हरियाणा की स्कूली शिक्षा को पटरी पर ला दिखाया है इस पूर्व आईएएस अधिकारी ने
- Pallavi Priya
- Published on 17 Jul 2023, 11:33 am IST
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हाइलाइट्स
- पूर्व आईएएस अधिकारी धीर झिंगरन ने हरियाणा के शिक्षा क्षेत्र में पहली बार पेश किया डेवलपमेंट इम्पैक्ट बांड
- इस कार्यक्रम से राज्य के सात जिलों के लगभग 1 लाख 64 हजार छात्रों को हुआ लाभ
- छात्र प्रति मिनट 70 शब्द पढ़ने में सक्षम बने, जो ग्लोबल स्टैंडर्ड से अधिक था
तीसरी क्लास की छात्रा नित्या एक हाई क्लास स्कूल में पढ़ती है। स्कूल में सुविधाओं की कतई कोई कमी नहीं है। लेकिन वह अभी भी स्कूल में हिंदी और अंग्रेजी की पढ़ाई से परेशान है। थोड़ी पढ़ाई में ही पसीने छूट जाते हैं। वह इस समस्या से जूझने वाली अकेली नहीं है।इस बारे में एएसईआर (ASER) की रिपोर्ट आंखें खोलने वाली है। इसमें चिंता जताई गई है कि राज्य भर के सरकारी या प्राइवेट स्कूलों में तीसरी क्लास में ऐसे बच्चों का प्रतिशत 2018 के 27.3 प्रतिशत से घटकर 2022 में 20.5 प्रतिशत रह गया है, जो दूसरी क्लास की किताबें पढ़ सकें। इतना ही नहीं, सरकारी या प्राइवेट स्कूलों में कक्षा 5 में ऐसे बच्चों का प्रतिशत 2018 के 50.5 प्रतिशत से गिरकर 2022 में 42.8 प्रतिशत हो गया, जो दूसरी क्लास की किताबें आसानी से पढ़ सकते हैं।ऐसे चिंताजनक हालात में असम कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी धीर झिंगरन ने लैंग्वेज लर्निंग फाउंडेशन (एलएलएफ) नामक एक एनजीओ की स्थापना की गई। सरकार में करीब 26 साल की सेवा के बाद उन्होंने वीआरएस ले लिया। उन्होंने सर्व शिक्षा अभियान और जिला शिक्षा कार्यक्रम जैसे शिक्षा कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब एलएलएफ के साथ वह बच्चों की मूलभूत शिक्षा में सुधार की दिशा में काम करने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों के साथ सहयोग कर रहे हैं।हाल ही में उन्होंने हरियाणा के सात जिलों में शिक्षा क्षेत्र में पहली बार डेवलपमेंट इम्पैक्ट बांड की शुरुआत की। इससे लगभग 1 लाख 64 हजार छात्रों को लाभ हुआ। यह इतना सफल रहा कि तीन वर्षों के बाद कार्यक्रम के सभी छात्र प्रति मिनट 70 शब्द पढ़ने में सक्षम हो गए। यह पढ़ने के लिए वैश्विक न्यूनतम प्रवीणता मानकों यानी ग्लोबल मिनिमम प्रोफिसिएंसी से अधिक था। यह कैसे संभव हुआ? आइए इस बारे में विस्तार से जानें।
शिक्षा में डेवलपमेंट इम्पैक्ट बांड
दरअसल डेवलपमेंट इम्पैक्ट बांड (डीआईबी) विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए परिणाम देने वाला एक साधन है। इसका प्रयोग पहली बार शिक्षा के क्षेत्र में किया गया है। इसलिए हरियाणा डेवलपमेंट इम्पैक्ट बांड कई मायनों में अनोखा है। आम तौर पर कॉरपोरेट अपने सीएसआर के हिस्से के रूप में विभिन्न परियोजनाओं के लिए एनजीओ को फंड देते हैं। डीआईबी में लक्ष्य को छोड़कर बाकी सभी चीजें तय होती हैं और लंबी अवधि के लिए फंड दिया जाता है।इधर, अधिकारी का एनजीओ-एलएलएफ- पहले से ही फाउंडेशनल लर्निंग के क्षेत्र में काम कर रहा था। उसे एसबीआई और इंडसइंड बैंक से तीन साल के लिए फंड दिया गया और लक्ष्य तय किए गए। यदि तय समय के भीतर एलएलएफ ने लक्ष्य हासिल नहीं किया, तो सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन गारंटर के रूप में आएगा। बैंक को मुआवजा देने के लिए गारंटर के लिए स्लैब तय किए गए हैं। अगर एलएलएफ तय लक्ष्य से अधिक हासिल करने में सफल रहता है, तो उसे बैंक से प्रोत्साहन मिलेगा।
प्रमुख उद्देश्य
श्री झिंगरन का फाउंडेशन शिक्षकों को प्रोफेशनल ट्रेनिंग देने, बच्चों में कॉपी-किताबें पढ़ने की रुचि जगाने, पढ़ाने के तरीकों के साथ शिक्षकों को सलाह देने,गाइड करने और इन सबसे हासिल रिजल्ट की समीक्षा करने का काम करता है। एनजीओ की स्थापना 2015 में हुई थी और तब से यह सरकारी कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग ले रहा है।इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए
उन्होंने कहा, “बच्चों में फाउंडेशन लर्निंग बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह भविष्य की सभी पढ़ाई को प्रभावित करती है। स्टडी मटेरियल के अलावा पढ़ाने के तरीके में भी सुधार की जरूरत है। अधिकतर शिक्षक चॉक-टॉक सिस्टम का उपयोग करते हैं और छात्र कक्षा में चुपचाप बैठे रहते हैं।फाउंडेशन हरियाणा के सात जिलों में ग्रेड-1 और 2 के छात्रों के लिए लिटरेसी में सुधार लाने और राज्य में मूलभूत शिक्षण परिणामों में सुधार के लिए सरकारी शैक्षिक प्रणाली की जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से इस क्षेत्र में काम कर रहा है।
श्री झिंगरन पिछले कई वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। यह बताते हुए कि डीआईबी का निर्णय क्यों लिया गया, उन्होंने कहा- पहला कारण यह है कि हमें लंबे समय के लिए धन मिलता है और ऐसे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में समय महत्वपूर्ण होता है। साथ ही, हम रिजल्ट दिखाने वाला होना चाहते थे और खुद को चुनौती देना चाहते थे। हम यह दिखाना चाहते थे कि हमारा मॉडल बच्चों की सीखने की क्षमता को कैसे बढ़ा सकता है।
कोविड से निपटना
कार्यक्रम दरअसल कोविड से पहले शुरू हुआ। लेकिन लॉकडाउन में सब कुछ बंद हो गया। ऐसे में एलएलएफ को अपने मॉडल को संशोधित करना पड़ा। उन्होंने सामुदायिक कक्षाएं यानी कम्युनिटी क्लासेज शुरू कीं और पढ़ाने के लिए वालंटियर को रखा। इस तरह घर में ही रहकर पढ़ने की सुविधा की शुरुआत की। श्री झिंगरन ने कहा, “यह डीआईबी का सबसे अच्छा हिस्सा है। यह बहुत लचीला है और आप तरीके बदल सकते हैं। ध्यान केवल अंतिम परिणाम पर है।”
अंतिम परिणाम
पांच-छह आधारों पर असेसमेंट बाहरी संगठन से कराया गया था। यह एजुकेशनल इनिशिएटिव्स नामक एक बाहरी संगठन था। इसमें मौखिक शिक्षा (समझ की तरह), एक छात्र एक मिनट में कितने अक्षर और शब्द पढ़ सकता है, डिक्टेशन (वे सही ढंग से लिख सकते हैं या नहीं), और कुछ बेसिक मैथ्स शामिल हैं। लगभग हर छात्र सभी मापदंडों को पार करने में सक्षम थे और प्राप्त लक्ष्य निर्धारित लक्ष्य से 3.5% अधिक था। इस भारी सफलता के लिए एलएलएफ को बैंकों से प्रोत्साहन मिला है। अच्छे रिजल्ट को देखते हुए कार्यक्रम को अब ‘निपुण हरियाणा’ के हिस्से के रूप में पूरे राज्य में लागू किया गया है।
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