एक ‘मृतप्राय’ नदी को नया जीवन देने वाली आईएएस अधिकारी!
- Pallavi Priya
- Published on 20 Jan 2022, 9:55 am IST
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हाइलाइट्स
- बिहार के सीतामढ़ी जिले की जीवन-रेखा मानी जाने वाली एक नदी, जो अपने लोगों के लिए एक भावनात्मक सहारा भी थी, कई वर्षों से सूखी पड़ी थे और लगभग मृतप्राय हो गई थी।
- लेकिन फिर एक दिन एक महिला आईएएस अधिकारी आती है, और लोगों को उनकी मोक्षदायिनी नदी जीवित अवस्था में वापस करती है।
- यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी, बल्कि जीवन की सबसे मूलभूत जरूरत पानी को बचाने की मुहिम की जीवटता भरी कहानी है। पढ़िए इंडियन मास्टरमाइण्ड्स की खास रिपोर्ट!
किसी मृतप्राय या सूख चुकी नदी को पुनर्जीवित करने का प्रयास ही अपने आप में बड़ा काम प्रतीत होता है, लेकिन जरा सोचिए अगर कोई अपने प्रयासों से एक मृत हो चुकी नदी को सच में जीवित कर दिखलाए और फिर से बहते पानी की कल-कल करती धार नदी के पास बसे लोगों के कानों में आने लगे, तो कोई भी इन भागीरथ प्रयासों को वरदान या चमत्कार से कम नहीं आंकेगा। लेकिन ये कहानी एक ऐसे ही आईएएस अधिकारी के भागीरथ प्रयासों की है, जिसने लोगों को उनकी जीवनदायिनी नदी पुनर्जीवित कर वापस लौटा दी।
आमतौर पर मनुष्यों की वर्षों की उपेक्षा और दुरुपयोग, लगातार बहती गंदगी, प्रतिकूल पर्यावरणीय कारक और अंधाधुंध भूजल दोहन जल के स्त्रोतों को तबाह करते हैं। ऐसा ही बिहार की ‘लखनदेई नदी’ के साथ हुआ। नेपाल से निकालने वाली यह नदी, बागमती नदी की एक सहायक नदी मानी जाती है और सीतामढ़ी जिले से होकर मुजफ्फरपुर तक बहती है। लेकिन लोगों की उपेक्षा ने इसे सूखने की कगार पर छोड़ लगभग मृत बना दिया था।
लेकिन एक इंसान के दृढ़ संकल्प, समर्पण और कड़ी मेहनत के कारण, जिस नदी को मृत मान लिया गया था, उसे पुनर्जीवित कर फिर से जीवनदायिनी बना दिया गया है। और वह इंसान हैं, सीतामढ़ी की पूर्व जिलाधिकारी अभिलाषा कुमारी शर्मा।
विशाल सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व वाली ‘लखनदेई नदी’ लंबे समय तक पूरे सीतामढ़ी जिले के लिए उनकी जीवनदायिनी थी, क्योंकि उनके पूरे इलाके में सिंचाई का मुख्य स्रोत लखनदेई ही थी। लेकिन वक्त गुजरा और लोग भी नदियों को मां मानने वाले देश में अपनी उपेक्षा का दायरा अपनी मां के लिए ही बढ़ाते चले गए। हालात यह हो गए कि पिछले कुछ दशकों में नदी में बढ़ते प्रदूषण और गाद के कारण इसका जल स्तर लगातार घटने लगा। नदी विभिन्न जगहों पर तो कई किलोमीटरों तक पूरी तरह से सूख गई, जिससे भूजल का स्तर बिगड़ गया और साथ ही कभी लोगों को अपार जल देने वाली यह नदी किसानों को उनकी जरूरतों को पूरा करने में विफल होने लगी। सालों तक ऐसा ही रहा और थक हारकर लोग भी किसी भागीरथ के इंतजार में बाट जोहने लगे। लेकिन, तभी आशा की किरण उस समय चमक उठी, जब अभिलाषा कुमारी शर्मा को सीतामढ़ी जिले में पोस्टिंग मिली।
2014 बैच की आईएएस अधिकारी को साल 2019 के अगस्त महीने में जिलाधिकारी के रूप में यहां स्थानांतरित किया गया था। उन परिस्थितियों को स्थिति को फिर से याद करते हुए शर्मा ने भारतीय मास्टरमाइंड्स से कहा, “जब मैं यहां आई थी तो यह जिला पहले से ही बाढ़ का सामना कर चुका था और फिर से उसी स्थिति की कगार पर खड़ा था। लगभग हर साल इस नदी से पिपरा कल्याण, खापखोराहेटक सहित जिले के विभिन्न गांवों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। यह ऐसे मुद्दे थे जिन पर जल्द से जल्द ध्यान देने की जरूरत थी। मैंने पूरी स्थिति का अवलोकन किया और इस नदी को पुनर्जीवित करने और इसे ठीक से चैनलाइज (दिशा देकर रास्ता बनाना) करने की योजना बनाई, जिससे कि जल भराव की समस्या को हल किया जा सके।”
शर्मा ने इस परियोजना में बिहार सरकार के ‘जल, जीवन और हरियाली योजना’ के तहत काम करने का फैसला किया। हालांकि, उनकी पोस्टिंग से पहले लखनदेई नदी के पुनरुद्धार के लिए कुछ कदम जरूर उठाए गए थे, लेकिन वो नाकाफी ठहरे और उनसे बहुत कुछ हासिल नहीं किया जा सका था। भूमि के अधिग्रहण में भी कई मुद्दे थे, जो अब इस बड़े काम में अवरोध पहुंचाने की तरह नजर आ रहे थे और इन समस्याओं ने उन्हें कई बार निराशा की तरफ धकेल विफल करने का भी प्रयास किया।
किसानों को समझाना
लेकिन शर्मा भी अपनी जिद पर अटल थीं। नदी के पुनरुद्धार के लिए तुरंत 23 एकड़ भूमि की आवश्यकता थी। किसानों को अपनी जमीन छोड़ने के लिए राजी करना सबसे मुख्य समस्या थी। शर्मा ने इससे निपटने की योजना पहले ही तैयार कर ली थी। वह जानती थी कि इस समस्या का केवल एक ही रास्ता है, वह है किसानों के साथ एक स्वस्थ संवाद करना। वह स्वयं व्यक्तिगत रूप से उनके पास गईं और किसानों का पक्ष सुना। कुछ ही बैठकों में उन्हें अंदाजा लग गया कि किसान प्रस्तावित दरों से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने किसानों से वास्तविक दरें देने का वादा किया। साथ ही, उन्हें यह भी आश्वस्त किया कि कैसे उनके ये छोटे प्रयास और समझौते, आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ी समस्या को हल कर सकते हैं।
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
लखनदेई को लक्ष्मण गंगा के नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय आबादी के लिए इसका बहुत बड़ा सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। यह सीतामढ़ी जिले में पानी के मुख्य स्रोतों में से एक है। छठ पूजा सहित कई अनुष्ठान और त्योहार इस नदी के किनारे होते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस नदी ने अपना आकर्षण खोना शुरू कर दिया। शर्मा को भी इसका महत्व पता था और इसी ने उन्हें इस दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया। वह इस नदी को जीवन देकर इस क्षेत्र की संस्कृति को भी संरक्षित करना चाहती थीं।
वो कहती हैं, “जब मैं नदी के पुनरुद्धार की योजना बनाने के लिए उस क्षेत्र के चारों ओर सर्वेक्षण कर रही थी, तो कई लोगों ने मुझे यह बताया कि कैसे उनके बचपन के कुछ सबसे यादगार लम्हे इसके साथ जुड़े हुए हैं। उन सभी का इस नदी के साथ जैसे एक भावनात्मक जुड़ाव था। यही कारण था कि वे पूरी तरह से हमारी टीम की मदद करने और अपना समर्थन देने के लिए खुश थे। मैंने उस नदी को भी चैनलाइज किया, जहां दाह-संस्कार के बाद के अनुष्ठान होते थे। नदी का वह रास्ता, कई सालों से सूख गया था।”
पेड़ के नाम ग्रामीणों के नाम पर रखे गए
शर्मा नदी के आस-पास के क्षेत्रों में ‘जल, जीवन और हरियाली योजना’ के तहत वृक्षारोपण भी कर रही हैं। वृक्षारोपण पूरा होने के बाद, प्रत्येक पेड़ का नाम ग्रामीणों के नाम पर रखा जाएगा, जिससे कि पुनरुद्धार कार्य में प्रदान की गई उनकी मदद की सराहना की जा सके।
चेहरे पर बेहद खुशी के साथ शर्मा कहती हैं, “मुझे बिहार के कुछ अन्य जिलों में तैनात किया जा चुका है, लेकिन सीतामढ़ी मेरे लिए अब तक का सबसे अच्छा अनुभव रहा है। यहां के लोग बहुत सहयोगी हैं और हमारे हर एक अभियान में हमारा सहयोग करते हैं। वृक्षारोपण एक योजना के तहत किया जाना था। इसकी योजना बनाते समय, हम पौधे लगाने के बाद उनका नाम ग्रामीणों के नाम पर रखने के बेहतरीन विचार के साथ आगे बढ़े, जिससे कि ग्रामीणों को उनकी सहायता करने के नेक इरादों के लिए हम उनका सम्मान कर सकें और उन्हें एक पहचान दे सकें।”
इस वर्ष कोई जल जमाव नहीं
लखनदेई नदी, मुजफ्फरपुर जाने से पहले जिले के 18 किलोमीटर से अधिक हिस्से में बहती है। दो महीनों में, 18 किलोमीटर के खंड के लिए काम पूरा हो गया था और अपने अंतिम चरण में पहुंच गया। शर्मा और उनकी टीम द्वारा बनाई गई योजना की मदद से, अधिकांश रास्तों में बिना किसी समस्या के पानी का प्रवाह हुआ और पूरे जिले में इस साल कहीं भी जल भराव नहीं हुआ।
शर्मा कहती हैं, “बरसात में, बाढ़ के बाद हर साल खेतों में महीनों तक पानी भरा रहता था। किसानों के पास इंतजार करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। हालांकि, इस साल नदी के उचित चैनलाइजिंग ने हमारे पक्ष में काम किया और क्षेत्र में लगभग शून्य जल भराव रहा। कोरोना महामारी के वक्त लॉकडाउन के कारण, अंतिम चरण में पुनरुद्धार कार्य रोक दिया गया था। लेकिन बाद में यह फिर से शुरू कर दिया गया और हमें उम्मीद है कि नदी बहुत जल्द पूरी तरह से साफ पानी से भर जाएगी।”
केवल लखनदेई ही नहीं, बल्कि शर्मा कई अन्य नदियों को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही हैं, जिनमें मनुस्मारा नदी और अधवारा समूह की नदियां शामिल हैं। वह मानती हैं कि जिले की आधी समस्याएं इन नदियों के उचित चैनलाइजेशन से हल हो जाएंगी, जो यहां के जीवन का मुख्य स्रोत हैं। हमें उम्मीद है कि अभिलाषा शर्मा अपने अंतिम उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल रहेंगी और ऐसे ही अन्य अधिकारियों को भी लोगों की जीवनदायिनी नदियों से लेकर पर्यावरण बचाने और एक बेहतर समाज बनाने के लिए प्रेरित करती रहेंगी।
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