भारत के इस हिस्से में प्रवासी कामगारों के लिए मसीहा बन कर ये आए जिलाधिकारी!
- Bhakti Kothari
- Published on 7 Dec 2021, 11:01 am IST
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हाइलाइट्स
- कोविड-19 की चपेट में आकर थके-हरे घर लौट रहे प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार पैदा कर, एक मरती हुई नदी को पुनर्जीवित करना...!
- यह कहानी वास्तव में किसी और दुनिया की लगती है, लेकिन बाराबंकी के जिलाधिकारी आदर्श सिंह के प्रयासों ने इसे सच बनाया है और ‘एक पंथ दो काज’ की कहावत को चरितार्थ किया है।
- रोजगार पैदा करना और कल्याणी नदी का पुनरुद्धार करना
जब कोविड-19 महामारी की पहली और दूसरी लहर ने पूरे देश को प्रभावित किया और लगभग हर जगह तालाबंदी लागू हुई, तो अधिकांश काम-धंधे बंद हो गए और कारोबार पूरी तरह से ठप्प पड़ गया। लेकिन, इसकी सबसे ज्यादा मार देश के प्रवासी कामगारों पर पड़ी। उनके पास न तो काम था, न ही गुजर-बसर करने के लिए पैसे और अब घर जाने के लिए परिवहन की भी सुविधा नहीं थी, उन्हें अपने गांव और परिवार तक पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। लेकिन सबसे बड़ी बाधा जो उन्हें झेलनी पड़ी, वह थी छंटनी की यानी इस मुश्किल वक्त उन्हें काम से निकाल दिया गया और उनका भविष्य भी अंधकार में कहीं खोने वाला था। अब उनके पास करने के लिए कुछ भी नहीं था।
ऐसे संकट की घड़ी में, उत्तर प्रदेश की राजधानी से सटे बाराबंकी जिले के जिलाधिकारी आईएएस डॉ. आदर्श सिंह उनके लिए वरदान बनकर सामने आए। उन्होंने लगभग 800 श्रमिकों के लिए रोजगार पैदा किया और साथ ही एक मृत नदी को पुनर्जीवित किया।
यहां यह ध्यान रखना दिलचस्प होगा कि प्रवासियों की नौकरी किसी न किसी तरह से नदी के पुनरुद्धार से जुड़ी हुई है।
कल्याणी नदी को पुनर्जीवित करना
बड़े शहरीकरण और सभ्यता के बाद भी आज भारत के सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है। लेकिन जब सुव्यवस्थित सिंचाई सुविधाओं की बात आती है, तो देश में इसका अभाव पाया जाता है। जबकि देश के हर भाग में ऐसी नदियां हैं जो देश के प्रमुख हिस्सों को जोड़ती हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर तो गाद से भरी हुई हैं या सूख गई हैं।
ऐसी ही एक नदी है – कल्याणी नदी, 170 किमी लंबी यह नदी ज्यादातर बाराबंकी जिले से होकर बहती है। जब आदर्श ने नदी की दयनीय स्थिति देखी, तो वह व्यथित हो उठे और उन्होंने इसको लेकर कुछ करने का फैसला किया। उन्होंने मन बना लिया कि यदि संभव हुआ तो इसे अपनी मूल स्थिति में पुनर्जीवित किया जाएगा। लेकिन उस समय उन्हें जो नहीं पता था, वह यह था कि ऐसा करने से वह उन सैकड़ों श्रमिकों के लिए रोजगार पैदा करने में भी सक्षम होंगे, जिन्होंने कोविड-19 के बेहद मुश्किल समय में अपनी नौकरी खो दी थी।
कल्याणी नदी के कायाकल्प की योजना ने सितंबर 2019 में आकार लेना शुरू किया। आदर्श याद करते हुए कहते हैं, “यह हमारी कल्पना के लिए एक चुनौती थी।” विभिन्न विभागों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद, सिविल सेवक और उनकी टीम ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के तहत परियोजना को शुरू कर आगे बढ़ाने का फैसला किया।
इस काम को दो भागों में सुनियोजित किया गया। पहला चरण मवैया में 2.6 किमी के खंड को साफ करना और फिर से बनाना था और दूसरे चरण में पास के गांव हैदरगढ़ में 1.5 किमी के खंड का पुनर्निर्माण शामिल था। 59 लाख से अधिक का बजट प्रथम चरण के लिए स्वीकृत किया गया था।
प्रवासी कामगारों के लिए रोजगार पैदा करना
हालांकि, यह परियोजना फरवरी के मध्य में शुरू की गई थी, लेकिन इस वक्त के ठीक बाद देश महामारी की चपेट में आ गया। अब जनशक्ति एक बड़ी बाधा थी, जिसका वे पहले से ही सामना कर रहे थे। बाराबंकी में लोग आमतौर पर मनरेगा के तहत काम करने को तैयार नहीं होते हैं, क्योंकि यह जिला राजधानी लखनऊ के काफी करीब है और लोग बेहतर नौकरी के अवसरों की तलाश में शहर की ओर रुख करते हैं। लेकिन इस बार मामला अलग था।
लगभग 800 रोजाना काम करने और वेतन पाने वाले कामगार, जो अपनी नौकरी खो चुके थे और वैश्विक महामारी से बुरी तरह प्रभावित थे, बाराबंकी लौट आए थे। अब उन्हें जिलाधिकारी द्वारा शुरू किए गए प्रोजेक्ट के तहत काम दिया गया। एक तरफ मवैया में चरण 1 में 500 श्रमिकों को नियुक्त किया गया था, तो वहीं अन्य 300 को हैदरगढ़ में चरण 2 के काम में नियुक्त किया गया।
आदर्श कहते हैं, “यह परियोजना ऐसे कई ग्रामीणों के लिए आशा की किरण के रूप में आई जो अपने जीवन-यापन के लिए संघर्ष कर रहे थे। दूसरा कारण यह था कि यदि नदी का कायाकल्प किया गया और पुनर्जीवित हो गई तो इससे अंततः उन्हें लाभ ही होगा। इस परियोजना का उद्देश्य जल संरक्षण और भूजल संचयन है।”
मवैया में नदी से गाद निकालने में लगभग 60 दिन लगे। नदी के पास बने अतिक्रमण को हटाया गया। पुलिस और राजस्व विभाग भी इस काम में मदद के लिए आगे आए।
आम जनता को संवेदनशील बनाना
वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए, मनरेगा बाराबंकी के उपायुक्त एन डी द्विवेदी ने भी जिले के लोगों को जागरूक करने के लिए कदम आगे बढ़ाया। उन्होंने जिले का भ्रमण किया और लोगों को खुले में शौच करने के नुकसान और अस्वास्थ्यकर पहले के बारे में बताया, साथ ही जल निकायों में या उसके आसपास कचरा डंप करने के खतरे और नुकसान भी गिनाए। आदर्श कहते हैं, “जब हमने लोगों को बताया कि वे नदी का उपयोग खेती-किसानी के लिए कर सकते हैं, इसके बाद से लोगों का सहयोग प्राप्त करना मुश्किल नहीं था।”
उन्होंने परियोजना का विस्तार करने और नदी के पूरे 170 किमी हिस्से को कवर करने की योजना बनाई है।
आदर्श कहते हैं, “लॉकडाउन एक तरह से हमारे लिए एक वरदान था। गतिविधियों पर प्रतिबंधों के कारण हमें फरवरी में रुकना पड़ा। लेकिन जब हमने दैनिक वेतन कामगारों की दुर्दशा और उनकी आजीविका के खतरे में होने के बारे में जाना, तो हमने उन्हें रोजगार देने के बारे में सोचा और इस तरह दो समस्याओं को एक साथ हल किया गया।”
बाराबंकी के जिलाधिकारी डॉ. आदर्श सिंह जैसे अधिकारी ही इस देश की नौकरशाही की असल रीढ़ हैं जो हर मुश्किल वक्त में समाज की हर समस्या का हल निकालते हैं। आदर्श बाराबंकी की कल्याणी नदी, बेरोजगार प्रवासी श्रमिकों और अपने जिले के लोगों के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं। इंडियन मास्टरमाइंड्स उन्हें शुभकामनाएं देता है।
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