वो आईएएस अधिकारी जिसका सपना स्कूलों में बड़े बदलाव का था और उसने कर के भी दिखाया
- Bhakti Kothari
- Published on 26 Nov 2021, 10:33 am IST
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हाइलाइट्स
- आखिर क्यों, एक सरकारी स्कूल हमेशा जीर्ण-शीर्ण और उजड़ा हुआ दिखना चाहिए? आखिर क्यों, यह सबसे अच्छे निजी स्कूलों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता?
- ये ऐसे सवाल हैं जो आईएएस अधिकारी फौजिया तरन्नुम को हमेशा से प्रेरित करते रहे हैं क्योंकि वह कर्नाटक के इस खूबसूरत क्षेत्र में स्कूलों को एक जादुई बदलाव देने के लिए जानी जाती हैं।
- आईएएस फौजिया तरन्नुम – जिनके दिमाग में आधुनिक स्कूल की योजनाएं रहती हैं।
पारंपरिक सरकारी स्कूलों को शिक्षा के आधुनिक स्मार्ट मंदिरों में बदलना उनका हमेशा से सपना था। इसी सपने को पूरा करने की चाह लिए, एक बार जब वो आईएएस अधिकारी बन गईं और कर्नाटक के चिक्काबल्लापुर में उन्हें पहली नियुक्ति मिली, तो 2015 बैच की आईएएस फौजिया तरन्नुम को पूरी ईमानदारी और तत्परता के साथ अपने सपने को पूरा करने से भला कौन रोक सकता था!
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कई नायकों में से एक, महान अमेरिकी दार्शनिक हेनरी डेविड थोरो ने एक बार टिप्पणी की थी, “यदि आपने हवा में महल बनाए हैं, तो आपका काम बेकार नहीं जाएगा, यही वह जगह है जहां उन्हें होना चाहिए। लेकिन अब उनकी मजबूत नींव उनके नीचे जरूर बनाए।” ठीक यही तो आईएएस फौजिया ने किया, मजबूत नींव के लिए काम।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, वर्तमान में कर्नाटक सरकार के हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट में डाइरेक्टर फौजिया बताती हैं कि आखिर कैसे ‘चिक्काबल्लापुर जिला परिषद’ की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) के रूप में वह अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले स्कूलों का कायाकल्प कर उन्हें पूरी तरह से शिक्षा की आधुनिक पाठशालाओं में बदलने में कामयाब रही थीं। वो कहती हैं, “बच्चों के लिए स्कूल और आंगनबाड़ी एक ऐसा स्थान होना चाहिए जो इस तरह से शिक्षा प्रदान करता हो कि बच्चे स्कूलों में जाना पसंद करने लगें।”
पहल करना
फौजिया तरन्नुम ने अगस्त 2019 में चिक्काबल्लापुर जिले का कार्यभार संभाला और बहुत जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि जिले की आंगनबाड़ियों में कुछ बड़े सुधार की आवश्यकता है। शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए यह महत्वपूर्ण और जरूरी था। वो कहती हैं, “हमारे जिले में 28 जिला पंचायत निर्वाचन क्षेत्र थे, इसलिए हमने तय किया कि पहले चरण में हम 28 स्कूलों को चुनेंगे, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एक।”
जिले के शिक्षक भी समान रूप से प्रेरित थे और जल्द ही उनकी लक्ष्य सूची 28 स्कूलों से बढ़कर 38 स्कूलों तक पहुंच गयी। वो कहती हैं, “स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हमने प्रथम मॉडल स्कूल ‘सरकारी हाई स्कूल मुडेनाहल्ली’ का उद्घाटन किया था। हमें उम्मीद थी कि जल्द ही हम सभी 38 स्कूलों का उद्घाटन करेंगे।
कोविड के समय में काम करना
पूरी दुनिया की तरह ही जब कर्नाटक में भी महामारी की पहली लहर का प्रकोप हुआ और देश में तालाबंदी लागू हो गई, तब भी सरकारी स्कूलों के शिक्षक काम पर जा रहे थे। फौजिया कहती हैं, “वे काफी उत्साही थे और हमने स्कूल के माहौल को बेहतर बनाने में उनकी सेवाओं का उपयोग करने की योजना बनाई। हमने नए सेट अप और योजनाओं को शुरू किया। हम उनके प्रेरणादायक मनोबल और हौसले को कम करना नहीं चाहते थे और इसलिए हमने इसे बनाये रखने और जो काम हमने शुरू किया था उसे पूरा करने का फैसला किया।”
सिर्फ सरकारी स्कूल ही नहीं, फौजिया ने जिले की 37 आंगनबाड़ियों को भी अपनी निगरानी में ले लिया। वो कहती हैं, “पिछले एक साल में हमारी पहल के कारण आंगनबाड़ियों में शिक्षण की गुणवत्ता के साथ-साथ उनकी भौतिक अवसंरचना बेहतर हुई है।”
एक स्कूल का रूपांतरण
स्कूल में पूरी तरह से बदलाव लाना और इसे एक एक आधुनिक रूप देना, कितना आसान या कठिन है! नंदी हिल्स की तलहटी में स्थित एक स्कूल जहां उन्होंने बदलाव की बयार लाते हुए वास्तविक कार्य किए, फौजिया उसके बारे में याद करते हुए बताती हैं। स्कूल का दृश्य बेहद सुंदर था, यह पांच पंचगिरि पहाड़ियों से घिरा हुआ था, लेकिन चट्टानी भूभाग की वजह से वहां तक पहुंचना मुश्किल था। 3 से 4 एकड़ का विशाल परिसर केवल इमारतों और कक्षाओं से भरा था, इसके अलावा और कुछ नहीं।
वो बेहद खुशी के साथ बताती हैं, “हमने अंतरिक्ष में और रंगों को जगह पर लाने के बारे में सोचा। यह कंपाउंड आंशिक रूप से सरकारी धन से बनाया गया था और शेष हमने नरेगा के साथ पूरा किया। हमने अंदर एक छोटा सा पार्क एरिया बनाया। शुरुआत में 9 कक्षाओं में से, केवल 3 में ही 120 छात्रों को समायोजित किया गया। हमने उनमें से एक को शिक्षकों के लिए एक सुंदर स्टाफरूम में बदल दिया, एक में 10-15 कंप्यूटर सिस्टम्स के साथ एक कंप्यूटर लैब बनाई और एक कमरे को विज्ञान प्रयोगशाला में बदल दिया। बच्चों के अपने वैज्ञानिक प्रयोग देखने के लिए एक दूरबीन और माइक्रोस्कोप है। प्रत्येक कमरे में कुछ अनोखा और मंत्रमुग्ध करने वाला है।”
बदलाव की इस प्रक्रिया के दौरान, शिक्षकों की पूरी टीम ने 15 दिनों तक स्कूल में ही डेरा डाले रखा। बैठने की जगह के साथ तैयार एक विज्ञान प्रयोगशाला के अलावा, स्कूल में रचनात्मक और शैक्षिक पुस्तकों के साथ पुस्तकालय और नवीनतम खेल उपकरणों के साथ एक स्पोर्ट्स रूम भी बनाया गया है।
फौजिया कहती हैं, “अब हमारे पास वह सब कुछ है जो आप एक सपनीले स्कूल की कल्पना में सोचते या देखते हैं। बुनियादी ढांचे के लिए, हमने कुछ अद्भुत इंजीनियरिंग कौशल नियुक्त किए और जितना संभव था उतना किया। इतना ही नहीं, हमने एक खो-खो कोर्ट, कबड्डी कोर्ट और एक वॉलीबॉल कोर्ट भी बनाया।”
इतना ही नहीं, स्कूल के अपने एम्फीथिएटर (रंगशाला) के रूम में एक विशेष कमरा है जो योग, ध्यान और स्मार्ट क्लास के लिए उपयोग में लाया जाता है। साथ ही एक कैंटीन है जो छात्रों को घरेलू माहौल प्रदान करती है।
अन्य गतिविधियां
शैक्षणिक रूप से उज्ज्वल और खेल के प्रति उत्साही छात्रों को बेहतर माहौल देने के अलावा, स्कूल ने एक ‘पोषण उद्यान’ भी स्थापित किया है जहां बच्चे अपनी खुद की हरी सब्जियां और फल उगाते हैं। यह उन्हें जैविक खेती और इसके गुणों के बारे में बहुत कुछ सिखाता है। उन्होंने बहु-खाद्य बाग (मल्टीफूड गार्डेन) के लिए एक संपूर्ण जगह भी निर्धारित कर उसे अच्छे से तैयार किया है।
“पूरे स्कूल में वर्षा जल संचयन होता है। इससे बच्चे जल संरक्षण के बारे में सीखते हैं और भविष्य के लिए पानी को संरक्षित करने का महत्व समझ उस ओर काम करते हैं।”
फौजिया ने आने वाले वक्त में पूरे राज्य में ऐसे ही सभी सुख-सुविधाओं से भरपूर कई और सरकारी स्कूलों के निर्माण की योजना बनाई। वो कहती हैं, “हम बीएएलए (बिल्डिंग ए लर्निंग एड) की अवधारणा को शामिल करना चाहते हैं, इसलिए पूरे भवन को ऐसे सामान के साथ पैक किया गया है जिसके साथ आप बहुत कुछ सीखते हैं।”
यही सब कुछ जिले की आंगनबाड़ियों के साथ किया गया, जहां उनके पास सुंदर चाक हैं और चलने की गतिविधियां और भी बहुत कुछ है। वो बताती हैं, “जैसे ही कोई आंगनबाड़ी में प्रवेश करता है, वो दीवारों पर बने कई चित्रों को देखता है। यहां गतिविधि आधारित पाठ्यक्रम तैयार किए गए हैं, उनके पास शिक्षण सामग्री है और पूरी जगह एक रंगीन प्ले स्कूल की तरह दिखती है। कुछ लोगों ने उस जगह के लिए फर्नीचर भी दान किया है।”
इस तरह अगर देखा जाए तो फौजिया तरन्नुम खुशगवार बदलाव की एक यात्रा पर है, क्योंकि उन्होंने न केवल स्कूलों को बदला है बल्कि अपने सपनों को भी पूरा किया है।”
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