‘इंडकोसर्व’ भारत की पहली सरकारी सहकारी समिति है, जिसने प्रतिष्ठित ‘फेयरट्रेड प्रमाणन’ प्राप्त किया है। साथ ही ‘इंडकोसर्व’ को उसके 3 कारखानों के लिए ‘ट्रस्टटी प्रमाणपत्र’ भी मिला है और शेष कारखाने कुछ सप्ताह के भीतर इसे पाने की प्रक्रिया में हैं।
मिशन गुणवत्ता: हमने अपने चाय उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ाने के उद्देश्य से हमने ‘मिशन क्वालिटी’ लॉन्च किया, जिससे कि हमारे उत्पाद की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रीमियम दरों पर आपूर्ति की जा सके। इसके लिए हमने अपने कार्यालय में ‘गुणवत्ता निगरानी अधिकारी’ नियुक्त किए हैं। साथ ही चाय उद्योग कार्यप्रणालियों का अध्ययन करते हुए, हम चाय निर्माण के लिए गुणवत्ता बुलेटिन जारी कर रहे हैं।
टी टेस्टिंग रूम: हमने ‘इंडकोसर्व’ के हेड ऑफिस में सभी मानक नियमों और मानदंडों को ध्यान में रखते हुए एक अत्याधुनिक ‘चाय परीक्षण केंद्र’ स्थापित किया।
प्रशिक्षण और नीति: प्रबंध निदेशकों, चाय निर्माताओं और चाय पत्ती पर्यवेक्षकों का प्रशिक्षण और निर्देशन नियमित रूप से किया जा रहा है। गुणवत्ता के उच्च मानकों को ध्यान में रखते हुए, हमने अपने कारखानों को प्रेरित करने के लिए एक साप्ताहिक गुणवत्ता प्रमाणन पहल भी शुरू की है। साथ ही बेहतर प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों के लिए एक पुरस्कार योजना भी बनाई जा रही है।
इंडको चाय/खाद्य ट्रक व्यवसाय (इंडको चाय वंडी): हमने ‘विशेष क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ (एसएडीपी) के सहयोग से पहली बार ‘इंडको चाय/खाद्य ट्रक व्यवसाय’ शुरू किया है। वर्तमान में अभी नीलगिरी जिले में 5 इंडको ट्रक काम कर रहे हैं, जबकि 20 और इंडको ट्रक पूरे तमिलनाडु में संचालित किए जाने की योजना है।
इंडको टी हाउस: हमारे मूलभूत परिवर्तनकारी प्रयासों और एक नए बाजार के निर्माण के अवसर के उद्देश्य से ‘इंडकोसर्व’ ने ‘इंडकोज टी हाउस’ ब्रांड के तहत कुन्नूर के बेडफोर्ड में अपनी पहली चाय और स्नैक शॉप शुरू की। यह जल्द ही यहां आने वाले आगंतुकों के लिए एक बेहतर अनुभव केंद्र के रूप में विकसित होगा, जहां एक छोटे से पढ़ने वाले नुक्कड़ केंद्र और स्थानीय संगीतकारों के लिए अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर रहेगा। यह ‘इंडकोसर्व’ के आम लोगों से जुड़ने का नया तरीका है।
स्मार्ट चाय पत्ती संग्रह केंद्र: ‘विशेष क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ (एसएडीपी) के वित्तीय सहयोग से पचास स्मार्ट चाय पत्ती संग्रह केंद्रों स्थापित किए गए हैं। ये केंद्र छोटे चाय उत्पादकों को हरी चाय की पत्तियों के संग्रहण, उसकी और पत्तियों के वजन सहित सभी सुविधाएं प्रदान करेंगे।
कारखानों का आधुनिकीकरण: हमने अपने कारखानों के आधुनिकीकरण पर भी खूब ज़ोर दिया है। हाल ही में तमिलनाडु के वित्त विभाग के माध्यम से नाबार्ड ने रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (आरआईडीएफ) के तहत 18 करोड़ रुपये की लागत से 5 चाय कारखानों के आधुनिकीकरण के लिए मंजूरी दी है।
ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया: हमने ‘इंडकोसर्व’ वेबसाइट को अत्याधुनिक ई-कॉमर्स वेबसाइट में बदला है। साथ ही हमने एक समर्पित ब्रांड मैनेजर लाकर अपनी सोशल मीडिया उपस्थिति को भी आम लोगों तक बढ़ाया है।
अन्य उपाय: ‘इंडकोसर्व’ में हमने टेक्नोलॉजी को बढ़ावा दिया है और अधिकतर लोगों को इसके तहत काम करने के लिए प्रोत्साहित किया है। हमने छोटे चाय उत्पादकों के लिए ‘इंडकोसर्व’ का एक विशेष एप्लिकेशन (इंडको ग्रोअर्स ऐप) और पीडीएस शॉपस (पीडीएस ऐप) लॉन्च किया, साथ ही संचालन की बेहतर निगरानी और पर्यवेक्षण के लिए केंद्रीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (सीएमआईएस) की शुरुआत की। समय-समय पर हम अपने उत्पादों की नई रेंज लॉन्च करते हैं। हाल ही में हमने 7 नई रेंज लॉन्च की हैं। इससे हमारे कारखानों में निर्मित होने वाले सभी चाय ग्रेड के लिए, हमें नए बाजार उपलब्ध कराने में मदद मिलती है। इसके साथ-साथ हमने अपने कारखानों और उसके पास पर्यावरण बहाली पर भी खास ध्यान दिया है। वहीं इन सब पहलों के माध्यम से हमारी कार्य योजना को बड़ी सफलता मिलती तब दिखी, जब केरल और तमिलनाडु सरकार से हाल ही में हमें चाय की सप्लाई को लेकर बड़े ऑर्डर मिले।
‘इंडकोसर्व’ का अनुभव और कठिनाइयां
सुप्रिया साहू कहती हैं, “मैं अगर ईमानदारी से कहूं तो ‘इंडकोसर्व’ के साथ अपने अनुभव को अपने कैरियर में सर्वश्रेष्ठ में से एक कहूंगी। इसके पीछे कई कारण हैं। मुझे आज भी वह समय याद है जब मैं नीलगिरी जिले के कलेक्टर के रूप में तैनात थी, जहां ‘इंडकोसर्व’ 16 औद्योगिक सहकारी चाय कारखानों और अन्य बुनियादी ढांचे जैसे कि पैकेजिंग इकाइयों, गोदामों आदि के साथ संचालित होता है। मुझे तत्कालीन कलेक्टर के रूप में नाराज और आंदोलनकारी भीड़ का सामना करना पड़ा था, क्योंकि ‘हरी चाय’ की पत्तियों के लिए जिस बाजार मूल्य का भुगतान किया जा रहा था, वह बहुत नीचे गिरकर 2.00 रुपये से भी कम के दयनीय स्तर पर पहुंच गया था। यह स्थिति बेहद गंभीर थी, क्योंकि ‘निर्मित चाय’ की कीमतें भी ऐतिहासिक गिरावट पर थीं और निर्यात भी बुरी तरह से कम हो चुका था। लेकिन हमने सरकारी, निजी और अंतरराष्ट्रीय चैनलों के माध्यम से कई सारी पहलें की, क्षेत्र के चाय उत्पादकों के साथ व्यापक बातचीत की, इस सबकी मदद से हमने स्थिति को नियंत्रण से बाहर होने से बचाया और सफलतापूर्वक इसका हल निकालकर एक बेहतर प्रतिस्पर्धी बाजार को फिर से स्थापित किया।”
सुप्रिया बताती हैं कि दक्षिण भारत के चाय उद्योग से संबंधित प्रमुख मुद्दा विशेष रूप से नीलामी मूल्यों और बिक्री के प्रतिशत में बेतहासा उतार-चढ़ाव के संबंध में है, जिसका चाय बाजार सप्ताह दर सप्ताह सामना करता है। यह अभूतपूर्व अनिश्चितता बहुत से बाहरी प्रभावों के कारण हैं। इन कारणों में मुख्य रूप से उत्तर पूर्व भारतीय, केन्याई और श्रीलंकाई चाय उद्योग शामिल हैं, जिनके पास चाय उगाने में स्थानीय और संचालन अनुकूल परिस्थितिजनक फायदे हैं और इस वजह से वहां बड़ी मात्रा में पैदावार भी होती है। साथ ही, हमारे यहां प्रतिकूल मौसम भी चाय सेक्टर को प्रभावित करता है। चाय बागानों और चाय कारखानों में काम करने के लिए कुशल श्रमिकों की कमी भी एक प्रमुख चिंता का विषय है।
फेयर ट्रेड सर्टिफिकेट ला सकता है बदलाव
सुप्रिया साहू का मानना है कि फेयर ट्रेड सर्टिफिकेट भारतीय उद्योगों में बड़ा सकरात्मक परिवर्तन ला सकता है। इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से उन्होंने कहा, “जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है, कि फेयरट्रेड प्रमाणन एक संगठन की ‘संकीर्ण आर्थिक हितों’ से परे सोचने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत एक युवा और महत्वाकांक्षी देश है, इसलिए भारतीय उद्योगों को निष्पक्ष व्यापार प्रणाली, छोटे उत्पादकों और श्रमिकों को सशक्त बनाना और स्थायी आजीविका को बढ़ावा देने पर जोर देने की जरूरत है। चूंकि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, इसलिए सामाजिक पहलुओं के संदर्भ के साथ-साथ, समान लाभ साझा करना और साझेदारी करना, व्यापार और व्यवसाय के लिए भी सर्वोत्कृष्ट है। अपने चार्टर, उद्देश्य और स्थापना को देखते हुए फेयरट्रेड प्रमाणन, इन सिद्धांतों को नियमित करने और उन्हें निर्णायक रूप से सुदृढ़ करने में मदद कर सकता है। इसका लक्ष्य चौतरफा है – मूल्य आधारित और समान विकास।”
आज के वैश्विक बाजार में ऐसे सर्टिफिकेट का महत्व
सुप्रिया कहती हैं, “पेय उद्योग और उससे जुड़े बाजार लगातार बड़े होते जा रहे हैं। जैसे-जैसे लोगों की पसंद का दायरा बढ़ रहा है, वैसे-वैसे उत्पादों की मांग भी बढ़ रही है जो कुछ खास और भीड़ से अलग हों। ऐसे उत्पाद जो गुणवत्ता, निर्माण के प्रकार, समावेशिता और सतत प्रणाली के संदर्भ में विशिष्टता प्रदर्शित करते हों, उन्हें हमेशा उच्च मानकों की श्रेणी में रखा जाता है और उनकी बिक्री अधिक होती है। यह मूल्य प्रस्ताव है, जिसे कि फेयरट्रेड जैसे प्रशंसित प्रमाणपत्रों के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है।”
भारतीय उद्योगों के लिए फेयरट्रेड किस हद तक जरूरी
फेयरट्रेड जैसे प्रमाणीकरण भारतीय उद्योगों के लिए किस हद तक जरूरी हैं, इसके जवाब में सुप्रिया कहती हैं, “एक संगठन के फेयरट्रेड प्रमाणित होने का मतलब है कि उसके उत्पाद के खरीदारों को उत्पादकों को एक एफटी न्यूनतम मूल्य और एफटी प्रीमियम का भुगतान करना होगा। एफटी प्रीमियम किसानों और श्रमिकों को उनके व्यवसायों और समुदायों की गुणवत्ता में सुधार के लिए निवेश करने के लिए अतिरिक्त धन प्रदान करता है। एफटी प्रमाणन पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ कृषि पद्धतियों, सामाजिक अधिकारों और श्रमिकों को सुरक्षा और जबरन श्रम और बाल श्रम के निषेध को सुनिश्चित करने के लिए संगठन पर बड़े स्तर की जिम्मेदारी डालता है। यह मूल रूप से व्यापार का लोकतंत्रीकरण करता है। प्रमाणन प्रक्रिया अपने आप में एक बेहतर सहभागी माहौल बनाती है और संगठन के मानकीकरण की दिशा में एक लहर रूपी असर पैदा करती है।”
अपने अनुभव से उद्योगों के लिए सुझाव
सुप्रिया कहती हैं, “अतीत से यह समझा जा सकता है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, इस तरह के प्रतिष्ठित प्रमाण पत्र हमेशा से मांग में रहे हैं, क्योंकि वे निस्संदेह ब्रांड के मूल्य, ब्रांड की पहचान और उसकी पहुंच को बढ़ाते हैं। साथ ही, ऐसे प्रमाणपत्र प्राप्त करने से आधुनिकीकरण, उत्पादों के कायाकल्प और रखरखाव और साथ-साथ उत्पाद संबंधी बुनियादी ढांचे में योगदान होता है। इसलिए, कोई भी उद्योग इस तरह के प्रासंगिक प्रमाणीकरण प्राप्त करने की दिशा में काम रहा है, तो उसे अपने स्वयं के विकास और समृद्धि के लिए तुरंत अपनी सारी ऊर्जा इसे पाने में ही लगा देना चाहिए।”
1965 में तमिलनाडु सरकार द्वारा स्थापित ‘इंडकोसर्व’ की उत्पाद श्रृंखला पूरे देश में विख्यात है, इसमें ‘माउंटेन रोज टी’ (पत्ती और धूल ग्रेड), ‘ब्लूमोंट टी’ (प्रीमियम चाय) और ‘ऊटी टी’ शामिल हैं जिन्हें तमिलनाडु सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से उचित मूल्य पर उपलब्ध कराया जाता है।
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